संकल्प शक्ति
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/405/7A.jpg)
संकल्प का अपना विज्ञान है। उसे कर्म का बीजारोपण कह सकते हैं। संकल्प की चरणबद्ध रूपरेखा बनाई जाती है। इसमें सोच विचार कर निश्चय किये जाते हैं। निश्चय को मन में छिपाकर नहीं रखा जाता है, वरन् प्रकट किया जाता है। उसकी क्रमबद्ध योजना बनाई जाती है। तत्परतापूर्वक और तन्मयतापूर्वक मन लगाने के लिए साहस जुटाया जाता है। साधन एवं सहयोग एकत्रित करने का ताना-बाना बुना जाता है और उसके लिए समुचित दौड़-धूप की जाती है। कठिनाइयाँ आ सकती हैं और उनका सामना अथवा समाधान करने के लिए पहले से ही क्या तैयारी रखी जा सकती है, इन सब प्रश्रों पर गंभीरता एवं दूरदर्शिता के साथ विचार किया जाता है। जानकारों के साथ परामर्श किया जाता है। सामयिक परिवर्तनों की गुंजाइश रहती है। ऐसे सुनिश्चित प्रयत्नों को संकल्प कहते हैं।
संकल्प और असंकल्प का अन्तर समझने वालों को असफलता से बचने और सफलता के लक्ष्य तक पहुँचने में विशेष कठिनाई नहीं होती। संकल्पवान् हर परिस्थिति का सामना करने के लिए साहस उभारते हैं। आंतरिक और परिस्थितिजन्य अवरोधों से जूझने का पराक्रम करते हैं। फलत: असमंजस हटता है और पुरुषार्थ की गतिशीलता प्रखर होती चली जाती है। लक्ष्य तक पहुँचने का यही राजमार्ग है।
श्रेष्ठता की साधना संकल्प से ही संभव होती है। संकल्प को ही व्रत कहते हैं। व्रतधारी ही तपस्वी और मनस्वी कहलाते हैं। लक्ष्य की ओर शब्दवेधी बाण की तरह सनसनाते हुए चल पडऩे की क्षमता उन्हीं में होती है। संकल्प का कार्य है- अमुक कार्य करने का अमुक लक्ष्य तक पहुँचने का दृढ़ निश्चय। दृढ़ निश्चय का अर्थ है- काम करने की सुव्यवस्थित योजना बनाना, उसके लिए समुचित श्रम, साधना और मनोयोग लगाने की प्रतिज्ञा। प्रतिज्ञा का अर्थ है- आत्म गौरव को दाँव पर लगा देना, प्रयास को चरम पुरुषार्थ के साथ पूरा करना। मन:संस्थान की संरचना कर सकना संकल्प का ही काम है। इसी से कहा जाता है कि संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते।
संकल्प को जड़ और सफलता को तना कहा जा सकता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए तत्त्ववेत्ताओं ने व्रतशील संकल्प के निर्धारण के कार्य को आधी सफलता माना है। यह मान्यता अक्षरश: सत्य है, जिसे संदेह हो वह इस सच्चाई की परीक्षा स्वयं करके देख सकता है।
सृष्टि का प्रादुर्भाव भी प्रजापति ब्रह्म की संकल्पशक्ति के द्वारा ही हुआ है। जागरूकता पुरुषार्थ का प्रथम संकल्प है। हममें से प्रत्येक को कुछ सृजनात्मक संकल्प करना चाहिए। अब हमें जागरूक होने की आवश्यकता है। मनगढंत हवाई उड़ानें भरते रहने से हम कहीं के न रहेंगे। कहा भी गया है- ख्वाब कभी पूरे नहीं होते, संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते।
संकल्प शक्ति के प्रचण्ड सामथ्र्यवान-व्रतशील व्यक्ति उच्च आदर्शों को लेकर अपने कार्य क्षेत्र में उतरे और तुच्छ सामथ्र्य के रहते हुए भी महान् कार्य करने में सफल हुए हैं। भगवान् ने मनुष्य को जहाँ अन्य प्राणियों की तुलना में अनेकों शारीरिक-मानसिक विशेषताएँ प्रदान की हैं, वहाँ एक और विलक्षण अनुदान भी दिया है, जिसका नाम है संकल्प बल। इसकी सामथ्र्य का कोई पारावार नहीं है। संकल्प बल ही है, जो सन्मार्ग पर चल पड़े, तो व्यक्तित्व को इतना ऊँचा उठा सकता है, जिस पर देवता भी ईष्र्या करने लगें। नर हो या नारी, बालक हो या वृद्ध, स्वस्थ हो या रुग्ण, धनी हो या निर्धन, परिस्थितियों से कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। प्रश्र संकल्प शक्ति का है। मनस्वी व्यक्ति अपने लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ बनाते और सफल होते हैं। समय कितना लगा और श्रम कितना पड़ा, उसमें अंतर हो सकता है, पर आत्म निर्माण के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति अपनी आकांक्षा को सक्रियता एवं प्रखरता के अनुरूप देर-सबेर में सफल करके ही रहता है। यदि मनुष्य अपनी साहसिकता को जगा लें, संकल्प शक्ति का सदुद्देश्य के लिए उपयोग करने लगे, तो कोई कारण नहीं कि वह अपनी गौरव- गरिमा का सिक्का जमाने में किसी से पीछे रहे।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
