सुगंधित जीवन
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मित्रो ! विद्वान पुरुष सुगंधित पुष्पों के समान हैं। वे जहाँ जाते हैं, वहीं आनंद साथ ले जाते हैं। उनका सभी जगह घर है और सभी जगह स्वदेश है। विद्या धन है। अन्य वस्तुएँ तो उसकी समता में बहुत ही तुच्छ हैं। यह धन ऐसा है जो अगले जन्मों तक भी साथ रहता है। विद्या द्वारा संस्कारित की हुई बुद्घि आगामी जन्मों में क्रमश: उन्नति ही करती जाती है और उससे जीवन उच्चतम बनते हुए पूर्णता पाता है।
कुएँ को जितना गहरा खोदा जाए, उसमें से उतना ही अधिक जल प्राप्त होता जाता है। जितना अधिक अध्ययन किया जाए उतना ही ज्ञानवान बना जा सकता है। विश्व क्या है और इसमेंं कितनी आनंदमयी शक्ति भरी हुई है, इसे वही जान सकता है, जिसने विद्या पढ़ी है। ऐसी अनुपम संपत्ति का उपार्जन करने में न जाने क्यों लोग आलस्य करते हैं? आयु का कोई प्रश्न नहीं है, चाहे मनुष्य वृद्ध हो जाए या मरने के लिए चारपाई पर पड़ा हो तो भी विद्या प्राप्त करने में उसे उत्साहित होना चाहिए क्योंकि ज्ञान तो जन्म-जन्मांतरों तक साथ जाने वाली वस्तु है।
वे मनुष्य बड़े अभागे हैं, जो विद्या पढऩे में जी चुराते हैं। भिखारी को दाता के सामने जैसे तुच्छ बनना पड़ता है, ऐसे ही यदि तुम्हें शिक्षकों के सामने तुच्छ बनना पड़े तो भी शिक्षा प्राप्त करना ही कत्र्तव्य है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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