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Magazine - Year 1975 - Version 2

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मानवी चेतना में सन्निहित दिव्य शक्तियाँ

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मानवी चेतना का मोटा उपभोग वस्तुओं के उपभोग और प्राणियों के साथ व्यवहार, कौशल के रूप में ही प्रतीत होता है, पर जैसे−जैसे रहस्यमय पर्दे उठते जा रहे हैं वैसे−वैसे सिद्ध होता जा रहा है कि इस स्थूल के भीतर कोई दिव्य चेतना होता जा रहा है कि इस स्थूल के भीतर कोई दिव्य चेतना लोक जगमगा रहा है और उसमें प्रवेश करके बहुमूल्य रत्न राशि ढूँढ़ लाने की क्षमता भी मनुष्य में विद्यमान हैं। मन को साधारणतः इच्छा, ज्ञान और क्रिया में संलग्न रखने वाली चेतना के रूप में जाना जाता रहा है, पर अब उसकी अतीन्द्रिय चेतना पर विश्वास किया जाने लगा है। ऐसे अगणित प्रमाण सामने आ रहे है जिनसे प्रतीत होता है कि हाड़−माँस को सोचने, बोलने वाला पिण्ड जो कर सकता है उससे कहीं अधिक परिधि मानवी चेतना की है। उसमें अति मानवी असाधारण शक्तियाँ भी सन्निहित हैं।

अमेरिका के टोरेन्टो टेलीविजन स्टूडियो में एक व्यक्ति की कल्पनाएँ मूर्तिमान रूप में किस प्रकार दिखाई देती हैं इस रहस्य के प्रामाणिक चित्र लिये गये। 49 वर्षीय ट्रक ड्राइवर थियोडर सेरिओंस का दावा था कि उसके विचार इतने स्पष्ट होते हैं कि उन्हें शायद चित्र रूप में भी उतारा जा सके। उपरोक्त प्रयोगशाला में उसे प्रस्तुत किया गया। इसके लिए कम्पनी में बना सील बन्द पोलारायड कैमरा खरीदा गया और फिल्म बनाने वाली कम्पनी से सीधे ही उसमें फिल्म भराई गई। यह कैमरा ऐसा है जो अपने आप ही एक मिनट में तैयार फोटो हाथ में रख देता है। यह प्रयोग उपकरण इसलिए ऐसी सावधानी के साथ प्रयुक्त किये गये कि किसी को यह सन्देह न रहे कि−किसी व्यक्ति विशेष की ख्याति के लिए कोई बाजीगरी की गई हैं। उपकरणों की ओर फोटोग्राफी की शुद्धता के लिए कई साक्षी भी साथ रखे गये।

थियोडर ने जो−जो कल्पनाएँ की, मस्तिष्क के सामने लगे कैमरे ने ठीक उन्हीं चित्रों को उतार दिया। इस विशिष्टता की चर्चा जब अधिक हुई तो कोलरेडो विश्व−विद्यालय ने उस व्यक्ति के सम्बन्ध में गहराई तक जाँच करने का निश्चय किया और इसके लिए डा0 आइसनवद के नेतृत्व में एक विशेष विभाग ही बना दिया जो न केवल इस चमत्कारी की वरन् उसके कारणों की भी जाँच करे। जाँच दो वर्ष तक चली और उसका निष्कर्ष इतना ही निकला कि उस व्यक्ति में निश्चित ही यह अद्भुत शक्ति हैं। उसके कारण नहीं जाने जा सके केवल कुछ सम्भावनाओं की चर्चा की गई।

यूरीगैलर को आरंभ में बाजीगर माना जाता था पीछे उसने अपनी शक्तियों को वैज्ञानिकों प्रयोग के लिए प्रस्तुत किया और उसके दावे सही निकले तो योरोप भर के पत्रों में उसकी चर्चा छपी। उसे प्रयोग प्रदर्शन के लिए योरोप भर में बुलाया गया। वह इच्छा शक्ति के चमत्कार दिखाता था। एक प्रदर्शन में उसने मजबूत अँगूठी के दो टुकड़े कर दिये। लंदन में उसने एक घड़ी को देखा जिसमें 4-45 बज रहे थे उसने दूर बैठकर घड़ी की सुइयां उलटी घुमाई और 3-12 पर रोकी। उसने दूर रखे चम्मच को बीच में से मोड़कर दुहरा कर दिया। म्युनिख प्रदर्शन तो उसने कमाल ही कर दिया सड़कों पर दौड़ती ट्रामों और मोटरों को उसने अपने संकल्प बल से रोक कर खड़ा कर दिया और वे जहाँ की तहाँ निस्तब्ध खड़ी रह गई।

इंग्लैंड के वायुयान इंजीनियर जे0 डन अपने सपने को एक प्रकार की भविष्यवाणी सिद्ध करते रहे। उनमें इस विलक्षणता की यथार्थता का पता लगाने के लिए उसे प्रस्तुत किया। उन्हें जो सपने आते थे उन्हें वे दूसरों को नोट कराते−लोग कौतूहलपूर्वक प्रतीक्षा करते और अन्ततः एक समय ऐसा आ जाता जब स्वप्नों को एक तथ्य रूप में सिद्ध करने वाली घड़ी सामने आ पहुँचती।

रूस में अतीन्द्रिय घटनाओं को जालसाजी और किंवदंती मात्र कहकर हँसी में उड़ाया जाता था, बीस वर्ष पूर्व प्रकाशित रूसी शब्दकोश में चमत्कारी की भरपूर खिल्ली उड़ाई गई थी। पर अब उस देश में ही सबसे अधिक दिलचस्पी इस दिशा में ली जा रही है और जो शोध निष्कर्ष सामने आ रहे हैं, उनसे वे लोग उसे तथ्य रूप में स्वीकार करने लगे हैं। वैज्ञानिकों की सभा में भेज पर रखी वस्तुओं को इच्छा शक्ति के आधार पर खींचने, धकेलने और इधर−उधर करने का सफल प्रदर्शन श्रीमती मिखाइलोबी ने किया तो सभी को यह मानने के लिए विवश होना पड़ा कि मनुष्य की संकल्प शक्ति में असामान्य बल हो सकता है।

‘टाइम’ पत्रिका ने रूप की उन तीन लड़कियों का विवरण विस्तारपूर्वक छापा था जो आँखों से पट्टी बाँधकर किसी भी वस्तु की आकृति और रंग बिना छुए बता देती थीं। उनमें से एक को घोर अन्धेरे में पुस्तक पढ़कर सुना देने का कमाल हासिल हैं इनके नाम हैं नाडियालोवानोवा, रोशाकुले शोवा, लेनाडिलजनोवा। एक अन्य रूसी महिला नेग्या मिखेलोवना की यह विशेषता है कि वह अपने संकल्प बल से चलती घड़ियों की चाल रोक देती है, उनकी गति में तेजी या मन्दता उत्पन्न कर देती है। रूस में बाजीगरी करके जनता को भ्रम में डालने की गुंजाइश नहीं हैं। वहाँ के जादूगरों को सबसे पहले यह घोषणा करनी पड़ती हैं कि यह सिर्फ धोखाधड़ी और हाथ की सफाई भर है। वहाँ अतीन्द्रिय शक्ति का दावा करने वाले को सर्व प्रथम वैज्ञानिकों की कठिन परीक्षा के लिए अपने को प्रस्तुत करना पड़ता है अन्यथा कठोर कारावास भुगतना पड़ता है।

परा मनोविज्ञान यह पता लगाने के लिए प्रयास कर रहा है कि अतीन्द्रिय क्षमता के स्रोत आखिर हैं कहाँ? संसार भर के प्रायः प्रत्येक देश में इस प्रकार की अगणित घटनाएँ अभी भी होती रहती हैं जिनसे मनुष्य में असामान्य क्षमताओं के होने का प्रमाण मिलता है। भूतकाल की चमत्कारी घटनाओं को किंवदंती कहा जा सकता है, पर जो सामने प्रत्यक्ष खड़ा हैं और अपनी सचाई को हर कसौटी पर कसे जाने का दावा प्रस्तुत कर रहा है उसे झुठलाया कैसे जाय? अस्तु मस्तिष्क विद्या की एक विशेष धारा पैरा साइकोलॉजी के अंतर्गत अतीन्द्रिय शक्ति सम्बन्धी खोजे सभी विकसित देशों में बड़े उत्साह के साथ चल रही हैं।

मनः शास्त्र के महानीषी डा.जोसेफ राइन ने सर्व प्रथम अतीन्द्रिय विज्ञान पर अपनी वैज्ञानिक आधार पर लिखी हुई पुस्तक एक्ट्रा सेन्सरी पर्सेरशन’ प्रकाशित कराई थी। तब से लेकर अब तक इस संदर्भ में शोधकार्य बहुत आगे चला गया है। डा. जोसेफ ने प्रायः 84 हजार घटनाओं की साक्षियों का विश्लेषण करके कुछ निष्कर्ष निकाले थे। उनने कहा है−‘बिना संचार साधनों की सहायता के एक मन दूसरे मन को प्रभावित कर सकता है। मन में पदार्थों को प्रभावित करने की सामर्थ्य मौजूद हैं। मनः शक्ति की लम्बी दौड़ में दूरी ताप, ऊँचाई, गहराई अथवा अन्य कोई भौतिक कारण व्यवधान उत्पन्न नहीं करते।’

रूसी परा मनोविज्ञानवेत्ता एल॰ एल॰ वेसिलियेव ने एलेक्ट्रो मैगनेटिज्म−एक्सरेंज आदि के व्यवधान उत्पन्न करके यह पता लगाने का प्रयत्न किया कि मन की दूरबोध शक्ति में उनके कारण कोई अड़चन उत्पन्न होती हैं या नहीं। पर पाया यही गया कि जिनमें यह शक्ति मौजूद हैं उनका कार्य प्रत्येक वैज्ञानिक बाधा के बावजूद यथावत् चलता रहता है। मन की क्षमता को कोई भौतिक शक्ति प्रभावित नहीं करती। इससे वे यह सोचने को बाध्य होते हैं कि मन की शक्ति कोई अभौतिक शक्ति हो सकती हैं।

अब विज्ञान के मूर्धन्य क्षेत्रों में यह सोचा जा रहा है कि ज्ञात पदार्थ भौतिकी से आगे कोई अविज्ञात अतिभौतिकी होनी चाहिए। तरंग याँत्रिकी, ऊर्जाणुवाद, सापेक्षवाद आदि सिद्धान्तों ने पदार्थ विज्ञान को असमंजस भरे एक ऐसे गतिरोध केन्द्र पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ से आगे की बात कुछ सूझ नहीं पड़ रही हैं। विज्ञान की भूतकालीन सरल व्याख्याओं से अब कुछ काम नहीं चल रहे हैं। वे बाल−बोध के लिए गढ़ी गई लाल बुझक्क कहानियों जैसी रह गई हैं। खोज की गहराई ने विज्ञान को उन मूल तथ्यों तक पहुँचा दिया है जहाँ से आगे क्या हो सकता है इस संदर्भ में कुछ भी सोच सकना सम्भव नहीं हो रहा हैं। इस असमंजस ने एक नई अतिभौतिकी के आविष्कार की सम्भावना को बहुत बल दिया हैं।

डा. जोसेफ राइन अपने ग्रन्थ ‘दि रीच आफ माइन्ड’ में इस सम्भावना के बीज छोड़े गये हैं कि−‘भविष्य में अध्यात्म को उच्चस्तरीय विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करना पड़ेगा और एक नई अतिभौतिकी का जन्म होगा।’

पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति आधार अब विज्ञानवेत्ताओं को एक विशिष्ट तत्व ‘ग्रैविटी’ के रूप में हाथ लगा है। यह ग्रैविटी प्रत्येक पिण्ड से निकलता है और उसकी आकर्षण शक्ति के स्तर की संरचना करता है। इसी के आधार पर एक ग्रह दूसरे की खींचता है और यह विश्व ब्रह्माण्ड एक व्यवस्थित सम्बन्ध शृंखला में जकड़ा हुआ हैं।

ग्रह−नक्षत्रों की तरह ही मनुष्य में भी एक विशिष्ठ विद्युत का प्रवाह निःसृत होता है। वह एक दूसरे को बाँधता है। इस प्रकार समस्त मनुष्य जाति का प्रत्येक सदस्य एक दूसरे के साथ अनजाने ही बँध हुआ हैं और जिन धागों को यह बन्धन कार्य करना पड़ता है वही एक से दूसरे तक उसकी सत्ता का भला−बुरा प्रभाव पहुँचाता है। एक व्यक्ति दूसरे के विचारों से अनायास ही परिचित और प्रभावित होता रहता है यह आगे की बात है कि वह प्रभाव कितना भारी−हलका था और उसे किस कदर, किसने, स्वीकार या अस्वीकार किया।

आइन्स्टीन ‘समग्र ज्ञान’ को सामान्य ज्ञान की परिधि से आगे की बात मानते थे वे कहते थे जिज्ञासा, प्रशिक्षण, चिन्तन एवं अनुभव के आधार पर जो जाना जाता है उतना ही ‘ज्ञान’ नहीं हैं वरन् चेतना का एक विलक्षण स्तर भी है जिसे अन्तर्ज्ञान कहा जा सकता है। संसार के महान आविष्कार इस अन्तर्ज्ञान प्रज्ञा के सहारे ही मस्तिष्क पर उतरे हैं। जिन बातों का कोई आधार न था उनकी सूझ अचानक कहाँ से उतरी? इसका उत्तर सहज ही नहीं दिया जा सकता, क्योंकि उसका कोई संगत एवं व्यवस्थित कारण नहीं हैं। रहस्यमय अनुभूतियाँ जिस प्रजा से प्रादुर्भूत होती है उन्हें अति मानवीय मानना पड़ेगा।

अध्यात्म शास्त्र में जिन पाँच कोशों की विवेचना की है वे भौतिक विज्ञान सम्मत भी। अन्नमय कोश को ‘मैटर’−प्राणमय कोश को ‘सेल’−मनोमय कोश को ‘माइण्ड’, विज्ञानमय कोश को ‘पर्सनालिटी’ और आनन्द मय कोश को−‘इण्ट्यूशन’ कहा जा सकता है।

अब तक विज्ञान मैटर के बारे में ही कुछ कहने लायक जानकारी प्राप्त कर रहा हैं। कुछ कदम ‘सेल’ और ‘माइण्ड’ के बारे में भी बढ़े हैं। पर्सनालिटी और ‘इंट्यूशन’ के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए अब वैज्ञानिकों को कटिबद्ध होना होगा। समुद्र जैसी अगाध सम्भावनाओं से युक्त मेरुदण्ड में छह चक्रों के अति महत्वपूर्ण रक्त भाण्डागार अपने भीतर विद्यमान है; यदि उन्हें ढूँढ़ा, कुरेदा जा सके तो भौतिक जगत में जो कुछ है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण विभूतियाँ करतलगत हो सकती हैं।

षट् चक्रों में से चार का अस्तित्व अब विज्ञान ने स्वीकार कर लिया है। मूलाधार चक्र−पैल्विक प्लेक्सस, मणिपूर−चक्र−सोलर प्लेक्सस, अनाहत चक्र, कार्डियल प्लेक्सस, विशुद्ध चक्र−फैरिजियल प्लेक्सस के रूप में जाने जा चुके हैं। इनके दृश्यमान स्वरूप की झाँकी कर लेने पर अब यह पता लगाया जाना शेष है कि शरीर संचालन की सामान्य भूमिका के अतिरिक्त इनकी अतीन्द्रिय गतिविधियाँ एवं क्षमताएँ क्या हो सकती हैं।

आशा की जानी चाहिए कि स्थूल जगत से जो चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त की जा सकी है उसकी तुलना में असंख्य गुनी दिव्य शक्तियाँ हमें अपनी अन्तः चेतना में सन्निहित मिलेंगी। उनका प्राप्त करना और सत्प्रयोजन के लिए प्रयुक्त कर सकना सम्भव हो सका तो निस्सन्देह मनुष्य, नर−शरीरधारी होते हुए भी सच्चे अर्थों में देव−दिव्य सत्ता सम्पन्न सिद्ध होकर रहेगा।

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