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आयु के अंतिम प्रहर में सम्राट को होश आया कि उन्होंने कभी यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि जीवन का उद्देश्य क्या है? उन्होंने राज्य भर के बुद्धिजीवियों, विचारकों, दार्शनिकों को आमंत्रित किया कि वे जीवन के उद्देश्यों के बारे में अपने विचार बतावें। विद्वानों ने सुना तो देश-देशांतर से ऊँटों पर, बैलगाड़ियों में भर-भरकर शास्त्र लाने लगे। महल में शास्त्रों का ढेर लगा दिया गया। राजा बोले-अब मेरे पास इतना समय कहाँ है कि इतने शास्त्र पढ़ सकूँ और जीवन का अर्थ खोज सकूँ। आप ही कृपाकर संक्षेप में बताइए कि जीवन का सही उद्देश्य क्या है? शास्त्रार्थ होता, बहसें चलती किंतु एकमत होकर विद्वान किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते थे। राजा ने सूचित कराया-आयु अब बहुत थोड़ी बची है, जो बताना हो शीघ्रता करें। उन्हें अशक्तता घेरे चली आ रही थी और चारपाई पकड़ चुके थे।
विद्वानों में से एक आया और राजा साहब से बोला-हम सबका एक मत है कि जीवन का सही उद्देश्य है-सत्कर्म। राजा ने संतोष की साँस ली कि देर से ही सही समझ तो लिया जीवन का सही उद्देश्य क्या था। सत्कर्म ही वे पंख हैं, जिनके सहारे मनुष्य स्वर्ग तक की ऊँची उड़ान उड़ सकता है।