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हमारी वसीयत और विरासत (भाग 8)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय
जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
‘‘हम सूक्ष्मदृष्टि से ऐसे सत्पात्र की तलाश करते रहे, जिसे सामयिक लोक-कल्याण का निमित्तकारण बनाने के लिए प्रत्यक्ष कारण बनावें। हमारा यह सूक्ष्मशरीर है। सूक्ष्मशरीर से स्थूल कार्य नहीं बन पड़ते। इसके लिए किसी स्थूलशरीरधारी को ही माध्यम बनाना और शस्त्र की तरह प्रयुक्त करना पड़ता है। यह विषम समय है। इसमें मनुष्य का अहित होने की अधिक संभावनाएँ हैं। उन्हीं का समाधान करने के निमित्त तुम्हें माध्यम बनाना है। जो कमी है, उसे दूर करना है। अपना मार्गदर्शन और सहयोग देना है। इसी निमित्त तुम्हारे पास आना हुआ है। अब तक तुम अपने सामान्य जीवन से ही परिचित थे। अपने को साधारण व्यक्ति ही देखते थे। असमंजस का एक कारण यह भी है। तुम्हारी पात्रता का वर्णन करें, तो भी कदाचित् तुम्हारा संदे...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 7)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय
जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
शिष्य गुरुओं की खोज में रहते हैं। मनुहार करते हैं। कभी उनकी अनुकंपा, भेंट-दर्शन हो जाए, तो अपने को धन्य मानते हैं। उनसे कुछ प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं। फिर क्या कारण है कि मुझे अनायास ही ऐसे सिद्धपुरुष का अनुग्रह प्राप्त हुआ? यह कोई छद्म तो नहीं है? अदृश्य में प्रकटीकरण की बात भूत-प्रेत से संबंधित सुनी जाती है और उनसे भेंट होना किसी अशुभ-अनिष्ट का निमित्तकारण माना जाता है। दर्शन होने के उपरांत मन में यही संकल्प उठने लगे। संदेह उठा; किसी विपत्ति में फँसने जैसा कोई अशुभ तो पीछे नहीं पड़ा।
मेरे इस असमंजस को उन्होंने जाना। रुष्ट नहीं हुए, वरन् वस्तुस्थिति को जानने के उपरांत किसी निष्कर्ष पर पहुँचने और बाद में कदम उठाने की बात उन्हें पसंद आई। यह बात उनकी प्रस...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 6)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय
जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:— योगनिद्रा कैसी होती है, इसका अनुभव मैंने जीवन में पहली बार किया। ऐसी स्थिति को ही जाग्रत समाधि भी कहते हैं। इस स्थिति में डुबकी लगाते ही एक-एक करके मुझे अपने पिछले तीन जन्मों का दृश्य क्रमशः ऐसा दृष्टिगोचर होने लगा, मानो वह कोई स्वप्न न होकर प्रत्यक्ष घटनाक्रम ही हो। तीन जन्मों की तीन फिल्में आँखों के सामने से गुजर गईं।
पहला जीवन— संत कबीर का; सपत्नीक काशी निवास। धर्मों के नाम पर चल रही विडंबना का आजीवन उच्छेदन। सरल अध्यात्म का प्रतिपादन।
दूसरा जन्म— समर्थ रामदास के रूप में दक्षिण भारत में विच्छृंखलित राष्ट्र को शिवाजी के माध्यम से संगठित करना; स्वतंत्रता हेतु वातावरण बनाना एवं स्थान-स्थान पर व्यायामशालाओं एवं सत्संग भवनों का निर्माण।
तीसरा जन्म— रामकृष्ण ...
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हमारी वसीयत और विरासत (भाग 5)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय
जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
भगवान की अनुकंपा ही कह सकते हैं, जो अनायास ही हमारे ऊपर पंद्रह वर्ष की उम्र में बरसी और वैसा ही सुयोग बनता चला गया, जो हमारे लिए विधि द्वारा पूर्व से ही नियोजित था। हमारे बचपन में सोचे गए संकल्प को प्रयास के रूप में परिणत होने का सुयोग मिल गया।
पंद्रह वर्ष की आयु थी। प्रातः की उपासना चल रही थी। वसंत पर्व का दिन था। उस दिन ब्रह्ममुहूर्त्त में कोठरी में ही सामने प्रकाश-पुंज के दर्शन हुए। आँखें मलकर देखा कि कहीं कोई भ्रम तो नहीं है। प्रकाश प्रत्यक्ष था। सोचा, कोई भूत-प्रेत या देव-दानव का विग्रह तो नहीं है। ध्यान से देखने पर भी वैसा कुछ लगा नहीं। विस्मय भी हो रहा था और डर भी लग रहा था। स्तब्ध था।
प्रकाश के मध्य में से एक योगी का सूक्ष्मशरीर उभरा। सूक्ष्म इसलिए...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 4)— "जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय"
जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
हमारे जीवन का पचहत्तरवाँ वर्ष पूरा हो चुका। इस लंबी अवधि में मात्र एक काम करने का मन हुआ और उसी को करने में जुट गए। वह प्रयोजन था— ‘साधना से सिद्धि’ का अन्वेषण— पर्यवेक्षण। इसके लिए यही उपयुक्त लगा कि जिस प्रकार अनेक वैज्ञानिकों ने पूरी-पूरी जिंदगियाँ लगाकर अन्वेषण कार्य किया और उसके द्वारा समूची मानव जाति की महती सेवा संभव हो सकी, ठीक उसी प्रकार यह देखा जाना चाहिए कि पुरातनकाल से चली आ रही ‘साधना से सिद्धि’ की प्रक्रिया का सिद्धांत सही है या गलत? इसका परीक्षण दूसरों के ऊपर न करके अपने ऊपर किया जाए।
यह विचारणा दस वर्ष की उम्र से उठी एवं पंद्रह वर्ष की आयु तक निरंतर विचार-क्षेत्र में चलती रही। इसी बीच अन्यान्य घटनाक्रमों का परिचय देना हो, तो इतना ही बताया जा सक...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग- 3) — "इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता"
इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता:—
प्रत्यक्ष घटनाओं की दृष्टि से कुछ प्रकाशित किये जा रहे प्रसंगों को छोड़कर हमारे जीवनक्रम में बहुत विचित्रताएँ एवं विविधताएँ नहीं हैं। कौतुक-कौतूहल व्यक्त करने वाली उछल-कूद एवं जादू-चमत्कारों की भी उसमें गुंजाइश नहीं है। एक सुव्यवस्थित और सुनियोजित ढर्रे पर निष्ठापूर्वक समय कटता रहा है। इसलिए विचित्रताएँ ढूँढ़ने वालों को उसमें निराशा भी लग सकती है। पर जो घटनाओं के पीछे काम करने वाले तथ्यों और रहस्यों में रुचि लेंगे, उन्हें इतने से भी अध्यात्म— सनातन, के परंपरागत प्रवाह का परिचय मिल जाएगा और वे समझ सकेंगे कि सफलता-असफलता का कारण क्या है? क्रियाकांड को सब कुछ मान बैठना और व्यक्तित्व के परिष्कार की— पात्रता की प्राप्ति पर ध्यान न देना— यही ए...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 2)— "इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता"
इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता:—
हमारी जीवनगाथा सब जिज्ञासुओं के लिए एक प्रकाश-स्तंभ का काम कर सकती है। वह एक बुद्धिजीवी और यथार्थवादी द्वारा अपनाई गई कार्यपद्धति है। छद्म जैसा कुछ उसमें है नहीं। असफलता का लांछन भी उन पर नहीं लगता। ऐसी दशा में जो गंभीरता से समझने का प्रयत्न करेगा कि सही लक्ष्य तक पहुँचने का सही मार्ग हो सकता था— शार्टकट के फेर में भ्रम-जंजाल न अपनाए गए होते, तो निराशा, खीज और थकान हाथ न लगती; तब या तो मँहगा समझकर हाथ ही न डाला जाता; यदि पाना ही था तो उसका मूल्य चुकाने का साहस पहले से ही सँजोया गया होता— ऐसा अवसर उन्हें मिला नहीं। इसी को दुर्भाग्य कह सकते हैं। यदि हमारा जीवन पढ़ा गया होता; उसके साथ आदि से अंत तक गुथे हुए अध्यात्मतत्त्व दर्शन और क्रि...
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हमारी वसीयत और विरासत (भाग 1) — "इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता"
इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता :—
जिन्हें भले या बुरे क्षेत्रों में विशिष्ट व्यक्ति समझा जाता है, उनकी जीवनचर्या के साथ जुड़े हुए घटनाक्रमों को भी जानने की इच्छा होती है। कौतूहल के अतिरिक्त इसमें एक भाव ऐसा भी होता है, जिसके सहारे कोई अपने काम आने वाली बात मिल सके। जो हो, कथा-साहित्य से जीवनचर्याओं का सघन संबंध है। वे रोचक भी लगती हैं और अनुभव प्रदान करने की दृष्टि से उपयोगी भी होती हैं।
हमारे संबंध में प्रायः आएदिन लोग ऐसी पूछताछ करते रहे हैं, पर उसे आमतौर पर टालते ही रहा गया है। तो प्रत्यक्ष क्रियाकलाप हैं, वे सबके सामने हैं। लोग तो जादू-चमत्कार जानना चाहते हैं। हमारे सिद्धपुरुष होने— अनेकानेक व्यक्तियों को सहज ही हमारे सामीप्य अनुदानों से लाभान्वित होने से उन रहस...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 1)
इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता
जिन्हें भले या बुरे क्षेत्रों में विशिष्ट व्यक्ति समझा जाता है, उनकी जीवनचर्या के साथ जुड़े हुए घटनाक्रमों को भी जानने की इच्छा होती है। कौतूहल के अतिरिक्त इसमें एक भाव ऐसा भी होता है, जिसके सहारे कोई अपने काम आने वाली बात मिल सके। जो हो कथा-साहित्य से जीवनचर्याओं का सघन सम्बन्ध है। वे रोचक भी लगती हैं और अनुभव प्रदान करने की दृष्टि से उपयोगी भी होती हैं।
हमारे सम्बन्ध में प्रायः आये दिन लोग ऐसी पूछताछ करते रहे हैं, पर उसे आमतौर पर टालते ही रहा गया है। तो प्रत्यक्ष क्रियाकलाप हैं, वे सबके समाने हैं। लोग तो जादू चमत्कार जानना चाहते हैं। हमारे सिद्ध पुरुष होने-अनेकानेक व्यक्तियों को सहज ही हमारे सामीप्य अनुदानों से लाभान्वित होने से उन र...

गहना कर्मणोगति: (अन्तिम भाग)
दुःख का कारण पाप ही नहीं है
दूसरे लोग अनीति और अत्याचार करके किसी निर्दोष व्यक्ति को सता सकते हैं। शोषण, उत्पीड़ित और अन्याय का शिकार कोई व्यक्ति दुःख पा सकता है। अत्याचारी को भविष्य में उसका दण्ड मिलेगा, पर इस समय तो निर्दोष को ही कष्ट सहना पड़ा। ऐसी घटनाओं में उस दुःख पाने वाले व्यक्ति के कर्मों का फल नहीं कहा जा सकता।
विद्या पढ़ने में विद्यार्थी को काफी कष्ट उठाना पड़ता है, माता को बालक के पालने में कम तकलीफ नहीं होती, तपस्वी और साधु पुरुष लोक-कल्याण और आत्मोन्नति के लिए नाना प्रकार के दुःख उठाते हैं, इस प्रकार स्वेच्छा से स्वीकार किए हुए कष्ट और उत्तरदायित्व को पूरा करने में जो कठिनाई उठानी पड़ती है एवं संघर्ष करना पड़ता है, उसे दुष्कर्मों का फल नहीं कहा जा सकता।
हर मौज मारने वाले को पूर...