
कैसे करे काल के विभिन्न आयामों का बोध
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यों तो ‘समय ‘ एक सम्पूर्ण इकाई हैं उसका विभाजन संभव नहीं। वस्तु की तरह दो टुकड़ों में खण्ड नहीं किया जा सकता, कारण है कि वह एक सतत् प्रवाह है। समुद्र की विशाल जल राशि को खण्डित कर पाना मनुष्य के बूते की बात नहीं। उसी प्रकार काल प्रवाह अविभाज्य है, किन्तु सुविधानुसार उसे तीन भागो में बाँट दिया गया है। जो घटनाएँ अभी अभी घटित हुई है या हो रही है, उस भाग को वर्तमान मान लिया जाता है। जो घट चुकी उन्हें भूत की संज्ञा दे दी जाती है और जो घटनाक्रम अभी भविष्य के गर्भ में है एवं आने वाले काम में घटने वाले है।, उस हिस्से को भविष्य कहा जाता है।
उक्त विभाजन वस्तुतः घटनाओं के सापेक्ष है। मनुष्य यदि तनिक इससे ऊपर उठकर विचार करे तो, मालूम पड़ेगा कि घटनावलियां तो सदा ही घटती चली आई है। अनादि से आरम्भ होकर अनंतकाल तक वे चलती रहेगी। इस प्रकार उसका भी एक अविच्छिन्न प्रवाह है। समय चूँकि सूक्ष्म है, अतः आम प्रचलन में घटना प्रवाह को काल अभिव्यक्ति का सरल माध्यम मान लिया जाता है। जो घटनाएँ घट चुकी है वे कभी वर्तमान थी। इस दृष्टि से विचार किया जाय तो विदित होगा कि यहाँ सर्वत्र वर्तमान ही वर्तमान है।अवलोकन चूँकि एक केन्द्र बिन्दु खड़ा होकर इस पर विचार करता है, असतफ वह काल को खंड खंड में बाँट देता है। यदि वह बिन्दु स्थिर न होकर चलायमान हो, तब उसे प्रतीत होगा कि वास्तव में वह भूत भविष्य जैसा कुछ भी नहीं है, सब कुछ वर्तमान है। इसे दूसरे ढंग से यों समझ सकते हैं कि यदि किसी की दृष्टि इतनी विशाल, विस्तृत और व्यापक हो जाय तो उसके आगे कुछ भी अगोचर और अदृश्य न रहे, तो उससे प्रतीत होगा कि समस्त घटनावलियों उसके सामने ही घटित हो रही है। ऐसे में महावर्तमान के अतिरिक्त किसी भूत भविष्य की कोई गुँजाइश नहीं रहती। यह महावर्तमान की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में है। किसी प्रकार इससे ऊपर उठना संभव हो सके, तो काल एक प्रवाह के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, पर तब काल बोध कठिन हो जायेगा। यह अनुभूति असाधारण स्थिति और अवस्था में ही शक्य है। साधारण दिशा में तो हमें इसके तीन खंडमानकर ही चलना पड़ेगा।अब यह है कि सरलता के लिए यदि इसके तीन भाग स्वीकार भी किया जाएँ तो क्या सामान्य मनुष्य के लिए इन काल खंडों में प्रवेश संभव है? विज्ञान इसका उत्तर हाँ में देता है और कहता है कि समय में अनेक आयाम है। जब किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान से संबंधित समय के उच्च आयाम में व्यक्ति अनायास या प्रयासपूर्वक पहुँचता है।, तो वह उस व्यक्ति वस्तु अथवा स्थान में संबंधित भूत और भविष्य की बातें जान लेता है। दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्ति अतीत एवं भविष्य के गर्भ में प्रवेश कर जाता है। ऐसा इसलिए कि समय भूत वर्तमान और भविष्य के एक रैखिक क्रम में स्थित है। विज्ञान मनोवेत्ता के अनुसार समय का यह एक आयाम हुआ अपनी दूसरी भूमिका में भूत, वर्तमान और भविष्य साथ साथ रहते है। वैज्ञानिकों का इस संबंध में सुनिश्चित मत है कि इन अविज्ञात स्तरों तक न आयामों द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है, जो हमें सुविज्ञात है अर्थात् लम्बाई,ऊँचाई और गहराई। इन तक एक प्रारम्भिक बिन्दु द्वारा पहुँचा जा सकता है- एक ऐसा बिन्दु जिसमें स्थान तो हो, पर आयाम नहीं। इसे निम्न प्रकार से भी समझा जा सकता है। मान लिया कोई कणिका आकाश में गतिशील है, तो यह कणिका एक रेखा का निर्माण करेगी, जिसका एक मात्र आयाम होगा-लंबाई। यदि इस प्रकार कोई
रेखा आकाश से गुजारी जाए तो उससे लम्बाई और चौड़ाई का दो आयामीय तक विनिर्मित होगा। यदि ऐसे किसी तल को पुनः आकाश में परिभ्रमण कराया जाय, तो जिस आकृति की संरचना होती है, उसके लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई-तीन आयाम होंगे। कार्य उसके विपरीत ही सम्पन्न होगा। गति यदि उलटी कर दी जाय तो त्रिआयामी भूमिका से पुनः प्रारम्भिक बिन्दु तक पहुँचा जा सकता है विशेषज्ञों का कहना है कि किसी ऐसे वस्तु को, इसके तीन आयाम हो, अनुप्रस्थ काट काटी जाए तो उससे दो आयाम वाला तल प्राप्त किया जा सकता है फिर इस तल के अनुप्रस्थ काट से आयाम युक्त रेखा प्राप्त होगी। यदि आगे पुनः उसे अनुप्रस्थ के रूप में काटा जाय, तो जिस बिन्दु की उपलब्धि होगी, वह सर्वदा आयाम रहित कण मात्र ही होगा। यह कण क्या है और यह कैसे प्राप्त हुआ? इस पर यदि गहराई से विचार किया जाय तो इस निष्कर्ष पर सरलता से पहुँचा जा सकता है कि तीन डायमेंशनो वाला पदार्थ किसी चार आयामों वाली वस्तु की अनुप्रस्थ काट है जब ऐसी किसी त्रिआयामी वस्तु की एक विशिष्ट तरीके से, विशिष्ट दिशा में भ्रमण शील किया जाए, तो वह एक चार आयामों वाला पदार्थ का निमार्ण करेगी। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि किस प्रकार की वस्तु होगी, जिसकी अनुप्रस्थ काट में तीन डायमेंशन हो किन्तु उसे किसी विशिष्ट दिशा में चलाया जाए कि उससे चार प्रकार की भूमिकाओं का निर्माण हो? क्योंकि आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, दाँये-बाँये -इस प्रकार की गतियाँ के केवल वृहद आकृति का सृजन करती है। किसी नये आयाम का नहीं। इसके उत्तर में वैज्ञानिक कहते है कि चूँकि समयावधि एक नवीन भूमिका है, अतः तीन आयामों वाले पदार्थ का चौथा आयाम इसे माना जा सकता है।दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक त्रिआयामी पदार्थ चार आयामों वाला होता है और ऐसी सभी वस्तुओं को विवेकसंगत परिभाषा यही हो सकती है कि उनके दृश्य तीन ही आयाम है-लम्बाई, चौड़ाई और गहराई, जबकि समयावधि का चतुर्थ आयाम अदृश्य स्तर का बना रहता है। तो क्या इस तरह की अवस्था और वस्तु संभव है? विशेषज्ञ इसका उत्तर हाँ में देते हुए कहते है कि यह शक्य तो है पर केवल परिकल्पना स्तर पर ही, क्योंकि वास्तव में बिन्दु रेखा और तत्व का यथार्थ अस्तित्व सदा उसी रूप में बना नहीं रहता। किसी लाइन के जब वह गत्यात्मक अवस्था में आ जाय तो लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई से संबंधित हो सकता है। जैसा कि किसी तल के गतिमान बनाने पर लम्बाई, चौड़ाई के साथ साथ उसकी मोटाई भी आ उपस्थित होती है।पर यह सवाल शेष रह जाता है कि ऐसे किसी द्रव की गति क्या हो कि वह चतुर्थ आयाम वाले तत्व को जन्म दे? वैज्ञानिकों का इस संदर्भ में विचार है कि जब किसी वर्गाकार तल की ऊंचे आयाम में चलाया जाता है, तो उससे धन की उत्पत्ति होती है॥ ऐसे ही यदि उक्त धन को समय के आयाम में गति दी जाए तो उस आकृति का जन्म होगा, वह एक चार डायमेंशन वाली संरचना होगी। यहाँ समय के आयाम की गति का तात्पर्य भलीभाँति समझा लेना आवश्यक है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इसका अर्थ यह अनुभव दिशा की गति में है, न कि पार्श्व, उर्ध्व औरा अधोगतियों से। शंकालु हृदय में वहाँ यह संदेश पैदा हो सकता है कि कई ज्ञात गतियाँ है और अविज्ञात गतियों की संभावना विज्ञान जगत में प्रकट की जाती है। उदाहरण के लिए एक तो वह वेग हो सकता है, जो हर प्राणी और पदार्थ को पृथ्वी से मिलता है इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से वेगरहित होने के बावजूद वेगवान कहा जाता है। यह प्रच्छन्न गति है। इस तरह यह मानने में हर्ज नहीं है कि त्रिआयामी दृश्य एक यथार्थ वस्तु की कल्पना रूप में गति रहित अनुप्रस्थ काट है।, जिसका चौथा आयाम अवधि, पृथ्वी की उस दैनिक गति से अविच्छिन्न रूप में संलग्न है जो हर पृथ्वी वासी पदार्थ और प्राणी को उक्त ग्रह से मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त अन्य गतिविधियाँ है- पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण गति, सूर्य द्वारा किसी महासूर्य की परिक्रमा गति एवं अपनी आकाश गंगा द्वारा किसी अविज्ञान केन्द्र को प्रदक्षिणा गति। चूँकि प्रत्येक दृष्ट पदार्थ पर वह गतियाँ साथ साथ क्रियाशील है अतः यह कहा जा सकता है कि कि उन सभी को उक्त सारे आयाम उपलब्ध है। यह तो और है कि सामान्य स्थिति में उनकी अनुभूति नहीं हो पाती पर इतने से ही सत्य और तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है। इतना स्वीकार कर लेने के उपरान्त इस यथार्थ को मान लेने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। कि उपयुक्त गतियों और आयामों को समय के परिप्रेक्ष्य में जाना, समझा और अनुभव किया जा सकता है चूँकि समय संदर्भ के अतिरिक्त इनकी अनुभूति का और कोई उपाय नहीं। अस्तु इन सबको सरलता के लिए’समय ‘ का आयाम कहा जाता है। यहाँ यह जिज्ञासा हो जाती है कि अवधि यदि समय का एक पक्ष है, तो उसके दूसरे अन्य पहलू क्या होंगे? इस में इस संबंध में विषय के निष्णात विभिन्न प्रकार की संभावनाओं में से जिन संभव्यताओं के बारे में बताते है, वे है दृश्य-अदृश्य एवं परिवर्तन तथा पुनरावृत्ति की घटनाएँ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि समय के अगणित पहलुओं में से मात्र अवधि ही ऐसा पक्ष है, जो मानवी इंद्रियों का ग्राहय है।जब किसी वस्तु के संबंध में यह कहा जाता है तो उसका अभिप्राय हुआ कि हमें अकस्मात अपने अस्तित्व का पता चला। ऐसे ही किसी के तिरोभाव से उसकी अस्तित्व हीनता को बोध होता है। किन्तु जनम -मरण की मध्यावस्था इन्द्रियगम्य नहीं है॥ इसे इंद्रियों द्वारा जाना नहीं जा सकता। तो मात्र समयावधि परिप्रेक्ष्य ही वह संभव है। इसी प्रकार परिवर्तन भी देखा नहीं जा सकता। जो दिखाई पड़ता है वह परिवर्तन का समुच्चय होता है। सूर्योदय, सूर्यास्त, ऋतुओं का गुजरना, पौधों और बच्चो का बढ़ना आदि ऐसी घटनाएँ है जिन्हें हम देख नहीं पाते किन्तु वे घटित होती ही है इसलिए हमें परिकाल्पनिक माना जाता है और ऐसा स्वीकार किया जाता है कि समय के किसी अन्य आयाम में इनका वास्तविक अस्तित्व है, वैसे ही जैसे किसी परिकाल्पनिक त्रिआयामी वस्तु की यथार्थता सत्ता अवधि के आयाम में होती है अर्थात् उसी डायमेंशन में वह इंद्रियग्राह्य बन जाती है। इस दृष्टि से समय और उसके आयामों की महत्ता काफी बढ़ जाती है।यदि किसी व्यक्ति की इन आयामों में गति हो तो उसके लिए यह संभव हो जाता है कि जो सामान्य स्थिति और परिस्थिति में सर्वसाधारण के लिए असंभव स्तर का बना रहता है। फिर उसके लिए काल की विभाजन भित्ति समाप्त हो जाती है और सब कुछ वर्तमान बन जाता है अर्थात् वह किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान संबंधित चाहे किसी काल खंड में अप्रतिहत प्रवेश कर उससे संबंधित जानकारी उसी उससे उतनी ही आसानी से अर्जित की जा सकती है, जैसे की कोई व्यैिक्त अपने सम्मुख अपनी चीज के बारे में सरलता पूर्वक ज्ञानार्जन कर लेता है। किंतु वह शक्य इसी अवस्था में है।, जब चेतना अत्यंत परिष्कृत स्तर की हो। अपरिष्कृत चेतना तो हमें भौतिक पदार्थों की भी सही सही जानकारी कदाचित नहीं दे पाती है। विज्ञान जगत में जो निर्णय निष्कर्ष निकाले जाते है, उनमें अगर मगर की संभावना बनी रहती है। ऐसे में यह कैसे संभव है कि कि समय के जिस विगत और अनागत वाले हिस्से को जानने का कोई प्रत्यक्ष आधार न हो, उसे मात्र बौद्धिक कवायद के द्वारा जाना जाय। इससे कम में तो चौराहों के बाजीगर ही सर्वज्ञ होने का दावा कर सकते है और भूत भविष्य बता सकते है।, दूसरे नहीं। यही अध्यात्म की भूमिका आरम्भ हो सकती है ऋत में जो स्थित हो उसे ऋतम्भरा प्रज्ञा कहा गया है। यह वह उच्चस्तरीय आयाम है जहाँ मनुष्य चेतना जगत की गहराइयों में जाकर अनेकानेक मणिमुक्तक ढूंढ़कर ला सकता है। साधना विधान इसी जगत में प्रवेश की कुँजी हमें देता है। प्रज्ञा का जागरण होने, चेतना के महासागर में प्रवेश होने पर जो आत्मोपलब्धियाँ होती है, उनकी मात्र अनुभूतियाँ ही की जा सकती है। हम इसी स्तर पर पहुँचने का प्रयास तो करें।