
आतुरता की आत्मघाती विडंबना
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द्रुतगति से चले। तेजी से आगे बढ़ो। अंधड़ की तरह आसमान पर छा जाएँ, ऐसी महत्वाकांक्षा अनेकों के सिर पर भूत की तरह सवार रहती है। उन्मादी की तरह स्वार्थ-साधन के लिए कुछ भी कर गुजरने की आतुरता भरती है। शराबी की तरह व्यक्ति की विचारशीलता का अपहरण कर लेती है। खुमारी में अधिक और अधिक की रट लगी रहती है। फिर परिणाम उसका कितना ही खेदजनक क्यों न हो।
साथी वाहनों को पीछे छोड़कर आगे निकल जाने और सब को पीछे रहने का उपालंभ देते हुए अपनी महत्ता की छाप छोड़ने के लिए आतुर बना देना, यही महत्वाकांक्षा का सर्वविदित स्वरूप है। इसे अपनाकर व्यक्ति इतनी हड़कंप मचाता है कि रात में नींद नहीं आती और दिन में तारे दीखते हैं।
मनुष्य की सामान्य गति सीमित है। फिर परिस्थितियाँ भी एक पर ही अनुग्रह नहीं करतीं। उन्हें सभी का ध्यान रखना होता है। वर्षा हो तो माली को मजा आए। धूप पड़े तो कुम्हार का लावा पके। इस संसार में स्वार्थों के बीच टकराव रहता ही है। जो अपना पारा की प्रतीक्षा करते हैं अपनी लाइन में चलते हैं और तनिक अग्रगमन के लिए धैर्य रखते हैं, वो ही शांति का रसास्वादन करते और दूसरों को शांति से रहने देते हैं। जिन पर आतुरता सवार है, जो चुटकी बजाते कुछ से, कुछ बनना चाहते हैं। कहीं से, कहीं पहुँच जाने के लिए व्याकुल हैं, वे पाते कम और गँवाते बहुत हैं। सबको छकाना और स्वयं सितारे छूना इतना सरल नहीं है जितना कि अतिवादी, बचकाने लोग सोचते हैं। परी की कहानियाँ बालविनोद का काम दे सकती हैं, पर दृश्य जगत में परियाँ नहीं देखी जातीं। सामान्य महिलाएँ ही पीहर और ससुराल के घरों में अपनी कर्मठता के आधार पर गृहलक्ष्मी बनकर रहती हैं।
कड़कती बिजली के साथ गाज गिर सकती है। कइयों की जान ले सकती है और ओले गिराकर फसल को मरोड़ सकती है, पर वह नहीं कर सकती कि फुहारों वाली वर्षा, खेत की जमीन में गहराई तक प्रवेश करके फसल लहलहाने का निमित्त कारण बनती है।
स्वाति की बूँदें सदा नहीं बरसतीं। वे अपने नियत क्षेत्र की प्रतीक्षा में रहती हैं और समय पर धीमी गति से बरसती हैं, अंधड़ की दौड़ में नहीं पड़तीं। शरद ऋतु का निर्मल आकाश मिलने के लिए प्रतीक्षा करती हैं। धीमे बरसती हैं और सीधी धार में इस प्रकार उतरती हैं कि सीप के पेट में गिरें। बाँस के देह से तालमेल बिठाएँ और वंशलोचन के रूप में मूल्यवान रसायन उपभोक्ताओं को लाभांवित करें।
कम बरसना, उपयुक्त अवसर के लिए प्रतीक्षा करना, सीधी चाल चलना स्वाति बूँदों का स्वभाव है। वे अंधड़ के साथ पैज नहीं लड़ातीं, न किसी कि भूलें ही स्वीकार करती हैं और न अपनी किसी के सामने प्रस्तुत करती हैं वे उतावी होंती ; क्योंकि मह्त्त्वकांछओं से, अपने को बचा लिया होता है।
महत्वाकांक्षाएँ दुर्घटनाएँ प्रस्तुत करती हैं। अपने आप को क्षति पहुँचाने वाले टकराव में उलझकर कोई नफे में नहीं रहा। जल्दी उभरने की आतुरता कभी-कभी दावानल की तरह प्रचंड होती तो देखी जाती है, पर उसके पल्ले सिर्फ राख का ढेर ही पड़ता है।