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Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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एक विलक्षण आर्कीटेक्ट है, प्रकृति

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प्रकृति एक अद्भुत इंजीनियर है। उसके निर्माणों में एक-से-एक बढ़कर ऐसी कृतियाँ हैं, जिन्हें देखकर अचम्भा होता है और यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि जब जड़ प्रकृति ऐसी सुन्दर संरचना गढ़ सकती है, तो फिर चेतन और बुद्धिमान मनुष्य का तो कहना ही क्या। वह यदि चाहे तो इस विश्व-वसुधा को स्वर्ग-सुषमा प्रदान कर सकता है; पर न जाने क्यों उसकी बुद्धि निर्माण की तुलना में इन दिनों ध्वंस में उलझकर रह गई है। निसर्ग अपनी इन रचनाओं के द्वारा मनुष्य को यह प्रेरणा देता है कि उसके कदम विनाश की ओर नहीं, विकास की ओर बढ़े, वह विध्वंसक नहीं रचनात्मक बनें।

इन्हीं सम्भावनाओं को प्रकट करता हुआ भूमध्य सागर में सारडीनिया नामक एक द्वीप है। इसके उत्तर पूर्व में कैपाड़ी ओरसो अर्थात् ‘भलू अन्तरीप’ स्थित है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है इस अन्तरीप का मुख्य आकर्षण वहाँ की भालूनुमा एक विशाल संरचना है। जब कोई पर्यटक इस ‘केप अन्तरीप’ की चोटी तक पालू गाँव के रास्ते आता है, तो वह प्रकृति की इस अद्भुत कारीगरी को देखकर आश्चर्य में पड़ जाता है। भालू एक विशाल चट्टान द्वारा निर्मित है, जिसे निकट से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह उस टापू और समुद्र के विहंगम दृश्य के अवलोकन में निमग्न हो।

प्रकृति की इंजीनियरिंग का ऐसा ही एक नमूना दक्षिण चीन के यूनान प्रान्त में देखने को मिलता है। उक्त प्रान्त की राजधानी कुममिंग से लगभग 60 मील दक्षिण-पूर्व में एक ऊँचे पठार पर पत्थरों का सघन वन है। इस विचित्र पाषाण वन को लोग दूर-दूर से देखने के लिए आते हैं। ‘ पत्थरों का वन’ इस नाम से आश्चर्य अवश्य होता है, किन्तु उसे देखने के बाद नाम की सार्थकता सत्य जान पड़ती है। वस्तुतः वह एक प्रकार का अरण्य ही है, जिसमें पेड़ की जगह पत्थर लगे हुए है, जब कोई पर्यटक दूर से अकस्मात् इस ओर दृष्टि दौड़ाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई विस्तृत वन सामने फैला हुआ हो- ऐसा वन, जिसमें टहनियाँ और पत्ते न हों, सिर्फ तने शेष रहे गये हों। भिन्न-भिन्न आकार और ऊँचाई वाले पाषाण स्तम्भों से युक्त यह स्थल प्रथम दृष्टि में किसी घने जंगल का भ्रम पैदा करता है।

थीसली, ग्रीस में पिण्डस पर्वत की तराई में एक छोटा शहर है- कलाम्बका। इसकी पृष्ठभूमि में उत्तर की ओर विशाल चट्टानी स्तम्भों के दो समूह हैं। ये विशाल स्तम्भ देखने में ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो कोई बौद्ध स्तूप हों। इन समूहों में स्तूपों के अतिरिक्त और भी कितनी ही संरचनाओं की नैसर्गिक अनुकृतियाँ बनी हुई हैं। इनमें से दो विशेष रूप से अपनी ओर यात्रियों का ध्यान आकर्षित करती हैं। ये हैं वहाँ के विशाल स्तूप एवं अगणित कंगूरे वाले गढ़ियाँ। इस सम्पूर्ण प्राकृतिक निर्माण को तनिक हटकर देखने से ऐसा आभास मिलता है, जैसे रजवाड़ों को यह छोटी-छोटी गढ़ियाँ हैं और उन्हीं के निकट उनके पृथक-पृथक शिक्षाओं और सिद्धान्तों का उद्घोष करते उनके अपने-अपने स्तम्भ। इस प्रस्तर रचना को ‘ मिटिओरा’ कहते हैं। ग्रीक भाषा में इसका अर्थ है- ‘ गगनचुम्बी’ । स्तम्भों में कई-कई तो 1700 फुट ऊँचे हैं। इन स्तूपों की शोभा को तब चार चाँद लग गये, जब प्रकृतिगत निर्माणों के ऊपर मानवी संरचनाएं खड़ी की गई। यह अद्भुत निर्माण का विचार कुछ संन्यासियों के मन में तब आया, जब उन्हें संसार से विरक्ति अनुभव होने लगी। ऐसी स्थिति में इन सर्वथा अगम्य स्तूपश्रृंगों पर छोटे निवास बनाकर उन्होंने अपनी इच्छापूर्ति की । चोटी पर स्थिति उनके मठ सचमुच सर्वसाधारण की पहुँच से परे थे। यदि उनसे जुड़ी, अलग होने और मुड़ने वाली सीढ़ी को हटा दिया जाय, तो मठ का संबंध समाज से बिल्कुल ही विच्छिन्न हो जाता है और उनमें रहने वाले व्यक्ति, समाज में मनुष्य के बीच रहकर भी उनका संपर्क मनुष्य और समाज में से एकदम टूट जाता है। निर्माणों की विशेषता यह है कि जब तक ध्यानपूर्वक इन्हें नहीं देखा जाय, तब तक यह विदित नहीं होता कि इनके ऊपर मनुष्यकृत संरचना भी विनिर्मित है। ऐसे मठ वहाँ के खम्भों में बीस से अधिक है। इनका निर्माण 14वीं एवं 15वीं सदी में किया गया था और ये 19वीं शताब्दी तक आबाद रहे। अब ये खाली पड़े हुए हैं। जो भी पर्यटक यहाँ आते हैं, वे प्रकृति और मनुष्य की इन मिली-जुली कृतियों को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं।

