
Quotation
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
तुमहि नाम तं चेव जं हंतव्वं ति मन्नसि।
तुमसि नाम तं चेवं जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि।
तुमसि नाम तं चेवं जं परियावेव्वं ति मन्नसि॥
-आचाराँग, 1।5।5
जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है वह तू ही है। अर्थात् विश्वव्यापी चेतना एक समान और अद्वैत है।
माइकेल शेल्डन एक दिन शहर के दृश्य देखता हुआ बढ़ रहा था कि सहसा उसने अपने आपको उसी स्वप्न वाली सड़क के बीच पाया। दाहिनी ओर एक मकान खड़ा था। वह किसी अज्ञात प्रेरणा से उसी में घुस गया। वैसा ही मकान, वैसे ही दरवाजे और कमरे। शेल्डन सब कुछ कठपुतली की भाँति कर रहा था। उसी तरह उसने दरवाजा खोला और शुद्ध इटेलियन में चिल्लाया- मारिया, मारिया तुम कहाँ हो?
उसकी आवाज सुनकर पीछे से एक वृद्धा निकली और बोली- “लुइगी ब्रोन्दोनो! मारिया को मारने के बाद आज दिखाई दे रहे हो? इतने दिन कहाँ छिपे रहे।” शेल्डन कुछ भी उत्तर दिये बिना नीचे उतर आया और सीधे पुलिस स्टेशन पहुँचकर इंस्पेक्टर से उसने स्वप्न से लेकर अब तक का सारा हाल कह सुनाया। उसने यह भी बताया कि मारिया का हत्यारा वह स्वयं ही है।
पुलिस रिकार्ड्स देखने पर पता चला कि सचमुच सन् 1825 में उस मकान में मारिया नामक एक युवती की हत्या हुई थी, हत्यारा इटली से भाग गया था। बाद में मनोवैज्ञानिकों ने विस्तृत खोज के बाद यह निश्चय किया कि शेल्डन ही पहले जन्म में लुइगी ब्रान्दोनो था। वह संस्कार इतने बलवान थे कि शेल्डन को जबरन इटली खींच ले गये। हमारे जीवन में आकस्मिक वैराग्य, प्रेम और श्रद्धा के क्षण आते हैं, वह भी पूर्वजन्मों के ही संस्कार होते हैं और यह बताते हैं कि हम आज जो भी कुछ कर रहे हैं, उसका परिणाम आज ही समाप्त होने वाला नहीं। हम कर्मफल से जन्म-जन्मांतरों तक जुड़े रहने वाले हैं। इसलिये हमें ऐसे कर्म करने चाहिये, जो हमारे जीवन को ऊंचा उठाते हों। अशाँति और जटिलता उत्पन्न करने वाले घृणित कर्म करना छोड़ दें तो जीवन अपनी सरल गति से चलता हुआ जहाँ से आया वहाँ पहुँचकर चिर शाँति और अव्यक्त किन्तु परिपूर्ण आनन्द की उपलब्धि कर सकता है।
आत्मा इन्द्रियों से परे की सत्ता है, इसकी पुष्टि करते हुए स्वामी रामतीर्थ ने अमेरिका के एक भाषण में बताया था- “भारत के एक ऐसे व्यक्ति को हम जानते हैं, जो कि एक प्रकार से 6 महीने की मृत्यु की दशा में पड़ा रहा। प्राण विद्या का नियन्त्रण करने की इस विधि को खेचरी मुद्रा कहते हैं, इसका पूरा विवरण हठयोग में मिल सकता है। उस अवस्था में जीवन-क्रिया का कोई चिह्न शेष नहीं रहता पर 6 माह बाद वह पुनः अपनी पूर्व अवस्था में आ गया।”
मार्च 1968 नवनीत के पृष्ठ 165 पर मार्गरेट बोजेमवाल नामक 21 वर्षीया युवती की घटना दी गई है और बताया है कि एक बार 1883 में वह इतना डर गई कि बेहोश होकर गिर गई और 20 वर्ष तक लगातार उसी अवस्था में पड़ी रही। 20 वर्ष तक उसे नली द्वारा भोजन पहुँचाकर जीवित रखा गया। यह घटनायें यह बताती हैं कि शरीर के सम्पूर्ण अवयव काम करते रहें तो आत्मा कहीं भटक जाये तो शरीर निष्क्रिय हो जाता है, साथ उससे इस बात की भी पुष्टि होती है कि आत्म-चेतना इन्द्रियों से परे की स्वतन्त्र सत्ता है।
मृत्यु के बाद जीवन के अस्तित्व को प्रमाणित करने वाले अनेक तथ्य भी भूत प्रेतों की घटनाओं और आत्मा की आवाहन की घटना के रूप में मिलते हैं। प्रसिद्ध भविष्यवक्ता कीरो ने उसके सैंकड़ों उदाहरण एकत्रित किये और छपाये। मनोविज्ञान जगत में उनकी जानकारी सर्वत्र है। आगे के अंकों में ऐसी घटनाओं से भी परिचय करायेंगे।
(क्रमशः)