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Magazine - Year 1992 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

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तीन माह के अंतराल के बाद, जिस अवधि में देव-संस्कृति संबंधी विशिष्ट सामग्री प्रस्तुत की गयी, अमृतवाणी प्रसंग पुनः आरंभ किया जा रहा है। प्रस्तुत अंक में 31 जनवरी 1979 को शाँतिकुँज परिसर में दिया गया प्रवचन अविकाल उसी रूप में दिया जा रहा है।

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलिए-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों और भाइयों ! देवताओं के अनुग्रह की बात आप सबने सुनी होगी। देवता नाम ही इसलिए रखा गया है कि वे दिया करते हैं। प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही लोग उनकी पूजा किया करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं कि देवता हमको कुछ देकर जायेंगे। क्या यह बात सही है या गलत है, आइये इस पर विचार करें।

देवता देते तो हैं, इसमें कोई शक नहीं है। अगर वे देते न होते तो उनका नाम देवता न रखा गया होता। देवता का अर्थ ही होता है-देने वाला। देने वाले से अगर-माँगने वाला कुछ माँगता है तो कोई वेजा की बात नहीं है। पर विचार करना पड़ेगा कि आखिर देवता देते क्या चीज हैं? देवता वही चीज देते हैं जो उनके पास है। जिसके पास जो चीज होगी, वही तो दे पायेगा। देवता के पास सिर्फ एक चीज है और उसका नाम है-देवत्व। देवत्व कहते हैं-गुण, कर्म और स्वभाव-तीनों की अच्छाई को-श्रेष्ठता को । इतना देने के बाद में देवता निश्चिन्त हो जाते हैं, निवृत्त हो जाते हैं और कहते हैं कि जो हम आपको दे सकते थे हमने वह दे दिया। अब आपका काम है कि जो चीज हमने दी है उसको जहाँ भी आप मुनासिब समझें, वहाँ इस्तेमाल करें उसी किस्म की सफलता पायें।

दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है-आदमी का उत्कृष्ट व्यक्तित्व। इससे कम में कोई चीज नहीं मिल सकती। अगर कहीं से किसी ने घटिया व्यक्तित्व की कीमत पर किसी तरीके से अपने सिक्के को भुनाये बिना अपनी योग्यता का सबूत दिये बिना, परिश्रम के बिना गुणों के अभाव में कोई चीज प्राप्त कर ली है तो वह उसके पास ठहरेगी नहीं । शरीर में हजम करने की ताकत न हो तो जो खुराक आपने खाई है वह आपको हैरान करेगी, परेशान करेगी। इसी तरह सम्पत्तियों को-सुविधाओं को हजम करने के लिए गुणों का माद्दा नहीं होगा तो वे आपको तंग करेंगी परेशान करेंगी। अगर गुण नहीं है तो जैसे-जैसे दौलत बढ़ती जायेगी वैसे-वैसे आपके अन्दर दोष, दुर्गुण, बढ़ते जायेंगे, व्यसन बढ़ते जायेंगे। अहंकार बढ़ता जायेगा और आपकी जिन्दगी को तबाह कर देगा।

देवता क्या देते हैं ? देवता हजम करने की ताकत देते हैं जो दुनियावी दौलत या जिन चीजों को आप माँगते हैं जो आपको खुशी का वायस मालुम पड़ती हैं। उन सारी चीजों को हजम करने के लिए विशेषता होनी चाहिए। इसी का नाम है-देवत्व। देवत्व अगर प्राप्त हो जाता है तो फिर आप दुनिया की हर चीज से थोड़ी से थोड़ी चीजों से लेकर फायदा उठा सकते हैं। अगर वे न भी हों तो भी अच्छा है, यदि न हों जायँ तो भी कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर आप इस बात के लिए उतावले हैं कि जैसे भी हम पिछड़े हैं वैसे ही बने रहें, तो फिर कुछ कहना संभव नहीं है।मनुष्य के शरीर में ताकत होनी चाहिए, अकल होनी चाहिए पर उस पर समझदारी का नियंत्रण भी होना चाहिए। समझदारी का नियंत्रण न होने से वह आग में घी डालने, ईंधन डालने के तरीके से वह सिर्फ दुनिया में मुसीबतें ही पैदा करेगी। देवता किसी को दौलत देने की गलती नहीं कर सकते । अगर देते हैं तो इसका मतलब है कि तबाही कर रहे हैं। इनसान को अगर भगवान कुछ देते हैं विशेषतायें देते हैं, नयी उमंगे देते हैं। इनसानियत उस चीज का नाम है जिसमें आदमी का चिन्तन, दृष्टिकोण महत्वाकाँक्षाएँ और गतिविधियाँ ऊँचे स्तर की हो जाती हैं। इनसानियत एक बड़ी चीज है।

मनोकामनायें पूरी करना खराब बात नहीं है, पर शर्त एक ही है कि यह किस काम के लिए किस चीज के लिए माँगी गयी है ?

अगर साँसारिकता के लिए माँगी गयी हैं तो उससे पहले यह जानना जरूरी है कि उस दौलत को हजम कैसे कर सकते हैं । उसे खर्च कैसे कर सकते हैं ? मनुष्य भूल कर सकता है, पर देवता भूल नहीं कर सकते। देवता आपको चीजें नहीं दे सकते जैसा कि मेरा अपना ख्याल है। देवताओं के संपर्क में आने वाले को भौतिक वस्तुएँ नहीं मिली। क्या मिला है ? आदमी को गुण मिले हैं। देवत्व मिला है। सद्गुणों के आधार पर आदमी को विकास करने का मौका मिला है। गुणों के विकसित होने के पश्चात् उन्होंने वह काम किये हैं जिन्हें सामान्य बुद्धि से काम करते हुए भी उन्नति के ऊँचे शिखर पर जा पहुँच सकता है। चाहे वह साँसारिक हो अथवा आध्यात्मिक । संसार और अध्यात्म में कोई फर्क नहीं पड़ता। गुणों के इस्तेमाल करने का तरीका भर है। गुण अपने आप में शक्ति के पुँज हैं इन्हें कहाँ इस्तेमाल करना चाहते हैं यह आपकी इच्छा की बात है।

सफलता साहसिकता के आधार पर मिलती है। यह एक आध्यात्मिक गुण है। इसी आधार पर योगी को भी सफलता मिलती है, ताँत्रिक को भी और महापुरुषों को भी। हर एक को इसी साहसिकता के आधार पर सफलता मिलती है, वह डाकू ही क्यों न हो , आप योगी हैं तो अपनी हिम्मत के सहारे फायदा उठायेंगे, नेता है, महापुरुष हैं तो भी इसी आधार पर सफलता पायेंगे। यह एक दैवी गुण है। इसे आप अपनी इच्छा के अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं, यह आप पर निर्भर है। इनसान के भीतर जो विशेषता है वह गुणों की विशेषता है। देवता अगर किसी आदमी को देंगे तो गुणों की विशेषता देंगे-गुणों की सम्पदा देंगे। गायत्री माता, जिनकी आप उपासना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं, अगर कभी कुछ देंगी तो गुणों की विशेषता देंगी। गुणों से क्या हो जायेगा ? गुणों से ही तो होता है सब कुछ। भौतिक अथवा आध्यात्मिक जहाँ कहीं भी आदमी को उन्नति मिली है, केवल गुणों के आधार पर मिली है। श्रेष्ठ गुण न हों तो न भौतिक उन्नति मिलने वाली है न आध्यात्मिक उन्नति मिलने वाली है।

आदमी जितना समझदार है। नासमझ उससे भी ज्यादा है। यह भ्रान्ति न जाने क्यों आध्यात्मिक क्षेत्र में घुस पड़ी हैं कि देवता मनोकामना पूरी करते हैं, पैसा देते हैं, दौलत देते हैं, बेटा देते हैं, नौकरी, देते हैं। इस एक भ्रान्ति ने इतना ज्यादा व्यापक नुकसान पहुँचाया है कि आध्यात्मिक का जितना बड़ा लाभ, जितना बड़ा उपयोग था, संभावनायें थीं उससे जो सुख होना संभव था, उस सारी की सारी संभावना को इसने तबाह कर दिया। देवता आदमी को एक ही चीज देंगे और उनने एक ही चीज हर एक को दी है, प्राचीन-काल के इतिहास में और भविष्य में भी। देवता अगर जिन्दा रहेंगे, भक्ति अगर जिन्दा रहेंगे, भक्ति अगर जिन्दा रहेगी, उपासना-क्रम यदि जिन्दा रहेगा तो एक ही चीज मिलेगी और वह है-देवत्व के गुण। देवत्व के गुण अगर आ जायँ तब आप जितनी सफलतायें चाहते हैं, उससे हजारों-लाखों गुनी सफलतायें आपके पास आ जायेंगी।

आप क्या चाहते हैं ? आपको देवत्व के स्थान पर तीन-चार सौ रुपये की नौकरी दिलवादें कोई देवता, संत या आशीर्वाद या कोई मंत्र तो वह ना चीज हो सकती है। लेकिन अगर देवता देवत्व प्रदान करते हैं, तो वह नौकरी आपके लिए इतनी कीमती की करवा देंगे कि आप निहाल हो जायेंगे। विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस के पास नौकरी माँगने थे, पर मिला क्या-देवत्व, भक्ति, शक्ति और शान्ति । यह क्या चीज थे-गुण । मनुष्य के ऊपर कभी संत कृपा करते हैं। संतों ने कभी किसी को दिया है तो उनने एक ही चीज दी है-अंतरंग में उमंग, एक ऐसी उचंग जो आदमी को घसीट कर सिद्धान्तों की ओर ले जाती है। जब आदमी के ऊपर सिद्धान्तों का नशा छाता है, तब उसका मैग्नेट, उसका आकर्षण, उसकी प्रामाणिकता इस कदर सही हो जाती है कि हर आदमी खिंचता हुआ चला जाता है और हर कोई सहयोग दोनों मिला । यह किसने दी थी-काली ने। काली अगर किसी को कुछ देगी तो यही चीज देगी। अगर दुनिया में दुबारा कोई रामकृष्ण जिन्दा होंगे या पैदा होंगे, तो इसी प्रकार का आशीर्वाद देंगे जिससे आदमी के व्यक्तित्व विकसित होते चले जायँ। व्यक्तित्व अगर विकसित होगा तो जिसको आप चाहते हैं वह सहयोग बरसेगा। सहयोग माँगा नहीं जाता-बरसता है। आदमी फेंकता जाता है और सहयोग बरसता जाता है। देवत्व जब आता है तब सहयोग बरसता है। बाबा साहब आमटे का उदाहरण आपके सामने हैं जिन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए, अपंगों के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया। यह क्या है? सिद्धान्त है, आदर्श है, और वरदान है इससे कम में किसी के वरदान मिला है और न इससे ज्यादा में किसी को मिलेगा। भीख माँगने से न किसी को मिली है और न भविष्य में किसी को मिलेगी। देवता एक काम करते रहते हैं। क्या करते हैं? फूल बरसाते हैं। रामायण में कोई पचास जगह किस्से आते हैं जब देवताओं ने फूल बरसाया। फूल बरसाया। फूल क्या बरसाते हैं’-सहयोग बरसाते हैं, फूल किसे कहते हैं? सहयोग को कहते हैं। कौन बरसाता है? देवत्व जो इस दुनिया में अभी जिन्दा है। देवत्व ही इस दुनिया में जिन्दा था और जिन्दा ही रहने वाला है। देवत्व मरेगा नहीं। यदि हैवान या शैतान नहीं मर सका तो भगवान क्यों मरेगा ? इनसान क्यों मरेगा ? इनसान- इनसान को देखकर आकर्षित होता है और भगवान- भगवान को देखकर । देवता’- देवता को देखकर आकर्षित होता है और श्रेष्ठता को देखकर सहयोग आकर्षित होता है। पहले भी यही होता रहा था, अभी भी होता है और आगे भी होता रहेगा।

यहाँ मैं देवता की प्रशंसा कर रहा हूँ। देवता कैसे होते हैं? देवता ऐसे होते हैं जो आदमी के ईमान में घुसे रहते हैं और उसके भीतर से एक ऐसी हूक, एक ऐसी उमंग और एक ऐसी तड़पन पैदा करते हैं जो सारे जाल-जंजालों को मकड़ी के जाले की तरीके से तोड़ती हुई सिद्धान्तों की ओर-आदर्शों की ओर बढ़ने के लिए आदमी को मजबूर कर देती हैं। इसे कहते हैं देवता का वरदान । इससे कम में देवता का वरदान नहीं हो सकता। आदमी के भीतर जब गुणों की, कर्मों की, स्वभाव की विशेषतायें पैदा हो जाती हैं तो विश्वास रखिये तब उसकी उन्नति के दरवाजे खुल जाते हैं। गुणों के हिसाब से दुनिया के इतिहास में जितने भी आदमी आज तक विकसित हुए हैं, वे प्रत्येक व्यक्ति गुणों के आधार पर बढ़े हैं। देवता का वरदान गुण और चिन्तन की उत्कृष्टता है। संसार के महापुरुषों में से हर एक सफल व्यक्ति का इतिहास यही रहा है। सभी छोटे-छोटे खानदानों में पैदा हुए थे। छोटे-छोटे घरों में परिस्थितियों में पैदा हुए थे, लेकिन उन्नति के ऊँचे से ऊँचे शिखर पर ऊँचे से ऊँचे स्थान पर जरूर पहुँचते चले गये। कौन जा पहुँचे? लालबहादुर शास्त्री को ले लीजिये जिनके ऊपर देवता का अनुग्रह था। देवता के अनुग्रह की परख क्या है कि वे अनुग्रह करते हैं या नहीं ? एक ही अनुग्रह की पहचान है-जिम्मेदारी और समझदारी का होना, भक्त और भगवान के बीच में यही सिलसिला चला है और देवता तथा उसके उपासकों के बीच भी यही सिलसिला चला है। इनसान के यहाँ और भगवान के यहाँ एक हरी तरीका है।

पूजा क्यों करते हैं ? पूजा का मतलब एक ही है और वह है-इनसानी गुणों का विकास, इनसानी कर्म का विकास, इनसानी स्वभाव का विकास। आपने जो समझ रखा है कि पूजा के आधार पर यह मिलेगा-वह मिलेगा, यह सारी गलतफहमी इसीलिए हुई है। पूजा के आधार पर वस्तुतः दयानतदारी मिलती है, ईमानदारी मिलती है। आदमी को ऊँचा दृष्टिकोण मिलता है। अगर आप ने गलत पूजा की होगी तब आप भटक रहे होंगे। पूजा आपको इस एक ही तरीके से करनी चाहिए कि जो पूजा के लाभ आज तक इतिहास में मनुष्यों को मिले हैं, हमको भी मिलने चाहिए । हमारे गुणों का विकास, कर्म का विकास, चरित्र का विकास और भावनाओं का विकास होना चाहिए। देवत्व इसी का नाम है। देवत्व अगर आपके पास आयेगा तो आपके पास सफलतायें आयेंगी। हिन्दुस्तान के इतिहास पर दृष्टि डालिए, उसके पन्ने पर जो बेहतरीन आदमी दिखायी पड़ते हैं वे अपनी योग्यता के आधार पर नहीं अपनी विशेषता के आधार पर महान बने हैं। महामना मालवीय जी का उदाहरण सुना है आपने-कैसे शानदार व्यक्ति थे वे । उन पर देवताओं का अनुग्रह बरसा था और छोटे से आदमी से वे महान हो गये।

मित्रों! भगवान जब प्रसन्न होते हैं तो वह चीज नहीं देते जो आप माँगते हैं। फिर क्या चीज देते हैं ? वह चीज देते हैं जिससे आदमी अपने बलबूते पर खड़ा हो जाता है और चारों ओर से उनको सफलतायें मिलती हुई चली जाती हैं। सारे के सारे महापुरुषों को आप देखते चले जाइये, कोई भी आदमी दुनिया के परदे पर आज तक ऐसा नहीं हुआ है जिसको दैवी सहयोग न मिला हो। जिसको जनता का सहयोग न मिला हो, जिसको भगवान का सहयोग न मिला हो। ऐसे एक भी आदमी का नाम आप बतलाइये जिसके अन्दर से विशेषताएँ पैदा न हुई हों जिनसे आप दूर रहना चाहते हैं। जिनसे आप बचना चाहते हैं। जिनके प्रति आपका कोई लगाव नहीं है। वे चीजें जिनको हम आदर्शवाद कहते हैं-सिद्धान्तवाद कहते हैं, दुनिया के हिस्से का हर आदमी जिसको श्रेय मिलेगा वहीं उसे वैभव भी मिले बिना रहेगा नहीं। संत गरीब नहीं होते । वे उदार होते हैं और जो पाते हैं खाते नहीं दूसरों को खिला देते हैं। देवत्व इसी को कहते हैं।

आदमी के भीतर का माद्दा जब विकसित होता है तो बाहरी दौलत उसके नजदीक बढ़ती चली जाती है। उदाहरण क्या बताऊँ-प्रत्येक महापुरुष का यही उदाहरण है। प्रत्येक ईश्वर भक्त का प्रत्येक सिद्धान्तवादी का यही उदाहरण है। उन्हीं को मैं देव भक्त कहता हूँ। देवोपासक उन्हीं को मैं कहता हूँ। उन्हीं की देवभक्ति को मैं सार्थक मानता हूँ जो अपने गुणों के आकर्षण में खींच सकने में समर्थ हुए। आपकी भाषा में कहूँ तो देवता जब प्रसन्न होते हैं तो आदमी को देवत्व के गुण देते हैं। देवत्व के कर्म देते हैं, देवत्व का चिन्तन देते हैं और देवत्व का स्वभाव देते हैं। यह मैंने आपकी भाषा में कहा है। हमारी परिभाषा इससे अलग है। मैं यह कह सकता हूँ कि आदमी अपने देवत्व के गुणों के आधार पर देवता को मजबूर करता है। देवता पर दबाव डालता है, उसे विवश करता है और यह कहता है कि आपको हमारी सहायता करनी चाहिए और सहायता करनी पड़ती है। भक्त इतना मजबूत होता है जो भगवान के ऊपर दबाव डालता है और कहता है कि हमारा ड्यू है। आप हमारी सहायता क्यों नहीं करते? वह भगवान से लड़ने को अमादा हो जाता है कि आपको हमारी सहायता करनी चाहिए।

कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छायें पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। कामना पूर्ति आपकी नहीं भगवान की। भक्त की रक्षा करने का भगवान व्रत लिए हैं- ’योग क्षेमं वहाम्यहम्।’ यह सही है भगवान ने योग क्षेम को पूरा करने का व्रत लिया हुआ है, पर हविस पूरी करने का जिम्मा नहीं लिया, आपका योग और क्षेम अर्थात् आपकी शारीरिक आवश्यकताएँ पूरी करना उनकी जिम्मेदारी है। आपकी बौद्धिक-मानसिक आवश्यकतायें पूरी करना भगवान की जिम्मेदारी है, पर आपकी हविस पूरी नहीं हो सकती । हविसों के लिए, तृष्णाओं के लिए भागिये मत। यह भगवान की शान में , भक्त की शान में, भजन की शान में गुस्ताखी है-सबकी शान में गुस्ताखी है। भक्त और भगवान का सिलसिला इसी तरह से चलता रहा है और इसी तरीके से चलता रहेगा। भक्त माँगते नहीं दिया करते हैं। भगवान वास्तव में सिद्धान्तों का नाम है, आदर्शों का नाम है, श्रेष्ठताओं के समुच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति-आदर्शों के प्रति आदमी के जो त्याग और बलिदान हैं, वस्तुतः यही भगवान की भक्ति है। देवत्व इसी का नाम है।

प्रामाणिकता आदमी की इतनी बड़ी दौलत है कि जनता का उस पर सहयोग बरसता है, स्नेह बरसता है, समर्थन बरसता है। जहाँ स्नेह समर्थन और सहयोग बरसता है , वहाँ आदमी के पास किसी चीज की कमी नहीं रह सकती । बुद्ध की प्रामाणिकता के लिए, सद्भावना के लिए, उदारता के लिए लोगों ने उनके ऊपर पैसा बखेर दिये। गाँधी जी की प्रामाणिकता और सद्भावना, श्रेष्ठ कामों के लिए उनकी लगन, उदारता लोकहित के तई थी व्यक्तिगत जीवन में श्रेष्ठता और प्रामाणिकता को लेकर चलने के बाद में वे भक्तों की श्रेणी में सम्मिलित होते चले गये। सारे समाज ने उनको सहयोग दिया, दान दिया और उनकी आज्ञा का पालन किया। लाखों लोग उनके कहने पर जेल चले गये, लाखों लोगों ने अपने सीने पर गोलियाँ खाईं। क्या यह हो सकता है? हाँ शर्त एक ही है कि आप प्रकाश की ओर चलें छाया आपके पीछे-पीछे चलेगी। आप तो छाया के पीछे-पीछे भागते हैं, छाया ही आप पर हावी हो गई है। छाया का अर्थ है माया। आप प्रकाश की ओर चलिए, भगवान की ओर चलिए, सिद्धान्तों की ओर चलिए। आदर्श और सिद्धान्त-इन्हीं का नाम हनुमान है, इन्हीं का नाम भगवान है।

मित्रों, जो हविस आपके ऊपर हावी हो गयी है उससे पीछे हटिये, तृष्णाओं से पीछे हटिए, तृष्णाओं से पीछे हटिये और उपासना के उस स्तर पर पहुँचने की कोशिश कीजिए जहाँ कि आपके भीतर से, व्यक्तित्व में से श्रेष्ठता का विकास होता है। भक्ति यही है। अगर आपके भीतर से श्रेष्ठता का विकास हुआ हो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको जनता का वरदान मिलेगा, आपको अपनी आत्मा का वरदान मिलेगा-भगवान का वरदान मिलेगा। चारों ओर से इतने वरदान मिलेंगे कि जिसको पा करके आप निहाल हो जायेंगे। भक्ति का यही इतिहास है-भक्त का यही इतिहास है । भगवान के अनुग्रह का-गायत्री माता के अनुग्रह का यही इतिहास है यही इतिहास था और यही इतिहास रहेगा।अगर इस रहस्य को-सार को आप समझ लें, तो आपका यहाँ आना सार्थक हो जाय। आपका गायत्री अनुष्ठान सार्थक हो जाय, अगर आप इस सिद्धान्त को समझकर जायँ कि हमको सद्गुणों के विकास करने के लिए तपश्चर्या करायी जा रही है और अगर हमारी यह तपश्चर्या सही साबित हुई तो भगवान हमको यहाँ से विदा करते समय गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषता देंगे और हमको चरित्रवान व्यक्ति के तरीके से विकसित करेंगे। चरित्रवान व्यक्ति जब विकसित होता है तब उदार हो जाता है, परमार्थ-परायण हो जाता है-लोकसेवी हो जाता है, जनहितकारी हो जाता है और वह अपनी क्षुद्र , स्वार्थ-संकीर्णताओं को कम करके लोकहित में-परमार्थ हित में अपने स्वार्थ को देखना शुरू कर देता है। आपकी अगर ऐसी मनःस्थिति हो जाय तो मैं कहूँगा कि आपने सच्ची उपासना की और भगवान का सच्चा वरदान पाया।

आप सच्चा वरदान पा करके निहाल हो सकते हैं जिससे कि आज तक के सारे के सारे भक्त निहाल होते रहे हैं। मैंने इसी रातें पर चलने की कोशिश की और अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से भगवान के वरदानों को देखा और पाया। मैं चाहता था कि आप लोग जो इस शिविर में आये हैं जो वसंत के निकट जा पहुँचा है यह प्रेरणा लेकर जायँ कि हम पर भगवान कृपा करें कि हमको श्रेष्ठता के लिए, आदर्शों के लिए कुछ त्याग और बलिदान करने की चरित्र को श्रेष्ठ और उज्ज्वल बनाने के लिए प्रेरणा भीतर से मिले और बाहर से मिले । अगर ऐसी कुछ प्रेरणा आपको मिले तो उसके फलस्वरूप आप जो कुछ भी प्राप्त करेंगे , वह इतना शानदार होगा कि जिससे आप निहाल हो जायँ। आपका देश निहाल हो जाय, गायत्री माता निहाल हो जायँ, हम निहाल हो जायँ और यह शिविर निहाल हो जाय अगर आप इस तरह की कुछ प्राप्ति और उपलब्धि कर सके । आज की बात समाप्त॥ ॐ शान्ति॥

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