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Magazine - Year 1957 - Version 2

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युग परिवर्तन में नारी का सहयोग

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(श्री सविता एम.ए. पिलानी, राजस्थान)

आज नवनिर्माण का युग है और इस नव निर्माण में नारी का सहयोग वाँछनीय है अथवा यों कहें कि आने वाले युग का नेतृत्व नारी करेंगी तो भी अतिशयोक्ति न होगी। नवनिर्माण एवं युग परिवर्तन कहाँ से और कैसे आरंभ होगा व नारी का उसमें क्या योग रहेगा-इस विषय का अध्ययन करने से पूर्व जरा प्रस्तुत विश्व स्थिति पर दृष्टिपात किया जाय। संक्षेप में आज का मानव जीवन जिन भीषण परिस्थितियों से गुजर रहा है उसका अनुमान लगाना भी भयंकर है। आज का वैयक्तिक जीवन, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन इतना अशाँतिमय एवं अभावग्रस्त हो गया है कि मनुष्य को पलभर को चैन नहीं। तृतीय विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ी मानवता विज्ञान को कोस रही है और सुरक्षा एवं शाँति के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है। भौतिकवाद के नाद में एक देश दूसरे देश को, एक जाति दूसरी जाति को, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को हड़पने की ताक में बैठा है, युद्धीय अस्त्र शास्त्रों की होड़ ने, तथा विषैले बमों ने विश्व शाँति को खतरे में डाल रखा है। जीवन में जो अनास्था आ गई है उसका कोई अंत नहीं। जीवन के हर क्षेत्र में हम पिछड़ गये हैं और अधःपतन की ओर जा रहे हैं। सामाजिक विश्रृंखलता, नैतिक पतन, राजनैतिक विप्लव, धार्मिक अंधानुकरण व अधार्मिकता, नैष्ठिक पतन आज के जीवन में धुन की भाँति लग गये हैं।

ऐसी पृष्ठभूमि में आज विश्व की माँग है और वह माँग भारत पूरी कर सकता है। वह माँग है, शाँति की, प्रेम की, सुरक्षा की तथा संगठन की। आज के युग की सबसे बड़ी माँग है नवनिर्माण की, प्रस्तुत परिस्थितियों में आमूल परिवर्तन एवं क्राँति की। आज हम युग परिवर्तन के प्रहरी बनकर विश्व को शाँति का दीप दिखायेंगे, फिर से हमें अपने भारतीय ऋषि, मुनियों की परंपरा को जीवित करना होगा, फिर से धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक एवं नैष्ठिक पुनरुत्थान की भावना को जन-जन में भर देना होगा। आज हमें भारतीय होने के नाते प्रत्येक नर−नारी को देश के नवनिर्माण में प्राणपण से जुट जाना होगा। इस युग परिवर्तनकारी आँदोलन में और जागरण की स्वर्णिम बेला में भारतीय नारी का प्रथम उत्तरदायित्व है कि वह इस दिशा में कदम उठाये। आज की नारी सजग है, वह स्वतंत्रता, धार्मिकता एवं मर्यादा की प्रहरी है। नारी के प्रति जो अत्याचार आज तक किया गया उसके लिए पुरुष समाज को प्रायश्चित करना होगा, अब कन्याओं को मूक पशु की भाँति बेचा न जा सकेगा। जरा कल्पना करिये उस वैदिक काल की जब घोषा, अपाला, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महान रमणियाँ हुईं अनेक वेदमंत्रों का निर्माण करने वाली ऋषिकाएं हुईं, जहाँ देश पर और आन पर प्राण न्यौछावर करने वाली रणदेवियाँ हुईं। आज उन्हीं की जन्मभूमि पर नारी पर किया जाने वाला अत्याचार क्यों? आज के युग में भारतीय नारी की शिक्षा का औसत सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आश्चर्य होता है क्या यही उन ब्रह्मवादिनियों की भूमि है? जो-जो अत्याचार आजतक नारी पर अबला समझ कर किये गये, चाहे उससे अंतरिक्ष फट पड़ा हो परंतु पुरुष का हृदय न पसीजा।

किंतु इन सबके कहने के साथ हमारा तात्पर्य है कि अब वह स्थिति नहीं है, आज भारतीय नारी हर क्षेत्र में कार्य कर रही है, वह युग का निर्माण करने के लिए सन्नद्ध है। युग करवट ले रहा है-परिस्थितियों का घटना क्रम तीव्र गति से घूम रहा है-मानवता के अर्ध भाग को छोड़कर कोई देश व समाज उन्नति नहीं कर सकता। अपने कर्तव्यों एवं अधिकारों के पोषण के लिए भारतीय नारी कटिबद्ध होकर कार्य क्षेत्र में उतर रही है। नारी की शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाने के साथ-साथ उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व को ढालना होगा, दासता की श्रृंखलाओं से मुक्त करना होगा और पुरुष समाज को समझना होगा कि नारी उपभोग एवं वासना की वस्तु नहीं, एक जीती जागती आत्मा है, उसमें भी प्राण है, मान है और है स्वाभिमान की भावना। मनु ने नारा लगाया था ‘यत्र नार्यस्तु, पूज्यंते रमंते तत्र देवता’- और यही कारण था कि जब से नारी की प्रतारणा व अवहेलना आरंभ हुई भारत का भाग्य डोल उठा। नारी आज हर कदम पर नई प्रेरणा देगी, उसकी अगम शक्ति को फिर से प्रतिस्थापित करना होगा। वह ममतामयी माँ है, स्नेहमयी भगिनी है, पतिपरायणा पत्नी है किंतु दूसरी ओर वह चंडी है, दुर्गा है, काली है। नारी ही वीर पुत्रों को जन्म देती है। ध्रुव, प्रह्लाद, अभिमन्यु, शिवाजी, राणाप्रताप को जन्म देने वाली माताएं भारत में ही हुईं। रणचंडी दुर्गा की भाँति मर्यादा और मान के लिए जूझने वाली क्षत्राणियाँ और वीर झाँसी की रानी यहीं हुई- किंतु हम भूल गये उन सतियों के तेज को, उन वीर प्रसविनी जनानियों को, उन कुल ललनाओं को और नारी का तेज आभूषणों की चमक व रेशमी परिधानों में धूमिल पड़ गया। इस चतुर्मुखी निर्माण की बेला में नारी की प्रेरणा लेनी होगी, उसमें फिर से आत्मबल लाना होगा। जो आज की शिक्षित नारियाँ हैं वे आर्थिक स्वतंत्रता एवं पाश्चात्य सभ्यता को अपना कर अपने भारतीय गौरव को कलुषित न करें, वरना वे घर-घर जाकर नारी समाज को उसकी गुप्त शक्तियों का ज्ञान करावें। देश में कन्याओं की शिक्षा पर लड़कों की शिक्षा से अधिक बल दिया जाय। ये भावावेश की बात नहीं, यह एक स्वयंसिद्ध सत्य है, नारियाँ शिक्षित होंगी तो पुरुष समाज तो स्वतः सुधर जायेगा, माताओं और पत्नियों के संस्कार से पुरुष समाज अपने आप सुसंस्कृत होगा। देश की मान-मर्यादा की रक्षा करने वाली नारी जब नवविहान का स्वर गुँजा देगी तो कोई संदेह नहीं हमारे देश में आज फिर हरिश्चंद्र, प्रताप, राम, भीम और अर्जुन पैदा होंगे।

आइये, आज संपूर्ण नारी जाति से प्रार्थना है कि वह घिनौने वातावरण को छोड़कर, परवशता की ग्रंथियाँ काटकर आगे बढ़े और समाज सुधार का, नैतिक उत्थान का, धार्मिक पुनर्जागरण का, संदेश मानवता को दे। पुरुषों से कंधा मिलाकर घर और बाहर दोनों क्षेत्रों में नारी को कार्य करना होगा। आज भारत की माँग है-अध्यात्म एवं वैदिक धर्म का पुनरुत्थान और भारतीय धर्म एवं संस्कृत का पुनर्स्थापन। जब घर-घर में पुनः वेदों की वाणी गूँज उठेगी तब भारत फिर से अपने प्राचीन जगद्गुरु के गौरव को प्राप्त करेगा। हर क्षेत्र में, सामाजिक, आर्थिक , धार्मिक, राजनैतिक, नैतिक, शैक्षणिक एवं नैष्ठिक पुनर्संगठन करते हुए आज की शिक्षित नारी जिस पथ का निर्माण करेगी वह पथ बड़ा सुगम एवं आध्यात्मिक होगा। फिर से भारत में ऋषियों की परंपरा जागृत होगी, फिर से नारी की मातृशक्ति रूप में पूजा होगी, और हम संपूर्ण विश्व को एक मौलिक प्रकाश एवं नवीन संदेश देंगे। नारी ही घर-घर में ऐसा वातावरण उत्पन्न कर सकती है जो भारतीय संस्कृति पर आधारित हो। वह आज सबला बन कर चेतना, प्रेरणा, मुक्ति एवं आध्यात्मिकता की साकार मूर्ति के रूप में अवतरित हो रही है। नारी का सहयोग, परिवार में, समाज में आरंभ होगा- एक ऐसा वातावरण बना देना होगा जहाँ फिर से दधीचि, कर्ण और राम पैदा होंगे। नारी की सबल प्रेरणा पुरुष को नवशक्ति से भर देगी किंतु इसके लिए आवश्यक है कि उसे आत्मबल, चरित्र-बल, तप बल में महान बनाया होगा।

नारी विश्व की चेतना है, माया है, ममता है, मोह और मुक्ति है-किंतु समय-समय पर उसकी अवतारणा भिन्न-भिन्न रूपों में होती है। आज हमें उन क्षत्राणियों की आवश्यकता है जो समय पड़ने पर समराँगण में उतर पड़ें, साथ ही यह न भूलना चाहिए कि उसे पारिवारिक इकाई से विस्तृत क्षेत्र की ओर बढ़ना है। गहनों से लदी रहने वाली भोग-विलासिनियों की आवश्यकता नहीं, आज तो ऐसी कर्मठ महिलाओं की आवश्यकता है जो पुरुष-समाज एवं जाति तथा संपूर्ण देश को भारत की संस्कृति का पावन संदेश देकर देश में, घर-घर में फिर से प्रेम, त्याग, बलिदान, पवित्रता एवं माधुर्य का संदेश दें। अफलातून नामक यूनानी दार्शनिक ने कहा था, नारी स्वर्ग और नरक दोनों का द्वार है- बस आज फिर से नारी जाति कटिबद्ध हो जाये और अपने बल से पृथ्वी पर ही स्वर्ग की अवतारणा करे। टामस एक्वीनास नामक योरोपीय दार्शनिक ने कहा था कि विधाता ने अपना सारा कोमलत्व नारी हृदय को दे दिया, काश पुरुष उस माता के हृदय को समझ पाता। बार-बार नारी को यह बोध कराना होगा कि वह अमित शक्ति का भंडार है, प्यार एवं प्रेरणा का स्रोत है-आवश्यकता है कि वह सद्प्रयत्न में अपनी शक्ति लगाये और उसकी प्यार भरी स्वर्गीय आत्मा का मूल्याँकन किया जाय। पुरुष को उद्बोधन का स्वर सुनाने वाली, कर्तव्य बोध कराने वाली नारी से आज माँग की जाती है कि वह युग परिवर्तन के इस संक्राँतिकाल में अपना उत्तरदायित्व निभावे और संगठित होकर पुनः भारत की सतियों का गौरव प्राप्त करे।

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Type: TEXT
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