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Magazine - Year 1970 - Version 2

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चित्तायत्तसिहं सर्वं जगच्चराचरात्मकम्।

चित्ताधीननतो राम बन्धमोक्षावयि स्फुटम्॥

- योग वशिष्ठ,

यह समस्त जड़ चेतनात्मक जगत चित्त के ही अधीन रहता है। हे राम! इस संसार का बन्धन और मोक्ष पद की प्राप्ति ये दोनों ही चित्त के वश में हैं। यह अपनी जैसी भी स्थिति बना लेता है, वही प्राप्त कर सकता है।

जहाँ आसपास लोग हँसते-बोलते अपना काम-काज करते संसार के सभी व्यवहारों को निभाते, उन्नति और प्रगति करते हुये दिखाई देते हैं, वह मलीन मन व्यक्ति हर समय शोक-सन्ताप में जलता और रोता-झींकता रहता है। संसार का कोई भी काम यह ठीक से नहीं कर पाता। अभी एक काम प्रारम्भ किया कि शीघ्र ही उसे छोड़कर दूसरा करने लगा। अभी कहीं जाने का उत्साह जागा कि दूसरे ही क्षण अन्दर बैठी खिन्नता की डायन ने उस क्षीण उत्साह का गला दबा दिया। खिन्न व्यक्ति का मनोबल नष्ट हो जाता है, उसका आत्मविश्वास उसे छोड़कर चला जाता है। जिससे वह संसार में आगे बढ़ने, अपनी आत्मा का उद्धार करने के लिए पुरुषार्थ के योग्य नहीं रहता। किसी भी काम के करने से पहले ही उसे असफलता, हानि अथवा निरर्थकता के भाव दबा लेते हैं, तिस पर भी यदि उसे कुछ करना ही पड़े तो सिवाय असफलता एवं निराशा के उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता।

प्रश्न यह उठता है कि जब खिन्नता इतनी दुष्ट और अकल्याणकारी प्रवृत्ति है, तब लोग उसको प्रश्रय ही क्यों देते हैं? निश्चय ही कोई व्यक्ति जानबूझकर इस दोष को नहीं पालता। कोई भी खिन्न, अप्रसन्न अथवा असंतुष्ट नहीं रहना चाहता। किन्तु फिर भी ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं, जिनमें खिन्नता के कारण निहित रहा करते हैं और मनुष्य न चाहता हुआ भी उनसे प्रभावित हो जाता है। उदाहरण के लिए खिन्नता के कारणों में से अनेक कारण इस प्रकार हो सकते हैं- किसी कार्य में असफल हो जाना, किसी से अनपेक्षित व्यवहार पाना स्वाभिमान को चोट पहुँचना, किसी प्रियजन का विछोह अथवा परिजन का रुग्ण हो जाना। किसी आकस्मिक आपत्ति का आ पड़ना आर्थिक अथवा शारीरिक हानि होना, किसी से विवाद खड़ा हो जाना अथवा किन्हीं विषम परिस्थितियों में फँस जाना आदि।

इस संसार की रचना और उसका विधान ही कुछ इस प्रकार का है कि कोई भी व्यक्ति एक समान स्थिति में नहीं रह सकता। यहाँ पग-पग पर संघर्ष और प्रतिकूलताओं के अवसर आते ही रहते हैं। किसी भी समय कोई भी कारण खड़ा होकर खिन्नता को जन्म दे सकता है, विषाद को पैदा कर सकता है। किन्हीं निर्दिष्ट व्यक्तियों को ही नहीं, इस विषमतापूर्ण संसार में सभी व्यक्तियों को थोड़ा बहुत प्रतिकूलताओं से गुजरना ही पड़ता है। संसार में ऐसा व्यक्ति कदाचित ही मिले जिसे विषमताओं, असफलताओं, हानियों अथवा प्रतिकूलताओं से न टकराना पड़े। संसार की परिस्थितियाँ सबके लिए एक जैसी ही होती हैं। खिन्नता, विषाद, विषमता अथवा निराशा के कारण किसी को क्षमा नहीं करते।

तथापि हम देख सकते हैं, हजारों-लाखों और करोड़ों आदमी ऐसे हैं जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी प्रफुल्ल एवं प्रसन्न बने रहते हैं। खिन्नता के कारण न तो उन्हें अकर्मण्य बना पाते हैं और न उनकी जीवन रुचि को छीन पाते हैं। वे हर प्रतिकूल कारण से टकराते हुये, आगे बढ़ जाते हैं। न तो वे बैठकर विषाद मनाते हैं और न अपने जीवन तत्व को जलाते ही हैं। संसार की एक जैसी परिस्थितियों में यदि सभी व्यक्ति समान रूप से निराश एवं निष्क्रिय हो जावें तो क्या यह संसार एक क्षण को भी स्थिर रह सकता है? क्या इसकी प्रगति अथवा प्रसार हो सकता है। आज प्रति दिन होने वाले चमत्कार, सामने आने वाली उपलब्धियाँ और उन्नति की ओर बढ़ते हुये मानवता के चरण जहाँ के तहाँ रुक जायें और शीघ्र ही यह हरा-भरा और चलता फिरता संसार श्मशान की तरह नीरस और निर्जीव बन जाये।

विषादियों के अतिरिक्त संसार में ऐसे कर्मयोगी, पुरुषार्थी और मनोबल के धनी सत्पुरुष उत्पन्न ही होते रहेंगे, जो विषमताओं को पैरों तले रौंदकर, खिन्नता की पिशाचिनी को जीवन परिधि से निर्वासित करते हुये स्वयं आगे बढ़ते हुये संसार को प्रगति पथ पर चलाते ही रहेंगे। ईश्वर की इस सुन्दर रचना संसार को न तो वे नष्ट होने देंगे और न जड़ीभूत।

दुख अथवा विषादों से छुटकारा पाने का उपाय निराश होकर बैठ रहना नहीं है उसका उपाय है, कर्मठता एवं पुरुषार्थ। हँसना और मुस्काना जीवन की सफलता असफलता में सम-दृष्टिकोण रखकर साहस न हारना। हँसते-मुस्काते हुये अपना कर्तव्य करिये। विषमताओं और प्रतिकूलताओं से हारिये नहीं, उन पर अपने शारीरिक और मानसिक बल से विजय प्राप्त करिये। खिन्नता सारे शोक-सन्तापों, निराशा एवं निरुत्साह की जननी है। यह जीवन का सारा रस सारा सौंदर्य और समस्त पुण्यों को नष्ट-भ्रष्ट करके मनुष्य को निःसार बना देती है। इससे दूर रहिये, इसे जीवन से निकाल फेंकिये। खिन्नता कायर और कमजोर मन वालों का दण्ड है, आप जैसे पुरुषार्थी और वीर पुरुष का पुरस्कार प्रसन्नता एवं सम्पन्नता है, प्रयत्न कीजिये और उसे प्राप्त कर जीवन को सफल एवं प्रसन्न बनाइये।

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