
प्रेतात्माओं का अस्तित्व कितना प्रामाणिक-1
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विश्वविख्यात “रीडर्स डाइजेस्ट” पत्र-समूह की ओर से एक पुस्तक प्रकाशित हुई है “फेक मिथ्स एण्ड लिजेण्ड्स ऑफ ब्रिटेन” उसमें इस प्रकार की प्रेतात्माओं का वर्णन है; जिन्हें किंवदंती, भ्रम या अफवाह कहकर हँसी में नहीं उड़ाया जा सकता। घटनाओं में उन प्रेतों का जिक्र है, जो अपने अस्तित्व का प्रत्यक्ष परिचय सतत देते और अपनी उपस्थिति का भान कराते रहे हैं। पुस्तक में इंग्लैण्ड के डाॅरसेट स्थित सेनफोर्ड ऑर कास नामक बंगले का जिक्र है, जिसमें कितने ही प्रेतों का आवागमन बना रहता है। वे वहाँ उपस्थित लोगों से वार्त्तालाप भी करते हैं और जरूरत की चीजों का आदान-प्रदान भी।
“बुक ऑफ फैक्ट्स एण्ड रिकार्ड्स” में ओल्डविक थियेटर की उस घटना का उल्लेख है, जिसमें शेक्सपियर की आत्मा कुछ समय तक डेरा डाले बैठी रही।
'ईस्टर्न इस्क्वेयर लाइन' नामक वायुयान कंपनी में एक बार दुर्घटना हुई थी, उसमें प्रायः 100 यात्री मारे गए थे। वह घटना अपने समय की चर्चा बनकर समाप्त हो गई। कंपनी चलती रही और उसके दूसरे वायुयान उड़ते रहे। आश्चर्य यह देखा गया कि अधजले शरीर बोलती-चालती स्थिति में उसी कंपनी के जहाजों में बिना टिकट सफर करते पाए गए। वे अपने लिए कोई सीट सुरक्षित नहीं कराते और न कहीं एक जगह बैठते हैं। कभी-कभी किसी परिचारिका की ट्रे में से कोई खाने-पीने की वस्तु उठा लेते हैं। घटना की प्रामाणिकता जाँचने और उसे रोकने के कई प्रयत्न किए गए, पर उनसे कोई काम न चला। सिलसिला समय बीतने पर रुक गया।
एक मृतात्मा ने अपने कत्ल करने वालों का तब तक पीछा न छोड़ा, जब तक उन्हें फाँसी का दंड नहीं मिल गया। घटना डरहम की है। एक आटाचक्की चलाने वाले व्यक्ति जेम्स ग्राहम के सम्मुख एक घायल युवती प्रकट हुई। उसने अपना नाम 'ऐना वेरीना' बताया और कहा— ‘मुझ पर अवैध संबंध के लिए दबाव डालने में असफल रहने पर हत्यारों ने, जिनके नाम थे— वाकर और शार्क, कुल्हाड़ी से फाड़कर लाश को कोयले की खदान के खड्ड में फेंक दिया है। मैं चाहती हूँ कि हत्यारों को दंड मिले।”
चक्कीवाला ग्राहम उस घटना की सूचना न्यायाधीश को देने के लिए प्रेतात्मा के बार-बार जोर देने पर मुश्किल से तैयार हुआ। पुलिस ने जाँच की। हत्या के प्रमाण और उपकरण सभी मिल गए। इस पर वाकर और शार्क दोनों को मृत्यु दंड की सजा हुई। घटना का विवरण मृतात्मा ने ही बताया था और वही पुलिस को सबूत जुटाने में सहायता करती रही।
उत्तरी आस्ट्रेलिया के बिरडम नगर में ‘थ्री लेन ओमेन’ होटल में कुछ डाकुओं ने उर्सुला नामक युवती को लूटा और उसका गला दबोच कर मार डाला। खानापूरी के बाद लाश दफना दी गई, पर उर्सुला की विक्षुब्ध प्रेतात्मा होटल पर बहुत समय तक कब्जा जमाए रही। जो भी कमरा खाली देखती, उसमें वह पैर फैलाकर आराम करने लगती। होटल के नौकर किसी खाली कमरे का ताला खोलते हुए डरते थे और घंटी बजाने के बाद उसमें प्रवेश करते। उन्हें ऐसे चिह्न मिलते, मानो उसमें से कोई अभी-अभी उठकर गया है। उसने भी अपने को लूटने वाले डाकुओं से उसी होटल में बदला लिया। मारे दहशत के एक की मृत्यु हो गई, दो ने आत्महत्या कर ली।
इंग्लैण्ड के सफाॅक नगर में एक बँगला है— वीलिंग हाउस। उसमें अदृश्य आने-जाने वालों की हरकतें तो अक्सर होती रहती थीं, पर एक बार तो वहाँ विचित्र घटना घटी। रात को बारह बजे अचानक घंटी बजने लगी। दरवाजा खोलकर देखा गया तो बाहर कहीं कोई नहीं था। घंटी तब भी बजती रही। बिजली की कोई खराबी समझकर उस लाइन का कनेक्शन काट दिया गया। पूरी लाइन से बिजली हट गई तो भी घंटी बजती ही रही। पूरे दो दिन तक मिस्त्री, इंजीनियर इसका कारण जानने और ठीक करने में लगे रहे, पर वे न तो कोई कारण समझ सके और न आवाज ही बंद कर सके। कई दिन बाद वह शोर अपने आप ही बंद हुआ।
प्रेतों का आवागमन कब्रिस्तानों, फाँसीघरों, श्मशानों व घटना स्थलों के अतिरिक्त जहाँ अधिक मात्रा में देखा जाता है, वे हैं— अस्पताल। मरने वालों में से बहुत से ऐसे होते हैं, जिन्हें अस्पतालों में ही प्राण त्यागने पड़ते हैं। वहीं देर तक उनकी लाश रखी भी रहती है। पोस्टमार्टम भी होते हैं। इन कारणों से मृतात्माओं का लगाव प्रायः उस क्षेत्र से हो जाता है। बीमारी के दिनों में भी तो वे बहुत समय जहाँ रहते हैं। असली घर की तुलना में, यह अस्पताल ही मरने के दिनों उनका घर बन जाता है। ऐसी दशा में उनका वहाँ लगाव होना आश्चर्य की बात नहीं है। संवेदनशील कर्मचारियों में से कइयों को कुछ दिन पूर्व अकाल मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति उस क्षेत्र में टहलते या कराहते दीखते हैं। यह उनकी मानसिक दुर्बलता अथवा स्थान से जुड़ी लोकमान्यता भी हो सकती है। एण्डरवुल अस्पताल में एक नर्स थी, उसके जिम्मे बेहोशी की दवा सुँघाने का काम था। एक बार उसकी गलती से दवा का डोज अधिक दे दिया गया और वह उसी कारण मर गया। नर्स को अपनी भूल पर बड़ी ग्लानि हुई। उसने अस्पताल के ही एक कमरे में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इसके उपरांत उस अस्पताल में कोई भी डॉक्टर बेहोशी की दवा देने आता, जो मृत नर्स की आत्मा डाक्टर या नर्स के कंधे पर हाथ रखकर कानों में कहती— “प्रिय! असावधानी न हो।”
लंदन के सेन्ट थॉमस अस्पताल में एक बूढ़ी नर्स उन रोगियों की असाधारण सेवा करती, जो मृत्यु के मुख में जाने वाले होते। उनके प्रति वह सहानुभूति भी करती और सिरहाने बैठ कर मदद करने वाली परिचर्या भी करती। पानी माँगने पर पानी लाकर देती। मल, मूत्र त्यागने की इच्छा होती तो उसकी व्यवस्था स्वयं करती। वह मात्र रोगी को ही दीख पड़ती थी। अन्य कोई पास से गुजरने पर भी उसे देख न पाता। जब कभी उसकी उपस्थिति की चर्चा होती तो अनुमान लगा लिया जाता कि दूसरे ही दिन रोगी की मृत्यु होने वाली है।
वस्तुतः मरने के बाद कितने ही लोग तो शांतिपूर्वक अगली यात्रा पर चल देते हैं। पर कई ऐसे होते हैं, जिन्हें पूर्वजीवन से असाधारण लगाव होता है— अथवा मरण के समय उनकी मनःस्थिति विक्षुब्ध होती है, वे उससे मुक्त नहीं हो पाते और प्रेतात्मा के रूप में शरीरांत वाले स्थान के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं।