• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • प्राक्कथन
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-2
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-3
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-4
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-5
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-6
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -1
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -2
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -3
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -4
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -5
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -6
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-2
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-3
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-4
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-5
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-1
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-2
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-3
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-4
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-5
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-7
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -1
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -2
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -3
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -4
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -5
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -6
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -7
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -9
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -10
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-1
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-2
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-3
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-4
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-5
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-6
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-7
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-1
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-2
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-3
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-4
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-6
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-7
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-9
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • प्राक्कथन
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-2
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-3
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-4
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-5
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-6
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -1
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -2
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -3
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -4
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -5
    • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -6
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-2
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-3
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-4
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-5
    • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-1
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-2
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-3
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-4
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-5
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-6
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-7
    • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -1
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -2
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -3
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -4
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -5
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -6
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -7
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -8
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -9
    • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -10
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-1
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-2
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-3
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-4
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-5
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-6
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-7
    • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-1
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-2
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-3
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-4
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-6
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-7
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-8
    • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-9
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - प्रज्ञा पुराण भाग-2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT TEXT SCAN TEXT TEXT SCAN SCAN


॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 51 53 Last
सत्प्रयोजनहेतोञ्च व्यक्तिभ्यस्त्वर्पितानि तु । योग्येथ्यस्त्वनुदानानि प्रत्यायान्ति प्रयच्छत: ॥६०॥ असंख्यतां गतान्येव प्रियंग्वादीनि तानि तु । वप्तुरायान्ति शस्यानि सहस्त्रत्वं गतानि च ॥६१॥
टीका-सत्प्रयोजनों के लिए प्रामाणिक व्यक्तियों के हाथ में सौंपे गए अनुदान असंख्य गुने होकर देने वाले के पास वापस लौटते हैं । मक्का, बाजरा आदि के बीज उगने पर सहस्रों गुने होकर बोने वाले के पास वापस लौटते हैं॥६०-६१॥
बूँद, जो मोती बनी
स्वाति नक्षत्र की वेला थी । खेतों को पानी की जरूरत पड़ी । बादलों में बसने वाली बूँदे मचलने लगी, बोली- "हमें आसमान नहीं, जमीन चाहिए । उठने में क्या आनंद । नीचे वालों के साथ आत्मसात् बनकर क्यों न जिएँ?"
बादल अपनें समुदाय को अंचल में ही समेट रखना चाहते थे । बरसने की उन्हें जल्दी न थी । फिर भी बूँदमचली सो मचली । आगे-पीछे सोचे बिना धरती पर टपक ही पड़ी । सहेलियों को यह उताबली भाई नहीं।
हवा ने साथ नहीं दिया । खेतों तक दौड़ सकने की उसमें सामर्थ्य नहीं थी। फिर भी सोचतीं रही । मन मसोसकर क्यों रहा जाय? जितना बन पड़े उतना ही क्यों न किया जाय?
बूँद बहुत दूर न चल सकी और जहाँ भी बन पड़ा वहीं बरस पड़ी । सरोवर तट पर बैठी हुई सीप ने उसकीममता को परखा और मुँह खोल दिया-"देवि! आओ तुम्हें कलेजे से लगाकर रखूँगी । तुम से बढ़कर कौन है, इस संसार में जिसे अपना बनाऊँ?" सीप और स्वाति बिंदु का संयोग मोती बन गया । अनुदानी और भाव पारखी दोनों धन्य हो गए ।
नाजीवाद से संघर्ष करने वाले पादरी कोल्वे का जीवन वृतांत इस बात का साक्षी है कि मनुष्य के सत्कार्य उसेएक दिन अमर कर देते हैं ।
धन्य कोल्वे
पोलौंड के पादरी कोल्वे के बलिदान की ४२ वीं बरसी पर रोमन कैथोलिक चर्च की बड़ी सभा ने 'धन्य' की उपहार घोषणा की । उनका बलिदान ईसाई समाज में सराहा गया ।
कोल्वे ने विद्याध्यन के उपरांत धर्मोपदेशन की दीक्षा ली और वे आजीवन सच्चे मन से इसी व्रत का निर्वाह करते रहे ।
नाजियों ने पोलैंड पर आक्रमण किया और उसे पैरों तले रौंद डाला । कितने ही प्रजाजन मारे गए और कितने ही बंदी बना लिए गए, अत्याचार की हद थी ।
पकड़े गए बंदियों में १४ वीं कतार का एक व्यक्ति भाग खड़ा हुआ । कप्तान ने आज्ञा दी कि वह आज शाम तकन मिला, तो कतार के कैदियों में से किन्हीं दस को मौत के घाट उतार दिया जायेगा ।
वह मिला नहीं । पूरी कतार के दिल धड़क रहे थे, कि न जाने कल कितने प्राणों पर बीतेगी ।
इन पकड़े हुओं की १४ वीं पंक्ति में पादरी कोल्वे भी थे । वे सभी घबराये हुओं को धैर्य बँधाते रहे, उनमें से एकव्यक्ति बहुत कमजोर तबियत का था, उसे अपने स्त्री-बच्चों का मोह बहुत सता रहा था । उसका रात भर बिलखना जारी रहा । यद्यपि यह निश्चित नहीं था कि दस अभागों में उसका नाम होगा या नहीं?