प्रकृति के वास्तुशिल्प का एक अच्छा उदाहरण ‘फ्रांसीसी गुफाओं’ के रूप में देखा जा सकता है। ये कन्दराएँ स्थित हैं। इन गुफाओं की सबसे बड़ी विशेषता उनमें स्थित अनेकानेक कक्ष हैं। हर कक्ष की अपनी-अपनी विशिष्टता है। उसी के आधार पर उनका नामकरण किया गया है। उदाहरण के लिए, उसका एक भाग ऐसा है, जिसमें सिर्फ चमगादड़ रहते हैं। इस आधार पर उस प्रकोष्ठ का नाम ‘ ग्रोटाडिले नोटोले’ अर्थात् ‘चमगादड़ों की गुफा’ रखा गया है। उसके एक अन्य कक्ष का नाम ‘ ग्रोटो ग्रेण्डे डेल वेण्टो’ अर्थात् ‘ ग्रेट केव ऑफ विण्ड’ हवादार गुफा है। कन्दरा के इस भाग में अनेक प्रकाष्ठ हैं। इनका आकार-प्रकार इतना बड़ा है कि उनमें बड़े-बड़े मठ समा जाएँ। इनमें से कुछ में प्राकृतिक प्रकाश की अच्छी व्यवस्था है। विशाल गुफा का एक भाग ‘ साला डेल कैण्डेलाइन’ कहलाता है। उक्त नाम उस हिस्से में स्थित उन अगणित छोटे-छोटे मोमबत्तीनुमा निर्माणों की ओर इंगित करता है, जो देखने से ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो वही जल-जल कर उस भाग को प्रकाशित कर रहे हों। इसी कारण उसका नाम ‘मोमबत्ती वाला कमरा’ रखा गया। एक अन्य कक्ष ‘ सालाडेल इनफिनिटो’ या ‘ रूम ऑफ इनफाइनाइट’ कहलाता है। इस प्रकाष्ठ में बड़े एवं विशाल सुसज्जित स्तम्भ हैं। इन्हें देखने से ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति में विशाल खम्भों का निर्माण कर विस्तृत छत को दृढ़ता प्रदान की ही, ठीक वैसे ही जैसे मानवी निर्माणों में देखा जाता है। इनमें से अकेले ग्रण्डे डेल वेण्टो की लम्बाई आठ मील है। उल्लेखनीय है कि फ्रांसीसी गुफा के प्रत्येक कक्ष एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं, उसी प्रकार जिस प्रकार विशाल इमारतों में कमरे परस्पर जुड़े होते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोरेडो नदी के तट पर उसके दक्षिण-पूर्व भाग में ‘उटाह’ नामक स्थान है। यहाँ एक नेशनल पार्क है, जो ‘ मेहराबों वाला पार्क’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस पार्क की विशेषता यह है कि यहाँ कितने ही छोटे-बड़े आकर्षक पत्थरों के मेहराब हैं। इन्हें देखने पर प्रकृति की उस कलाकारिता पर आश्चर्य होता है। जिसने कुशलतापूर्वक गढ़कर इन्हें खड़ा किया। इनमें से कई इतने नाजुक और पतले हैं कि विश्वास नहीं होता। यह निर्माणकाल से अपना अस्तित्व ज्यों बनाये हुए हैं। ऐसे में निसर्ग की निर्माण-कुशलता पर विस्मय होना स्वाभाविक ही है। इस पार्क का सबसे लम्बा मेहराब ‘लैण्डस्केप आर्च’ है। विश्व का यह अपने प्रकार का सबसे बड़ा आर्च है। इसकी लम्बाई 271 फुट है।

प्रकृति की कृतियों में काँगो (दक्षिण अफ्रीका) की कन्दराओं की चर्चा न की जाय, तो उल्लेख अधूरा माना जाएगा। विश्वास किया जाता है कि कन्दरा प्रस्तर युग में आदि मानवों का निवास रही होगी। यह अनुमान उनकी दीवारों में उत्कीर्ण तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञ लगाते हैं किन्तु जिन कारणों से यह विश्व प्रसिद्ध बनीं, वे कारण मानवकृत चित्र नहीं हैं, वरन् प्रकृति की विलक्षण वास्तुकला है। इनके अलग-अलग प्रकोष्ठों में विस्मय-विमुग्ध कर देने वाली रचनाएँ हैं। इनमें विशेष दर्शनीय है वहाँ के ‘क्रिस्टल पैलेस’ ‘ डेविल्स वर्कशाप’ एवं ‘तहखाना’। इनमें कहीं पर्दे की आकृति जैसी रचना है, तो कही। बड़े-बड़े बबूले जैसा निर्माण, कहीं बाँसुरी, तो कहीं लम्बी-लम्बी सुइयाँ। एक स्थान पर ऐसा ढोल है, जो आकृति की दृष्टि से ही ढोल नहीं है, जो आकृति की दृष्टि से ही ढोल नहीं है, वरन् वह ढोलों जैसी ध्वनि भी निकाल सकता है। वहाँ प्रवेश करने पर ऐसा लगता है, जैसे यह सभी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए परस्पर प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हों।

कैलीफोर्निया में नेवादा के निकट एक घाटी है- ‘डेथ वैली’ या ‘ मृत्यु घाटी। इस घाटी का आकर्षण वहाँ की भूमि में विनिर्मित सुन्दर बीहड़ है। इसे देखने से ऐसा आभास होता है, जैसे किसी कुशल शिल्पी के सधे और निष्णात हाथों ने इसे तराशा हो । इसका नाम मृत्यु घाटी इसलिए पड़ा, क्योंकि गर्मियों में वहाँ का तापमान अति उच्च हो जाता है। इसके बावजूद छोटे-छोटे जीवधारी वहाँ मजे में रहते हैं।

इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना ग्वाइमस बेसिन में देखा जा सकता है। वहाँ भूगर्भ स्थित एक अनूठा तेलशोधक कारखाना है। इसमें मानव निर्मित कुछ भी नहीं, सब कुछ प्रकृति द्वारा रचित है। पहली बार इस कारखाने का पता तब चला, जब 1970 में ‘ स्क्रिप्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ आसनोग्राफी, सैनडियागो’ के डॉ0 पीटर लोन्सडेल एक खोजी यात्रा पर थे। इसी समय यहाँ उन्हें कच्चे तेल का पता चला, जो स्वयमेव परिशोधित होता रहता है।

आखिर इसकी प्रक्रिया क्या है? प्रकृति द्वारा इसका परिशोधन किस प्रकार होता रहता है? इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि ग्वाइमस बेसिन की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है, कि वहाँ यह प्रक्रिया अनवरत रूप से स्वयमेव चलती रहती है। इसीलिए इसे ‘प्रकृति की रिफाइनरी’ कहा गया है। इसकी शोधन प्रक्रिया को समझाते हुए वैज्ञानिक कहते हैं भूगर्भीय टेक्टोनिक प्लेटो की गतिविधियों के कारण ग्वाइमस बेसिन के नीचे की चट्टानों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। इन दरारों से समुद्री जल रिस-रिस कर काफी नीचे पृथ्वी के गर्भ में पहुँचता रहता है, जहाँ वह पिघली चट्टानों की गर्मी से गर्म होकर पुनः ऊपर उठने लगता है। इस प्रक्रिया में जब वह चट्टानों के संपर्क में आता है और उसके खनिजों को भी अपने में घुला-मिला लेता है, तो इस प्रकार वह सामान्य ज न रहकर खनिज लवणों से युक्त एक प्रकार का रासायनिक घोल बन जाता है। जब यह घोल समुद्र-तल में पहुँचता है, तो वहाँ ठण्डे पानी के संसर्ग में आकर तेजी से ठण्डा होने लगता है, फलतः जल में घुले लवण अलग होकर घनीभूत ठोस का रूप धारण कर लेते हैं। पर्यवेक्षण ने इन्हीं खनिजों को देखा था। इससे ऐसा प्रतीत होती है कि प्रकृति सदा किसी-न-किसी प्रकार के निर्माण में व्यस्त रहती है।

हम संघर्ष नहीं, सहयोग करें। हमारा उद्देश्य ध्वंस नहीं, सृजन हो। प्रकृति की यह विलक्षण कृतियाँ इसी बात की संदेशवाहिका हैं। हम उसकी मूक रचनाओं में अभिव्यक्ति पा रहे इस उपदेश को सुनें, समझें और आत्मसात् करें।

वस्तुतः सुविधा और सम्पदा ही सब कुछ नहीं है। आदर्शों को चरितार्थ करने में, यदि उपलब्धियों का परित्याग करना पड़े, तो उसमें भी हानि नहीं। भरत को राजगद्दी मिल रही थी, पर उनने अनीति के आधार पर उसे स्वीकार करने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। इतना ही नहीं, वे अपनी निस्पृहता को सिद्ध करने के लिए राम की तरह जटा-जूट धारण करके घर में ही वनवासी की तरह रहे। सिंहासन पर राम की ही चरणपादुका प्रतिष्ठा की।

इस प्रकार की आत्मीयता से ओत-प्रोत, व्याग और कर्तव्य की पारिवारिकता ने ही राम के परिवार का जन-जन का आराध्य बना दिया। राम का चरित्र अपनी जगह है एवं भरत की अपनी जगह एक मर्यादा का पालन करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में व अवतार-सत्ता के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं, जबकि दूसरे उनके भाई अपनी पारिवारिक निष्ठा, उत्कृष्टता से जुड़ी आत्मीयता एवं अपनी गुणनिधि के कारण।

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