
संगठनात्मक सहस्र चण्डी पुरश्चरण
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इस युग में संघ शक्ति का प्राधान्य है। अन्य युगों में सत्ता बल, शरीर बल, मनोबल, शस्त्र बल, विद्या बल, धन बल आदि से आवश्यक उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती थी पर इस युग में संघ शक्ति ही वह प्रधान साधन है जिसके द्वारा सामूहिक उद्देश्यों को पूर्ण किया जाना संभव है। जन शक्ति की चण्डी अन्य सभी देवताओं की अपेक्षा सामर्थ्यवान् है। शतचंडी सहस्र चंडी और लक्ष चंडी का पाठ पूजन किसी समय में जो कार्य कर सकता था अब वह कार्य संघ शक्ति की संगठनाओं से ही संभव है। व्यापक असुरता से लोहा लेने के लिए इसी महाशक्ति का महा अनुष्ठान आवश्यक है। इस लक्ष को सम्मुख रखकर इस बार संगठनात्मक ‘सहस्र चंडी’ का आयोजन किया गया है। गतवर्ष विशद् गायत्री महायज्ञ, के ब्रह्म शस्त्र का आयोजन विश्वव्यापी संकटों को कम करने के लिए हुआ था। अब इस वर्ष अन्तरिक्ष में छाई हुई प्रलयंकारी घटाओं को हटाने के लिए दूसरा जो आध्यात्मिक आयुध तैयार किया जा रहा है वह यही संगठनात्मक ‘सहस्र चंडी’ है। गायत्री परिवार की एक हजार शाखाऐं स्थापित करना इस बार हमारा संकल्प है।
गतवर्ष सर्वथा असंभव दीखने वाला इस युग का अभूत पूर्व एवं अद्वितीय 125 करोड़ जप, 125 लाख हवन, 125 हजार ब्रह्म भोज का संकल्प जिससे सर्व शक्तिवान शक्ति की प्रेरणा से पूर्ण हुआ उसी शक्ति का दूसरा विनियोग यह आगामी कार्यक्रम है। पूर्व काल में देवताओं के असुरों से परास्त होने पर ब्रह्मा जी ने सब देवताओं की थोड़ी थोड़ी शक्ति एकत्रित करके ‘महाचण्डी’ को उत्पन्न किया था उसी ने असुरों का संहार किया था। रावण काल की असुरता का शमन करने के लिए भी ऋषियों ने अपने-अपने रक्त को एक घट में एकत्रित किया था। और उस एकत्रित रक्त से ही असुर निकंदिनी ‘महा सीता’ की उत्पत्ति हुई थी। आज भी विश्व व्यापी असुरता इतनी प्रबल है कि देवताओं के साधारण प्रयत्न उसके आगे असफल ही होते हैं। इन असफलता एवं पराजयों की सामर्थ्य जिस चण्डी में—जन शक्ति में संघ शक्ति में है, उसका आह्वान करना आज आवश्यक हो गया है। गत गुरु पूर्णिमा पर 108 हवनों का संकल्प जिस दिन पूर्ण हुआ, उसी दिन उस दिव्य प्रेरणा का आगामी आदेश ‘सहस्र चण्डी’ के लिये हुआ। तद्नुसार कार्य आरम्भ कर दिया गया है। अखण्ड ज्योति के पिछले अंक में गायत्री परिवार के संगठन की सदस्यता की अपील छापी गई थी।
अनेक व्यक्तियों के पास तत्सम्बन्धी आवश्यक परिपत्र फार्म आदि भी भेजे गये थे। प्रसन्नता की बात है कि उससे धर्म प्रेमी कर्मयोगियों में उत्साह की लहर फैल गई है और अनेक सत्पुरुषों ने तत्सम्बन्धी कार्यारंभ कर दिया है। सच्ची श्रद्धा की एक मात्र कसौटी यही है कि कोई व्यक्ति निर्धारित लक्ष के लिये कुछ कष्ट उठाने, श्रम करने त्याग करने के लिए उद्यत है या नहीं। जो लोग अध्यात्मवाद की महत्ता स्वीकार करते हैं, धर्म स्थापना की आवश्यकता अनुभव करते हैं, साँस्कृतिक पुनरुत्थान का महत्व मानते हैं, संघ शक्ति की महानता को समझते हैं, गायत्री माता और यज्ञ पिता का गौरव बढ़ा हुआ देखना चाहते हैं, उनके लिये यह सम्भव हो नहीं सकता कि अभीष्ट उद्देश्य के लिये मुख खोलने, हाथ पैर चलाने एवं प्रयत्न करने में संकोच, उपेक्षा एवं शिथिलता को प्रकट करें। सच्ची निष्ठा में वह प्रेरणा निश्चित रूप से है कि वह नैष्ठिक व्यक्ति की भीतरी अग्नि को क्रियाशीलता के रूप में बाहर प्रकट किये बिना रुक नहीं सकती। किसी की परिस्थितियाँ अनुकूल न हों तो भी उससे बहुत कुछ करा लेती हैं। समय, सुविधा, परिस्थिति, फुरसत, कठिनाई, चिन्ता आदि की आड़ लेकर कर्तव्य की उपेक्षा करने वाले लोग केवल ‘बहाने बाज’ ही होते हैं। अपनी दुर्बल श्रद्धा की कमजोरी को वे कोई बहाना ढूँढ़कर छिपाने की आत्म वंचना करते रहते हैं। जिस कार्य को मनुष्य ‘आवश्यक’ समझता है उसके लिए अनेक अड़चनों के बीच भी समय निकाल लेता है, निकाल सकता है। हर्ष की बात है कि अखण्ड ज्योति परिवार के अधिकाँश सदस्य निष्ठा और श्रद्धा से परिपूर्ण हृदय वाले कर्तव्य परायण व्रतधारी हैं। वे बहाने बाजी नहीं वरन् धर्म कर्तव्यों के लिये श्रम करने का आदर्श सदा ही आगे रखते रहे हैं।
देश व्यापी गायत्री उपासकों, साधकों, प्रेमियों एवं सिद्ध पुरुषों को एक सूत्र शृंखला में आबद्ध कर देने से माला की मणियों के समान उन संबद्ध व्यक्तियों का व्यक्तिगत रूप से अनुपम लाभ तो है ही, साथ ही विश्व व्यापी असुरता को संहार करने वाली दिव्य संघ शक्ति को जन्म देने संसार में सुख शान्ति की सत्य, प्रेम, न्याय की धर्म गंगा अवतीर्ण करने के महान पुण्य का परमार्थ श्रेय भी प्राप्त होना निश्चित है। थोड़ा प्रयत्न करने और समय लगाने के लिए हम सब तैयार हो जायं तो वर्तमान उपासकों को ढूंढ़कर, नये उपासकों को पैदाकर उनके संगठन की एक हजार शाखाऐं बना देना तनिक भी कठिन नहीं है। विशद् गायत्री महायज्ञ की भाँति यह संगठनात्मक सहस्र चंडी भी सरल ही है, कठिन नहीं।
इस महान सहस्र चंडी के लिए उन ऋत्विजों और महा-ऋत्विजों की आवश्यकता है जो गायत्री प्रसार के नीरस काम के लिए भ्रमता, प्रचार, परिश्रम एवं संगठन के कठिन भार को अपने कंधे पर उठाने के लिए तैयार हों। तीन या तीन से अधिक स्थानों में शाखाऐं स्थापित करने में सफल होने वाले कर्म योगियों को महा ऋत्विज् माना जायगा। ऐसे भी कई व्यक्ति हमारी दृष्टि में हैं जो 10 या 24 शाखाओं का मण्डल स्थापित करने में भी सफल होंगे। कुछ आत्माऐं नारद, शंकराचार्य, बुद्ध, महावीर, दयानन्द, विनोबा आदि की तरह लक्ष के लिये आत्मोत्सर्ग करके घर-घर अलख जगाने, गायत्री माता का सन्देश पहुँचाने एवं संगठनों की स्थापना के लिए अपना सारा समय ही लगा दें इस बात की आज भारी आवश्यकता है।
माता को तलाश करने वाले, उससे कुछ प्राप्त करने के लोभी भिक्षुक असंख्यों हैं, पर माता ऐसे व्यक्तियों की तलाश में है जो अपने लिये कुछ माँगने की अपेक्षा उसके निमित्त कुछ कर सकने को, मर मिटने को तैयार हों। इस सहस्र चण्डी के होता, अध्वर्यु, उद्गाता, आचार्य, ब्रह्मा, पुरोहित ऐसे ही कर्मठ वीर होंगे।
