• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • प्राक्कथन
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-2
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-3
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-4
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-5
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-6
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -1
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -2
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -3
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -4
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -5
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -6
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-2
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-3
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-4
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-5
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-1
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-2
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-3
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-4
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-5
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-7
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -1
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -2
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -3
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -4
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -5
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -6
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -7
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -9
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -10
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-1
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-2
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-3
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-4
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-5
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-6
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-7
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-1
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-2
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-3
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-4
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-6
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-7
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-9
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • प्राक्कथन
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-2
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-3
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-4
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-5
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-6
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -1
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -2
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -3
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -4
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -5
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -6
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-2
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-3
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-4
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-5
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-1
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-2
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-3
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-4
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-5
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-7
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -1
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -2
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -3
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -4
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -5
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -6
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -7
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -9
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -10
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-1
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-2
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-3
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-4
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-5
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-6
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-7
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-1
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-2
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-3
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-4
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-6
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-7
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-9
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - प्रज्ञा पुराण भाग-2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT TEXT SCAN TEXT TEXT SCAN SCAN


।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
दिनं तृतीयमद्याभूत्सत्संगस्य यथाविधि ।  यथापूर्वं शभोत्साहयुक्तवातावृतौ पुन: ।। १ ।।   गोष्ठया अद्यतनायाश्च शभारम्भो ह्मभूदयम् ।  आप्तुममृतवर्षा त उत्सुका: सर्व एव हि ।। २ ।।  कौण्डिन्य: प्रश्नकर्त्ता स पप्रच्छाद्यतनो मुनि:।  पूर्वोक्तानां तु युग्मानां विषये बुद्धिमत्तम: ।। ३ ।।  
टीका-संत समागम का आज तीसरा दिन था । नित्य की भाँति उत्साह भरे वातावरण में आज की ज्ञान गोष्ठी का शुभारंभ फिर हुआ । सभी इस अमृतवर्षा को अधिक अपना लेने के लिए उत्सुक हो रहे थे । आज के प्रश्नकर्ता बुद्धिमान कौण्डिन्य मुनि ने पूर्वोक्त युग्मों के संबंध में पूछा-।। १ - ३ ।।
कौण्डिन्य उवाच- 
संगति: काऽनयोरत्र देव । सत्यविवेकयो:।  तयोर्युग्मेन धर्मस्य पञ्जमस्य कथं शुभा  ।। ४ ।।   क्रियते चरणस्यैषा पूर्तिरेतद् विविच्यताम् ।  भवता विस्तराद् येन धर्मरूपं नरो व्रजेत्  ।। ५ ।। 
टीका-कौण्डिन्य बोले-हे देव ! सत्य और विवेक की परस्पर क्या संगीत है ? उन दोनों का युग्म किस प्रकार धर्म के पाँच चरणों में से एक की पूर्ति करता है, सो उसका विस्तार पूर्वक विवेचन करें । जिससे धर्म का रूप मनुष्य समझ सकें ।। ४- ५ ।। 
अर्थ-पिछले दिनों महामानवों के विकास के लिए धर्म की आवश्यकता तथा धर्म के ऐसे लक्षण बतलाये गए थे जो प्रत्येक धर्म- सम्प्रदाय में समान रूप से विद्यमान हैं । उन्हीं लक्षणों में से प्रथम युग्म का विस्तार करने का आग्रह विचारवान श्रोताओं की ओर से किया गया । 
आश्वलायन उवाच- 
सत्यस्यार्थस्तु श्रेयोऽस्ति यदाचारे निगूहितम्।  तिष्ठति, भ्रमस्वार्थौ तौ स दुराग्रह एव च  ।। ६ ।।  स्वरूपं नोत्सहन्ते ते प्रत्यक्ष तस्य निर्गतम् । भित्वा चावरणं गन्तुं यथार्थ्यं दूरदर्शिन: ।। ७ ।।   वैपरीत्येन वाप्येतत्सत्यमास्ते तिरोहितम् ।  मान्यतानां विभिन्नानां पारम्पर्यस्य कारणै: ।। ८ ।।   भिन्नस्याज्ञानहेतोश्च सत्यं भिन्न प्रभासते ।  अतो विवेकपूर्वं च गहनं परिचीयते  ।। ९ ।।  
टीका-आश्वलायन ने कहा- सत्य का अर्थ है- श्रेय । वह आवरणों से ढका रहता है । भ्रम, स्वार्थ और आग्रह उसका यथार्थ स्वरूप प्रकट नहीं होने देते । दूरदर्शिता से इन आवरणों को वेध कर यथार्थता तक पहुँचने की आवश्यकता पड़ती है । विभिन्न स्तरों की मान्यताओं, परम्पराओं के कारण सत्य आवरणों में छिपा होता है । अज्ञान के कारण भी कुछ से कुछ भासता है, इसलिए विवेकपूर्वक गहराई में उतरना पड़ता है  ।। ६-९ ।। 
अर्थ-सत्य का स्वरूप छिपाने वाले तीन आवरण-भ्रम, स्वार्थ और आग्रह कहे गए। भ्रम के अंतर्गत जानकारी का अभाव, एकांगी जानकारी, गलतफहमियाँ एवं तत्काल के आकर्षण आदि प्रकरण आते हैं । 
स्वार्थ में औचित्य को छोड़कर अपने- पराए का भाव, व्यापक हित की जगह सीमित का लाभ, दूसरे की श्रम प्रतिभा जैसी विभूतियों पर अपनी छाप डालना आदि सम्मिलित रहते हैं । इसे संकीर्णता भी कह सकते हैं । 
आग्रह के अंतर्गत, परम्परावश, अभ्यासवश, भयवश, प्रमादवश, अहंकारवश दूसरे पक्ष को न देखने की प्रवृत्तियाँ आती हैं । इसे दुराग्रह भी कह सकते हैं । यह सभी सत्य से दूर रखने वाली वृत्तियाँ हैं, अत: विवेक का अभ्यास ही इनको भेदकर सत्य का बोध कराता है।
सत्य प्रत्यक्ष दृश्यमान होते हुए भी मायाजाल में उलझा होने के कारण सामान्यतया प्रकाश में नहीं आ पाता । यह एक विडंबना भी है और विवेकवानों के लिए एक परीक्षा भी । 
यह सत्य है कि भारतीय संस्कृति देव संस्कृति है और हमारा वास्तविक हित उसी के अनुगमन से होगा । पर पश्चिमी भौतिकवादी भोगवाद की लहर हमें अधिक उपयोगी दिखाई देती है, यह एक भ्रम है । 
यह सत्य है कि हर घर में बेटे भी हैं और बेटियाँ भी । बेटियों के संबंध का प्रश्न आता है, तो लोग बन जाते हैं सिद्धांतवादी। पर जब बेटे का प्रश्न आता है तब दहेज की आकांक्षा करने लगते हैं । सत्य की यह उपेक्षा स्वार्थजन्य है । 
यह सत्य है कि परिवार निर्माण में जारी की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है,'' इसलिए उसे योग्यता तथा सम्मान दोनों दिए जाने चाहिए । किन्तु परंपरागत आग्रह के कारण उसे मानते हुए भी क्रियान्वित नहीं किया जाता । यह सत्य पर आग्रह का आवरण है । 
पम्पासर का बगुला 
श्री राम लक्ष्मण पम्पा सरोवर के किनारे बैठे थे । बगुलों को देखकर राम कहने लगे-''लक्ष्मण ! लगता है यह बगुले बड़े धार्मिक हैं । पैर रखते हैं तो ऐसे सँभाल कर कि किसी जल जीव को चोट न लग जाय ।'' 
उक्ति सुनकर एक मछली बोली-''आप जो देख रहे हैं वह भ्रम हैं । वास्तविकता यह है कि इनने हमारे सारे परिवार को निगल लिया है ।'' 
मछलियों द्वारा व्यक्त उक्ति के माध्यम से श्रीराम ने लक्ष्मण को वेशधारी तथाकथित धर्माचार्यों के पाखंड को समझाया । वे बोले कि सामान्यजन सत्य-असत्य का अंतर समझ नहीं पाते एवं बहुधा इनसे धोखा खा जाते हैं । 
लोमड़ी का भ्रम 
भोर हुआ तो लोमड़ी आँखें मलती हुई उठी । पूँछ उसकी उगते हुए सूरज की ओर थी । छाया सामने पड़ रही थी । उसकी लंबाई और चौड़ाई देखकर लोमड़ी को अपने असली स्वरूप का आभास पहली बार हुआ । 
सोचने लगी वह बहुत बड़ी है । इतनी बड़ी कि समूचे हाथी के बिना उसका पेट भरेगा नहीं । सो हाथी का शिकार करने वह घने जंगल में घुसती चली गयी । भूख जोरों से लग रही थी; पर छोटी खुराक से काम क्या चलता । उसे हाथी पछाड़ने की सनक चढ़ी थी । 
भूखी लोमड़ी भाग-दौड़ में थक कर चूर- चूर हो गयी । तब तक दोपहर भी हो गया। सुस्ताने के लिए वह जमीन पर बैठी, तो साग नजारा ही बदल चुका था । छाया सिमट कर पेंट के नीचे जा छिपी थी। 
इस नयी असलियत को देखकर लोमड़ी का चिंतन बदल गया । वह सोचने लगी इतने छोटे आकार के लिए तो एक छोटी मेंढकी भी बहुत है । मैं बेकार छाया के भ्रम में इतने समय भटकी । 
मनुष्य भी इसी तरह अपनी हविश को देखकर अपनी आवश्यकतायें आसमान के बराबर मानने लगता है । विवेक के आधार पर जब सत्य का आभास होता है, तो उसका दृष्टिकोण बदल जाता है । कभी- कभी तो वह स्वयं के विषय में भी भ्रांति का शिकार हो जाता है । 
अपने को भूलना 
मैला देखने दस जुलाहे गए । घर से गिन कर चले थे कि कहीं कोई बिछुड़ न जाय। मेला देख कर लौटे, तो संख्या गिनने लगे।  सभी ने बारी-बारी से गिना, तो नौ ही होते थे । अपने को न गिनने की हरेक ने भूल की । बैठ कर रोने लगे । हमारा एक साथी बिछुड़ गया । 
एक समझदार राहगीर ने उनकी समस्या सुनी तो कहा-''मैं अभी बिछुड़े को मिलाये देता हूँ ।'' उसने सभी के सिर में एक- एक चपत जड़ी और साथ ही गिनती गिनी; पूरे दस हो गए । 
इस समझदार ने उनको समझाया कि दुनिया में जीना हो तो भ्रम-जंजालों से बचकर कम से कम स्वयं को तो मत भूलो। 
सत्य और असत्य में अंतर 
दिन ढलने लगा। व्यक्ति की परछाई लंबी और लंबी होने लगी । वह मन ही मन प्रसन्नता का अनुभव कर रही थी । उसे लगा मानो आज बाजी मार ली हो । अभिमान के स्वर में परछाई ने व्यक्ति से कहा-''आज वह दिन भी आ गया जब तुम्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा । तुम जैसे थे वैसे ही बने रहे और मैं तुम्हारी होकर भी तुमसे कितनी बड़ी हो गयी ।'' 
व्यक्ति ने हँसते हुए कहा-''पगली ! सत्य और असत्य में यही तो अंतर होता है । मूल सत्य में कभी कोई अंतर नहीं होता । अपने मिथ्या स्वरूप को देख लो जो सदैव घटता-बढ़ता रहता है ।'' 
विवेक और विज्ञान 
मनुष्य को एक पंख उग आया-विज्ञान का पंख । उसने जोर लगाया और आकाश में उड़ गया । पर अब वह मुक्त और शांत नहीं था । चारों ओर जटिलता की आधियों ने सताना आरंभ कर दिया । भ्रांतियों ने मन को और विक्षुब्ध कर दिया । 
आकाश को चीरती हुई काल की आवाज आई-''वत्स, विवेक का एक और पंख उगा । भीतर वाली चेतना का भी विकास कर, वही संतुलन कर सकेगी, तुझे सत्य का बोध करा सकेगी ।'' 
राजकुमार का भ्रम 
एक कन्या थी । असाधारण सुंदरी । उस देश के राजकुमार को भनक पड़ी तो देखने पहुँचा और मुग्ध होकर उसे घर ले जाने का आग्रह करने लगा । 
राजकुमार की कई पत्नियाँ थी । उसकी अन्य कुटेवें भी उजागर थीं । कन्या उसके घर जाने को सहमत न हुई । तो धमकियाँ मिलने लगीं । पिता और परिवार संकट में फँस गया । 
लड़की ने सूझ-बूझ से काम लिया । राजकुमार से पंद्रह दिन तक पुनर्विचार का अवसर माँग लिया । 
इस बीच लड़की ने जुलाब कीं दवा लेना आरंभ कर दिया । दस्त होते गए । मल को एक घड़े में भरती चली गयी । अतिसार के अतिशय बढ़ जाने से चेहरा मुरझा गया । आँखें धँस गयीं । होठ सूख गए और शरीर ठठरी बन गया । सान करने से दुर्गंध छूटने लगी। वालों के गुच्छे बँध गए और जुएँ रेंगने लगे । 
राजकुमार पंद्रह दिन उपरांत फिर लड़की से मिलने पहुँचा । देखा तो सारा दृश्य ही बदला हुआ था । आश्चर्यचकित होकर उसने पूछा-''पिछला रूप-यौवन कहाँ गया ?'' 
