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Magazine - Year 1957 - Version 2

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Language: HINDI
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चमत्कार को नमस्कार

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First 18 20 Last
(श्री सत्यदेव शर्मा)

गायत्री परिवार उन जागृत, चैतन्य, सक्रिय और भावनाशील आध्यात्मिक व्यक्तियों का संगठन है। जो लकीर के फकीर न होकर विवेक सत्य और तथ्य को प्रधानता देते हैं। इस संगठन द्वारा भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान, मानवता की सेवा चरित्र गठन एवं राष्ट्र निर्माण का जो भारी कार्य हो रहा है उससे कोई भी विचारमान व्यक्ति प्रभावित हुए बिना न रह सकता। इस प्रक्रिया के पीछे उन लोगों का अस्तित्व है जो उज्ज्वल चरित्र एवं सेवा भावना से परिपूर्ण होने के साथ-साथ उच्च आदर्शों से ओतप्रोत हैं।

अखण्ड ज्योति में इस स्तंभ के अंतर्गत परिवार के कुछ आदर्श व्यक्तियों के परिचय हर महीने छापे जाते रहेंगे। कुछ परिचय इस अंक में दिये जा रहे हैं।

डॉ. रामचरण महेन्द्र पी.एच.डी., कोटा

“अखण्ड ज्योति” के जन्म काल के कुछ ही दिन पीछे से लेकर अब तक श्री महेन्द्र जी अपरिमित आत्मीयता के साथ अखण्ड ज्योति की भारी सेवा कर रहे हैं। अब तक उन्होंने लगभग 40 पुस्तकें इस संस्था के लिए लिखी हैं, अखण्ड ज्योति के संपादन में हर महीने बहुत श्रम करते हैं। 17 वर्षों में जो उनने अपने ज्ञान और श्रम द्वारा सेवा की है उसका मूल्य रुपये पैसों में लगाया जाय तो वह कितने ही हजार रुपयों का होता है पर आपने आज तक कभी भी एक पाई इस श्रम के बदले में नहीं ली। सदा सब कुछ पूर्ण निस्वार्थ भाव से करते हैं।

श्री महेन्द्र जी अखण्ड ज्योति परिवार के अत्यंत निकटवर्ती हैं, के प्रायः मथुरा आते रहते हैं और इस मिशन की सचाई, सेवा भावना, उपयोगिता एवं सैद्धान्तिक श्रेष्ठता को अपनी आँखों से देखकर इतने प्रभावित हैं कि जो वे करते हैं उससे भी अनेकों गुना त्याग एवं सहयोग करने की बात सोचते रहते हैं। पीला चश्मा पहने हुए छिद्रान्वेषी जहाँ श्रेष्ठ से श्रेष्ठ वस्तु में भी अपनी नीचता की छाया देखते हैं, वहाँ श्री महेन्द्र जी जैसे उत्कृष्ट मस्तिष्क एवं उज्ज्वल हृदय किसी अच्छी वस्तु की वास्तविकता को भी पहचानने में पीछे नहीं रहते। सत्प्रवृत्तियों में सच्चे मन से सहयोग करना सत्पुरुषों का कर्तव्य होता है। श्री महेन्द्र जी इस कर्तव्य परायणता के उज्ज्वल प्रतीक हैं।

श्री शंभूसिंह होड़ा रामगंज मंडी

101 हवन कुण्डों वाले विशालकाय राजस्थान प्रान्तीय गायत्री महायज्ञ के संयोजक श्री शंभू सिंह जी हाड़ा के नाम से अखंड ज्योति परिवार के सभी सदस्य परिचित हैं। यों वह इतना बड़ा आयोजन जिसमें तीस हजार रुपया व्यय हुआ उस प्रदेश के सैकड़ों गायत्री उपासकों की अनन्य निष्ठ और कई-कई महीनों काम छोड़कर दिन-रात जुटे रहने के फल स्वरूप ही सफल हो सका। पर अपनी दुर्बलताओं को जानते हुए भी उतने विशालकाय कार्य का संकल्प और उत्तरदायित्व लेने का श्रेय शंभू सिंह जी को ही है, इससे उनके असाधारण आत्म विश्वास का पता चलता है।

शंभू सिंह जी की गायत्री माता के प्रति भावनाएं जितनी ऊंची हैं उतनी हैं सक्रिय सेवा भी है। सरकारी नौकरी से छुट्टी पाते ही वे अपने मिशन की सेवा में लग जाते हैं। स्वप्न में भी उन्हें मछली का निशाना साधने वाले अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य ही दिखायी पड़ता है। इस मनसा वाचा कर्म की तन्मयता का ही फल है कि जिस प्रदेश में आज से कुछ ही वर्ष पहले गायत्री और यज्ञ एक अजनबी वस्तुएं थीं वहाँ अब गाँव-गाँव इनकी धूम है। 108 गायत्री परिवारों के शाखा संगठन का संकल्प का अधिकाँश भाग तो पूरा हो चुका है।

श्री व्यंकटेश शर्मा खलघाट

स्वार्थ से बढ़कर परमार्थ को महत्व देना यही ब्राह्मणत्व का प्रधान चिन्ह है। जिन्हें अपने भौतिक सुखों की, सुविधाओं की महत्वाकाँक्षाओं की चिंता नहीं, जो सदा लोकहित में, धर्म सेवा में अपने जीवन को तिल-तिल करके खपाने की साध रखते हैं वे ही सच्चे ब्राह्मण हैं। आज निस्संदेह ऐसे सच्चे ब्राह्मणों का दर्शन दुर्लभ हो रहा है यों कहने को बामन बिरादरी बड़ी लम्बी चौड़ी है।

श्री व्यकंटेश जी को सुदामा जैसा सच्चा ब्राह्मण कहा जा सकता है। सुदामा अंत में पत्नी से पराजित होकर लक्ष्मी माँगने चल पड़े थे पर यह सुदामा किसी से भी पराजित नहीं होता। गरीबों को अपने जातीय गौरव की थाती मानकर उसे छाती से चिपकाये हुए दिन-रात गायत्री प्रचार के लिए कार्य करता रहता है। व्यकंटेश जी ने गत पाँच वर्षों में स्वयं भारी तप किया है और उस प्रदेश में दूर-दूर तक अनेकों महत्वपूर्ण यज्ञों का आयोजन तथा परिवार की शाखाओं का सफल संगठन किया है।

अविचलित निष्ठ वाला यह ब्राह्मण जीवन के अंत तक असंख्यकों आत्माओं को सन्मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देने में सफल होगा ऐसा दीखता है।

श्री विद्या प्रसाद मिश्र, आरंग

ठेकेदार लोग इमारतें, सड़कें और न जाने क्या-क्या बनाने के ठेके लेते हैं और उन चीजों को अपने ज्ञान, अनुभव, श्रम और कुशलता के आधार पर बनाकर तैयार भी कर देते हैं। विद्या प्रसाद जी भी ठेकेदार ही हैं, वे पी.डब्लू.डी. की सरकारी ठेकेदारी नहीं करते, भारतीय संस्कृति की विशाल इमारत को बनाने में भी समान मनोयोग से संलग्न हैं! आरंग (रायपुर) में मिश्र जी ने बहुत बड़ी संख्या में गायत्री उपासक बनाये हैं। साप्ताहिक सत्संग हवन, पाठ, लेखन आदि सभी कार्य नियमित रूप से चलते हैं। समीपवर्ती क्षेत्र में दौरा करके मिश्र जी और भी नई शाखा बनाने के प्रयत्न कर रहे हैं। राष्ट्र निर्माण का महल, और परमार्थ की सड़क बनाने में ऐसे ही कुछ और भी ठेकेदार मिलजुल कर काम करने के लिए तैयार हो जायें तो सचमुच ही मानवता की सेवा और भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में बहुत कुछ हो सकता है।