सबेरा होते ही कप्तान आया उसने दस छाँटने प्रारंभ किये । संयोग से वह बिलखने वाला उसी छाँट में आ गया, उसके आँसू रुक नहीं रहे थे ।
पादरी कोल्वे आगे बढ़कर आये और छाँटने वाले कप्तान से कुछ निवेदन करने की बात कहने लगे । कप्तान ने कड़ककर कहा-"कहो, क्या कहना है?" उनने उँगली का इशारा करते हुए उस व्यक्ति की ओर कहा-" उसकी जगह पर मुझे चुन लिया जाय। इसका बच्चों वाला परिवार है । मैं तो अकेला हूँ ।"
कप्तान ने बात मान ली । उस आदमी की जगह कोल्वे को मौत की कोठरी में धकेल दिया गया । दसों को भूखसे तड़पा कर मारा जाना था । कोल्वे सभी को धैर्य बँधाते और ईश्वर की भक्ति में लग जाने को कहते । अपने हिस्से का रोटी का टुकड़ा, उनमें से जो अधिक कमजोर होता, उसे दे देते।
कोल्वे के बलिदान की कहानी नाजी आक्रमण समाप्त हो जाने के बाद भी सबको याद रही और उन्हें धन्यमाना गया ।
संत की अंतदृष्टि
भगवान् का विधान सुनियाजित है । जो देता है, उसी अनुपात में वह पाता भी है ।
एक संत के यहाँ दो अतिथि पहुँचे । दोनों भूखे थे । संत स्थिति समझ गए। उसने दो रोटियाँ में से एक-एक उन्हें दे दी, वे खाने लगे ।
इतने में एक नौकर आया । उसने कुछ रोटियाँ दीं । गिनी तो वे अठारह थीं । संत ने लौटायीं और कहा-"देनेवाले ने हिसाब में भूल की है ।"
नौकर चला गया और दुबारा लौटा, तो थाली में २० रोटियाँ दीं। संत ने ले ली और तीनों ने पेट भर लिया।
आगंतुकों ने १८ लौटाने और बीस लेने का रहस्य पूछा, तो संत ने कहा-" भगवान् का वचन है कि मैं एकके बदले दस देता हूँ । मैंने आप लोगों को दो दी, तों मुझे बीस मिलनी चाहिए । पहली बार १८ थीं, सो मैने हिसाब में गलती देखकर लौटा दीं । दूसरी बार २० आई तो मैंने समझा कि ईश्वर ने अपने बवचन का पालन किया है ।"
सबसे बडा दान
दुर्भिक्ष को सहायता की जरूरत पड़ी। माँगने का काम ईसा ने अपने जिम्मे लिया । बहुतों ने बहुत कुछ दिया; किन्तु एक बुढ़िया मात्र दो पैसे ही दे सकी । लोगों ने उसका उपहास किया तो ईसा ने डाँटा । यह चार पैसे का सूत कातती है और पेट भरने के उपरांत जो कुछ बचा सकती थी, उसे मेरे सुपुर्द करती है । इसका दान उन लोगों से बड़ा है, जो अपनी पहाड़ जैसी दौलत में से एक ढेला भर देते हैं और बड़ी यशि देने का अभिनय रचते है ।
साधु की विडम्बना
जो जैसा बोता, वैसा ही काटता है । संकीर्णता के बदले निराशा ही मिलती है ।
एक साधु थे, बहुत कृपण और लालची। दिन भर भिक्षा माँगते । जो मिलता उसकी अशर्फियाँ बनाते जाते।
एक बार उनका मन तीर्थ यात्रा का आया । अशर्फियाँ साथ थीं, सो डर लगा रहता; कि कोई रास्ते में छीन नले । एक उपाय सूझा । गंगा की रेती में गड्ढा बनाकर अशर्फियाँ गाडी दीं और पास में गोल पत्थर ढूँढकर शंकर जी बनाकर स्थापित कर दिए । ऊपर से फल-फूल चढ़ा दिए । इस प्रकार निश्चिंत होकर आगे बढे़ ।
चौथे दिन सोमवती पर्व था । नहाने को भारी भीड़ एकत्रित हुई । एक ने शिवलिंग स्थापित देंखा, तो सभी उस सस्ती पूजा की नकल करने लगे । सैकडों ने अपने-अपने शिवलिंग स्थापित कर दिए ।
साधु जब लौटकर आए तो सैकडों शिवलिंग देखकर आश्चर्य में पड़ गए । दिन में सबको उखाड़-उखाड़ देखनाधर्म विरुद्ध था । रात को उखाड़ कर देखा, तो कुछ पता न चला कि अशर्फियाँ कहाँ हैं?
