• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • संस्कृति सत्य, जिसकी पुनरावृत्ति सुनिश्चित है।
    • हिन्दुत्व क्या है?
    • सफल,समृद्ध जीवन की रीति-नीति
    • सहस्र सा कर्मयत्
    • जीते तो जिन्दा दिल हैं, कायर बेमौत मरते हैं।
    • संस्कृति के गौरवपूर्ण अतीत का एक अध्याय
    • सगर जैसी उदारता व विशालता विकसित हो
    • Quotation
    • ब्राह्मण का काम (Kahani)
    • उद्धत,सनकी तो नहीं ही बनें
    • किस्मत का खेल नहीं, परोक्ष सत्ता की मदद
    • कृपणता द्वारा उदारता का बहाव (Kahani)
    • ऊर्जा का जखीरा नष्ट न होने पाए
    • Quotation
    • प्रायश्चित बिना जीवनमुक्ति नहीं
    • मनुष्य से भी बढ़कर क्षमतावान हैं अन्य प्राणी
    • इस युग की व्याधि : उदासी
    • माता की विशाल हृदयता (Kahani)
    • आश्विन नवरात्रि पर सामयिक संदर्भ:- - आत्मिक शक्ति संवर्धन हेतु विशिष्ट अवसर
    • सुसंस्कारिता प्रयासपूर्वक जगानी पड़ती है।
    • आत्मा की छाया मात्र (Kahani)
    • धर्म साध्य है तो विज्ञान साधन
    • मैं मौन का उपासक हूँ (Kahani)
    • संस्कारों का निरन्तर अजस प्रवाह
    • चेतनात्मक परिष्कार की दैवी प्रक्रिया
    • सर्वोपयोगी निरापद-उपचार पद्धति सूर्य चिकित्सा
    • बलिष्ठ दैत्य बनें, कि प्रतिभा सम्पन्न देव ?
    • सतयुग एक भवितव्यता
    • अमरत्व की शक्ति पाई (Kahani)
    • प्राणाग्नि का पुँज यह देह पिंजर
    • हिम्मत टूट गई (Kahani)
    • धर्म का प्रयोजन, अंतःकरण की शुद्धि
    • मिट्टी की शपथ
    • मिट्टी की शपथ (Kavita)
    • मानव जीवन की सर्वोपरि सामर्थ्य - श्रद्धा
    • लालच में निरन्तर निरत (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अपनों से अपनी बात- - देव संस्कृति दिग्विजय अर्थात् ऐतिहासिक अश्वमेध आयोजन
    • अश्वमेध अर्थात्-अजेय राष्ट्र का सामर्थ्य सम्पादन
    • हिंसा की कल्पना करने वाले और कुछ भी हों विद्वान नहीं
    • अश्वमेध का अर्थ है अमृतवर्षा- अनुग्रहवर्षा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • संस्कृति सत्य, जिसकी पुनरावृत्ति सुनिश्चित है।
    • हिन्दुत्व क्या है?
    • सफल,समृद्ध जीवन की रीति-नीति
    • सहस्र सा कर्मयत्
    • जीते तो जिन्दा दिल हैं, कायर बेमौत मरते हैं।
    • संस्कृति के गौरवपूर्ण अतीत का एक अध्याय
    • सगर जैसी उदारता व विशालता विकसित हो
    • Quotation
    • ब्राह्मण का काम (Kahani)
    • उद्धत,सनकी तो नहीं ही बनें
    • किस्मत का खेल नहीं, परोक्ष सत्ता की मदद
    • कृपणता द्वारा उदारता का बहाव (Kahani)
    • ऊर्जा का जखीरा नष्ट न होने पाए
    • Quotation
    • प्रायश्चित बिना जीवनमुक्ति नहीं
    • मनुष्य से भी बढ़कर क्षमतावान हैं अन्य प्राणी
    • इस युग की व्याधि : उदासी
    • माता की विशाल हृदयता (Kahani)
    • आश्विन नवरात्रि पर सामयिक संदर्भ:- - आत्मिक शक्ति संवर्धन हेतु विशिष्ट अवसर
    • सुसंस्कारिता प्रयासपूर्वक जगानी पड़ती है।
    • आत्मा की छाया मात्र (Kahani)
    • धर्म साध्य है तो विज्ञान साधन
    • मैं मौन का उपासक हूँ (Kahani)
    • संस्कारों का निरन्तर अजस प्रवाह
    • चेतनात्मक परिष्कार की दैवी प्रक्रिया
    • सर्वोपयोगी निरापद-उपचार पद्धति सूर्य चिकित्सा
    • बलिष्ठ दैत्य बनें, कि प्रतिभा सम्पन्न देव ?
    • सतयुग एक भवितव्यता
    • अमरत्व की शक्ति पाई (Kahani)
    • प्राणाग्नि का पुँज यह देह पिंजर
    • हिम्मत टूट गई (Kahani)
    • धर्म का प्रयोजन, अंतःकरण की शुद्धि
    • मिट्टी की शपथ
    • मिट्टी की शपथ (Kavita)
    • मानव जीवन की सर्वोपरि सामर्थ्य - श्रद्धा
    • लालच में निरन्तर निरत (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अपनों से अपनी बात- - देव संस्कृति दिग्विजय अर्थात् ऐतिहासिक अश्वमेध आयोजन
    • अश्वमेध अर्थात्-अजेय राष्ट्र का सामर्थ्य सम्पादन
    • हिंसा की कल्पना करने वाले और कुछ भी हों विद्वान नहीं
    • अश्वमेध का अर्थ है अमृतवर्षा- अनुग्रहवर्षा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1992 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सगर जैसी उदारता व विशालता विकसित हो