पं. रामाभिलाषजी त्रिपा. शास्त्री, नवाबगंज

फुरसत न मिलने का बहाना करने का अर्थ है-उस काम से अरुचि। जिस कार्य को करना नहीं होता उसके लिए यह कह दिया जाता है कि हमें इसके लिए फुरसत नहीं मिलती, किसी व्यक्ति को जो कार्य करने की लगन होती है उसके लिए अन्य सब कार्य तो गौण होते हैं वह रुचि वाला कार्य प्रधान हो जाता है। अपने प्रिय विषय के लिए लोग खाना, सोना तक भूल जाते हैं।

श्री शास्त्री जी बड़े कार्य व्यस्त व्यक्ति हैं, अध्ययन, अध्यापन का बहुत कार्य उनके सिर पर लदा रहता है, फिर भी गायत्री प्रचार के लिए वे समय निकाल ही लेते हैं। नवाबगंज (बरेली) के आस-पास के गाँवों में शास्त्री जी ने बहुत सी शाखाएं बनाई हैं तथा सदस्य बढ़ाये हैं। इन शाखाओं की संख्या शीघ्र ही 24 तक पहुँच जाने की संभावना है। विद्वत्रा और क्रियाशीलता का स्वर्ण सुयोग समन्वित सहयोगियों का सहकार गायत्री संस्था का सौभाग्य ही है।

श्री कन्हैयालाल जी वैद्य, इंदौर

आमतौर पर लोग क्षणिक उत्साही होते हैं। कोई नया काम कौतूहल वश आरंभ करते हैं और कुछ ही दिनों में आवेश ठंडा होने पर उस कार्य को छोड़ देते हैं। किसी के द्वारा उत्साह दिलाने या किसी कामना से प्रेरित होकर कुछ दिन लोग पूजा उपासना आरंभ करते हैं। उतावली एवं अधीरता में वे उतने दिन श्रद्धा को स्थिर नहीं रख पाते जितने की समुचित फल प्राप्त करने के लिए आवश्यकता है। पर कुछ नैष्ठिक साधक ऐसे होते हैं जो अपने व्रत को जीवन भर निबाहते है।

इंदौर के सुप्रसिद्ध वैद्य पं. कन्हैयालाल जी नैष्ठिक गायत्री उपासक हैं, उनके परिवार का बच्चा-बच्चा गायत्री उपासक है। इस निष्ठ के फलस्वरूप उस परिवार के सभी सदस्यों को अपने-अपने ढंग पर सत्परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। आपका तथा आपके पुत्र सत्यनारायण का अनुभव इसी अंक में छपा है। यह परिवार इंदौर में गायत्री प्रचार के लिए सदा अग्रणी रहा है।

श्री कन्हैयालाल पाण्डेय वैद्य, ‘चचोर’

मनुष्य के अंदर कितनी अपरिमित शक्ति भरी पड़ी है इसका पता तब चलता है जब वह अपनी शक्तियों को केन्द्रित करके पूरी तत्परता के साथ किसी कार्य में संलग्न होता है और अपने सतत प्रयत्न द्वारा ऐसी सफलता उत्पन्न कर देता है जिसे देखकर आश्चर्य से चकित रह जाना पड़ता है। आमतौर से मनुष्य अपनी शक्तियों को जानता नहीं, भूला रहता है, उन पर विश्वास नहीं करता। पर जब कभी वह अपनी महत्ता का मूल्याँकन करके उन्हें कार्य रूप में परिणत करता है तो पता चलता है किस साधारण दीखने वाला मनुष्य वस्तुतः कितना असाधारण है।