अंत में निराश वापस लौटे और उतनी ही भिक्षा माँगते, जितने में रोज का काम चले । इसे वे तीर्थ यात्रा का पुण्यफल कहते ।
गुरू से लड़ पडे़
सच्चाई की लड़ाई में संबंध भी आड़े आये, तो भी महामनीषी धैर्य की परीक्षा में सफल हुए हैं ।परशुराम उन दिनों शिव जी से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे । भगवान् शिष्यों में  से ऐसे प्रतिभाशाली छात्र की तलाश कर रहे थे, जो न्याय और औचित्य के प्रति अटूट निष्ठावान् हो, साथ ही निर्भय और पराक्रमी भी ।
ढूँढ़ने के लिए भगवान् शिव ने कुछ अनुचित आचरण आरंभ किए और बारीकी से देखा, शिष्यों में से किस कीक्या प्रतिक्रिया होती है ।
अन्य सभी दरगुजर करते या सहन करते चले गए । मात्र परशुराम ही एक ऐसे थे, जिन्होंने सुझाया ही नहीं,विरोध भी किया । एक दिन बात बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक पहुँची कि परशुराम तन कर खड़े हो गए और न मानने पर शिव जी का शिर फोड़ देने को तत्पर हो गए ।
भगवान् को विश्वास हो गया कि यही है, जो फैली अनीति का निराकरण कर सकेगा । उन्होंने प्रसन्न होकर दिव्यपरशु प्रदान किया औंर सहस्रबाहु से लेकर धरातल के समस्त आतताइयों से निपट लेने का आदेश दिया ।
गुरु-शिष्य की लड़ाई पुराणों की अमर कथा में सम्मिलित है । शिव जी के सहस्रनामों में से एक नाम 'खंडपरशु' भी है । अर्थात् परशुराम ने जिन्हें खंडित कर दिया।
सद्भावना की परिणति
अफ्रीका में गाँधी जी ने किसी प्रसंग में दिन का जल उपवास किया । चार दिन बीतने पर उनके एक जर्मन साथी केलन बेक का तार मिला कि मैं अमुक गाड़ी से आपकी देखभाल के लिए आ रहा हूँ ।
गाँधी जी उपवास के पाँचवें दिन अपने साथियों समेत तीन मील चलकर स्वागत के लिए स्टेशन पहुँचे ।उनने कहा-"आपकी सद्भावना के लिए मेरे मन में जो कृतज्ञता उपजी, यह उसी की परिणति है, जो मुझे ताकत भी दे सकी और यहाँ तक खींच भी लाई ।"
श्रमस्याऽपि धनस्याथ बीजानीशस्य तस्य तु । क्षेत्रे परार्थरूपे च वपन् यत्र जनास्तु ये ॥६२॥ लाभ एव भवेत्तेषां मर्त्यसद्वृत्तिवर्थने । पाताऽविकासपीडानां वारणे सम्पदामथ ॥६३॥ क्षमतायाश्च तस्यास्तु समुत्सर्ग: सदा नरै:। अंशस्य महत: कार्य आत्मा तेन प्रसीदति ॥६४॥ योउर्जयेत् केवलं स्वस्मै भुषे: चाऽपि तु केवलम् । स्तेनमाहुर्नरं तं तु सदैकान्तगतिं तत:॥६५॥ 
टीका-परमार्थी ईश्वर के खेत में अपने श्रम तथा धन का बीज बोते हैं । इस व्यवसाय में लाभ ही लाभ है ।मनुष्य को सत्प्रवृत्ति-संवर्द्धन के लिए पतन-पीड़ा और पिछड़ापन हटाने के लिए अपनी क्षमता और संपदा का बड़ा भाग उत्सर्ग करना चाहिए, इससे आत्मा तृप्त होती है । जो अपने लिए ही कमाता है, आप ही खाता है, उसे चोर कहा गया है, चोर भी एकांतप्रिय होता है॥६२-६५॥
अर्थ-जीवन व्यापा में यदि ईश्वर को अपना साझीदार बना लिया जाय, तो लाभ ही लाभ है । परहित हेतु जिन्होंने जन्म लिया है, ऐसे व्यक्ति अपने श्रमसीकरों एवं संपदा-सामर्थ्य के माध्यम से लोकमानस को ऊँचा उठाने का पुरुषार्थ करते हैं । वे समाज के प्रति अपने कर्तव्य समझते हैं व जानते हैं कि उन्हें जो कुछ भी मिला है समाज का एक अंश होने के जाते ही मिला है । इसीलिए उनके हर कृत्य में समष्टिगत हित का समावेश रहता है । यह परोपकार उन्हें जो आत्मसंतोष प्रदान करता है, उसकी तुलना दुनियाँ के किसी वैभव से नहीं की जा सकती ।