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 6 8 Last
किसी भी व्यक्ति की गरिमा और उसके व्यक्तित्व की विशालता को सराहने के लिए प्रायः कहा जाता है, वह समुद्र जैसा गंभीर और विशाल हृदय है। समुद्र वास्तव में अपने भीतर विशालता और गौरव गरिमा की महान प्रेरणाएँ लिए रहता है। उसकी विशालता यद्यपि स्थूल जगत तक सीमाबद्ध होती है, फिर भी उसकी सूक्ष्म प्रेरणाएँ को भी वैसा ही बनने की दिशा देती हैं। उसके निर्माण से लेकर विस्तार तक के तथ्यों पर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत होगा कि यह श्रेय प्राप्त करने के लिए उसे किन उथल’-पुथल से गुजरना पड़ा है।

पृथ्वी की आयु करोड़ों वर्ष पुरानी मानी जाती हैं। आरम्भ में यह सूर्य तरह ही जलती हुई गैसों का पिण्ड थी क्योंकि यह सूर्य से ही टूटकर अलग हुई थी। धीर -धीरे यह ठंडी होने लगी और जीवों के रहने लायक स्थिति में करीब 10 लाख वर्ष पूर्व आई। इस संदर्भ में मूर्धन्य जर्मन वैज्ञानिक एल्फ्रेड बैगनर ने विश्व के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले प्राणि अवशेषों का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर पता लगाया कि अब तक संसार की जलवायु में कई विशाल परिवर्तन होते रहे हैं। ध्रुव प्रदेशों में ऐसे प्राणियों के अवशेष मिले हैं जो केवल उष्ण प्रदेशों में ही पाए जाते हैं। इसी प्रकार किसी समय हिमाच्छादित रहे प्रदेश इन दिनों हरे भरे मैदान बने हुए हैं और किसी समय के मैदान अब इन दिनों बर्फ से ढके हुए हैं। इसी प्रकार जहाँ इन दिनों घनी आबादी है, वहाँ कभी समुद्र था और किसी समय प्राणधारियों, थलचरों का निवास स्थान रहा प्रदेश आजकल समुद्र बना हुआ है।

बैगनर का यह भी मत है कि सुदूर अतीत में पृथ्वी पर एक ही महाद्वीप था और एक ही सागर, धीरे-धीरे यदि परिवर्तनों से भू-भाग कटते-फटते टूटते-फूटते कई महाद्वीपों और समुद्रों में बदल गये। इस समय पृथ्वी के अधिकाँश भाग में समुद्र फैला हुआ है, संपूर्ण पृथ्वी 1970 लाख वर्गमील क्षेत्र में फैली हुई हैं इसमें भूमि का क्षेत्रफल कुल 570 लाख वर्गमील के करीब ही है जबकि लगभग 1400 लाख वर्गमील वर्ग क्षेत्र में पानी फैला हुआ है। समुद्र की सबसे अधिक गहराई 35400 फीट है।