लड़की ने उँगली का इशारा घड़े की ओर कर दिया और कहा-''उसी में बंद है ।'' खोला तो राजकुमार ने देखा उसमें सड़ा हुआ मल-मूत्र भरा हुआ है । 
विवेक जगा । आँखें खुलीं । मल-मूत्र भरा यौवन ही सौंदर्य दीखता है । राजकुमार का भ्रम टूट गया । उसने हठ छोड़ दिया और घर वापस लौट गया। 
नगर वधू ने विवेक चक्षु खोले 
पाटलिपुत्र की नगर वधू कोशा का रूप- लावण्य उन दिनों अद्वितीय था । उसकी एक मुस्कान परबड़े-बड़े श्रीमंत सब कुछ लुटाने को तैयार रहते थे । 
एक दिन शाल्यन बुद्ध पीठ के मठाधीश वसंत गुप्त उधर से निकले, तो कोश पर उनकी नजर पड़ी । सोये कुसंस्कार जागे और वे उसी संत वेष में नगर वधू के प्रांगण में जा पहुँचे । कोशा का अनुमान था कि वे भिक्षाटन के लिए आये होंगे, सो उनका सत्कार करते हुए भिक्षा देने के लिए सेविका को संकेत कर दिया; पर उनका अभिप्राय तो कुछ और ही था । वे प्रणय निवेदन कर रहे थे । 
कोशा ने तिस्कार करना तो ठीक न समझा; पर शर्त लगा दी कि इतनी रत्न- राशि वे प्रस्तुत कर सकें, तो ही उनकी मनोकामना पूरी हो सकेगी । बसंत गुप्त चल दिए और जिन सम्पन्नों से उनका परिचय था, उन सभी से संग्रह करके उतनी सम्पदा जुटा ली । लंबे डग भरते हुए आये और वह राशि कोशा के चरणों पर रख दी । 
कोशा ने उन रत्नों से अपने पैर रगड़- रगड़ कर घिसे और उन्हें नाली में फेंक दिया । कहने लगी-''देव । आपका वेश और तप मेरे मलिन शरीर से श्रेष्ठ है । उसका उपार्जन इसी प्रकार नाली में चला जायेगा । जैसे कि यह रत्न-राशि इस गंदी नाली में बह गयी ।'' 
कोशा का उद्बोधन उनके हृदय को चीर कर घुस गया । विवेक जागा, तो वे उल्टे उसे गुरु भाव से प्रणाम करते हुए अपने शील का बचाव करते उल्टे पैर लौट गए ।
 चूहे की नादानी 
एक नादान चूहे की किसी मसखरे खरगोश से दोस्ती थी । चूहा, खरगोश से कहता-''अपने जैसा मुझे भी बना लो ।'' 
जब हठ न छोड़ी, तो खरगोश ने उसे गुड़ की चासनी में सन कराया और रुई में लोट आने की सलाह दी । देह पर रुई चिपक गयी, खरगोश जैसा लगने लगा । 
एक दिन तो खूब प्रशंसा हुई । दूसरे दिन वर्षा हुई और रुई छूट गयी । असलियत खुल जाने पर सभी उसे मूर्ख बनाने लगे। सत्य अधिक दिन तक छिपा नहीं रह सकता वास्तविकता प्रकट होकर ही रहती है । 
सत्यभागं बच: सत्यं मन्वते यादृशं श्रुतम् ।  दृष्टं वा विद्यते यच्च कर्तव्यं तद्विना छलम् ।। १० ।।  यथार्थतोऽस्य प्राकट्य सत्यमत्राऽभिधीयते ।  सीमामिमां समुल्लंघ्य यान्त्यग्रे तत्यदर्शिन: ।। ११ ।।   सत्यं यथार्थतैवेति श्रेयो भावत्वमेव च ।  सद्भावभरितश्रेय: साधनायै च कर्म यत् ।। १२ ।।  कथितं च वच: सत्यं विद्यते तत्परं भवेत् ।  बालबोधाया च प्रोक्तमलंकारधियाऽपि वा ।। १३ ।। 
टीका- सत्य वचन को सत्य का एक अंग मानते हैं । जैसा सुना-देखा या किया जाता है, उसे बिना छल किए यथार्थ रूप में प्रकट कर देना सत्य का मोटा स्वरूप है, पर तत्वदर्शी लोग इस परिधि से आगे जाते हैं कि यथार्थता ही सत्य है । श्रेय भावना सत्य है । सद्भावनापूर्ण श्रेय साधना के लिए किए गए कृत्य और कहे गए वचन भी सत्य हैं । भले ही उन्हें बालबोध के लिए आलंकारिक क्या से हेर-फेर करके भी कहा गया हो  ।। १०- १३ ।। 
अर्थ-सत्य का मोटा स्वरूप सबकी समझ में सहज ही आ जाता है । सत्य का सुक्ष्म स्वरूप कठिनाई से समझ में आता है । दोनों समझे बिना सत्य अधूरा रह जाता है। तत्वदर्शी कम तत्व को अधिक महत्व देते हैं, इसीलिए विवेक पूर्वक सत्यं की उस गहराई तक जाने का आग्रह करते हैं। 
कहानीकार और कवि के कथन में सत्य कम, कल्पना अधिक होती है । पर वे झूठे नहीं कहलाते । अपनी कल्पना के आधार पर जीवन के उन सत्यों को स्पष्ट कर देते हैं जिसे वैसे समझना या समझाना कठिन होता है । 
श्रेष्ठ चिकित्सक परिस्थितियाँ देखकर रोगी को कभी उसके छोटे असंयम से भी बड़े नुकसान की बात कहकर भयभीत कर देते हैं । कभी कठिन रोगों को भी सामान्य कहकर उनका मनोबल बनाये रखते हैं । यह सब उद्देश्य और सद्भाव को देखते हुए झूठ की सीमा में नहीं आता। 
मनोवैज्ञानिक मनो रोगियों के साथ तथा कुशल अभिभावक और शिक्षक बालकों के साथ ढेरों बनावटी शब्द प्रयोग में लाते हैं । पर वे सभी श्रेय तत्व के जाते श्रेष्ठ सत्य माने जाते हैं । 
मात्र शब्दों की सचाई फरेब 
एक फल वाले की दुकान पर तीन उचक्के खड़े थे । उनमें से एक ने मालिक की आँखें बचाकर एक बड़ा फल चुराया और चुपके से साथी के हवाले कर दिया । पकड़े जाने के भय से उसने तीसरे की ओर खिसका दिया और उसने अन्य साथी के हवाले करके उसे खिसका दिया । 
फल की चोरी दुकानदार की पकड़ में आई । वह उचक्कों से झंझट करने लगा। वे चोरी से इन्कार करते थे, इस पर तीनों से कसम खाने को कहा गया । 
जिसने उठाया था उसने कसम खाई कि मेरे पास फल नहीं है । दूसरे ने कसम खाई- 'मैंने नहीं उठाया ।' तीसरे ने कसम खाई-'न मैंने उठाया न मेरे पास है ।' कसमें शब्द छल की दृष्टि से सही थीं; पर तथ्यत: वे तीनों ही झूठ बोल रहे थे । 
झूठ बड़ा या सत्य ? 
