
सर्वोपयोगी निरापद-उपचार पद्धति सूर्य चिकित्सा
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दृश्यमान सूर्य प्राण ऊर्जा का भाण्डागार है। उसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सूर्य से निस्सृत गर्मी और रोशनी जीवन निर्वाह और सृष्टि व्यवस्था दोनों के लिए आवश्यक हैं। विज्ञानवेत्ता भी अब इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि सूर्य की सत्ता ही जीवन सम्पदा का रूप धारण करती है। रोग-निवारण और स्वास्थ्य संवर्धन में निरन्तर काम आने वाली ‘जीवनी शक्ति’ शरीर का अपना उपार्जन नहीं, वरन् सूर्य का दिया हुआ अनुदान है। इस ऊर्जा का अधिकाधिक सान्निध्य प्राप्त कर स्वस्थ, समर्थ, दीर्घायुष्य का लाभ हर कोई उठा सकता है। महर्षि चरक ने कहा भी है-”आरोग्यं भास्करादिच्छेत्” अर्थात्-’अरोग्य की कामना सूर्य भगवान की सहायता से पूरी की जा सकती है। सूर्य ऊर्जा प्रत्यक्ष जीवनी शक्ति है।
अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य किरणें मानव जीवन को सीधे प्रभावित करती हैं। वृक्ष-वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं सभी का जीवन सूर्य पर ही अवलम्बित है। खाद्यान्नों एवं खनिज पदार्थों की उत्पत्ति सौर ऊर्जा से ही होती है। यही किरणें शरीर में प्रवेश करके समर्थता का संवर्धन करती हैं। अवयवों को रस, रक्त, माँस, मेद, स्नायु संस्थान आदि को बलिष्ठ बनता है जिसके आधार पर शरीर बलवान रहता है और दीर्घजीवी बनता है। इस गर्मी से स्वेद मल, मूल, श्वास आदि के माध्यम से अपवर्ज्य पदार्थों के विसर्जन में सुविधा होती है। अंतः और बाह्य सफाई का आधार मजबूत बनता है। विजातीय द्रव्य शरीर में ठहरने नहीं पाते, वे जिस-तिस मार्ग से बाहर निकलते रहते हैं। रोगकारक जीवाणु-विषाणु जहाँ कहीं भी शरीर में जड़ जमा लेते हैं, उन्हें नष्ट करने की अचूक औषधि सूर्य किरणें हैं।
सूर्य किरणों की आरोग्य कारक क्षमता पर पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने गहन अनुसंधान किया है। अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. एडविन बैबिट ने उस संदर्भ में दीर्घकालीन शोध तथा प्रयोग करके निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य चिकित्सा पद्धति विश्व की अन्य किसी भी उपचार प्रक्रिया से कम लाभदायक नहीं है, वरन् वह अन्य सभी पैथियों की तुलना में अधिक निर्दोष है । प्रकाश रश्मियों की ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती जिससे रोगी को नयी व्यथाओं में फँस जाने की शिकायत करनी पड़े। इंग्लैण्ड की मूर्धन्य शरीर विज्ञानी डॉ. हैरियट चिक ने अपने अनुसंधान में सूर्य-रश्मियों के सेवन को मनुष्य के लिए अन्न तथा दूध की तरह उपयोगी पाया है। उनका कहना है कि सूर्य की खुली किरणों से जो जितना दूर रहेगा, उसी अनुपात से उसे अविकसित और दुर्बल रहना पड़ेगा। उनने रोगी और दुर्बलों को प्रातः कालीन धूप को खुले बदन पर पड़ने देने की सलाह दी है। इस प्रयोग को नियमित रूप से करने वाले व्यक्तियों की जीवनी शक्ति में असाधारण रूप से अभिवृद्धि आँकी गयी है।
प्रख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सी. डब्ल्यू. सेलिली का कहना है कि अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने रुग्ण बच्चों को आधा घण्टा सूर्योदय काल में सूर्यताप का सेवन अवश्य कराया करें 1 सूर्य सेवन वस्तुतः औषधि उपचार से कहीं अधिक लाभदायक है। इस तथ्य की पुष्टि करते हुए मूर्धन्य चिकित्सा विज्ञानी डॉ.डब्ल्यू. टी. रसेल ने लिखा है कि प्रकाश किरणों से वंचित रहने वाले व्यक्ति अस्वस्थ बने रहते और असमय ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उनके अनुसार सूर्य किरणें कई प्रकार की होती हैं। इनमें से कुछ ऐसी हैं जो गर्मी उत्पन्न करती हैं और कुछ ऐसी हैं जो शरीर का तापमान घटाती-बढ़ाती तथा शीतलता प्रदान करती है। सप्तवर्णी किरणों के अतिरिक्त उन्होंने एक ऐसी किरण को खोज निकाला है जिसके सेवन से प्रत्यक्ष रूप में गर्मी का आभास नहीं होता, किन्तु यदि 30 मिनट तक निरन्तर उसके संपर्क में रहा जाय तो यह रक्त के तापमान को बढ़ा देगी। यह किरणें शरीर के जिस भाग में प्रविष्ट नहीं हो पातीं, वहाँ रक्त प्रवाह शिथिल एवं निष्क्रिय पड़ जाता है। परिणाम स्वरूप अनेकानेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। इस कमी को प्रकाश किरणों द्वारा दूर किया और रक्त संचालन प्रक्रिया को तीव्र किया जा सकता है।
डॉ. रसेल अपने जीवन की एक घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि जब वे क्षय रोग से ग्रसित थे और चिकित्सकों ने उन्हें असाध्य रोगी घोषित कर स्वस्थ होने की उम्मीद खो दी थी, तब उन्होंने स्वयं सूर्य चिकित्सा का आश्रय लिया था और पूर्णतः निरोग हो गये। इसके पश्चात् तो सम्पूर्ण जीवन सूर्य किरणों के जीवनदायी रहस्य को समझने में ही व्यतीत हुआ। गहन खोजबीन के पश्चात् उनने निष्कर्ष निकाला कि रुग्णता दूर करने में अल्ट्रावायलेट किरणें ही नहीं, वरन् एक रहस्यमयी किरण भी कार्य करती है जिस में रोगाणुओं को नष्ट करने और शरीर को पोषण प्रदान करने की अभूतपूर्व क्षमता है। मनुष्य के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य का सूर्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। सूर्य चिकित्सा ऐसा निरापद उपचार पद्धति है जिसमें बिना कुछ गँवाये बहुत कुछ उपलब्ध किया जा सकती है जो किसी भी पौष्टिक आहार की अपेक्षा अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है। तत्वेत्ता भारतीय ऋषि सूर्य की इस रहस्यमयी क्षमता को ‘प्राणतत्व’ कहकर पुकारते रहे हैं और शारीरिक, मानसिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति का आधार भी बताते रहे हैं।