
॥ यज्ञ महिमा॥
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॥ यज्ञ ॥
यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए। छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए॥
वेद की बोलें ऋचाएँ, सत्य को धारण करें।
हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें॥
अश्वमेधादिक रचाएँ, यज्ञ पर उपकार को।
धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को॥
नित्य श्रद्धा- भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें।
रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें॥
कामना मिट जाए मन से, पाप अत्याचार की।
भावनाएँ शुद्ध होवें, यज्ञ से नर- नारि की॥
लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए।
वायु- जल सर्वत्र हों, शुभ गन्ध को धारण किए॥
स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो।
‘इदं न मम’ का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो॥
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक, वन्दना हम कर रहे।
नाथ करुणारूप करुणा, आपकी सब पर रहे॥
यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए॥
॥ गुरुवन्दना॥
एक तुम्हीं आधार सद्गुरु, एक तुम्हीं आधार।
जब तक मिलो न तुम जीवन में।
शान्ति कहाँ मिल सकती मन में॥
खोज फिरा संसार सद्गुरु॥ एक तुम्हीं०॥
कैसा भी हो तैरन हारा।
मिले न जब तक शरण सहारा॥
हो न सका उस पार सद्गुरु॥ एक तुम्हीं०॥
हे प्रभु ! तुम्हीं विविध रूपों में।
हमें बचाते भव कूपों से॥
ऐसे परम उदार सद्गुरु॥ एक तुम्हीं०॥
हम आये हैं द्वार तुम्हारे।
अब उद्धार करो दुःखहारे॥
सुन लो दास पुकार सद्गुरु॥ एक तुम्हीं०॥
छा जाता जग में अँधियारा।
तब पाने प्रकाश की धारा।
आते तेरे द्वार सद्गुरु॥ एक तुम्हीं०॥
॥ हमारा युग निर्माण सत्सङ्कल्प॥
१- हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
२- शरीर को भगवान् का मन्दिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
३- मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाये रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
४- इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।
५- अपने आपको समाज का एक अभिन्न अङ्ग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
६- मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे और समाज निष्ठ बने रहेंगे।
७- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अङ्ग मानेंगे।
८- चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
९- अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
१०- मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
११- दूसरों के साथ वह व्यवहार नहीं करेंगे, जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
१२- नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
१३- संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
१४- परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
१५- सज्जनों को सङ्गठित करने, अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
१६- राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
१७- मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे,
तो युग अवश्य बदलेगा। १८- ‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा’ ‘ हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।