राज्य में जासूसी के अपराध में एक विदेशी पकड़ा गया । न्यायाधीश ने उसे फाँसी की सजा सुनाई । काल कोठरी मे ले जाने से पूर्व उसे राजा के सामने लाया गया । साथ में एक दुभाषिया अधिकारी भी था । राजा ने पूछा-''तुम्हें कुछ कहना है ।'' उत्तर में विदेशी ने राजा को अपशब्द कहे और उसे न्याय का ढोंग रचने वाला कहा । 
राजा ने दुभाषिए से पूछा-''यह क्या कहता है ।'' अधिकारी बोला-''हुजूर, यह अपने बीबी-बच्चों की याद कर रहा है और आपके न्याय की दुहाई देते हुए कह रहा है कि सजा अपराध से अधिक दी जा रही है ।'' राजा ने उसकी सजा कम करते हुए कहा-''इसे कोड़े लगाकर इसके देश की सीमा में छोड़ दिया जाय ।'' 
तभी एक दूसरा अधिकारी जो इस विदेशी भाषा को समझता था बोल उठा-''नहीं महाराज ! इसने आपको गालियाँ दी हैं और आपके न्याय को ढोंग कहा है । इसकी सजा बढ़नी चाहिए और गलत अर्थ बतलाने वाले अधिकारी को भी दंड मिलना चाहिए ।'' 
राजा गंभीर मुद्रा में बोले-''हो सकता है कि शब्दों के अनुसार तुम्हारा कथन सत्य हो, परंतु मुझे पहले अर्थ में अधिक बड़ा सत्य दिखता है । अपराधी ने न्याय को ढोंग शायद इसीलिए कहा कि उसमें औचित्य कम रहा हो । मुझे उसकी मनोभूमि और अपना कर्तव्य समझने का अवसर जिस कथन से मिला वह अधिक सत्य है । तुम्हारे सत्य से तो मेरे क्रोध और अपराधी के असंतोष में वृद्धि होती और न्याय की प्रामाणिकता घटती ।'' 
सत्य की छाया 
एक गृहस्थ रामदेव अपनी युवा पत्नी और एक बालक-बालिका को छोड़कर विदेश व्यवसाय के लिए चले गए । वर्ष में एकाध बार आकर व्यवस्था कर जाते और पैसा प्रतिमाह भेजते रहते । 
एक बार कई महीनों तक पत्र नहीं; पर पैसा आता रहा । फिर पत्र आया जिसमें अक्षर ठीक से नहीं बने थे । लिखा था कार्य की व्यस्तता और दायें हाथ में चोट लग जाने की वजह से पत्र न लिख सका । अभी भी अक्षर ठीक नहीं बनते हैं । एक टाइप राइटर ले रहा हूँ, उससे दिक्कत हल हो जायेगी । 
फिर समय पर टाइप किया हुआ पत्र और पैसा आने लगा । स्वयं आने की बात लिखते; पर ऐन मौके पर कोई मजबूरी बतलाकर रह जाते । इस प्रकार कई वर्ष बीत गए । लड़का बड़ा हो गया । नौकरी से लग गया । बेटी की शादी भी हो गयी । समय पर सहायता, प्यार भरे पत्र, उपहार आदि आते रहे, पर रामदेव न पहुँचे । 
अंत में लड़का स्वयं उनके पास गया । निर्धारित पते पर एक अधेड़ व्यक्ति मिले। लड़के ने अपना परिचय दिया । उन्होंने उसे खूब प्यार दिया और कहा-''बेटे इसी दिन की प्रतीक्षा थी । वास्तव में तुम्हारे पिता का देहांत एक दुर्घटना में तभी हो गया था, जब कुछ माह तुम्हें पत्र नहीं मिले । कंपनी ने मुआवजे में इतनी रकम दी थी, जिससे तुम्हारा सब खर्च चलता रहा । परंतु यदि तुम्हें, तुम्हारी माँ को यह पता लग जाता, कि तुम्हारे पिता नहीं हैं तो सारा घर बर्बाद हो जाता, तब पैसा कुछ न कर पाता । बेटे, रामदेव मेरे मित्र थे । मैंने तुम्हारे हित में ही उन्हें अब तक तुम लोगों के ख्यालों में जिंदा रखा । हमारे पिता जीवित है, वही सब सम्भालते है, इस सत्य ने ही तुम्हें ऐसी मुसीबत से पार कर दिया, जिसमें बड़े-बड़े ढह जाते हैं ।
कौन किसके पीछे भागता है ? 