गतवर्ष के विशद् गायत्री महायज्ञ में सहस्रों संरक्षक तथा भागीदार थे। अब वह कार्य पूर्ण हो जाने पर उन सबको शिथिल नहीं हो जाना है वरन् इस वर्ष उन्हें एक परिवार के रूप में सुदृढ़ संगठन बना कर उन आदर्शों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संलग्न होना है जो गायत्री और यज्ञ के अन्तराल में तात्विक दृष्टि से सन्निहित हैं। यह संगठन का कार्य तथा उसका व्यवस्थित संचालन एक स्थान में एक व्यक्ति द्वारा होना सम्भव नहीं। इसलिये गतवर्ष के विशद् गायत्री महायज्ञ में केन्द्री भूत हुए गायत्री उपासकों को शाखा संगठनों के रूप में विकेन्द्रित कर देना है। इसी से उद्देश्य की पूर्ति में सुविधा, व्यवस्था तथा प्रगति रहेगी।
अखण्ड ज्योति के पाठक अधिकतर गायत्री उपासक हैं। उन्हीं के प्रयत्न से गतवर्ष महायज्ञ के निमित्त नये गायत्री उपासकों को बढ़ाया गया, तथा पुरानों को ढूँढ़ा गया था। अब परिवार संगठन का कार्य भी उन्हें ही सौंपते हैं। 1– अपने-अपने समीपवर्ती क्षेत्र के संरक्षकों, भागीदारों, प्रेमियों के पास जाकर उन्हें सदस्य बनाना। 2– शाखा स्थापित करना। 3– शाखा के कार्यक्रम को नियमित व्यवस्थित और प्रेमपूर्वक चलाना। 4– नये सदस्य और शाखाऐं बढ़ाने के लिये प्रयत्न करना। 5– अपनी गतिविधियों की सूचना केन्द्रीय संगठन-तपोभूमि को भेजते रहना। 6– “अखण्ड ज्योति” को स्वयं पढ़कर तथा दूसरों को पढ़वाकर निर्धारित लक्ष की ओर अग्रसर होने का प्रकाश प्राप्त करना, यह छह कार्य हम अखण्ड ज्योति परिवार के सक्रिय कर्मठ और उत्साही कर्मयोगियों पर छोड़ देते हैं। गत अंक में जो सदस्यता फार्म गया था वह जिनने अभी तक भर कर न भेजा हो वे अपना फार्म भर कर भेजने के साथ ही समीपवर्ती क्षेत्र के अन्य गायत्री उपासकों को संगठित करने उन्हें सदस्य बनाने का कार्य भी आरम्भ कर दें। सदस्यता के फार्म, शाखा स्थापना सम्बन्धी फार्म, आवश्यक ज्ञातव्य आदि की जितनी संख्या में आवश्यकता हो मथुरा से मंगालें और उनके आधार पर तुरन्त संगठन कार्य आरम्भ कर दें। जहाँ 10 सदस्य हैं या हो सकते हैं वहाँ “सार्वजनिक शाखाऐं” मानी जाएंगी। जो व्यक्ति जन संपर्क में नहीं रहते विशेषतया महिलाऐं वे अपने परिवार या पड़ौस के अपने समान निष्ठा वाले कम से कम 5 उपासकों को संगठित करके 5 उपासकों की ‘पारिवारिक शाखा’ स्थापित कर सकते हैं। यों कहीं एक दो सज्जन हों और अन्य सदस्य बढ़ने की आशा न हो तो बिना शाखा स्थापित किये भी वह सज्जन सीधे मथुरा से सम्बन्ध रखने वाले सदस्य बन सकते हैं।
आशा की जाती है कि सभी परिजन इस मास इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए कटिबद्ध होंगे और उपेक्षा एवं शिथिलता का नहीं, उत्साह और कर्तव्य निष्ठा का परिचय देंगे। यह संगठनात्मक दिव्य सहस्र चण्डी का आयोजन अत्यन्त महान है। इसे पूर्ण करने में सहयोग देने से एक भी परिजन को वंचित रहना चाहिये।