
मिट्टी की शपथ (Kavita)
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चलो गुरुदेव के सपने, सजाने की शपथ ले लें,
सुखी सुरधाम-सी वसुधा, बनाने की शपथ ले लें।
उठाकर हाथ में माटी कि जैसे दक्षिणेश्वर की,
शपथ ली देशभक्तों ने, न चिंता की कभी सिर की,
यहाँ गुरुदेव की हम जन्मभू की , रज लिये कर में,
गहन दुष्वृत्तियाँ जग से मिटाने, की शपथ ले लें।
जहाँ पर रूढ़ियों , अज्ञान का गहरा अँधेरा हो,
नहीं देखा जिन्होंने ज्ञान का, उज्ज्वल सवेरा हो,
हृदय में स्नेह भरकर, ज्योति लेकर ज्ञान की स्वर्णिम,
स्वयं जलकर धरा को जगमगाने की, शपथ ले लें।
पताका देव-संस्कृति की, स्वयं हर देश में लेकर,
छवि हर रोग की गुरु के, सहज सन्देश में लेकर,
नगर और गाँव में, घर में, डगर के बीच जाएँगे,
अलख गुरुदेव का घर-घर जगाने, शपथ ले लें।
भयंकर आग फैली है, जरा सी देर घातक है,
हवा बिलकुल विषैली है, जरा सी देर घातक है,
इसी से, लोक-सेवा में, लगाएँगे समय अपना,
पुनः इस विश्व-वसुधा को, सजाने की शपथ ले लें।
धरा का हर सुमन महका करे, इतना समय देंगे,
सृजन की भावना सब में भरे, इतना समय देंगे,
न दे पाये समय, तो लोक-मंगल के लिये अपने,
स्वयं साधन, व धन-प्रतिभा लगाने की शपथ ले लें।
(शचीन्द्र भटनागर)