
सूक्ष्म शरीर का आणविक विश्लेषण (2)
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सूर्य, चन्द्रमा, शनि वरुण, यम गुरु जितने भी ग्रह नक्षत्र हैं, उनमें एक थरथराहट या कम्पन काम करता है, उसी के द्वारा वे अपना प्रकाश स्फुरित करते हैं। यह प्रकाश उनमें सूर्य से आता है। सूर्य यह प्रकाश किसी भी आकाश गंगा से लेता है। और अब ‘क्वासार’ किरणों की शोध से यह भी सिद्ध हो गया है कि ब्रह्माँड में ऐसे अनजाने शक्ति स्रोत हैं आकाश गंगायें उन्हीं से प्रकाश लेकर दौड़ती हैं। ऐसी-ऐसी आकाश गंगाएं या निहारिकायें दस करोड़ से भी अधिक हैं। सूर्य ग्रह नक्षत्रों का तो पता ही नहीं, वे कितने हैं।
सौर मण्डल में आने वाला प्रकाश और अन्य प्रकाश स्रोत जहाँ से भी चलता है, उस स्थान से भी प्रभावित होता है। उदाहरण के लिये पृथ्वी से प्रस्फुटित होने वाली प्रकाश किरणों में प्रकाश के मूल स्रोत के गुण तो होंगे ही, पृथ्वी तत्व का सूक्ष्म प्रभाव भी उसमें होगा। इसी तरह संसार के सभी पिण्ड सूक्ष्म स्थूल और कारण प्रक्रिया धारण किये हुये, प्रकाश कणों की उपस्थिति से पूरी तरह आच्छादित हैं, भले ही स्थान-स्थान पर उनका वर्ण, स्वभाव भिन्न-भिन्न प्रकार का हो।
प्रश्न उत्पन्न होता है कि दिखाई तो किरणें देती हैं, प्रकाश में परमाणु कहाँ से आ गये? पर इसका उत्तर देना सम्भव हो गया है। पिछले दशक की यह महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि है। प्रकाश के ऐसे टुकड़े बनाये गये हैं, जो एक क्षण के 1 लाख हिस्से के करोड़वें भाग में सीमित है। इस समय की अवधि को ‘पिको सेकिण्ड’ कहते हैं, ऐसे प्रकाश खण्डों के उत्पादन तथा परीक्षण के लिए लेसर (एक प्रकाश यन्त्र) का प्रयोग किया जा रहा है। प्रकाश को सोखने वाले विरंजनों ‘नीयोडाइमियम ग्लास लेसर’ के भीतर प्रयोग करके इन प्रकाश खण्डों को प्राप्त किया जाता है।
उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि पोले आकाश में प्रकाश अणुओं की उपस्थिति अदृश्य है और अयथार्थ नहीं है। पृथ्वी के पास सूर्य-चन्द्रमा आदि सौर ग्रहों के प्रकाश कणों के साथ विद्युत आवेष्टित धूलि कणों की बहुतायत है तो सूर्य के समीप किसी और तरह के सम्मिश्रण की बहुतायत होगी। इस तरह आकाश एक प्रकाश अणुओं का अन्तर्जाल अथवा व्यूहाणु बन गया है।
जो कुछ आकाश में है, वह मनुष्य शरीर में है- ‘यत् ब्रह्माँडे तत् पिण्डे।’ के अनुसार जहाँ शरीर में स्थूल पंच भौतिक पदार्थ हैं, वहाँ उसके पोले भाग में यह अदृश्य प्रकाश अणु भी विद्यमान हैं, इसमें सन्देह नहीं। हड्डियों के पोले भाग में अदृश्य लोकों के प्रकाश अणु संकुल और सघन हो जाने से वहाँ उन लोकों का भान होने लगता है, इन्हें भारतीय भाषा में ‘सूक्ष्म लोक’ और अंग्रेजी में इन्हें ‘एस्ट्रल बॉडी’ के नाम से जाना जाने लगा है। योग ग्रन्थों में षटचक्रों की स्थान-स्थान पर चर्चा हुई है यह 6 चक्र, सूक्ष्म लोकों के ही प्रतिनिधि हैं। सातवाँ लोक शून्य लोक या सहस्रार चक्र मस्तिष्क में अवस्थित बताया गया है।
इनके अतिरिक्त शरीर में जितना भी पोला भाग है वहाँ विभिन्न वर्ण, रचना और गुण वाले वह प्रकाश अणु भरे पड़े हैं, जो आकाश में तैरते हैं। श्वास, भोजन आदि के द्वारा भी यह प्रकाश कण शरीर में विकसित होते रहते हैं और इनके योजनापूर्वक धारण की दूसरी प्राणायाम जैसी हठयोगी क्रियाएं भारतीय लोक में प्रचलित हैं, वह सब श्रीमती जे.सी. ट्रस्ट के मानव अणु विकास के द्वारा आत्मोन्नति के सिद्धाँत का ही प्रतिपादन करते हैं।
शरीर में सबसे अधिक प्रतिशत खनिज तत्वों का है, क्योंकि वे अधिक स्थूल होते हैं 60 प्रतिशत तो केवल जल है। इस 60 प्रतिशत में 40 भाग हाइड्रोजन और 20 भाग ऑक्सीजन के अणु होते हैं। शेष 40 प्रतिशत में फास्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, आयरन, सोना-चाँदी और दूसरे खनिज होते हैं सबसे कम भार इन प्रकाश अणुओं का होता है पर उनकी उपस्थिति में कोई सन्देह नहीं रह गया है।
कर्नल अलबर्ट डेरोचस ने मृत्यु के पूर्व एक व्यक्ति का भार लिया और फिर उसे अत्यन्त सूक्ष्म नाम तक करने वाले तराजू से सम्बन्धित कर लिटा दिया। मृत्यु हो जाने के बाद शव के भार में सवा दो औंस की कमी आ गई। इस प्रयोग के आधार पर ही श्री डेरोचस ने सूक्ष्म शरीर का भार 2। औंस बताया। संसार के दूसरे कई वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि की।
सूक्ष्म शरीर का भार इतना कम होते हुए भी उसके अणु इतने हलके और सूक्ष्म होते हैं कि वह सारे शरीर में आच्छादित रहकर रासायनिक क्रिया का प्रसार करते रहते हैं। शरीर के आस-पास इन्हीं की आभा-प्रदीप्तमान होती है। श्री डॉ. डेरोचस के अनुसार स्वतन्त्र अवस्था में यह प्रकाश अणुओं वाला सूक्ष्म शरीर तीन इंच का होता है पर प्रकाश-अणुओं के द्वारा उसका कई गुना विस्तार हो सकता है।
हाइड्रोजन संसार का सबसे हल्का तत्व है और वह सारे विश्व में व्याप्त है। उसके अणु का विस्फोट कर दिया जाये तो उसकी शक्ति संसार के किसी भी तत्व की तुलना में अधिक होगी। जो कितना हलका वह उतना ही आग्नेय, शक्तिशाली सामर्थ्यवान और विश्व-व्यापी यह कुछ अटपटा-सा लगता है पर है ऐसा ही।
किसी गुब्बारे में 300 पौंड हवा भरी जा सकती है तो हाइड्रोजन उतने स्थान के लिए 100 पौंड ही पर्याप्त होगा। उसी प्रकार जितने स्थान में एक औंस पानी या 2/3 औंस हाइड्रोजन रहेगा, उतने स्थान को मनुष्य के सूक्ष्म शरीर के प्रकाश अणुओं का 1224 वाँ भाग ही घेर लेगा। यदि प्रयत्न किया जाये तो इन अणुओं की सूक्ष्मतम अवस्था में पहुँच कर विराट् विश्व व्यापी आत्म-चेतना के रूप में अपने आपको विकसित और परिपूर्ण बनाया जा सकता है।
प्राण विद्या के द्वारा इस रहस्य की जानकारी संसार में आज तक केवल भारतवर्ष ही कर सका है। इन प्रकाश अणुओं की शक्ति तुलना हाइड्रोजन के परमाणुओं से करें तो लोग अनुमान कर सकेंगे, भारतीय योगी के पास इतनी अकूत शक्ति का भण्डार होता होगा। पूर्ण पुरुषों, अवतारों की क्षमता का तो अनुमान करना ही कठिन है।
सूक्ष्म शरीर, नैसर्गिक प्रकाश-अणुओं या आग्नेय अणुओं को ही भारतीय तत्व-दर्शियों ने एक शब्द ‘प्राण’ से सम्बोधित किया है। उसकी स्थान-स्थान पर विशद व्याख्या हुई है, जो ऊपर दिये गये विश्लेषण के अनुसार ही विज्ञान सम्मत है।
एषोऽग्निस्तपत्येष सूर्य एष पर्जन्यो मधवानष वायुः एष पृथिवी रपिदेवः सहसच्चामृतं चयत्।
-एतरेय,
यही प्राण अग्नि रूप में तपता है, सूर्य मेघ, इन्द्र, वायु, पृथ्वी, रवि (चन्द्रमा) यही है। सत्, असत् भी यही है और यही अमृत भी है।
एतमेकेदन्त्याग्नि मनुमन्ये प्रजापतिम्।
इन्दुमेके परे प्राणम् परब्रह्मशाश्वतम्॥
-मनुस्मृति अ. 12,
उसे ही अग्नि कहते हैं, वही प्रजापति (मन) कहलाता है। उसे ही इन्द्र या प्राण कहते हैं, कोई उसे ब्रह्म कहता है।