
हम सब सनकी बनते जा रहे हैं।
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सनकें जब अपने पूरे उभार पर होती है तो वे अपने वाहन को इस कदर आवेश ग्रस्त कर देती है और विश्वासों की इतनी गहरी भूमिका में उतार देती है कि वह बेचारा सम्भव असम्भव का भी भेद भूल जाता है अपनी तर्क शक्ति गँवा बैठता है और जो कुछ भी उसे सनक ने मान बैठने के लिए कहा था उन्हीं पर पूरा विश्वास करने लगता।
सनकी की मनःस्थिति के अनुरूप वे कल्पनाएँ कई बार एक सचाई की तरह मस्तिष्क में जड़ जमाती है और धीरे−धीरे व्यक्ति गहरा विश्वास करने लगता है कि वस्तु स्थिति वही है जो उसके कल्पना क्षेत्र में उमड़−घुमड़ रही है। ऐसी स्थिति में उसके लिए कल्पना, कल्पना न रहकर एक सचाई बन जाती है और वह अपनी ही उड़ानों में मान्यताओं में मकड़ी की तरह बेतरह जकड़ जाता है। पूर्ण या आँशिक भावोन्माद की यह स्थिति कितने ही लोगों में देखी गई है। पागलखाने के डाक्टर ऐसे लोगों को पागल नहीं कह सकते क्योंकि अमुक विशिष्ठ सनक के अतिरिक्त अन्य बातों में वे साधारण लोगों की तरह सोचते और काम करते हैं यदि वे पागल होते हो सभी बातों में पागल होते। डाक्टर अधिक से अधिक उन्हें सनकी कह सकते हैं।
सनक का एक विचित्र उदाहरण देखिए। अमेरिका में एक बहुत ही सुसम्पन्न और सुशिक्षित व्यक्ति अंतर्ग्रहीय उड़ानों की कल्पना करते−करते सनक की इस स्थिति में जा पहुँचा जहाँ वह यह मान्यता बना बैठा कि वह शुक्र ग्रह के बारे में न केवल बहुत कुछ जानता भी है वरन् उस लोक की यात्रा तक कर आता है। वह शुक्र के राजकुमार का मित्र है ओर ऐसा अन्तरिक्ष यान बनाने की विधि जान चुका है जो अन्तर्ग्रही यात्राएँ बड़ी सरलता से और कम खर्च में कर सकें।
यह व्यक्ति दो करोड़पति कम्पनियों का अध्यक्ष था उम्र पचपन साल। नशेबाजी से बिलकुल दूर विवाहित, दो बच्चों का पिता, धार्मिक प्रकृति, नियमित रूप से गिरजा जाने वाला, निवासी वाशिंगटन का, नाम हेराल्ड जैसी बर्नी।
अन्तरिक्ष यात्राओं के सम्बन्ध में अति भावुकता पूर्वक एकाकी चिन्तन करते−करते उसने यह मान्यता बना ली कि वह दो बार शुक्र ग्रह की यात्रा कर चुका है− वहाँ के राजकुमार को अपना मित्र बना चुका है और ऐसी एक कम्पनी बनाने में उसका सहयोग प्राप्त कर चुका है जो उसके कल्पित ‘मैगनेटिक फ्लस मोडलेटर’ सिद्धान्त के अनुसार सस्ते, सरल और सुविधाजनक अन्तरिक्षयान बनाया करेगी। उसने इस कम्पनी का नाम रखा “प्रोपल्सन रिसर्च लेवोरेटरीज” बर्नी अपने को संसार का सर्व प्रथम शुक्र ग्रह यात्री मानता था और उसने अपनी दो यात्राओं का विवरण बताने वाली पुस्तक “शुक्र ग्रह में दो सप्ताह” भी लिखी वह 118 पृष्ठ की थी। उसकी सीमित प्रतियाँ टाइप की गई थी प्रेस में नहीं छपाई गई थीं। क्योंकि विषय ‘अत्यन्त गोपनीय था’ इस आविष्कार के आधार पर ‘अरबों खरबों की सम्पत्ति कमाई” जानी थी।
वर्नी अपनी सनक में पूरी तरह सो गया था। कल्पना और यथार्थता का अन्तर भुला देने वाली उसकी मनःस्थिति बन गई थी। उसने आवेश में अपने 169000 डालर बन गई थी। उसने आवेश में अपने 169000 डालर के शेयर बेच डाले। आश्चर्य यह कि जिस आत्मविश्वास के साथ बातें की उससे प्रभावित होकर अनेक सुसम्पन्न लोग उसकी बातों पर यकीन करने लगे और उसके शुक्र ग्रह अभियान में सम्मिलित हो गये उस कार्य के लिए इन लोगों ने भी अपना प्रचुर धन लगा दिया। सनक का स्वरूप इतना बड़ा और इतना योजनाबद्ध हो सकता है, इसका इतना आश्चर्यजनक उदाहरण अन्यत्र कदाचित् ही मिलेगा।
बर्नी की महिला सेक्रेटरी ‘एन्जेलिका’ पूरी तरह इन गतिविधियों पर विश्वास करती थी। उसे बेचारी को पता तक न था कि जिस प्रयोजन के लिए वह इतनी दौड़−धूप कर रही है, वह मात्र हवाई किला है, एक दिन बर्नी को और भी विचित्र सनक चढ़ी उसने ‘शुक्रग्रह से अपनी सेक्रेटरी को वहाँ के राजकुमार यूसीलस’ की ओर से फोन कराया कि इस ग्रह पर आकर बर्नी बीमार हो गये हैं और अपने साथियों के नाम अमुक सन्देश नोट कराते हैं जो उन तक पहुँचा दिया गया। “सेक्रेटरी ने वैसा ही किया। इसके बाद कुछ समय उपरान्त ही उसके मरने का समाचार आ गया।”
सेक्रेटरी ने उचित समझा कि अमेरिका का भाग्य बदल देने वाली इतनी बड़ी योजना को अधूरी न पड़ी रहने दे वरन् राष्ट्रपति को बता दे। बदहवासी में किन्तु पूरे आत्म−विश्वास के साथ ऐंजेलिका राष्ट्रपति आइजन हावर से मिली। बर्नी की दो शुक्र यात्राओं से लेकर उसका अन्तरिक्ष यान बनाने की योजना और उस लोक में जाने का पूरा विवरण बताया और सुझाव दिया कि वे स्वयं इस कार्य को हाथ में लें और आगे बढ़ायें।
राष्ट्रपति ने इस रोमांचक एवं विचित्र विवरण पर विश्वास न कर उनने सारा मामला गुप्त पुलिस के उच्च अधिकारियों को सौंप दिया। पुलिस ने गहरी छान−बीन की तो शुक्र पर मरा हुआ ‘बर्नी’ धरती पर ही जीवित अवस्था में अर्धविक्षिप्त स्थिति में पाया गया। वह अपने वतन से बहुत दूर एक साइवोर्ड बनाने वाले के यहाँ पेट भरने जितनी मजदूरी कर रहा था, भिखारियों जैसे फटे हाल में रहता हुआ पुलिस ने उसे पकड़ लिया। अदालत में उस पर झूठी अफवाहें फैलाने और धोखाधड़ी करने के अपराध में मुकदमा चलाया और इसके लिए अदालत ने उसे जेल की सजा भी सुना दी।
मानसिक रोगों में सनक का अपना स्थान है। यह रोग दिन−दिन बढ़ रहा है लोग तर्क शक्ति का उपयोग नहीं करते, विवेक पर जोर नहीं देते। मानसिक आलस्य और नशेबाजी का सम्मिश्रण मानसिक स्तर को इतना दुर्बल बना देता है कि उसमें सनकों के पलने की सम्भावना बढ़ती ही चली जाती हैं।
ब्रिटेन के अस्पतालों में अब मानसिक रोगों के शिकार व्यक्तियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं। इनमें न केवल प्रौढ़ व्यक्ति वरन् छोटे बच्चे भी शामिल है। बड़ी आयु के लोग चिन्ताओं, मानसिक दबावों अथवा नशेबाजी आदि कारणों से विक्षिप्त हो सकते हैं पर छोटे बच्चे क्यों इन रोगों के शिकार होते हैं इस सम्बन्ध में वहाँ बहुत अधिक चिन्ता की जा रही हैं। इस सम्बन्ध में सर सूलियन हक्सले के नेतृत्व में जो शोध आयोग बना उसने रिपोर्ट दी है कि पाँच में से एक मानसिक रोगी यह व्यथा अपने माँ−बाप से लेकर आता है। अर्थ विक्षिप्त और सनकी नर−नारी अपेक्षाकृत अधिक बच्चे उत्पन्न करते हैं और उन बालकों में वे बीमारियाँ जन्म से ही आती है जो आयु वृद्धि के साथ−साथ अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगती है।
शारीरिक और मानसिक उच्छृंखलता बरतने से विवेक बुद्धि खीजने लगती है और लगती है जब अपनी विवेचना और निष्कर्ष का कुछ उपयोग ही नहीं जो चाहा सो बरता वाली नीति चल रही है तो फिर उखाड़−पछाड़ करने का क्या लाभ? ऐसी थकी बुद्धि की पहरेदारी शिथिल पड़ने पर सनकों को फलने−फूलने का अवसर मिल जाता है और ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जिनमें से एक का वर्णन ऊपर दिया गया है।
गहराई से विचार करें तो हम में से अधिकाँश व्यक्ति अपने ढंग के सनकी है। जीवन का लक्ष्य, स्वरूप, उपभोग हम लगभग पूरी तरह भूल चुके हैं। उपलब्ध अद्भुत क्षमताओं, अनुपम परिस्थितियों और दिव्य अनुदानों का क्या सदुपयोग हो सकता है यह हमें तनिक भी नहीं सूझता। जो न सोचने योग्य है वह सोचते हैं और जो न करने योग्य है सो करते हैं, मिथ्या विडम्बनाओं में उलझे और मोद मनाते रहते हैं। अन्ततः पापों की गठरी सिर एक बाँध कर अन्धकारमय भविष्य के गर्त में गिरने के लिए चले जाते हैं। क्या यह सनकीपन नहीं है? आत्म−निरीक्षण करें, अपनी वर्तमान गति−विधियों पर विचार करें तो प्रतीत होगा कि अमेरिका के उपरोक्त सनकी से अपना भी सनक भरा जीवन क्रम किसी प्रकार कम नहीं हैं।
सनक की बढ़ती हुई बीमारी लोक व्यवहार और दृष्टिकोण निर्धारण के दोनों ही क्षेत्रों को अपने चंगुल में कसती चली जा रही है यह कम चिन्ता का विषय नहीं हैं।