एक आदमी रस्सी से गाय बाँध कर लिये जा रहा था । रास्ते में दो फकीर उसे देखते हुए उधर से गुजरे । 
उनमें से एक बोला-''आदमी ने गाय बाँध रखी है ।'' दूसरे ने कहा-''गाय ने आदमी को बाँध रखा है ।'' बातें दोनों की किसी कदर सही थीं । रस्सी का एक सिरा आदमी के हाथ में था, दूसरा गाय के गले में । दोनों एक दूसरे को जकड़े हुए थे । दोनों फकीरों में से किसका कहना अधिक सच है । यह जानने के लिए रस्सी आदमी के हाथ से छुड़ा दी गई । गाय जंगल की तरफ भागी और आदमी पीछे-पीछे दौड़ा। बूढ़े फकीर ने कहा-''देखा, गाय ने ही आदमी को जकड़ रखा है न । आँखें खोलकर देखो कौन किसके पीछे भाग रहा है । देखने में आदमी गाय को बाँधे हुए है, पर सूक्ष्म सत्यं यह है कि आदमी गाय से बँधा है ।'' 
दवा के तीन शर्तिया लाभ 
व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने के लिए कभी-कभी सत्य को तोड़-मरोड़ कर भी बोलना पड़ता है । इस प्रकार कहे गए वचन असत्य की परिधि में नहीं आते । एक चटोरा था, खाँसी का मरीज, इलाज कराता तो फिरता था; पर किसी की औषधि से लाभ न होता था । 
एक नये चिकित्सक की प्रशंसा सुनकर उनके पास गया और बोला-''परहेज तो मुझसे न होगा, पर जो बतायें सो खाता रहूँगा ।'' 
चिकित्सक हँसोड़ था । उसने कहा-''जो जी में आये खाओ और मेरी दवा आजमाओ । तीन लाभ शर्तिया मिलेंगे ।'' 
चटोरे ने पूछा-''तीन लाभ कौन से ?'' उत्तर मिला-''घर में चोर नहीं घुसेंगे । कुत्ते काटेंगे नहीं । बुढ़ापा आयेगा नहीं । खाँसी ठीक होने न होने का वादा तो मैं नहीं कर सकता ।'' 
दवा लेने लगा । लाभ नहीं हुआ । जीभ पर काबू न होने से वह कुछ भी खाता था। एक दिन पूछा बैठा-''खाँसी तो कम नहीं हो रही है तो जो तीन शर्तिया लाभ आपने बताये वे कैसे मिलेंगे ?'' 
चिकित्सक ने कहा-''पथ्य से न रहने परं खाँसी बढ़ती जाएगी । रात भर खाँसने पर जागना पड़ेगा तो चोर कैसे आएगें । अशक्तता बढ़ेगी, कमर झुक जाएगी, लाठी लेकर चलना पड़ेगा, सो डर कर कुत्ता नहीं काटेगा  तीसरे जवानी में ही बेमौत मरना पड़ेगा, सो बुढ़ापा आन तक जीने की जरूरत ही न पड़ेगी । 
चटोरेपन से कितनी हानियाँ हो सकती हैं, यह सोचकर मरीज ने अपनी आदत सुधार ली और बिना दवा खाये ही अच्छा हो गया। जो सत्य समर्थ चिकित्सक ने मरीज की मनोभूमि के अनुकूल हँसी-हँसी में दिया था, वह सत्य ही था । बालकोचित ढंग से समझाना कभी-कभी इसी कारण अनिवार्य हो जाता है । इससे कम मैं व्यक्ति समझते ही नहीं । 
बहुमूल्य जेवर 
कई बार परिस्थितियाँ ऐसी होती है कि यथार्थता सामने होते हुए भी सामने वाले की मन स्थिति को देखते हुए बात बहला करं कहनी पड़ती है । अर्थ उसका फिर भी वही होता है । फारसी धर्म गुरु रबी मेहर के दो बच्चे थे। दोनों को वे बहुत प्यार करते थे । भोजन साथ-साथ बैठकर ही कराते थे । 
एक दिन दोनों बच्चे अचानक बीमार हुए और कुछ ही घंटों के भीतर मर गए । 
माता को दु:ख तो बहुत हुआ पर वे जानती थीं कि मेहर को और भी अधिक दु:ख होगा । उनका दु:ख हल्का करने का वे उपाय सोचने लगीं । बच्चों की लाश को उनने बिस्तर पर लिटा कर कपड़े से ढक दिया । 
मेहर आये । भोजन से पहले उनने शरबत का एक गिलास हाथ में थमाया और बच्चों की बावत वे पूछें, इससे पहले ही एक प्रसंग आरंभ कर दिया- 
''मैं एक दिन पड़ोसिन के दो जेवर माँग कर लाई थी । कुछ दिन तो उसने पहनने दिए और फिर माँगने लगी । देने का समय आता है तो मेरा मन न देने को आता है और फूट-फूट कर रोने को जी करता है ।'' 
मेहर ने कहा-''यह बुरी बात है । जिसने हँसकर उधार दिया उसे हँसकर ही वापस करना चाहिए । इसमें रोने की क्या बात है?'' 
पत्नी ने कहा-''तो फिर वे जेवर तुम्हें दिखा दूँ जिन्हें वापस करना है ।'' मेहर ने कहा- ''दिखा दो ।''
हाथ पकड़ा कर वे पति को वहाँ ले गईं, जहाँ बच्चे मरे पड़े थे । उनके न रहने से मेहर को दु:ख तो बहुत हुआ, पर जेवर लौटाने के दृष्टांत से वे किसी प्रकार मन समझाते हुए चुप हो गए ।
मुसीबत में भी सच 
कभी-कभी प्रत्यक्ष अहित दिखाई देते हुए भी सत्य कह देना चमत्कारी सिद्ध होता है। ऊँटों का एक कारवाँ जालान (ईरान) से बगदाद जा रहा था । रास्ते में डाकुओं का एक गिरोह मिला । उसने सब सौदागरों की मुश्कें बाँध दी और जो कुछ असवाब था सब लूट लिया । 
इस कारवाँ के साथ एक छोटा लड़का बगदाद पढ़ने के लिए जा रहा था । कपड़े उसके बिल्कुल गरीबों जैसे थे । डाकुओं ने उसे छोड़ दिया कि उसके पास क्या हो सकता है? तो भी एक डाकू उससे पूछ ही बैठा-''लड़के, तुम्हारे पास कुछ है क्या ?''
लड़के ने अपनी जाकिट में सिली हुई ४० असर्फियाँ खोलकर डाकुओं को दिखा दीं। और कहा-''मेरी माँ ने शिक्षा दी थी कि कितनी ही मुसीबत क्यों न आये झूठ मत बोलना । सो मैंने तुम्हारे सामने भी झूठ नहीं बोला ।'' 
लड़के की सचाई का डाकुओं पर बड़ा असर पड़ा और उनने उसी दिन से डाका मारना बंद कर दिया । ऊँट वालों का माल लौटा दिया और भले आदमी की जिंदगी जीने लगे । 
First 14 16 Last


Other Version of this book



प्रज्ञा पुराण भाग-2
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-3
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-4
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग 3
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-4
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • प्राक्कथन
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-2
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-3
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-4
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-5
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-6
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -1
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -2
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -3
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -4
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -5
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -6
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-2
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-3
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-4
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-5
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-6
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-1
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-2
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-3
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-4
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-5
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-6
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-7
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-8
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -1
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -2
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -3
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -4
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -5
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -6
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -7
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -8
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -9
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -10
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-1
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-2
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-3
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-4
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-5
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-6
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-7
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-8
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-1
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-2
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-3
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-4
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-6
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-7
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-8
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-9
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj