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Magazine - Year 1957 - Version 2

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गायत्री उपासना के अनुभव

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ढलती आयु में पुत्र प्राप्ति

श्री गणपति गंगाराम चीचड़ा से लिखते हैं :- लम्बी अवधि बीत गयी थी। जवानी ढल गयी थी। पहले तो बहुत दिन तक संतान ही नहीं हुई। जब हुईं तो केवल लड़कियाँ। हमारे घर में निराशा का साम्राज्य रहता। सोचते कोई लड़का न हुआ तो वंश ही डूब जायेगा। कई बार घर में दूसरी शादी करने की चर्चा होती, कई बार कुछ विचार होता। ऐसी निराशा की घड़ियों में हमें एक सज्जन ने गायत्री मंत्र का सहारा लेने के लिए कहा। मैं और मेरी धर्मपत्नी गायत्री जप करने लगे। माता की कृपा से एक सुँदर पुत्र उत्पन्न हुआ है, घर-घर में प्रसन्नता छाई रहती है। यह चमत्कार देखकर अनेक गायत्री उपासक बने हैं।

एक मास का वेतन माता के अर्पण

श्री सत्यनारायण शर्मा इंदौर से लिखते हैं कि - मैं ऊँची परीक्षा उत्तीर्ण होते हुए भी बहुत कम वेतन पर एक फैक्टरी में विवशता पूर्वक काम कर रहा था। वेतन बहुत कम होने से चित्त दुःखी रहता था। कुछ मास पूर्व आचार्य जी इंदौर पधारे थे तब मैंने उनसे अपनी कष्ट कथा कही। उन्होंने गायत्री उपासना का निर्देश दिया। उनके बताये हुए मार्ग पर चलते हुए मुझे कुछ ही महीने हुए हैं कि सेंट्रल गवर्नमेंट की एक अच्छी तरक्की की संभावना वाली सुविधा जनक नौकरी मिल गयी वेतन भी संतोषजनक है। पहले एक मास की वेतन गायत्री माता के लिए अर्पण कर रहा हूँ, क्योंकि माता की दी हुई सुविधा से प्रथम उनका सत्कार करना किसी सच्चे पुत्र का कर्तव्य है।

नेत्रों की ज्योति फिर लौट आयी

अमर पाटन (सतना) से श्री चमेली देवी सक्सेना माता की अनुकम्पा के संबंध में सूचित करती हैं- मेरी माता लगभग तीन साल से बिल्कुल अंधी हो गयीं। ऐसी विकट परिस्थिति में घर के सभी लोग बहुत चिंतित थे। अनेकों योग्य डाक्टरों द्वारा चिकित्सा कराई गई परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। मैं माता जी के घर से 20 मील दूर रहती हूँ। नित्य प्रति माता जी के सभी समाचार प्राप्त होते ही रहते थे। मुझे इस समाचार से बड़ा ही दुःख होता था। अंत में मेरी दृष्टि वेद माता गायत्री की ओर गयी। मैंने उसी दिन से माता जी के कल्याण के लिए, नियमित साधना से अधिक प्रारंभ कर दिया। इसके ठीक 3 माह उपराँत अचानक ही एक डॉक्टर महोदय ग्राम में पहुँचे। उन्होंने तुरंत ही माता जी की आँखों का आपरेशन किया। वेद माता की कृपा से दो दिन में ही दोनों नेत्र ठीक हो गये। मैं उन डॉक्टर महोदय को वेद माता का ही भेजा हुआ विशेष दूत मानती हूँ। मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँची हूँ कि माता सच्ची पुकार पर सभी की सहायता करती हैं।

प्रसूति काल में प्राण रक्षा हुई

माकडोंन (उज्जैन) से श्री कोमल प्रसाद जी लिखते हैं 15 फरवरी सन 57 को मेरी धर्मपत्नी के कन्या उत्पन्न हुई। अचानक शाम को मेरी धर्मपत्नी की दशा बहुत ही खराब हो गयी। ऐसा प्रतीत होने लगा कि वह प्राणहीन ही हो चुकी है। मैं यह सूचना पाकर बहुत ही घबड़ाया परंतु मैंने पूजनीय आचार्य जी की आज्ञानुसार साहस एवं धैर्य से काम लिया। पूज्य आचार्य जी की आज्ञा है कि विपत्ति में सदैव ही मानसिक गायत्री जप प्रारंभ कर दो। मैंने तुरंत ही निकटवर्ती गायत्री उपासकों को एकत्रित कर गायत्री चालीसा का पाठ प्रारंभ करा दिया। थोड़े ही समय के उपराँत धर्मपत्नी के स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हुआ और वह पूर्ण स्वस्थ हो गयी। माता का यह चमत्कार देखकर सभी लोग आश्चर्य में पड़ गये।

बुरी आदतें छूट गयीं

देवरीकलाँ (म.प्र.) के श्री रतनसिंह रावत माता के चमत्कार के विषय में वर्णन करते हैं। मैं प्रारंभ से ही अध्ययन में काफी कमजोर था। इसलिए कक्षा में सदैव ही अध्यापकों द्वारा तिरस्कृत किया जाता था। इसके अतिरिक्त अन्य विद्यार्थियों की कापी तथा पुस्तकें चुराने में भी काफी निपुण था। मेरी ऐसी दशा देखकर अध्यापक महोदय को मुझपर बड़ी दया आई और उन्होंने मुझसे एक माला नित्य गायत्री जप करने के लिए कहा। मैंने शीघ्र उनकी आज्ञानुसार जप प्रारंभ कर दिया। इसके कुछ समय उपराँत ही मेरी बुरी आदतें स्वतः ही छूटने लगीं। अब मैं कक्षा में मध्यम श्रेणी का विद्यार्थी हूँ तथा बुरे व्यसन भी समाप्त हो गये हैं। मैं अपने में इस प्रकार का परिवर्तन देखकर माता की विशेष कृपा मानता हूँ।

पशुओं की बीमारी दूर हो गयी

दतौद (निमाड़) से श्री दादूराम तिवारी लिखते हैं-मेरे ग्राम में पशुओं की भारी बीमारी फैली हुई थी। मेरे घर के समीप ही एक गरीब किसान रहता था उसके भी चार पशु मर चुके थे। केवल दो शेष रह गये थे, ऐसी विषम परिस्थिति से वह काफी परेशान था। मैंने उसे साहस बँधाया और कहा कि ‘तुम माता का स्मरण करो।’ शेष दो पशुओं की दशा भी काफी खराब थी, वे दोनों ही अपने जीवन की अंतिम श्वासें ले रहे थे। मैंने तुरंत ही थोड़ा सा जल गायत्री मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके उनके शरीर पर छींटे मारे, थोड़े ही समय में दोनों पशु चेतनावस्था में आ गये तथा एक दिन के उपराँत पूर्ण स्वस्थ हो गये। माता का ऐसा प्रभाव देखकर इस घर के सभी लोग प्रभावित हुए हैं। अब वे सभी नियमित रूप से माता की आराधना करते हैं।

पूर्णाहुति के लिए रुपया मिल गया

तनोड़िया (शाजापुर) से श्री मुन्नालाल जी ‘कनेरियन’ माता की करुणा के विषय में सूचित करते हैं- मैं अपना पुरश्चरण पूर्ण कर रहा था। परंतु साथ ही यह भी चिंता थी कि इसकी पूर्णाहुति किस प्रकार किया जाये। मैं इस परिस्थिति से बड़ा परेशान हो चला था। बहुत कुछ प्रयत्न करने के पश्चात भी किसी सुदृढ़ मार्ग पर नहीं पहुँच सका। एक दिन मैं मंदिर में बैठकर जप कर रहा था कि अचानक ही माता द्वारा प्रेरणा हुई कि अब से एक माह के उपराँत श्रावण आ रहा है। इस समय मंदिर में उपासक तथा अन्य व्यक्ति भी एकत्रित होंगे उनसे अखण्ड दीपक के लिए एक-एक रुपया एकत्रित कर लिया जावे। प्रथम दिन केवल तीस रुपया ही एकत्र हुए। इसके पश्चात क्रमशः कुल योग 278 रुपया तक पहुँच गया। बड़ी धूमधाम के साथ पूर्णाहुति हुई। माता की ऐसी वात्सल्यता देखकर मैं तथा अन्य उपासक बड़े ही आकर्षित हुए। मुझे तो पूर्ण विश्वास है कि माता की शरण में जाकर सभी कठिनाइयाँ सरल हो जाती हैं।

बेटी को सुयोग्य घर वर मिला

कविराज पं. कन्हैयालाल जी वैद्य इंदौर से लिखते हैं- मेरी लड़की कृष्णाकुमारी को गायत्री उपासना में बड़ी श्रद्धा है। उसने करीब 27 हजार मंत्र लिखकर तपोभूमि में भेजे हैं। गत वर्ष पूर्णाहुति में भी हमारा परिवार तपोभूमि में गया था। बेटी कृष्णा को अच्छे घर वर की प्राप्ति के लिए हमें बड़ी चिंता रहती थी सो नाम मात्र के दहेज से ही सब कुछ प्राप्त हो गया। लड़की बहुत ही आनंद के घर में गई है और लड़का सब प्रकार सुयोग्य मिला है, ऐसा सुयोग्य घर वर भारी दहेज देने पर भी मिलना कठिन था पर वह सब माता की कृपा से अनायास ही प्राप्त हो गया।

सरलतापूर्वक सुसंस्कृत वर मिला

श्री पुरुषोत्तम आत्माराम साखरे जासलपुर से लिखते हैं-पुत्री के लिए वर ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कई वर्ष हो गये थे। लड़की के अधिक बड़ी हो जाने से घर के सब लोग चिंतित रहते थे। रोज शादी जल्दी करने का प्रश्न ही घर में चर्चा का विषय रहता। पर उपयुक्त लड़का मिलता न था। जहाँ मिलते वहाँ बड़े दहेज की माँग होती। अधिक चिंता में हम लोगों ने चिंताहरणी गायत्री माता की शरण ली। पुत्री वसुँधरा ने भी अनुष्ठान किये। हम लोगों ने भी किये। परिणाम बहुत ही मधुर निकला। एक बहुत ही सुसंस्कृत वर प्राप्त हुआ। लड़का भालेगाँव में खद्दर भण्डार का मैनेजर है। बिना आर्थिक परेशानी के बहुत ही सीधे-साधे ढंग से शादी हो गई। लड़की को अब और अधिक पढ़ने तथा राष्ट्र की रचनात्मक सेवा करने का अवसर मिलेगा।

पद उन्नति तथा पुत्र प्राप्ति

श्री मोहनलाल पाण्डेय खैराबाद से लिखते हैं, जब से माता का आँचल पकड़ा है उन्नति की ओर बढ़ रहा हूँ। डाकखाने में चपरासी की पोस्ट पर काम करते हुए-पोस्ट आफिस की क्लर्कशिप के लिए परीक्षा दी। अच्छी सफलता प्राप्त हुई। बाराँ के लिए क्लर्क पद पर नियुक्ति पत्र भी प्राप्त हो गया। घर में सुख शाँति बढ़ी है, इसी वर्ष पुत्र भी हुआ है।

दूनी तनख्वाह की स्थायी जगह

श्री जाधोराम जी बेतूल से लिखते हैं, मैं ए.ई.एन. आफिस में टेम्परेरी काम करता था। स्थायी जगह प्राप्त करने के लिए बहुत दिनों से प्रयत्नशील था। अनेकों प्रयत्न कर चुका था पर कोई सफलता नहीं मिलती थी। भविष्य अंधकारमय दीखता था। अपनी कोई ऊँची पहुँच या सिफारिश भी न थी। इससे मन सदा उदास रहता था और वर्तमान में टैम्परेरी नौकरी भी छिन जाने की आशंका बनी रहती थी। डूबते को तिनका का सहारा। गायत्री मंत्र हाथ लगा। छोटे साहब के कहने से मैं खूब मन लगाकर गायत्री उपासना करने लगा। आश्चर्य तो देखिए कि मैं जिन जगहों के लिए कोशिश कर रहा था उससे कहीं-बड़ी और लगभग दूनी तनख्वाह की जगह के लिए आर्डर आ गया। अब मैं स्थायी और संतोषजनक तनख्वाह की जगह पाकर संतुष्ट हूँ।

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