समुद्र में असंख्य प्रकार के जीव रहते हैं और वहीं से अपना पोषण प्राप्त करते हैं। स्थूल बुद्धि से देखने पर धरती के जीवों की उत्पत्ति धरती के वातावरण पर होती दिखाई देती है। यह भी प्रतीत होता है कि आहार भी धरती से ही प्राप्त होता है। इस प्रकार धरती वाला क्षेत्र अधिक उर्वर प्रतीत होता है, किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। धरती जितने जीवों का निर्वाह करती है, उससे कहीं अधिक जीवों को समुद्र प्रश्रय देता है। जीवन का आदितत्व प्रोटोप्लाज्म आरम्भ में समुद्रों से ही उत्पन्न हुआ था। विकासवाद के जनक डार्विन के अनुसार जीवों की उत्पत्ति सर्वप्रथम जल में ही हुई । भारतीय धर्म के मान्य दशावतारों की संगति विकासवाद से बिठाते हुए आधुनिक विद्वान कहते हैं कि मत्स्यावतार इसी बात का प्रतीक है कि सर्वप्रथम सागर में से ही जीवन प्रादुर्भाव हुआ।

जो भी हो यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि जल, सागर जीवन का आदि उद्गम स्थल है और सर्वप्रथम जल जीवों का अस्तित्व ही संसार में दृष्टिगोचर हुआ था। समुद्री जीवों को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-पहला “ प्लैंकटन” जो स्वयं चल फिर नहीं सकते । लहरें-धाराएं और ज्वार-भाटा इन्हें इधर-उधर घुमाते-फिरते हैं। समुद्री पौधे और बहुत छोटे कीड़े इसी वर्ग में आते हैं । दूसरे प्रकार के जल जीवों में “नैक्टम” का स्थान आता है जो स्वतः चल फिर सकने में समर्थ है। समुद्र की गहराई में एक ही स्थान पर रहने वाले चित्र-विचित्र बनावट के जल-जीवों को तीसरे वर्ग में रखा जाता है इन्हें “बैन्थस” कहते हैं। इनमें कितने ही ऐसे हैं जिनकी विचित्र और विलक्षण बनावट स्तब्ध कर देती है। हाथी की सी सूंड़ वाला जलदैत्य, भीमकाय व्हेल, शार्क जैसी आक्रमणकारी मछली, मगरमच्छ अपने ढंग के अलग ही जीव जन्तु हैं जो बड़ी संख्या में सागर के गर्भ में वास करते करते हैं। इन विशालकाय जल-जन्तुओं के अतिरिक्त छोटे अमीबा और बैक्टीरिया सरीखे सहज ही न दिखाई देने वाले जन्तु भी कम नहीं हैं। संख्या की दृष्टि से थलचरों की तुलना में जलचरों की संख्या कई गुना अधिक है। मछलियों का तो समुद्रों में तो एक प्रकार से ऐसा ही साम्राज्य है जैसा धरती पर समुद्रों का। आँखों की जानकारी ही सब कुछ नहीं है। न दीखने वाली दुनिया की विशालता और सम्पदा दिखाई देने वाली सम्पदा की अपेक्षा कहीं अधिक है इतना ही नहीं इनकी विचित्रता और विलक्षणता भी आश्चर्यजनक है। समुद्री कीड़ों में प्रवाल एक अपने ढंग का अनोखा ही जीव है। इसने विशाल महासागरों में हजारों द्वीपों का निर्माण कर दिया। प्रायः ये 23 से 29 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर ही क्रियाशील रहते हैं। जल के भीतर डूबे रहना ही इन्हें पसन्द है। ज्वार की लहरें जितनी ऊपर उठती है, ये प्रवाल कीट पर्वत भी उतनी ही ऊँचाई तक उठते हैं। इनका सामान्य भोजन समुद्र में पाई जाने वाली चाक मिट्टी है। इनके शरीरों में से एक विशेष प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है जिससे एक कड़ा आवरण बन जाता है। प्रवाल कीट इसी आवरण के भीतर रहते हैं। यह आवरण भी विचित्र है। केले की जड़ों में से जिस प्रकार अपने आप नए अंकुर निकलते रहते हैं उसी प्रकार इन आवरणों में से भी नए-नए आवरण निकलते रहते हैं और फिर उन्हीं में से नए प्रवाल कीड़े भी उत्पन्न होते रहते हैं

इन आवरणों से समुद्र में नये’-नये द्वीप भी उभरते रहते हैं। दक्षिण-पश्चिम हिन्द महासागर में इस प्रकार प्रवाल निर्मित द्वीपों की एक बड़ी शृंखला की ऊँची चोटियों पर मालद्वीप, लक्षद्वीप, चागोज, सिचेलिज, फिलीपींस आर्कपेला, भोज द्वीप मालाएँ स्थित हैं। कितने ही व्यक्ति प्रवाल कीड़ों की तरह शाँतचित्त से दृढ़ निश्चयी कृत संकल्प भाव से अनवरत श्रम करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तन्मय भाव से लगे रहते हैं। हलचलों की उथल-पुथल देखने वाले उन्हें निष्क्रिय कह सकते हैं, पर समय बताता है कि कुछ क्षण उछल कूद करके फिर हाथ पैर ढीले कर बैठने वालों की अपेक्षा धैर्य के साथ निरंतर किया जाने वाला पुरुषार्थ समय पर कितने और कैसे चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत करता है। चाक मिट्टी खाकर ही अपना जीवन गुजार देने वाले यह कीड़े मूँगा पैदा करते हैं और उन्हीं से विशालकाय द्वीपों का निर्माण होता है। इस क्षेत्र में ये मधुमक्खी को भी मात कर देते हैं जो फूलों के रस को शहद में बदल देने के लिए प्रसिद्ध हैं। संत, सज्जन, समाज से न्यूनतम अनुदान ही लेते हैं और उस न्यूनतम के सहारे ही अपना जीवन निर्वाह कर समाज के लिए एक से एक बढ़े-चढ़े सेवा कार्य सम्पन्न कर डालते हैं। उनकी प्रतिभा, बुद्धि, सामर्थ्य, सम्पदा, क्षमता सब कुछ शाखा-प्रशाखाओं की तरह प्रस्फुटित होती हुई समाज को अनुगृहीत करती है। प्रवाल कीड़े की यह विशेषता भी सज्जनों में पाई जाती है कि वे संकट के सागर में डूबे रहते हुए भी अपना मस्तिष्क विक्षुब्ध नहीं होने देते तथा अनवरत सेवा साधना में लगे रहते हैं।

प्रवाल कीड़ों को प्रश्रय देने और उन्हें उपयोगी

उत्पादन करने में सक्षम बनाने की विशेषता सागर में ही होती है। महामानव और देवपुरुष भी प्रवाल कीटों जैसे तुच्छ साधारण जनों को अपना संरक्षण जनों को अपना संरक्षण और प्रश्रय देकर उन्हें समाज के लिए उपयोगी बना देते हैं। समुद्र में मात्र यही विशेषता नहीं होती, बल्कि वह अनुपयोगी और कूड़े को पचाकर उसे उपयोगी सार्थक बनाने की महानता का भी परिचय देता है। नदियाँ धरती का नमक लेकर समुद्र में ही फेंकती हैं, समुद्र उसे पचा जाता है, अपने तक ही सीमित रखता है और बादलों को वह निर्मल स्वच्छ, मधुर जल ही प्रदान करता है।

सगर का जल खारा होता है। उसके एक किलोग्राम जल में 35 ग्राम नमक घुला रहता है। इसमें खाने योग्य 27 ग्राम और अखाद्य नमक की मात्रा 8 ग्राम होती है। यह नमक नदियों द्वारा भूखण्डों से लाए गए जल प्रवाह के समय समुद्र में जमा होता है और इस प्रकार उसकी मात्रा बढ़ती चली जाती है। इन लवणों में से कुछ तो समुद्री जीव अपनी शरीर रचना और आहार की पूर्ति, पोषण की प्राप्ति में खर्च कर लेते हैं, फिर भी नमक की मात्रा बढ़ती ही जाती है। यों समुद्र के पानी में पाया जाने वाला खारापन नदियों से ही आता है। यह समुद्र की ही विशेषता है कि वह उसको भी उपयोगी बनाकर वितरित कर देता है। समुद्री नमक से लोग कितने ही उपयोगी पदार्थ बनाते हैं और उनसे कितनी ही सम्पदा अर्जित करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। सज्जन भी समुद्र जैसी रीति-नीति अपनाकर अपनी सम्पत्ति को लोकोपयोगी बनाने में तत्पर रहते हैं और उपयोगी बन जाने पर उसे वितरित कर देते हैं।

समुद्र की गहराई में जितना नीचे तक उतरा जाता है, उसका तापमान उतना ही घटा हुआ मिलता है। 200 मीटर गहराई में समुद्र का तापमान 16 डिग्री सेंटीग्रेड होता है, पर वह 600 मीटर पर 7 डिग्री, 1200 पर 3 डिग्री 1800 पर 2 और 3000 मीटर पर 1.8 डिग्री सेंटीग्रेड रह जाता है। आर्कटिक महासागर दक्षिण में स्थित महासागरीय तलियों में समुद्र का तापमान शून्य सेंटीग्रेड जितना अर्थात्-पानी जमने जितना पाया जाता है, जबकि भूतल पर इतनी ही गहराई में गर्म लावा बहता रहता है। इसी प्रकार ऊँचा तापमान प्रशाँत महासागर के प्रवाल द्वीपों के समीप सागर तली में 21 सेंटीग्रेड होता है किन्तु वहाँ भी 5850 मीटर से नीचे तो शून्य तापमान ही रहता है।

