अपना दृष्टिकोण बदलो
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मित्रो ! सत्य! सत्य!! सत्य!!! अहा, कितना सुन्दर शब्द है। उच्चारण करते ही जिव्ह्य को शांति मिलती है, विचार करते ही मस्तिष्क शीतल हो जाता है, हृदयंगम करने से कलेजा ठंडक अनुभव करता है। झूठ के मायावी प्रपंचों में उलझ कर ईश्वर का राजकुमार-मनुष्य मानवता से पतित होकर पशु बन गया है। सत्य की अवहेलना करने का अभिशाप वह भुगत रहा है।
ईश्वर सत्य है, आत्मा सत्य है, प्रभु की त्रिगुणमयी लीला सत्य है, सर्वत्र सत्य ही सत्य व्याप्त हो रहा है। जीवन के कण-कण की एक ही प्यास है-'सत्य'। हमारा जीवन इसलिए है कि अखिल सत्य तत्त्व में विचरण करते हुए अमृत का पान करें। प्रभु ने कृपा करके हमें अपने संसार की सत्यरूपी वाटिका में भ्रमण करके आनंद लाभ करने के लिए भेजा है। परन्तु हाय, हम तो अपने को बिलकुल ही भूले जा रहे हैं। वास्तव में दुनियाँ कुछ नहीं है। अपनी छाया ही संसार के दपर्ण में प्रतिबिंबित हो रही है।
'सत्य' मनुष्यों को प्रेरणा देता है कि अंतर में दृष्टि डालो, अपना दृष्टिकोण बदलो, अपना और दुनियाँ का स्वरूप समझो, अपने को अच्छा बना डालो, बस सारी दुनियाँ तुम्हारे लिए अच्छी बन जाएगी। तुम सत्यनिष्ठ बनो, दुनियाँ तुम्हारे साथ सत्य का आचरण करेगी। श्रुति कहती 'असतो मा सद्गमय' असत्य की ओर नहीं, सत्य की ओर गमन कीजिए। आपका इसी में कल्याण है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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