
आश्विन की नवरात्रि साधना
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यों गायत्री उपासना के लिए सभी समय उत्तम हैं। पर नवरात्रि का समय सबसे श्रेष्ठ है। जिस प्रकार प्रातः सायंकाल की संध्या अन्य कालों की अपेक्षा अधिक फलप्रद होती है उसी प्रकार शीत और ग्रीष्म ऋतुओं के मिलन की संध्या आश्विन और चैत्र की नवरात्रि हैं। इन 9-9 दिनों में की हुई थोड़ी गायत्री उपासना भी- अन्य समयों में बहुत दिन तक, बड़ी मात्रा में की हुई साधना के समान फलप्रद होती है।
सदा की भाँति इस बार भी आश्विन की नवरात्रि में हम सब को इस पुनीत पर्व काल में अपनी साधारण उपासना की अपेक्षा कुछ अधिक मात्रा में साधना एवं तपश्चर्या करनी चाहिए। 9 दिन में 24 हजार का अनुष्ठान कुछ बहुत कठिन नहीं है। प्रतिदिन 27 माला के हिसाब से 9 दिन में अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है। इसके लिए 3 घंटा प्रतिदिन समय लगता है, जो जल्दी 4 बजे उठकर 7 बजे तक पूरा हो सकता है। जिन्हें एक साल इतना समय लगाने में असुविधा हो वे प्रातः सायं दोनों समय मिलाकर इसे पूरा कर सकते हैं।
24 हजार अनुष्ठान के लिए 240 आहुतियों का हवन भी होना चाहिए। प्रतिदिन 27 आहुतियों के हिसाब से अन्तिम दिन पूरी आहुतियों का एक साथ हवन अपनी सुविधानुसार किया जा सकता है। ब्रह्मचर्य आवश्यक है। उपवास जिनके लिए जितना संभव हो वे उतना करें। फल दूध पर रहना या एक समय बिना नमक का भोजन लेकर रहना अपनी परिस्थिति पर निर्भर है। बालक, वृद्ध या दुर्बल प्रकृति के व्यक्ति दोनों समय फलाहार या बिना नमक का भोजन ले सकते हैं। चमड़े का उपयोग इन दिनों त्याग देना चाहिए। आज कल 99 प्रतिशत जो बिन काटे हुए पशुओं का चमड़ा ही उपलब्ध होता है। उनकी हत्या में चमड़े का उपयोग करने वाला भागीदार होता है साथ ही उस समय की चमड़े के साथ चिपकी हुई मार्मिक पीड़ा के संस्कार भी साधना के समय चित्त में विक्षोभ उत्पन्न करते हैं। नवरात्रि में लकड़ी, रबड़, कपड़े आदि के जूते चप्पल पहने जा सकते हैं। हजामत इन दिनों बनानी हो तो अपने हाथ से ही बनानी चाहिए। अपने शरीर के लिए दूसरों से सेवा जहाँ तक कम ली जा सके वहाँ तक उत्तम है।
इस बार आश्विन की नवरात्रि ता. 5 अक्टूबर से आरम्भ होकर ता. 13 शनिवार तक चलेगी। 24 हजार जप के अनुष्ठानों के अतिरिक्त इन दिनों 108 पाठ गायत्री चालीसा (प्रतिदिन 12 पाठ) का भी अनुष्ठान होता है। अनुष्ठान के अन्त में ब्रह्म भोज के स्थान पर सस्ते मूल्य का गायत्री साहित्य मँगाकर सत्पात्रों में प्रसाद स्वरूप वितरण कर देना चाहिए। अन्नदान की अपेक्षा ब्रह्मदान का- ज्ञान दान का- पुण्य सौगुना अधिक माना गया है।
आध्यात्मिक साधनाओं से बहुधा आसुरी तत्व विज्न फैलाते हैं तथा साधना में त्रुटियाँ रह जाने का भी भय रहता है। इन दोनों कठिनाइयों को पार करने के लिए नवरात्रि अनुष्ठान साधना करने वालों को अपनी साधना की नवरात्रि में कुछ पूर्व ही हमें सूचना दे देनी चाहिए ताकि उन दिनों उनके अनुष्ठानों का संरक्षण तथा दोष परिमार्जन यहाँ होता रहे। अनुष्ठान सानंद पूर्ण होने की सूचना भी देनी चाहिए। इस प्रकार नवरात्रि के आदि और अन्त में गायत्री परिवार के अनुष्ठान कर्ता अपनी सूचना अवश्य देदें।