राजस्थान प्राँतीय गायत्री महायज्ञ के अवसर पर ‘चकोर’ (मन्दसोर) के वैद्य श्रीकन्हैयालाल जी पाण्डेय ने अपने यहाँ मालवा प्राँतीय गायत्री महायज्ञ करने का निश्चय किया और उसे सफल बनाकर दिखा गया। 25 कुण्डों का वह महायज्ञ घोर जंगल के बीच भी इतना सफल रहा कि उस क्षेत्र की जनता के लिए वह अभूतपूर्व ही था। उस प्राँत की पीढ़ियाँ उस आनंद को जीवन भर न भूल सकेंगी। वैद्य जी के प्रयत्न से उस प्रदेश में गायत्री उपासना एवं सात्विकी सत्प्रवृत्तियों की बड़े उत्साह पूर्वक अभिवृद्धि हो रही है।

प्रो. अवधूत गोरेगाँव

गोरेगाँव के प्रो. अवधूत, बहुत लम्बे समय से गायत्री की कठिन उपासना में संलग्न हैं। उन्होंने अपने साधना अनुभवों से अनेकों व्यक्तियों की आध्यात्मिक सेवाएं की हैं। अखण्ड ज्योति से प्रकाशित गायत्री संबंधी पुस्तकों का सार लेकर आपने कई पुस्तकें गुजराती भाषा में छापी हैं और गायत्री परिवार के बहुत से सदस्य बनाने का सफल प्रयत्न किया है।

प्रो. अवधूत की साधना में जितनी निष्ठ है उतनी ही लगन गायत्री प्रचार में भी है। दो बार तपोभूमि में आकर उन्होंने असाधारण एवं अत्यधिक कठिन साधनाएं की हैं और उससे कई विशिष्ट शक्तियाँ भी प्राप्त की हैं। इन शक्तियों का सदुपयोग वे जनकल्याण के लिए ही कर रहे हैं। साधना मार्ग में सफलता प्राप्त करने के लिए वैसी ही सुदृढ़ मनोभूमि की आवश्यकता होती है जैसी प्रोफेसर साहब की है।

श्री मोहनलाल शर्मा, व्यावर

‘धुन के धनी’ लोग ही संसार में कुछ कर गुजरने की क्षमता रखते हैं। जो पग-पग पर लाभ हानि, मानापमान, संकोच, संदेह, आगा पीछा सोचते रहते हैं, वे अपने जीवन में अनेक साधन एवं सुविधाओं के रहते हुए भी कुछ महत्वपूर्ण काम नहीं कर पाते, जब कि धुन के धनी लोग विपन्न परिस्थितियों में रहते हुए भी इतना काम कर लेते हैं जिसे देखकर आश्चर्य होता है।

व्यावर के श्री मोहनलाल शर्मा को गायत्री प्रचार की सच्ची लगन है। सच्ची लगन वालों को अनेक अच्छे सहयोगियों का मिल जाना भी स्वाभाविक है। व्यावर की शाखा का कार्य बड़े ही सुचारु रूप से चलता है। सदस्यों की संख्या बराबर बढ़ रही है। एक बड़ा यज्ञ होने की जोरों से तैयारी हो रही है। मोहनलाल जी तथा उनके साथी उस क्षेत्र में गायत्री ज्ञान प्रसार के लिए जी जान से जुटे हुए हैं।

श्री नर्मदाशंकर एम. जोशी. खोरासा

संसार में जितने भी परमार्थ हैं उनमें सब से बड़ा पुण्य कार्य दूसरों को कल्याण पथ पर अग्रसर करना है। किसी को अन्न, वस्त्र, धन आदि देकर उसकी थोड़ी सी थोड़े समय की आवश्यकता को पूर्ण किया जा सकता है, पर ज्ञान दान देकर सन्मार्ग पर चलने का प्रकाश देकर तो उसे अक्षय शाँति ही प्राप्त करायी जा सकती है। जो इस तथ्य को समझते हैं वे परिव्राजक, साधु, उपदेशक, ज्ञान प्रचारक का कार्य अपने हाथ में लेते हैं।

श्री नर्मदाशंकर जोशी अपना धन उपार्जन करने का व्यापार छोड़कर-पुण्य परमार्थ कमाने के गायत्री प्रचार रूपी आध्यात्मिक व्यापार में लग गये हैं। गायत्री मंत्र लेखन के लिए घर-घर घूमना और प्रतिदिन सहस्रों गायत्री मंत्र लेखन कराना आज कल उनका प्रमुख कार्य है। अपने जीवन काल में सहस्रों गायत्री उपासक उत्पन्न करने की उनकी साध का पूरा होना, वर्तमान उत्साह को देखते हुए निश्चित सा ही है।

श्री सोमेश्वर जी चतुर्वेदी, पेटलावद

जोते बनाये खेत में बीज बो देना सरल काम है किंतु कटीली झाड़ियों को काटकर जमीन साफ करना और नया खेत खड़ा करके उसे जोतना, बनाना, असाधारण धैर्य, पुरुषार्थ एवं साहस का काम है। अन्य कार्यकर्ताओं के झुण्ड में एक दुर्बल मनोभूमि का व्यक्ति भी लुढ़कता हुआ आगे बढ़ता रहता है, पर जहाँ कोई सहयोगी न हों ऐसे नये और पिछड़े हुए क्षेत्र में नये सिरे से कोई कार्य आरंभ करना और उसे बहुत आगे तक बढ़ा ले जाना ऐसे ही लोगों का काम है जिन्हें पराक्रमी और वीर पुरुष कहते हैं।

श्री सोमेश्वर जी चतुर्वेदी, झाबुआ राज्य के पेटलावद नामक पिछड़े इलाके में अध्यापक हैं। आपने अपने निरंतर प्रयत्न से उस क्षेत्र के गाँव-गाँव में गायत्री माता का संदेश पहुँचाया है और अनेकों गायत्री उपासक बनाये हैं। आपके छोटे भाई शंकरलाल जी चतुर्वेदी का भी इस दिशा में आपके समान ही सदा प्रयत्न चलता रहता है।

श्री रणछोड़दास वेदाँत, जबलपुर

श्री रणछोड़दास जयशंकर वेदाँत बचपने से ही नैष्ठिक गायत्री उपासक हैं और सच्चे मन से यह विश्वास करते हैं कि जितना पुण्य माला फेरने का है उससे असंख्यों गुना पुण्य दूसरों को सन्मार्ग पर लगाने वाले प्रयत्न का है। उनने सदा शक्ति भर गायत्री प्रचार किया है और जीवन के अंतिम क्षण तक इस पुनीत प्रक्रिया को जारी रखने का संकल्प है।

श्री रणछोड़दास जी जब बर्मा में थे तब वहाँ गायत्री मंत्र लेखन का बड़ा प्रचार किया और लाखों की संख्या में मंत्र लिखकर तपोभूमि भेजे। अब वे स्वयं अपनी नैष्ठिक गायत्री उपासना के साथ-साथ दूसरों को भी इस पुण्य पथ का मार्गदर्शन करते रहते हैं, उनकी प्रेरणा से अनेकों को बड़े सत्परिणाम प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। गायत्री तपोभूमि को अधिक सुविकसित करने की आपकी बड़ी भावना है।

श्री राधेरमन मिश्र, सतना

विन्ध्य प्रदेश के सतना नगर में श्री राधे रमन मिश्र अपने घर को गायत्री तपोभूमि में परिणत करने में लगे हुए हैं। उनके घर में छोटा सा गायत्री मंदिर स्थापित है। नित्य जप, हवन, कीर्तन, गायत्री चालीसा पाठ का क्रम चलता है। आपने अपनी निष्ठ के द्वारा अपने परिवार को ही नहीं वरन् पड़ोसियों को, दफ्तर के साथियों को तथा अनेक मित्रों को रंग दिया है।

मनुष्य गृहस्थ में रहकर-घरेलू काम काजों को करता हुआ भी, यदि लगन हो तो परमार्थ का बहुत कुछ कार्य कर सकता है, उसका उदाहरण किसी को देखना हो तो मिश्रा जी को देख सकता है। उन्होंने अपने वेतन का एक अंश गायत्री ज्ञान प्रसार के लिए सुरक्षित रखा है जिससे वे कुछ गायत्री साहित्य मँगाकर वितरण करते रहते हैं।