भौतिक दृष्टि से समुद्र जो कुछ भी हो, आत्मिक दृष्टि से हमें बहुत कुछ प्रेरणा और शिक्षा दे सकने में समर्थ है। बाह्य जीवन की विभिन्नता एवं विक्षोभकारी परिस्थितियों के कारण हर किसी को उत्तेजना का यदि विवेकपूर्वक उपयोग किया जा सके तो उनमें समस्याओं के समाधान भी निकलते हैं। फिर भी वे महापुरुष जिनका व्यक्तित्व समुद्र जैसा विशाल है, अपने अंतःक्षेत्र की गहराई में बर्फ जैसी शीतलता भरे रहते हैं। वे न तो उद्विग्न होते हैं और न क्रुद्ध । क्रियाकलापों से, विपन्नता से निपटने वाला आवेश भले ही हो, पर वे मानसिक संतुलन की दृष्टि से सदा ही शान्त और शीतल ही पाए जाते हैं। समुद्र अपने भीतर जो प्रेरणाएँ लिए हुए हैं या उससे जो प्रेरणाएँ-शिक्षायें मिलती हैं यदि उन पर ध्यान दिया जाए तो कोई भी व्यक्ति निःसन्देह समुद्र जैसा ही गंभीर और महान बन सकता है।

First 6 8 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • संस्कृति सत्य, जिसकी पुनरावृत्ति सुनिश्चित है।
  • हिन्दुत्व क्या है?
  • सफल,समृद्ध जीवन की रीति-नीति
  • सहस्र सा कर्मयत्
  • जीते तो जिन्दा दिल हैं, कायर बेमौत मरते हैं।
  • संस्कृति के गौरवपूर्ण अतीत का एक अध्याय
  • सगर जैसी उदारता व विशालता विकसित हो
  • Quotation
  • ब्राह्मण का काम (Kahani)
  • उद्धत,सनकी तो नहीं ही बनें
  • किस्मत का खेल नहीं, परोक्ष सत्ता की मदद
  • कृपणता द्वारा उदारता का बहाव (Kahani)
  • ऊर्जा का जखीरा नष्ट न होने पाए
  • Quotation
  • प्रायश्चित बिना जीवनमुक्ति नहीं
  • मनुष्य से भी बढ़कर क्षमतावान हैं अन्य प्राणी
  • इस युग की व्याधि : उदासी
  • माता की विशाल हृदयता (Kahani)
  • आश्विन नवरात्रि पर सामयिक संदर्भ:- - आत्मिक शक्ति संवर्धन हेतु विशिष्ट अवसर
  • सुसंस्कारिता प्रयासपूर्वक जगानी पड़ती है।
  • आत्मा की छाया मात्र (Kahani)
  • धर्म साध्य है तो विज्ञान साधन
  • मैं मौन का उपासक हूँ (Kahani)
  • संस्कारों का निरन्तर अजस प्रवाह
  • चेतनात्मक परिष्कार की दैवी प्रक्रिया
  • सर्वोपयोगी निरापद-उपचार पद्धति सूर्य चिकित्सा
  • बलिष्ठ दैत्य बनें, कि प्रतिभा सम्पन्न देव ?
  • सतयुग एक भवितव्यता
  • अमरत्व की शक्ति पाई (Kahani)
  • प्राणाग्नि का पुँज यह देह पिंजर
  • हिम्मत टूट गई (Kahani)
  • धर्म का प्रयोजन, अंतःकरण की शुद्धि
  • मिट्टी की शपथ
  • मिट्टी की शपथ (Kavita)
  • मानव जीवन की सर्वोपरि सामर्थ्य - श्रद्धा
  • लालच में निरन्तर निरत (Kahani)
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अपनों से अपनी बात- - देव संस्कृति दिग्विजय अर्थात् ऐतिहासिक अश्वमेध आयोजन
  • अश्वमेध अर्थात्-अजेय राष्ट्र का सामर्थ्य सम्पादन
  • हिंसा की कल्पना करने वाले और कुछ भी हों विद्वान नहीं
  • अश्वमेध का अर्थ है अमृतवर्षा- अनुग्रहवर्षा
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj