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हमारे बदन लोहे के हों और उसी तरह लोहे की हमारी इच्छा-शक्ति! इस योग्यता के साथ अगर लौह-दण्ड भी हमारे हाथ में हो तो एक राष्ट्र क्या सारी पृथ्वी को हम भय मुक्त कर सकते हैं। इच्छा-शक्ति की प्रचण्डता सबसे बड़ी सिद्धि है।
योगी सब कुछ जानता है, वह इशारे से लोगों को कुछ समझा भी सकता है, किसी की अदृश्य सहायता करना चाहे तो भी वह कर सकता है पर ऐसा करते हुये यह निर्देश है कि वह अपना अहंकार न बढ़ा ले और सब कुछ कर सकने का मिथ्याभिमान न कर ले। मनुष्य अन्ततः मरणधर्मा है। उसे किसी भी आत्मा की स्वाधीनता में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं। कर्माध्यक्ष तो एक ईश्वर ही है, उसके कार्यों में सहयोग तो किया जा सकता है पर उन अधिकाधिकारों को अपने हाथ में लेने वाला व्यक्ति अपने जीवन की शान्ति ही खो देता है। ऐसा पीटर को कई एक घटनाओं से स्पष्ट आभास हुआ।
उन दिनों इंग्लैण्ड में एक जादूगर भी रहता था, जो हाथ की सफाई से कई करतब दिखाकर लोगों का मनोरंजन किया करता था। एक दिन हरकौस का एक मित्र हरकौस को भी उसका कार्यक्रम देखने ले गया। वह जादूगर लोगों के मनोरंजन के लिये बीच-बीच में प्रश्न भी करता था। प्रश्नोत्तर काल में मित्र महोदय ने एक पर्चा थमा दिया कि इस सभा में ‘पीटर हरकौस’ नामक एक ऐसा भी व्यक्ति बैठा है, जो आपसे अधिक योग्य है।
जादूगर को यह बात कुछ अखरी सी। उसने व्यंग्य-पूर्वक उस पर्चे को पढ़ा और कहा-अब आप लोगों को ‘पीटर हरकौस’ अपना चमत्कार दिखायेंगे। उसने यह शब्द ऐसे लहजे में कहे कि दर्शक कई बार हँसी से लोट-पोट हो गये।
योगी संयमी होता है। उसे मान ही नहीं, अपमान में भी संयत रहने की शिक्षा दी जाती है। हरकौस को ऐसा कोई शिक्षण मिला नहीं था। शक्ति आकस्मिक हाथ लगी थी, इसलिये उसके व्यावहारिक उपयोग का तो उसे पता था नहीं। इसलिये स्वभावतः वह कुछ उत्तेजित हो गया। वह रंगमंच पर पहुँचा और कहा- अपनी कोई वस्तु मुझे दीजिये। जादूगर ने अपनी घड़ी थमा दी और ऐसा करते-करते एक व्यंग्य और कस दिया। दर्शक खिल-खिला कर हँस पड़े। पीटर हरकौस का बुरा हाल था।
लोग चुप हुये तो हरकौस ने कहा- मैं इस घड़ी में देख रहा हूँ कि आप अपनी धर्मपत्नी के साथ अविश्राम कर रहे हैं, आपका आकर्षण एक दूसरी युवती की ओर है। उसका नाम ग्रीटा है, वह यहां उपस्थित भी हैं। यह शब्द सुनते ही जादूगर सन्नाटे में रह गया। उसकी स्त्री आश्चर्यचकित देख रही थी। सारी सभा में सन्नाटा छा गया।
पीटर हरकौस स्टेज से उतरा और वहाँ से चलकर सीधा एक युवती के पास जाकर खड़ा हो गया और बोला- अब मैं ’ग्रीटा’ के पास खड़ा हूँ। युवती घबरा गई, उसने स्वीकार किया कि पीटर हरकौस ने जो कुछ कहा है, वह सब सच है। इस घटना से पीटर हरकौस की ख्याति तो बहुत बढ़ गई पर उसे ऐसा अनुभव होने लगा कि वह जो कुछ कर रहा है, ईश्वरीय व्यवस्था के अनुकूल नहीं है, यदि उसे ऐसी शक्ति मिली है तो उससे दूसरे लोगों को सत्य मार्ग की दिशायें तो दी जा सकती हैं पर किसी का जी नहीं दुःखाया जाना चाहिये। कर्म के फल से जीवात्मा आप बँधी रहती है, उसका फल उसे मिलेगा ही, फिर कोई ऐसा मार्ग क्यों अपनाया जाये जिससे अपना अहंकार बढ़े और दूसरों का जी दुःखे। निष्काम कर्त्तव्य की बात होती तो भी एक बात थी यहाँ तो सब कुछ मानो लोकेषणा के वशीभूत हो रहा था।
“आप तो उनके साथ बहुत दिनों से रह रहे हैं उन पर श्रद्धा भी अपार है, फिर भी आप स्वामी जी (दयानन्द) का जीवन-चरित्र ही लिख डालिए।” एक सज्जन ने पं. गुरुदत्त विद्यार्थी से आग्रह किया। इस पर उन्होंने कहा-लिख तो रहा हूँ श्रीमान जी!
विस्मित मित्र ने पूछा- कितने दिन में लिख डालोगे। इस पर विद्यार्थी जी ने कहा-भाई! मैं कोई पुस्तक नहीं लिख रहा वरन् उसे अपने जीवन में लिख रहा हूँ।
इसी तरह की एक दुर्घटना हरकौस से 1945 में तब हो गई जब कि हरकौस हालैण्ड के प्रख्यात हास्य अभिनेता बर्नार्ड बारेन्स के दल में काम करने लगा था। एक महिला ने अपने अँगूठी देकर अपने बारे में पूछा-तो हरकौस ने सबके सामने कह दिया- आपके दो बच्चे हैं। आप अपने पति से झूठ बोलकर आयी हैं कि मैं अपनी बीमार माँ को देखने जा रही हूँ, सच बात यह है कि आप अपने प्रेमी से मिलने आई हैं, वह आपकी बगल में ही बैठे हैं।
महिला स्तब्ध रह गई और वहाँ से उठकर चली गयी, तब पीटर हरकौस ने अनुभव किया कि वह ईश्वरीय देन का दुरुपयोग कर रहा है। यह घटना उसे बहुत दिन तक अशाँत किये रही।
(क्रमशः)