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अब स्वाध्याय ही एकमात्र विकल्प
मनुष्य का मन कोरे कागज या फोटोग्राफी की प्लेट की तरह है जो परिस्थितियॉं, घटनाएँ एवं विचारणाएँ सामने आती रहती हैं उन्हीं का प्रभाव अंकित होता चला जाता है और मनोभूमि वैसी ही बन जाती है। व्यक्ति स्वभावत: न तो बुद्धिमान है और न मूर्ख, न भला है, न बुरा। वस्तुत: वह बहुत ही संवेदनशील प्राणी है। समीपवर्ती प्रभाव को ग्रहण करता है और जैसा कुछ वातावरण मस्तिष्क के सामने छाया रहता है उसी ढाँचे में ढलने लगता है। उसकी यह विशेषता परिस्थितियों की चपेट में आकर कभी अध:पतन का कारण बनती है। कभी उत्थान का। व्यक्तित्व की उत्कृष्टता के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता उस विचारणा की है जो आदर्शवादिता से ओत-प्रोत होने के साथ-साथ हमारी रुचि और श्रद्धा के साथ जुड़ जाये। यह प्रयोजन दो प्रकार से पूरा हो सकता है। एक तो आदर्शवादी...
धर्म की स्थापना ही नहीं, अधर्म की अवहेलना भी
जिस प्रकार माली को पौधों में खाद-पानी लगाना पड़ता है साथ ही बेढंगी टहनियों की काट-छाँट तथा समीपवर्ती खर-पतवार को भी उखाड़ना पड़ता है तभी सुन्दर बाग का सपना साकार होता है, उसी प्रकार आत्मोन्नति के लिए जहाँ स्वाध्याय, सत्संग, धर्मानुष्ठान आदि करने पड़ते हैं, वहाँ कुसंस्कारों और दुष्प्रवृत्तियों के निराकरण के लिए आत्मशोधन की प्रताड़ना तपश्चर्या भी अपनानी होती है। प्रगति और परिष्कार के लिए सृजन और उन्मूलन की उभयपक्षीय प्रक्रिया अपनानी होती है।
अतिवादी, उदारपक्षी, एकांगी धार्मिकता का ही दुष्परिणाम था जो हजार वर्ष की लम्बी राजनैतिक गुलामी के रूप में अपने देश को अभिशाप की तरह भुगतना पड़ा। सज्जनता का परिपोषण जितना आवश्यक है उतना ही दुष्टता का उन्मूलन भी परम पवित्र मानवीय कर्त्त...
नारी का सदैव सम्मान करे
एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के समीप आकर बोली मैं आपस शादी करना चाहती हूं। विवेकानंद बोले क्यों? मुझसे क्यों? क्या आप जानती नहीं की मैं एक सन्यासी हूं? औरत बोली मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूं और वो वह तब ही संभव होगा। जब आप मुझसे विवाह करेंगे।
विवेकानंद बोले हमारी शादी तो संभव नहीं है, परन्तु हां एक उपाय है। औरत- क्या? विवेकानंद बोले आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं। आज से आप मेरी मां बन जाओ। आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जाएगा।औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली की आप साक्षात् ईश्वर के रूप है। इसे कहते है पुरुष और ये होता है पुरुषार्थ एक सच्चा पुरुष सच्चा मर्द वो ही होता है जो हर नारी के प्रति अपने अन्दर मातृत्व क...
संदेह के बीज
एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा:- बच्चा पैदा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया? सहेली ने कहा - कुछ भी नहीं! उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है? क्या उस की नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?
लफ्ज़ों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को अपनी फिक्र में छोड़कर चलती बनी। थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया। फिर दोनों में झगड़ा हुआ। एक दूसरे को लानतें भेजी। मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।
जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहां से हुई? उस फिजूल जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था।
रवि ने अपने जिगरी दोस्त आकाश से पूछा:- तुम कहां काम क...
क्रोध को करें नियंत्रित
एक ऐसा भाव है जो हम सभी के मन में बहुत बार आता है। यदि आपको अपने क्रोध को नियंत्रित करना आता है तो आप हमेशा और हर स्थिति में प्रसन्न रह सकती हैं...
कई बार हमारे आपके मन में क्रोध-आक्रोश पनपने लगता है। जब इस क्रोध-आक्रोश की सही अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है, तब कुछ लोग अपने शरीर पर खीज निकालते हैं तो कुछ दूसरों पर। मनोचिकित्सकों का कहना है कि मन की अंदरूनी पीड़ा और कुंठा से उपजे क्रोध को काबू करना जरूरी है। क्रोध को नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी है कि आप इसके बुनियादी कारणों को समझें।
उन कारणों को रेखांकित करने का प्रयास करें, जिनके चलते आप भावनात्मक व मानसिक रूप से पीडि़त हैं।
उन बातों की ओर भी ध्यान दें, जिनके चलते आपका दुख बढ़ जाता ...
करने योग्य कुछ बातें
सुनने की आदत डालो क्योंकि
ताने मारने वालों की कमी नहीं हैं।
मुस्कराने की आदत डालो क्योंकि
रुलाने वालों की कमी नहीं हैं
ऊपर उठने की आदत डालो क्योंकि
टांग खींचने वालों की कमी नहीं है।
प्रोत्साहित करने की आदत डालो
क्योंकि हतोत्साहित करने वालों की कमी नहीं है!!
सच्चा व्यक्ति ना तो नास्तिक होता है ना ही आस्तिक होता है ।
सच्चा व्यक्ति हर समय वास्तविक होता है......
छोटी छोटी बातें दिल में रखने से
बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं"
कभी पीठ पीछे आपकी बात चले
तो घबराना मत ...
बात तो
"उन्हीं की होती है"..
जिनमें को...
बेटी पढाओ, दहेज मिटाओ
चौबे का लड़का है अशोक, एमएससी पास। नौकरी के लिए चौबे निश्चिन्त थे, कहीं न कहीं तो जुगाड़ लग ही जायेगी। बियाह कर देना चाहिए।
मिश्रा जी की लड़की है ममता, वह भी एमए पहले दर्जे में पास है, मिश्रा भी उसकी शादी जल्दी कर देना चाहते हैं।
सयानों से पोस्ट ग्रेजुएट लड़के का भाव पता किया गया। पता चला वैसे तो रेट पांच से छः लाख का चल रहा है, पर बेकार बैठे पोस्ट ग्रेजुएटों का रेट तीन से चार लाख का है।
सयानों ने सौदा साढ़े तीन में तय करा दिया। बात तय हुए अभी एक माह भी नही हुआ था, कि कमीशन से पत्र आया कि अशोक का डिप्टी कलक्टर के पद पर चयन हो गया है।
चौबे- साले, नीच, कमीने... हरामजादे हैं कमीशन वाले...!
चौबन - लड़के की इतनी अच्छी ...
सम्मान सिर्फ धन के सदुपयोगियों का
विभूतियों में इन दिनों अग्रिम स्थान धन को मिल गया है, पर वस्तुत: वह उसका स्थान नहीं है। प्रथम स्थान उदात्त भावनाओं का है। वे जिनके पास हैं, वे देव हैं। महामानवों को, ऋषि व तपस्वियों को, त्यागी-बलिदानियों को देव संज्ञा में गिना जाता है, वे दीपक की तरह जलकर सर्वत्र प्रकाश फैलाते हैं। इस संसार में जितना चेतनात्मक वर्चस्व है, उसे उदात्त भावनाओं का वैभव ही कहना चाहिए।
दूसरा स्थान है विद्या का, इसे ब्राह्मणत्व कह सकते हैं। तीसरी विभूति है प्रतिभा, इसे क्षत्रियत्व कहा जा सकता है। इसके बाद चौथी गणना धन की है। मानव जाति का दुर्भाग्य ही है कि आज धन को सर्वप्रथम स्थान और सम्मान मिल गया। इसी का दुष्परिणाम यह हुआ कि व्यक्ति अधिकाधिक धन संग्रह करके बड़े से बड़ा सम्मानीय बनना चाहता है, जबकि...
करो या फिर मरो।
विपरीत परिस्थितियाँ हर व्यक्ति के जीवन में कभी-न-कभी आती ही हैं। ऐसे में आत्मविश्वास सूखी रेत की तरह मुट्ठियों से फिसलने लगता है। चारों तरफ अंधकार ही अंधकार नजर आता है, साहस घुटने टेकने लगता है। एक पल ऐसा लगता है कि सब कुछ नष्ट हो जाएगा।
ऐसी स्थिति में केवल दो ही विकल्प शेष रह जाते हैं- करो या फिर मरो।
इसमें जो विपरीतताओं-विषमताओं से लड़े बगैर हार मान लेता है, उसका मरण तो निश्चित्त है। लेकिन जो साहस जुटाकर संघर्ष करता है, वही प्रतिकूलताओं पर विजय प्राप्त कर इतिहास रचता और सफलता की इबारत गढ़ता है।
कैसे मज़बूत बनें
ऐसा क्यों होता है कि कठिन परिस्थितियों में कुछ लोग बिलकुल टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं, जबकि इन्ही परिस्थितियों का कुछ लोग न सिर्फ दृढ़ता से सामना करते हैं, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में वो और भी ज्यादा निखर जाते हैं। दुनिया में ऐसा कोई भी नहीं जिसके जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियां नहीं आतीं, परंतु कुछ लोग बुरी से बुरी परिस्थिति से सफलतापूर्वक लड़कर कठिन से कठिन परिस्थिति से बाहर आ जाने की क्षमता रखते हैं। यदि आप भी अपनी मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक क्षमताओं को कुछ इसी तरह से विकसित करना चाहते हैं तो आगे दिए जा रहे सुझावों पर अमल कर सकते हैं।
1: मानसिक शक्ति को बनाए रखें
हमेशा याद रखें, आपकी कर्म-प्रधान जिंदगी में होने वाली घटनाओं को आप स्वयं नियंत्रित करते हैं: ज...