
खण्ड प्रलय आ पहुँची, अब तो बदलें
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सर आर्थर सी क्लार्क एक विश्वविख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक और दूरद्रष्टा रहे हैं। उन्होंने विज्ञानसम्मत भविष्यविज्ञान की विधा फ्यूचरालॉजी पर कई किताबें लिखीं हैं। अपनी एक पुस्तक ‘सेंचरी सिण्ड्रोम’ का उल्लेख करते हुए पिछले दिनों कोलंबो में हुए एक विश्वस्तरीय एशियाई इलेक्ट्रानिक्स यूनियन (ए. ई. यू.) के सोलहवें सम्मेलन को संबोधित करते हुये उन्होंने कहा कि वे पहले भी अपनी पुस्तक में लिख चुके हैं वह अब भी यही कहते हैं कि कुछ अंतरिक्षीय घटनाक्रम ऐसे घट रहे हैं कि आगामी दो वर्ष बड़ी कठिनाई से कटेंगे। 1999 के विषय में उनका कहना है कि मौसम की विभीषिकाओं से प्रायः सारे विश्व को प्रभावित होना पड़ सकता है-साथ ही विश्वमानस को भारी अराजकता-अनिश्चितता के दौर से भी गुजरना पड़ सकता है। सम्मेलन में उनने यह कहा कि सन् 2000 ‘नाराज सूर्य का वर्ष’ होगा एवं इसकी षुरुवात अगस्त, 1999 में आ रहे खग्रास सूर्यग्रहण से हो जाएगी। इस भविष्यवाणी का आधार वे अंतरिक्षीय उपग्रहों से आ रहे आँकड़ों के साथ-साथ यह भी बताते हैं कि सन् 2000 में सूर्य के ग्यारहवें चक्कर का ग्यारहवाँ वर्ष होगा। सूर्य की गर्मी से वातावरण काफी गर्म हो जाएगा, जिससे हिमखंडों के पिघलने से जलप्रलय होने तक की संभावनाएं हैं।
श्री क्लार्क का मतह कि सौरकलंकों की बाढ़ एवं सौरज्वालाओं के प्रभाव से दुनिया भर में भारी तबाही व नुकसान हो सकता है एवं प्रलयंकारी दैवी-विभीषिकाओं के लिए सन् 2000 को ऐतिहासिक माना जाए। वे 1998 में सारे विश्व में ‘अलनीनो’ ‘लनीना’, के प्रभावों से हुए मौसम की बड़े व्यापक स्तर पर तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी को, विशेषतर ठण्डे माने जाने वाले यूरोपीय-कनाडा-अमेरिका के क्षेत्रों में, एक चेतावनी वाला चिह्न मानते हुए कहते हैं कि मनुष्य को इससे सबक लेना चाहिए। उपग्रहों के अध्ययन व अपनी अंतर्प्रज्ञा का विज्ञान से सुनियोजन कर भवितव्यता का आकलन करने वाले श्री क्लार्क ने 1999 में प्रकाशित अपनी उपर्युक्त पुस्तक में पहले ही ‘मिलेनियम बग’ का संकेत कर दिया था-यह यहाँ उल्लेखनीय है। ‘बायूट के’ नाम से चिर−परिचित समस्या पर प्रायः छह सौ अरब डॉलर खर्च होने जा रहे हैं एवं अभी तक समाधान नहीं मिला है कि कम्प्यूटर जनवरी, 2000 को काम करना बंद कर देंगे, तो क्या होगा? श्री क्लार्क का कहना है कि जब उन्होंने चेताया था, तभी से काम आरंभ हो गया होता तो काफी खर्च बचाकर समाधान खोजा सकता था।
श्री क्लार्क की उपर्युक्त भविष्यवाणी को यदि ‘नोस्ट्राडेमस 1999’ जिसके लेखक श्री स्टीफेन पाँलस हैं व जिनकी 1999 में संभावित विभीषिकाओं के संबंध में चर्चा विगत अंक में ‘कहीं हम महाविनाश की ओर तो नहीं बढ़ रहे।’ पृष्ठ 7, 8 अखण्ड ज्योति मार्च, 1999 शीर्षक लेख में की गयी थी, को सामने रखकर अध्ययन करें, तो लगता है कि इस महान भविष्यद्रष्टा ने तो यह आकलन आज से चार सौ वर्ष पूर्व ही कर लिया था। नोस्ट्राडेमस ने भी इन विभीषिकाओं की चर्चा सूर्य व अंतरिक्षीय परिस्थितियों से जोड़कर ही की है। नोस्ट्राडेमस पर बड़ा विषद अध्ययन कर सारी परिस्थितियों का आकलन कर अपना षोधप्रबंध लिखने वाले स्टीफेन पाँलस का कहना है कि भगवान करे वह न हो जो नोस्ट्राडेमस ने 1999 व सन् 2000 के लिए लिखा है। अगस्त 99 में आ रहा रहा सूर्यग्रहण सामान्य क्रम की तरह गुजर जाए, कोई उल्का आकर पृथ्वी से न टकराये एवं विश्वभर का पर्यावरण जो तेजी से बिगड़ा है, सुधर जाए। आशावादी स्तर पर सोचते हुए वे लिखते हैं कि भोज्यपदार्थों में खाद्यान्न-में हो रही तेती से कमी, समाज में बढ़ती हिंसा, तृतीय विश्व के देशों में युद्धोन्माद की प्रक्रिया का देखा जाना, अणु-आयुधों की भरमार, ग्रीनहाउस प्रभाव, पर्यावरण में विषैली गैसों का बढ़ते जाना, अमर्यादित प्रजनन से जनसंख्या विस्फोट, नैतिक पतन एवं राष्ट्रीय स्तर पर शासनतंत्रों की प्रायः सारे विश्व में असफलता क्या कम विभीषिकाएँ हैं, जिनसे हमें नहीं डरना चाहिए। कुछ भी हो लेखक की चिंता अपने स्तर पर सही हैं व जिस तरह नोस्ट्राडेमस की भविष्यवाणियों के साथ पिछली 4 शताब्दियों के घटनाक्रम जुड़े हैं, आगामी डेढ़-दो वर्षों का समय कुछ सही नहीं है-बड़ी अशुभ सींवनाओं-अप्रत्याशित घटनाक्रम से भरा हुआ प्रतीत होता है।
पुनः नोस्ट्राडेमस’ के बारे में और बताना चाहेंगे जो 1917 में प्रकाशित हुई थी। इसके लेखक हैं डेविड ओवासन। सेंचुरी बुक्स, लंदन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के कई संस्करण छप चुके हैं मात्र विगत डेढ़ वर्ष में। इससे ज्ञात होता है कि विश्वमानस आगत की भवितव्यता के विषय में कितना चिंतित है व जानने की जिज्ञासा रखता है। इस पुस्तक में कम्प्यूटर तकनीकी का सहारा लेकर पहली बार सारी भविष्यवाणियों का प्रमाणीकरण करने का प्रयास किया गया है। जहाँ इस पुस्तक में 1600 से 1900 तक की सारी भविष्यवाणियों का विज्ञान-सम्मत विश्लेषण है, वहीं पर इस दिव्यद्रष्टा मनीषी की सन् 2000 व इसके बाद की संभावित घटनाओं पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है। नोस्ट्राडेमस ने ग्रह-नक्षत्रों की, बृहस्पति व शनि की युति को सदी के प्रारंभ व अंत दोनों में पहले से पढ़कर अपने क्वाट्रेन 9/83 में इनसे जुड़े घटनाओं का विवरण अपने काव्य में किया है। उनके अनुसार जुलाई, 1999 से आरंभ होने वाले घटनाक्रम मई सन् 2000 तक चलेंगे एवं इनमें काफी तबाही होने की संभावना है। क्वाट्रेन 10/72 जो कि सर्वप्रसिद्ध है, में जुलाई, 99 में किसी अप्रत्याशित अंतरिक्षीय घटनाक्रम से धरती के प्रभावित होने का वर्णन है। यदि फ्रेंच में लिखी इस कविता की चतुष्पदी का अनुवाद किया जाए, तो कुछ इस प्रकार होगा-
समझ पाया हूँ - यह नये युग के अवतरण की वेला में, जिसमें दुर्बुद्धि और सद्बुद्धि के समर्थक विचारों में पारस्परिक युद्ध होगा, इस सीमा तक कि सींवतः महाविनाश समीप ही दिखने लगे, तब सद्बुद्धि के समर्थक विचारों की विजय होगी- भोगवाद के समर्थक नष्ट होंगे एवं चारों ओर सतयुग का प्रकाश फैल जाएगा, जिसकी अवधि वे सन् 2242 तक की बताते हैं। हो सकता है कि 1999 व 2000 की इस अवधि में कुछ रक्तपात भी हो, पारस्परिक तनाव भी चरम सीमा पर हो एवं यह वैश्विक स्तर पर हो तब भी जो कुछ होगा वह चौथी पंक्ति के अनुसार एक डेढ़ वर्ष में ही ठीक हो जाएगा, मात्र व्यक्ति को अपने विचारों को अंतरिक्षीय दुर्बुद्धि प्रधान विचारों के प्रभामंडल से बचाए रखना है एवं इसीसे वे उस महाविनाश की चपेट में आने से बच पाएँगे। इसके बाद अच्छा भविष्य आने वाला है एवं यह विशिष्ट युति आयी ही समस्त सभ्यताओं को एक कर संस्कृत बनाने, ऐसा समीक्षक श्री ओवासन का मंतव्य है।
प्रस्तुत चतुष्पदी जिसका ऊपर उल्लेख किया गया, फ्रेंच मूल में एक शब्द है, जो सबसे अंत में आया हैं- ‘बोनहेर’। इसमें बोन का अर्थ है शुभ-सद्भाव जगाने वाला तथा हेर का अर्थ है समय का देवता अर्थात् महाकाल।
चतुष्पदी में नोस्ट्राडेमस ने लिखा है कि शुभ सद्भाव जगाने वाला महाकाल जो समय पर शासन करता है-ही इस परिवर्तन को अंजाम देता है।
कितना सटीक विवेचन एक भविष्यवक्ता ने किया आज की परिस्थितियों का। आज जब सारा विश्व एक ऐसे मुहाने पर आ खड़ा हुआ है जहाँ महाविनाश सुनिश्चित दीखता है, मानवकृत कुबुद्धिजन्य प्रयासों से, भोगवादी लिप्सा से, सब दैवी विभीषिकाओं से-तब कलियुग का देवता महाकाल-महारुद्र-भगवान शिव ही विचारों को बदलने का कार्य करेंगे। परमपूज्य गुरुदेव ने यह तथ्य अपनी अखण्ड ज्योति पत्रिका में आज से प्रायः बत्तीस वर्ष पूर्व 1967 में ही लिख दिया था। जब उन्होंने महाकाल की युग-परिवर्तन प्रक्रिया के विस्तृत चरणों की घोषणा की थी। जब कोई परिवर्तन की बात नहीं सोच सकता था, तब उन्होंने लिखा था- “महाप्रलय करोड़ों वर्ष बाद होती है, पर युगपरिवर्तन के अवसर पर खंडप्रलय जैसा एक भयानक विस्फोट प्रायः होता रहता है। यह महाकाल के खंड नर्तन हैं, यों इन्हें भी ताँडव नृत्य ही कहा जाता है। संयम और नम्रता का पाठ पढ़कर सज्जनोचित प्रवृत्तियाँ मनुष्य अपनाए, ऐसा दिन वे लाने ही वाले हैं। वह शुभ दिन शीघ्र लाने वाले त्रिपुरारि-महाकाल आपकी जय हो! विजय हो।”