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Magazine - Year 1999 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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First 15 17 Last
सृजेता ने सृष्टि की रचना में अपना अनुपम कौशल सँजोया है। यहाँ बहुत कुछ ऐसा है, जिसे निहार कर मानवी-बुद्धि आश्चर्य चकित हो नतमस्तक हो जाए। सृष्टि के महाशिल्पी कीस अद्भुत रचना में रहस्य भी कम नहीं हैं। यहाँ होने वाली अगणित रहस्यमयी घटनाएँ सृष्टि के रचनाकार के प्रति अंतःकरण में पील-पल श्रद्धा एवं भक्ति के भाव उमंगती-पनपाती रहती हैं ऐसी ही एक घटना सन् 1921 की है। 24 वर्षीय ब्रिटिश युवक जॉन हेनरी लेनको एक विद्युतीय तूफान का विचित्र अनुभव हुआ उसने विद्युत के पीले गोले को अपने सनानगृह में प्रवेश करते देखा। यह गोला उसके पैरों के चारों और चक्कर लगाता हुआ वाशबेसिन में कूट गया व बिना कोई ध्यान किए विलुप्त हो गया। इस विद्युतीय गोलों ने किसी तरह खुली खिड़की में लगे जालीदार पर्दे से प्रवेश किया था। इससे न तो गोले के आकार में कोई परिवर्तन आया और न ही जाली को कोई क्षति पहुँची। इसके बारे में यही आश्चर्यजनक बात नहीं है, इसने वाशबेसिन की निकास नली में लगे रबड़ के ढक्कन की स्टील चैन को दो खंडों में पिघला दिया था सारी घटना कुछ ही सेकेंडों में घटित हुई थी। युवक सोचता ही रह गया कि गोला आखिर कहाँ लुप्त हो गया?

एक सप्ताह बाद पुनः उसी कमरे में वैसी ही एक और विद्युतीय तूफान की घटना घटी। एक गोला खिड़की को बिना पिघलाए अंदर आया और हेनरी लेन के पैरों का चक्कर काटने लगा। फिर वह नहाने के टब में कूट गया व निकास नली में ले रबड़ के ढक्कन की स्टील को पिघला कर दो खंडों में तो़ गया। उपर्युक्त घटनाओं का विशेषज्ञों ने जब विश्लेषण किया तो उसके पीछे कोई भी तथ्य समझ नहीं पाए। घटना के विद्युतीय गोले तड़ित से सर्वथा भिन्न थे, क्योंकि इनकी गति धीमी थी व ये सुचालकों से भी अप्रभावित रहे। इन्होंने मनुष्यों को किसी तरह की खति नहीं पहुँचाई। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि ये अपनी स्वतंत्र इच्छा द्वारा संचालित थे।

इसी तरह के जिन विद्युत गोलों की घटनाओं का उल्लेख किंसेंट ग्रडीस ने अपनी पुस्तक मिस्टीरियस फायर्स एण्ड लाइट’ में किया है,उनकी स्वतंत्र इच्छाशक्ति थी वे ये मनुष्यों के प्रति सद्भावपूर्ण थे। एक जगह एक क्रुद्ध गोले ने धक्का मारकर दरवाजा खोला था। अन्यत्र विद्युतीय गोला एक वृक्ष की चोटी पर स्थिर हो गया था और फिर धीरे-धीरे एक टहनी से दूसरी पर नीचे उतरने लगा। अंततः खलिहान से होता हुआ धर के दरवाजे की ओर आगे बढ़ा वहाँ खेल रहे दो बालकों ने जब उसे गेंद समझ कर ठोकर मारी, तो यह कर्णभेदी ध्वनि के साथ फट गया। किसी भी बालक को कोई क्षति नहीं पहुँची, लेकिन बाड़े में बँधे हुए दो पशु घायल हो गए। इसी तरह की एक घटना दक्षिण पश्चिमी फ्राँस के एक गाँव में घटी। जलता हुआ एक गोला चिमनी से नीचे उतरा व कमरे में बैठी एक महिला व तीन बच्चों के बीच में से होता हुआ पास वाली रसोई में घुस गया। रास्ते में सने एक बच्चे के पैर का स्पर्श भी किया, लेकिन उसे किसी भी तरह कोई नुकसान नहीं पहुँचा। अंततः यह एक अस्तबल में घुस गया व एक सुअर को स्पर्श करता हुआ विलुप्त हो गया। लेकिन समसें सुअर मारा गया। एक अन्य घटना क्लेरन स्विट्जरलैंड की है। इसका वर्ण 1 जुलाई, 1880 की ‘नेचर’ पत्रिका में किया गया था। एक भयानक गर्जना ने क्लेरन के घरों को जड़ से हिला दिया। उसी समय कब्रिस्तान के समीप एक चैरी के वृक्ष पर बिजली गिरी। पास के आँगन में काम कर रहे अंगूर की खेती करने वाले किसानों ने देखा कि कोई विद्युतीय द्रव एक छोटी-सी बच्ची के साथ खेल रहा है। वह बच्ची सकी चादर में लिपट गयी हैं यह देखकर किसान डर के मारे भाग खड़े हुए। चैरी वृक्ष से 250 कदम की दूरी पर कब्रिस्तान में छः-सात व्यक्ति काम कर रहे थे। वे भी इस विद्युतीय प्रवाह की लपेट में आ गए। उन्हें लगा कि जैसे उनके चेहरे पर ओले बरस रहे हों। घटना से प्रभावित बच्ची, अंगूर की खेती करने वाले किसान व अन्य व्यक्तियों में से किसी को कोई क्षति नहीं पहुँची। लेकिन चैरी का वृक्ष क्षत-विक्षत हो गया था। ण्यस लगता था कि जैसे कि किसी डायनामाइट द्वारा इस पर विस्फोट किया गया हों।

ये तो हुई, मनुष्य के शुभचिंतक रहस्यमय गोलों एवं विद्युतीय प्रवाह की घटनाएँ। इसके विपरीत इनसानों को नुकसान पहुँचाने वाले गोलों की घटनाएँ भी देखी गयी। घटना जब स्वच्छ आकाश के नीचे घटी हो तो आश्चर्य और अधिक बढ़ जाता है। ऐसी ही एक घटना 10 मई, 1961 की है। इंग्लैण्ड के रिचाउ वोंट अपनी कार में बैठे घर की ओर जा रहे थे। रात का समय था। अचानक रिचार्ड ने घने कोहरे में जलती आग की एक गेंद को देखा, जो व्यास में तीन फुट के लगभग थी। यह तेजी से पैंतालीस डिग्री के कोण पर सीधे कार की ओर बढ़ रही थी। यह चमकीली गेंदाकार के टकराकर फट गई। रिचार्ड शीघ्रता से बाहर कूद पड़े। जब उन्होंने खिड़की को छुआ तो उसे इतना गर्म पाया कि हाथ तुरंत हटाना पड़ा। स्थानीय वैज्ञानिकों ने इस प्रकरण की जाँच पड़ताल की, लेकिन वे कुछ भी बतलाने में असमर्थ रहे। बादल रहित आसमान के नीचे घटी इस घटना से सभी हतप्रभ थे।

इसी तरह की एक घटना इंग्लैंड के एक कस्बे में 29 मई 1938 को घटी, जब साफ आसमान से एक उग्र ज्वलनशील वस्तु पृथ्वी पर गिरी व नौ व्यक्तियों को जला दिया। ऐसे ही 29 अप्रैल 196 के दिन मैसाचयूसेट्स के एक खेत में जलता हुआ बास्केटबॉल के आकार का गोला गिरा था, जिसने घास के ढेर में आग लगा दी थी। विशेषज्ञों के अनुसार यह कोई प्राकृतिक घटना नहीं थी।

गर्मी के दिनों में बाँस के सूखे झुरमुटों में आपसी रगड़ के कारण आग लगने की घटनाएं तो समझ में आती हैं, लेकिन यदि मनुष्य बिना किसी बाह्य उत्प्रेरक के स्वतः ही जलकर राख हो जाए तो? ऐसी ही एक घटना है फ्लोरिडा की। इसका विस्तृत विवरण सितंबर 1969 की साइंस मंथली ‘मेटिरियोलाजिकल’ पत्रिका में आया था घटना की नायिका थी श्रीमती मेरी हार्डी रोजर, 170 पौण्ड की इस महिला को उसके कमरे में राख के ढेर के रूप में पाया गया। अवशेष के रूप में मात्र रीढ़ की हड्डी से चिपका गुर्दा, खोपड़ी, कुहनी व काला जूता पहने एक पैर ही बचा था। आश्चर्यजनक बात यह थी कि चार फट वर्ग से बाहर कुछ भी नहीं जला था। न ही कोई लपटें उठी थी। घटना की जाँच पड़ताल करने वाले जासूस एवं अग्निविशेषज्ञ कोई भी संभावित परिणाम बतलाने में असमर्थ रहे।

ऐसे ही एक घटना होनोलूलू द्वीप की एक महिला मिसेसज वर्जीना के साथ 7 दिसंबर, 1958 को घटी। इसकी गवाही देने वाली थी उनकी दंडासन 75 वर्षीय यंग सिकविम। इनके अनुसार मिसेज वर्जीनिया अचानक नीली आग की लपटों से घिर गयी। जब तक यंगसिक कुछ कर पाती मिसेज वर्जीनिया राख में बदल गयी। इसी तरह डॉ. जेडरविंग बेंटली अपने मकान के तहखाने में 15 जून 1966 की रात्रि 9 बजे के लगभग राख के रूप में पाए गए। इसके सर्वप्रथम दर्शक गवाह थे डॉ. गासनेल, जो अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण सलाह लेने आए थे। आश्चर्यजनक बात यह थी कि डॉ. जेडरविंग की एक आधी आँग व घुटने के जोड़ नहीं जले थे। घटना के संदर्भ में एक अन्य विशेषज्ञ डॉ. ग्रेनोवल का कथन था कि मानव शरीर को राख में बदलने के लिए कम से कम 2200 डिग्री फारेनहाइट का तापमान 50 मिनट तक देना आवश्यक हो जाता है। किंतु घर में अधिकतम 500 डिग्री ही हो पाता है। एक अध्ययन

के अनुसार’ आटोकंबशन’ की अब तक इस तरह की 200 से अधिक घटनाएँ घट चुकी हैं।

चक्रवात की घटनाएँ भी यदाकदा होती रहती हैं, जो पेड़-पौधों से लेकर मकानों तक को उखाड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पटक देते हैं, लेकिन बवंडर यदि आग उगलने लगे तो? घटना 1869 के गर्मी के दिनों की है। एक अति उष्ण चक्रवात, एडशार्म के खेते में,, एटालैण्ड के पाँच मील दूर पास के जंगल से होता हुआ आया। यह साथ में छोटी टहनियों व पत्तों को भी अपनी चपेट में ले आया था। इनको जलाते हुए लपटों के साथ यह पाँच मील प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ रहा था। इसके रूप की विकरालता भी भयंकर होती जा रही थी। मार्ग में यह तीन घेड़ों को भी अपनी चपेट में ले चुका था। इसी के साथ वह चक्रवात हरे जंगल में जा घुसा। जंगल की हरी पत्तियों को झुलसाते हुए बवंडर ने अचानक अपना रुख बदल दिया। अब यह सीधा नदी के ऊपर बढ़ रहा था। साथ में भाप के स्तंभ को उठाता हुआ ऊपर बादलों को छोड़ रहा था। लगभग आधे मील के बाद यह अंत में लुप्त हो गया। लगभग 200 लोगों ने इस अद्भुत घटना को देखा। ऐसी बात नहीं कि ये घटनाएँ मात्र विदेश में ही घटती हैं अपने यहाँ नहीं। अपने यहाँ के टनाक्रमों का ब्यौरा विधिपूर्वक रखा जाए, तो ऐसेअजूबे यहाँ भी कोई कम नहीं हैं, विदेश में इन्हें प्रामाणिक ढंग से संकलित करने का एक क्रम बना हुआ है।

क्रोध में आग उगलने की कहावत तो सुनी जाती है, लेकिन इनसानों की जगह पर्वत जैसी जड़ संरचना भी यदि एक दूसरे पर आग के गोले दागने लगे तो कैसा लगेगा? ऐसी ही आश्चर्यजनक किंतु सत्य घटनाओं का उल्लेख- भू-वेत्ता एल्सवर्थ हंटिगटन ने जुलाई 1900 में ‘वेटर रिव्यू’ मासिक में किया। वे भू-सर्वेक्षण के लिए पर्वतीय क्षेत्र में गए थे। स्थानीय लोगों से उन्होंने सुना कि यूकरेट्स नदी के आरपार फेक्लूजेक पर्वत व जिओरेट पर्वत वर्ष में कई बार आग के गोले बरसाते हैं। हंटिगटन महोदय को पहले तो विश्वास नहीं हुआ। लेकिन जब यही बात उन्होंने 10-12 व्यक्तियों से 40 मील के क्षेत्र में अलग- अलग स्थानों पर सुनी तो उन्होंने इसकी स्वयं परीक्षा करने की ठानी। एक दिन सच्चाई को अपनी आँखों से देखकर वह प्रकृति के इस अनोखे आश्चर्य को देखकर हैरत में पड़ गए। वह कहने पर विवश हुए कि इस तरह की रहस्यमयी घटनाओं को देख-सुनकर जहाँ रोमाँच होता है, वहीं इस सत्य का बोध भी होता है कि मानवीय बुद्धि की सर्वज्ञता का क्रम निराधार है। अभी उसे बहुत कुछ जाना शेष है।

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