Recent Post
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3757/Screenshot from 2024-07-26 10-09-53.png-HRleXeS4ZJts93)
दिनभर चले कार्यक्रम से हजारों राहगीरों को दिया संदेश
उज्जैन। मध्य प्रदेश
से होने वाले व्यक्तिगत, सामाजिक अदनी-सी तम्बाकू की गुलामी लाभों की जानकारी दी और उन्हें एक संकल्प से छूट सकती है।’ नशे से मुक्त होने के लिए प्रेरित इस संदेश के साथ...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3718/1.jpeg-iWn513WFgekq93)
देसंविवि के नवीन शैक्षणिक सत्र का श्रीगणेश
ज्ञानदीक्षा ज्ञान के उदय का पर्व ः डॉ चिन्मय पण्ड्या
हरिद्वार 22 जुलाई।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुज का 44वाँ ज्ञानदीक्षा समारोह उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुआ। समारोह का शुभारंभ मु...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3715/GM 222 (2).jpg-YVBJe1ECsWx2k)
Yug Parivartan Ka Aadhar युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (अंतिम भाग)
जाति या लिंग के कारण किसी को ऊँचा या किसी को नीचा न ठहरा सकेंगे, छूत- अछूत का प्रश्न न रहेगा। गोरी चमड़ी वाले लोगों से श्रेष्ठ होने का दावा न करेंगे और ब्राह्मण हरिजन स...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3714/hamari Part 17A (1).jpg-Hd-G1H43bMW62)
‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग १)
आदत पड़ जाने पर तो अप्रिय और अवांछनीय स्थिति भी सहज और सरल ही प्रतीत नहीं होती, प्रिय भी लगने लगती है। बलिष्ठ और बीमार का मध्यवर्ती अन्तर देखने पर यह प्रतीत होते देर नहीं लगती कि उपयुक्त एवं अनुपयुक...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3713/mashal.png-_g2dBckpkkdo93)
‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग २)
यदि वर्तमान परिस्थिति अनुपयुक्त लगती हो और उसे सुधारने बदलने का सचमुच ही मन हो तो सड़ी नाली की तली तक साफ करनी चाहिए। सड़ी कीचड़ भरी रहने पर दुर्गन्ध और विषकीटकों से निपटने के छुट पुट उपायों से कोई स्...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3712/G_1.jpg-gGNtrjzhHUx2k)
‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग ३)
युग परिवर्तन या व्यक्ति परिवर्तन के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण और समाजगत प्रवाह प्रचलन को बदलने की बात कही जाती है। उसे समन्वित रूप से एक शब्द में कहा जाय तो प्रवृत्तियों का परिवर्तन भी कह सकते हैं। ल...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3711/GM (094) (1).jpg-16rW_Tuzb7do93)
‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग ४)
भटकाव से भ्रमित और कुत्साओं से ग्रसित व्यक्ति ऐससी ललक लिप्साओं में संलग्न रहता है जिन्हें दूरदर्शिता की कसौटी पर कसने से व्यर्थ निरर्थक एवं अनर्थ की ही संज्ञा दी जा सकती है। पेट प्रजनन इतना कठिन न...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3710/GM (079).jpg-b8sFoufKfTx2k)
हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग ५)
स्पष्ट है कि आजीविका का एक महत्वपूर्ण जनुपात अंशदान के रूप सृजन कृत्यों के लिए नियोजित करने की आवश्यकता पड़ेगी। इतना ही नहीं श्रम, समय भी इसके साथ ही देना पड़ेगा। अस्तु न केवल आजीविका का एक अंश वरन स...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3709/guruji (1) (1).jpg-IHG88k36GQx2k)
हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (अंतिम भाग)
इस तथ्य से सभी अवगत है कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। धूमधाम, देन दहेज की शादियों का वर्तमान प्रचलन देखने में हर्षोत्सव की साज सज्जा जैसा भले ही प्रतीत होता हो किन्तु वस्तुतः उ...
युग निर्माण योजना
युग निर्माण योजना की सबसे बड़ी संपत्ति उस परिवार के परिजनों की निष्ठा है, जिसे कूटनीति एवं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के आधार पर नहीं, धर्म और अध्यात्म की निष्ठा के आधार पर बोया, उगाया और बढ़ाया गया...