आत्मा तृप्त हुई
शेखावाटी (राजस्थान) के स्वामी केशवानंद संन्यास लेते ही शिक्षा प्रचार में लग गए । मुठ्ठी भर अन्न हर घर से एकत्रित करने के सहारे उनने अनेक प्राइमरी, माध्यमिक, हाईस्कूल और कॉलेज बनाये । स्वामी जी गाँधीवादी थे । कई बार जेल भी गए । एम० पी० चुने गए । उनका एक दिन भी ऐसा नहीं गया, जिसमें सुधारात्मक और सृजनात्मक कार्य न किए हों ।
वैभव परित्याग
लाला हरदयाल अत्यंत कुशाग्रबुद्धि के थे । कॉलेज की पढ़ाई में सर्वोच्च नंबर प्राप्त किए । फलत: उन्हें इंग्लै़ड पढ़ने के लिए छात्रवति मिली । वहाँ जाकर पराधीन भारत और स्वाधीन इंग्लैंड की परिस्थितियों का अंतर देखा। जो सपने इंग्लैंड पढ़कर संपन्न जीवन बिताने के देखे थे, वे टूट गए । सोचा, जीवन को स्वतंत्रता के लिए ही अर्पित करना चाहिए ।
उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी । भारत वापस लौट आये । यहाँ युवकों का गदर पार्टी आंदोलन चल रहा था । वेउसमें सम्मिलित हो गए ।
उन्हीं दिनों लार्ड हार्डिंग की शोभा यात्रा दिल्ली में निकल रही थी । अंग्रेज अपनी हुकूमत का रौब-दाब जमाना चाहते थे । गदर पार्टी ने लार्ड पर बम फेंकने का निश्चय किया। बम फेंका गया । लार्ड तो किसी तरह बच गए, पर उनका ए० डी० सी० मारा गया । उस मुकदमे में कितने ही क्रांतिकारी पकड़े गए और लंबी सजाएँ हुईं ।
लाला हरदयाल किसी प्रकार बच गए। वे फिर विलायत जा पहुँचे । इसके बाद वे विदेशों में रहकर भारत की स्वाधीनता की लड़ाई सारे जीवन भर लड़ते रहे । मालदार वकील बनने की अपेक्षा, उनने देशहित के लिए दर-दर ठोकरें खाना उचित समझा । उसी का प्रतिफल है, जो आज हम आजाद हैं ।
इस शुभ साधना का प्रतिफल किसी को देखना हो तो उसे सँगरिया वनस्थली विद्यापीठ देखने जाना चाहिए,जो राजस्थान में शिक्षा का अद्वितीय केन्द्र है, उसमें १४ तो मात्र डिग्री कॉलेज हैं, हर स्तर की शिक्षा का वहाँ प्रबंध है ।
वस्तुत: ईश्वर उपासना ऐसों की ही सार्थक होती है । परमात्मा का प्यार पाने के अधिकारी वह नहीं, जो मात्रनाम जप और भक्ति संकीर्तन तक सीमित रहते है ।
सच्चा अधिकारी
एक बार विधाता ने अपना दूत पृथ्वी पर यह पता लगाने के लिए भेजा कि पृथ्वी में स्वर्ग-प्राप्ति के योग्य कितने भक्तगण है।
दूत ने आकर संसार के हजारों भक्तों एवं पुजारियों के नाम-पते अपने रजिस्टर में अंकित कर लिए ।दूत के विदा होते समय उसे एक अंधा चौराहे पर लालटेन जलाकर खड़ा मिला । दूत ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया ।
विधाता ने जब दूत का रजिस्टर देखा तो उसमें उस अंधे का नाम न था । विधाता ने स्वर्ग के सच्चे अधिकारीकी परिभाषा बताते हुए, दूत के रजिस्टर को रद्द कर दिया और उस अंधे को स्वर्ग का सच्चा अधिकारी बताया, जो पूजा-पाठ तो नहीं करता था; किन्तु विश्व-व्यवस्था में भगवान् का सहयोग कर अंधकार में राहगीरों का मार्गदर्शन कर रहा था ।
सूझ-बूझ काम आयी
एक बार मालवा क्षेत्र में अकाल पड़ा। पूरे वर्ष पानी नहीं बरसा । फलत: न किसान-मजदूरों के यहाँ अनाज रहा और न कुएँ-तालाबों में पानी । लोग भूखों मरने लगे । बहुत से व्यक्ति प्रांत छोड़कर सुदूर देशों में मजदूरी करने और पेट पालने चले गए ।
इसी क्षेत्र में, एक गाँव में एक धनी सेठ थे । उनके यहाँ अन्न के भंडार भरे पड़े थे । उनने लूटे जाने से पूर्वही समझदारी से काम लिया और अन्न मुफ्त बाँटने की अपेक्षा अपने घर पर पके भोजन का लंगर खोल दिया । शर्त यह लगा दी कि समर्थ लोग तालाबों और कुओं को गहरा करने के लिए श्रम करेंगे । यह प्रयास कई महीने कई गाँवों में चला । नहर-तालाबों से पानी मिलने लगा और उसी से सींच कर जल्दी पकने वाली फसलें उगाई गयीं ।
घोर अकाल के बीच भी क्षेत्र के लोगों ने अपने प्राण बचा लिए । जब पानी बरसा और अच्छा समय आया, तोलोगों ने खाया हुआ ध्याज समेत वापस कर दिया । सेठ की समझदारी ने यश भी कमा लिया और याज भी न सहा ।
लोक सम्मान भी ऐसी ही विभूतियों ने पाया, जिन्होंने अपना जीवन औरों के लिए परमार्थ में लगाया ।
बुढिया का त्याग
वर्जीनिया के एक सुनसाना प्रदेश में रेल मार्ग था । रात्रि के समय पहाड़ से बर्फीली चट्टानें टूट-टूट कर लाइन पर गिरीं। गाडी आने वाली थी अँधेरी रात में उसक गिरने का खतरा था। 
उस क्षेत्र में एक बुढ़िया रहती थी । चिंतित हुई कि गाड़ी कैसे रुके और दुर्घटना कैसे बचे? बुढ़िया के पास जो चारपाई थी उसी को तोड़कर रेल्वे लाइन पर जलाने लगी और जलती लकडियाँ सिगनल की तरह हिलाती रही । गाड़ी आई । उसने देखा और गाड़ी रोककर उसने दुर्घटना टाल दी। आज भी उसकी प्रतिवर्ष बरसीमनाई जाती है ।
छोटे-छोटे मिशन भी जब बड़े उद्देश्य लेकर खड़े हो गए और अनेक कार्यकर्त्ता आदर्शो पर अडिग रहे, तो वे न केवल सफल हुए वरन् सैकड़ों लोगों के जीवन में प्रकाश किरणें बिखेर दीं । पवनार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
आज का पनवार
पवनार में बिनोवा जी प्रतिदिन आठ घंटे कुआँ खोदने का काम करते थे। आसपास की संस्थाओं के लोगभी इस कार्य में उनकी मदद करते थे। कोई नेता या मंत्रीं बिनोवा जी से मिलने आते, तो उन्हें भी यह कामकरना पड़ता था । श्रीमती जानकी देवी बजाज भी कुछ दिन वहाँ रही और उन्होंने नियमित रूप से एकघंटा चक्की पीसने, एक घंटा रहट चलाने और छ: घंटे खाली-भरी टोकरी इधर सें उधर देने का काम किया ।
प्रसिद्ध उद्योगपति परिवार की इन सरल, निरभिमानी व सेवानिष्ठ महिला का यह उदाहरण निश्चित रूप से हमेंप्रेरणा प्रकाश देने को पर्याप्त है । जो यह सोचते है कि हम संपन्न हैं, परिश्रम क्यों करें? वे बड़ी भूल करते है । परिश्रम और वह भी किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य को लेकर किया, वह कम पुण्य नहीं है ।
आठ घंटे काम करने वाले कार्यकर्ताओं को १३ आने पारिश्रमिक और भोजन मिलता था, जिसमें दाल, ज्वार की रोटी, मूँगफली का तेल और सब्जी होती थी । बिनोवा जी कहते थे कि दूध, दही, घी, तेल तो तब मिले, जब कुआँ खुदे; उसमें से पानी निकले, पानी से खेती हो, खेती से घास-दाना हो, जिससे गाय रखी जाय। तब तक इसी से काम चलाना होगा ।
गाँधी यदि एक दिन के राजा बनते तो-
भारत को स्वतंत्रता हस्तांतरित करने के लिए इंग्लैंड से एक प्रतिनिधि मंडल आया, तो गाँधी जी को अंहिसा के अस्त्र जीतते देखकर मंडल के साथ बहुत से विदेशी पत्रकार आये और गाँधी जी से मिलने पहुँचे।
