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Magazine - Year 1970 - Version 2

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सिर्फ दो तरह के लोगों को आत्म-ज्ञान हो सकता है। उनको जिनके दिमाग विद्वत्ता यानी दूसरों के उधार लिये हुये विचारों से बिलकुल लदे हुये नहीं हैं, और उनको जो तमाम शास्त्रों और साइन्सों को पढ़कर यह महसूस करने लगे हैं कि वे कुछ नहीं जानते।

-श्रद्धानन्द

इंग्लैंड की डफरिन और अवा रियासतों के सामन्त लार्ड डफरिन कभी भारतवर्ष के वायसराय रह चुके थे, कनाडा के गवर्नर जनरल और रोम के राजदूत रहने का भी उन्हें सौभाग्य मिला था। सन 1891 में वे पेरिस के राजदूत नियुक्त हुए। एक दिन उन्हें एक मित्र ने आयरलैंड में एक दावत दी। रात के बारह बजे भोज चला। इसके बाद उनके लिये अत्यन्त सजे हुए एकान्त कमरे में विश्राम की व्यवस्था कर दी गई, लार्ड डफरिन अभी लेटे ही थे कि सारा कमरा एकाएक तीव्र प्रकाश से भर गया। यों उस दिन पूर्णमासी थी। बाहर चन्द्रमा पूरे वेग से छिटक रहा था तो भी कमरे के सभी दरवाजों और खिड़कियों पर पर्दा पड़ा था भीतर प्रकाश जाने की कोई सम्भावना नहीं थी। बल्ब बुझे हुये थे। लार्ड डफरिन को आशंका हुई, वे उठे सब तरफ देखा कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। फिर लेटे ही थे कि वही पहले जैसा तीव्र प्रकाश अनुभव हुआ। उन्होंने अच्छी तरह परखा कि वे जाग रहे हैं और होश में हैं। फिर खड़े होकर खिड़की से झाँककर देखा तो कुछ ही गज की दूरी पर एक आकृति अपने कन्धे पर एक शव ढोने के कठघरे जैसा बोझ लिये दिखाई दी। वह कराह सी रही थी। लगता था बोझ भारी है, उसे जाने में कष्ट हो रहा है।

उन दिनों प्रयोगशालाओं के लिये शवों की बड़ी आवश्यकता रहती थी। वैज्ञानिक मुँह माँगे दाम देते थे, इसलिए फ्राँस में मुर्दों की चोरी की एक आम हवा चल पड़ी थी। डफरिन ने सोचा कोई मुर्दा चोर है सो साहस करके वे आगे बढ़े और पास पहुँचते ही ललकार कर पूछा- “कौन हो!” आकृति ने उनकी ओर थोड़ा घूरकर देखा तो वे स्तब्ध रह गये, इतना भयानक चेहरा लार्ड डफरिन ने पहले कभी न देखा था तो भी उन्होंने साहस किया और आक्रमण के लिये जैसे ही थोड़ा आगे बढ़े कि आकृति वहीं अन्तर्धान हो गयी। न कोई व्यक्ति था, ना कोई बोझ। टार्च के सहारे दूर तक देखा पृथ्वी पर पैरों के भी चिन्ह नहीं थे। लार्ड डफरिन तब कुछ डरे। यह एक अविस्मरणीय घटना थी। वे कमरे में लौटे और उसी समय जो कुछ देखा था वैसे ही डायरी में नोट कर लिया फिर वे रात भर सो नहीं सके। कुछ दिन बात आई गई हो गयी।

कुछ वर्ष बीते लार्ड डफरिन तब पेरिस में राजदूत ही थे, एक दिन सभी राजनैतिक व्यक्तियों को भोज दिया गया। पेरिस के ग्रन्ड होटल में उनका प्रबन्ध किया गया। समय पर सब लोग होटल में इकट्ठे हो गये। ऊपर होटल तक ले जाने के लिये ‘लिफ्ट’ (एक ऐसी मशीन जो बिजली के सहारे रेल की तरह ऊपर तक चढ़ती है कई मंजिलों की इमारत में वह ऊपर बोझ और व्यक्तियों को पहुँचाने में काम आती है) तैयार थी। वरिष्ठ होने के नाते सब लार्ड डफरिन की ही प्रतीक्षा में थे।

नियत समय पर जैसे ही वे उस लिफ्ट के पास पहुँचे वर्षों पूर्व देखी हुई वही भयानक आकृति वहाँ उपस्थित पायी। उस दिन की सारी घटना एक सेकेंड में मस्तिष्क में नाच गयी। वे पीछे हट गये, अपने सेक्रेटरी से भोज में सम्मिलित होने से इन्कार करते हुये वे लौट पड़े और सीधे होटल के मैनेजर के पास जाकर पूछा- लिफ्ट पर किसे नियुक्त किया गया है! जब तक वह कोई उत्तर दें एक धड़ाम की आवाज आई सब लोग लिफ्ट की ओर दौड़े देखा लिफ्ट बीच में ही कट कर टूट गई और सारे सवार अतिथि गिरकर चूर-चूर हो गये। डफरिन के अतिरिक्त सब लोग मर चुके थे। यह समाचार फ्राँस के सभी समाचार-पत्रों ने छापा और यह स्वीकार किया कि भूत की सत्ता सचमुच कुछ न कुछ है। उसका विज्ञान कुछ भी होता हो! लुई आन्स्पैचर द्वारा यह घटना ‘रीडर्स डाइजेस्ट’ पत्रिका में भी छपी थी।

नैपोलियन बोनापार्ट जिन दिनों सेंट हेलेना द्वीप में था, उसे भी एक प्रेत ने उसकी मृत्यु की सूचना दी थी, जिसे उसके साथियों ने अमान्य कर दिया था पर अन्त में नैपोलियन की मृत्यु ठीक उसी दिन उन्हीं परिस्थितियों में हुई, जो प्रेत ने बताई थीं यह घटनायें यह बताती हैं कि भूत कोई अमान्य तथ्य नहीं वरन् जीव-चेतना की एक अवस्था है, जो उसे अपने ही दुष्कर्मों के कारण मिली होती है।

(क्रमशः)

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