श्री अयोध्याप्रसाद दीक्षित, कानपुर

पति पत्नी दोनों ही एक समान निष्ठ के उपासक हों ऐसा बहुत कम देखने में आता है। श्री शाँतिदेवी तथा श्री अयोध्याप्रसाद जी दीक्षित का जोड़ ऐसा ही है जिस पर अन्य गायत्री उपासक ईर्ष्या सकते हैं। इस परिवार में भोजन से भी अधिक महत्ता एवं प्राथमिकता उपासना को प्राप्त है। एक बार भोजन छूट सकता है पर साधना में व्यतिरेक नहीं पड़ सकता।

उपदेशों की अपेक्षा आचरण का दूसरों पर वास्तविक प्रभाव पड़ता है। दीक्षित जी ने अनेकों गायत्री उपासक बनाये हैं। उनकी निष्ठ इतनी प्रभावशाली है कि जिससे भी वे इस संबंध में चर्चा करते हैं वही प्रभावित हो रहा है। कानपुर में गायत्री परिवार की तीन शाखाएं हैं सभी अपने कार्यों को भली प्रकार चलाती हैं। दीक्षित जी का प्रयत्न इस विस्तार कार्य में बड़ा सहायक रहता है।

श्री रामसेवक त्रिपाठी, बड़गाँव

साधना क्षेत्र में बहुत विद्वान, ज्ञानी, तार्किक, धनी मानी होना आवश्यक नहीं। श्रद्धा और विश्वास ही वह वस्तुएं हैं जिनके आधार पर भौतिक एवं लौकिक दृष्टि से सामान्य दीखने वाला व्यक्ति भी असामान्य आत्मिक उन्नति कर सकता है। जहाँ सच्ची श्रद्धा समुचित मात्रा में मौजूद है वहाँ गृहस्थ जीवन आत्म कल्याण के पथ जरा भी बाधक नहीं होता। यदि निष्ठ का अभाव हो विरक्त का वेष धारण किये हुए घंटों पूजापाठ करने वाला व्यक्ति भी कुछ लाभ नहीं उठा सकता।

बड़गाँव के श्री रामसेवक त्रिपाठी शरीर से रेलवे की नौकरी करते हैं, पर मन में हर घड़ी गायत्री माता विराजती हैं। उन्होंने इस छोटी आयु में अब तक बहुत साधना की है और उसके चमत्कारी परिणाम भी देखे हैं। आपके प्रयत्न से उस क्षेत्र में कई बड़े यज्ञ हुए हैं तथा गायत्री सदस्यों की संख्या बढ़ी है।

श्री सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी, कोटपूतली

आध्यात्मिक जीवन की सफलता के लिए श्रद्धा सबसे आवश्यक एवं सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है। आध्यात्मिक लक्ष श्रद्धा के बिना प्राप्त हो नहीं सकता। कितने ही अश्रद्धालु तार्किक बाल की खाल निकालने में अपना बुद्धि कौशल दिखाते रहते हैं,ऐसे लोग व्याख्यान दाता तो हो सकते है पर आत्मा में ईश्वरीय प्रकाश की ज्योति का साक्षात्कार नहीं कर सकते। उनकी चंचलता एवं वाचालता आत्मिक उन्नति में सहायक तो तनिक भी नहीं होती उलटी बाधा उपस्थित करती है।

श्री सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी, कोटपूतली के हाई स्कूल में साइंस अध्यापक हैं। श्रद्धा आपकी मनोभूमि में कूट-कूट कर भरी है। गायत्री उपासना से आपकी अनन्य निष्ठ ने आपके जीवन को सच्चे ब्राह्मणत्व की प्रतिमा बना दिया है। अपनी भावना के प्रकाश से आप उस क्षेत्र में गायत्री माता का संदेश घर-घर पहुँचाने में संलग्न हैं।

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