
नम्र निवेदन (Kavita)
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जीने और जिलाने को यदि पीकर जहर मरो तुम!
तो यह गलती एक बार क्या सौ-सौ बार करो तुम!!
जाओ, तुम सागर की मस्ती बादल बन कर लाओ,
ला-ला कर धरती के प्यासे आँगन पर बरसाओ,
जैसे भी हो सुख-दुख को अब हिस्सों में बँटवा कर-
कोई फूल उदास न हो ऐसी बगिया सजवाओ,
यह मेरा उपदेश नहीं, पर नम्र निवेदन तुमसे,
इसी तरह यदि इस दुनिया के दुख का बोझ हरो तुम!
तो यह गलती एक बार क्या सौ-सौ बार करो तुम!!
धूप सताये भी तुमको तो, मात न उससे खाओ,
रूप अगर रोके पथ में सप्रोत उसे समझाओ,
चाँद मिले यदि चौदस का तो उसको धैर्य बँधाकर-
युग के पथ का तिमिर मिटाओ, अंतर दीप जलाओ,
यह मेरा उपदेश नहीं, पर नम्र निवेदन तुमसे,
इसी तरह यदि कठिन डगर पर गतिमय चरण धरो तुम!
तो यह गलती एक बार क्या सौ-सौ बार करो तुम!!
तुलसी की करतालों से धुन लेकर राम जगाओ,
सूरा के एकतारे की तन्मयता मत बिसराओ,
और कबीरा मीरा की स्मृति को जीवित रखने को-
सीधी-सी भाषा में जीवन को छंदों में गाओ,
यह मेरा उपदेश नहीं पर नम्र निवेदन तुमसे,
इसी तरह यदि गाँव-गली तम अमृत गूँज भरो तुम!
तो यह गलती एक बार क्या सौ-सौ बार करो तुम!!
तो यह गलती एक बार क्या सौ-सौ बार करो तुम!!
*समाप्त*