
महत्वाकाँक्षा पर अंकुश (Kahani)
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वस्तुतः सारी समस्याओं की जड़, चाहे वह आध्यात्मिक जगत की हों अथवा भौतिक जगत की, अहंता बढ़ी-चढ़ी महत्वाकाँक्षा ही हैं। उस पर अंकुश यदि लगाया जा सके तो प्रगति का राजमार्ग सबके लिए खुला है।
जैन पुराणों में तपस्वी बाहुबलि के चरित्र का वर्णन है। इतनी कठोर तपस्या की थी, पर अहंता नहीं छूटी, तो उस साधना से भी उन्हें शान्ति न मिला। महत्वाकाँक्षाओं का उन्माद उन पर तब भी चढ़ा रहता था। उदास बाहुबलि को उनकी बहिन ने देखा तो असफलता का कारण ताड़ लिया। उसने आते ही कहा- ‘हाथी की पालकी से नीचे उतरो और समझदारों की तरह जमीन पर चलो।”
कथन का मर्म बहिन ने समझाया कि अहंता को छोड़ो-आकाँक्षाओं से छुटकारा पाओ इसके बिना साधना की सफलता मिल नहीं सकेगी। बाहुबलि ने वैसा ही किया और वे देखत-देखते बहुत सिद्ध पुरुष हो गये।