
गायत्री परिवार पत्रिका
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अखिल भारतीय गायत्री परिवार संगठन को बल देने और उसके समाचारों को विस्तृत रूप से छापने के लिए यह विचार किया गया था कि अखंड-ज्योति को विशुद्ध विचारात्मक पत्र रखा जाय और समाचारों के लिए एक अलग पत्र निकाला जाय जिसका नाम गायत्री परिवार पत्रिका हो। इस विचार में अनुसार गत मास एक विज्ञप्ति अखंड-ज्योति में छापी गई थी और संगठनात्मक परि पत्रों के साथ इसकी सूचना भी भेजी गई थी। उसके उत्तर में जो पत्र आये हैं उनमें से 85 प्रतिशत की सम्मति यह है कि समाचार आदेश, परिपत्र आदि को अखंड-ज्योति में ही छापा जाय, भले ही वे संक्षिप्त हों। दो पत्रिकाओं के ग्राहक रहने में अधिकाँश पाठकों ने अनेक कठिनाइयाँ बताई हैं।
किसी कार्य को अपनी मन मर्जी से ही कर डालने और परिजनों की सलाह को महत्व न देने की बात हमें ठीक नहीं लगती। यद्यपि अभी भी हम अलग पत्रिका से अधिक कार्य होने की बात सोचते हैं, पर परिजनों की इच्छा के विरुद्ध कोई निर्णय उन पर थोपना नहीं चाहते। इसलिए फिलहाल पाठकों के इसी सुझाव का परीक्षण कर रहे हैं कि “अखंड ज्योति में ही कुछ अधिक पृष्ठ इसके लिए निश्चित कर दिये जायं।” इस अंक से आठ पृष्ठ ‘गायत्री परिवार पत्रिका’ के रूप में सुरक्षित रहेंगे। लेखों की विचारात्मक पाठ्य सामग्री कम करने के पक्ष में हम नहीं, परिवार पत्रिका के पन्ने बढ़ने से अखंड ज्योति का कलेवर बढ़ेगा। लागत बढ़ेगी, घाटा बढ़ेगा। जो हो, इस समय पाठकों की इच्छानुसार ही व्यवस्था कर रहे हैं। जिन 20-25 सज्जनों का चन्दा 1॥) पत्रिका के लिए आ गया है वह अखंड ज्योति के उनके सन् 57 के हिसाब में जमा कर दिया जायगा। अब आगे से अखंड ज्योति में शंकाओं का समाधान, उपासकों के व्यक्तिगत अनुभव, सामूहिक आयोजनों के समाचार, साँस्कृतिक पुनरुत्थान के कार्यक्रम भावी योजनाऐं, मायावी असुरता के कुचक्र और उपद्रवों का परिचय आदि विषयों की पाठ्य सामग्री के लिए 8 पृष्ठ सुरक्षित रहा करेंगे।