एक पत्रकार ने पूछा कि यदि आपको एक दिन का 'डिक्टेटर' बना दिया जाय, तों क्या कार्यक्रम अपनायेंगे । उनने कहा-"पहले तो मेरे लिए ऐसा निरंकुश बनना ही संभव नहीं ।
यदि बन भी गया, तो उस सामर्थ्य को गंदी बस्तियाँ साफ करने में एवं पिछड़ी को ऊँचा उठाने, स्वावलंबी बनाने में लगाऊँगा।
सामान्यजनों तक में जब चिंतन की यह उत्कृष्टता हो, तो उससे बहुत आगे की बात सोचनी चाहिए ।
असमर्थ, पर सज्जन
रवीन्द्रनाथ टैगोर उन दिनों इंग्लैड में थे । कड़ाके की ठंड में नियमानुसार सबेरे टहलने निकले, तो रास्ते में एक असमर्थ बूढा मिला । उसने उस दिन पेट भरने के लिए एक शिलिंग की याचना की ।
टैगोर ने वृद्ध की दयनीय स्थिति देखी, तो उदारतावश एक गिन्नी हाथ पर रख दी और आगे चल दिए । 
वृद्ध दौड़ता और पुकारता हुआ आया और गिन्नी लौटाते हुए कहाँ-"भूल से आप गिन्नी दे गए, मैंने तो शिलिंग भर माँगा था"
टैगोर ने कहा-"ऐसा से नहीं हुआ, जान-बूझकर अधिक दान सहायता की दृष्टि से किया गया ।" बूढ़ेने तो भी एक शिलिंग ही लिया कहा-"आप शेष रुपयों सें मेरे जैसे अन्य कितने ही असमर्थों को एक दिन का आहार दे सकते हैं । मैं तो उतना ही माँगता हूँ, जिससे हर दिन पेट भरता रहे ।" टैगोर असमर्थता के साथ जुड़ी सजनता पर चकित थे ।
परमार्थ की जड़ें जिस समाज में कटती रहती है, वे वैसे ही बोने रह जाते है, जैसें जापान के 'बोंसाई' पौधे ।
स्वामी रामतीर्थ जापान सम्राट् का बगीचा देखने गए। उसमें चिनार के वृक्ष सौ वर्ष से अधिक के थे; पर ऊँचाई तीन फुट ही थी। पूछने पर माली ने बताया-"हम लोग जडे़ं काटते रहते है। फलत: ऊँचाई नहीं बढ़ने पाती। इन्हें 'बोंसाई' वृक्ष कहते है" मनुष्य के पुरुषार्थ की जडे़ कटती रहें, तो उसका व्यक्तित्व भी बौना रह जायेगा।
ऐसा धन किस काम का?
जब धन सत्प्रवृत्तियों में नियोजित नहीं होता, तो वह न होने के समान ही है।

दक्षिणेश्वर मंदिर की निर्माता रानी रासमणि का जामाता माथुर बाबू ने एक विष्णु मंदिर बनाया और प्रतिमा को बहुमूल्य वस्त्र-आभूषण से सजाया। कुछ ही दिन बाद पाया कि चोर सारा जेवर चुरा ले गए, माथुर बाबू उलाहना दे रहे थे, कि भगवान आप कैसे है? जो अपने परिधानों की रक्षा न कर सके ।
रामकृष्ण परमहंस ने उनका समाधान किया कि जो धन लोक सेवा में नहीं लग सका, उसका आभूषण बननाऔर ईर्ष्या का निमित्तकारण बनना तथा चोरों के घर जा पहुँचना स्वाभाविक है । इस प्रवाह को भगवान क्यों रोकें? रोकना होता, तो चोरों से पहले भगवान आपको रोकते ।
First 51 53 Last


Other Version of this book



प्रज्ञा पुराण भाग-2
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-3
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-4
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग 3
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञा पुराण भाग-4
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • प्राक्कथन
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-2
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-3
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-4
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-5
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-6
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
  • ॥अथ प्रथमोऽध्याय:॥ देवमानव- समीक्षा प्रकरणम्-8
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -1
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -2
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -3
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -4
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -5
  • ।। अथ द्वितीयोऽध्याय: ।। धर्म-विवेचन प्रकरणम -6
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-1
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-2
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-3
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-4
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-5
  • ।। अथ तृतीयोऽध्याय: ।। सत्य-विवेक प्रकरणम्-6
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-1
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-2
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-3
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-4
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-5
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-6
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-7
  • ।। अथ चतुर्थोऽध्याय: ।।संयमशीलता-कर्तव्यपरायणता प्रकरणम्-8
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -1
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -2
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -3
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -4
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -5
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -6
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -7
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -8
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -9
  • ।। अथ पञ्चमोऽध्याय: ।। अनुशासनानुबंधप्रकरणम् -10
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-1
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-2
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-3
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-4
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-5
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-6
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-7
  • ॥ अथ षठोऽध्याय:॥ सौजन्य-पराक्रम प्रकरणम्-8
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-1
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-2
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-3
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-4
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-5
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-6
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-7
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-8
  • ॥अथ सप्तमोऽध्याय:॥ सहकार-परमार्थ प्रकरणम्-9
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj