• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ​​​दो शब्द
    • भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
    • क्या यही हमारी राय है?
    • भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिये नरक सृजन करेगा
    • भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
    • अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
    • अध्यात्म की अनन्त शक्ति-सामर्थ्य
    • अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
    • आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
    • अध्यात्म—मानवीय प्रगति का आधार
    • अध्यात्म से मानव जीवन का चर्मोत्कर्ष
    • हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
    • आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
    • लौकिक सुखों का एक मात्र आधार
    • अध्यात्म ही है सब कुछ
    • आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
    • लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
    • अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
    • आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
    • आत्म—शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
    • आत्मोत्कर्ष-अध्यात्म की मूल प्रेरणा
    • आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान शिव
    • आद्य शक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए?
    • आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय
    • आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
    • अध्यात्म लक्ष्य की सर्वांगपूर्णता
    • अपने अतीत को भूलिये नहीं
    • महान अतीत को वापिस लाने का पुण्य प्रयत्न
    • लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ​​​दो शब्द
    • भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
    • क्या यही हमारी राय है?
    • भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिये नरक सृजन करेगा
    • भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
    • अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
    • अध्यात्म की अनन्त शक्ति-सामर्थ्य
    • अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
    • आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
    • अध्यात्म—मानवीय प्रगति का आधार
    • अध्यात्म से मानव जीवन का चर्मोत्कर्ष
    • हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
    • आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
    • लौकिक सुखों का एक मात्र आधार
    • अध्यात्म ही है सब कुछ
    • आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
    • लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
    • अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
    • आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
    • आत्म—शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
    • आत्मोत्कर्ष-अध्यात्म की मूल प्रेरणा
    • आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान शिव
    • आद्य शक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए?
    • आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय
    • आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
    • अध्यात्म लक्ष्य की सर्वांगपूर्णता
    • अपने अतीत को भूलिये नहीं
    • महान अतीत को वापिस लाने का पुण्य प्रयत्न
    • लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अपने अतीत को भूलिये नहीं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 26 28 Last
भारतीय धर्म, संस्कृति और सभ्यता का जिन्होंने अध्ययन, अनुभव एवं अवगाहन किया है, उसके मूल तक पहुंचे हैं, उन्होंने इसकी सार्वभौमिकता, विशालता तथा पवित्रता से इनकार नहीं किया। हमारा दर्शन सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रकाश है। उस प्रकाश का लाभ सभी जातियों ने पाया है। अपने ज्ञान, अपनी साधना और अपनी तपश्चर्या के लाभ हमने सारे संसार को बांट दिये हैं। उस अनुदान का लाभ सारा विश्व उठा रहा है किन्तु हमने तो अपने प्राचीन गौरव को ही भुला दिया। अपने आदर्शों से च्युत होकर अपनी सारी भौतिक विभूतियां एवं आध्यात्मिक सम्पदायें खोकर रख दीं। समय उन्हें फिर से जागृत करने का संदेश दे रहा है। वह युग आ गया है जब इस आवाहन को अनसुना कर टाल नहीं सकते।

हीरे की परख जौहरी को ही होती है। हम जिस अतीत की आज भूल कर बैठे हैं, उसके महत्व को पाश्चात्य मनीषियों ने, कला-पारखियों ने समझा और उसकी प्रशंसा की है। इतिहास में अनेकों वर्णन, विश्लेषण एवं विज्ञप्तियां भरी पड़ी हैं। उनका अध्ययन करने से आंखें खुल जाती हैं और अपने सही रूप का पता चल जाता है। प्रख्यात् जर्मन—दार्शनिक मैक्समूलर ने लिखा है—

‘‘यदि कोई मुझसे पूछे कि वह कौन—सा देश है जिसे प्रकृति ने सर्व सम्पन्न, शक्तिशाली एवं सुन्दर बनाया हे तो मेरा संकेत भारतवर्ष की ओर होगा। जिन्होंने प्लेटो और कान्ट के दर्शन का अध्ययन किया है उन्हें भी अपने मुख्यतम गुणों का विकास करने वाली, जीवन की सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं पर गहराई से सोच-विचार करने वाली भारतीय-संस्कृति के अध्ययन की जरूरत है। अपने जीवन को पूर्ण, अधिक विस्तृत और अधिक व्यापक बनाने के लिए भारतीय-विचार पर्याप्त हैं, न केवल इस जीवन के वरन् मनुष्य के अनन्त जीवन के पूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण की क्षमता केवल भारतवर्ष में है।’’

मैक्समूलर ने इन पंक्तियों में हमारी आध्यात्मिक शोधों की ओर संकेत किया है। इन तथ्यों का विस्तृत विश्लेषण, जिसकी अभी तक कोई थाह नहीं पा सका, वह सब हमारे वेदों में सम्पादित है। वेद धर्म के मूल आधार हैं। इनमें मनुष्य की आध्यात्मिक तथा भौतिक आवश्यकताओं के सभी विषयों का समावेश है। यह ज्ञान अन्त में अनेकों धाराओं में प्रवाहित होकर बहा जिससे न केवल यहां का आध्यात्मिक जीवन समृद्ध बना अपितु भौतिक सम्पन्नता भी अपने ही अनुकूल विशेषण लेकर प्रस्तुत हुई। ‘‘इण्डिया रिव्यू’’ में विद्वान अमरीकी लेखक मि. डेलमार ने लिखा है—

‘‘पश्चिमी चीजों को जिन बातों पर अभिमान है वे सब भारतवर्ष से आयी हैं। और फल-फूल, पेड़-पौधे तक जो इस समय यूरोप में पैदा होते हैं वे भारतवर्ष से ही लाकर यहां लगाये गये हैं। घोड़े, मलमल, रेशम, टीन, लोहा तथा सीसे का प्रचार भी योरोप में भारतवर्ष से ही हुआ है। इतना ही नहीं ज्योतिष, वर्धक, अंकगणित, चित्रकारी तथा कानून भी भारतवासियों ने ही योरोपियनों को सिखलाया है।’’

भारतवर्ष केवल हिन्दू धर्म का ही घर नहीं, उसमें संसार की सभ्यता का आदि भंडार है। यहां का जीवन सरल, महत्वपूर्ण तथा अति प्राचीन है। श्रद्धा और भक्ति, विश्वास और निश्चय से भरा हुआ यह अपना भारतवर्ष किसी समय ज्ञान विज्ञान का सम्राट बना हुआ था। यहां मनुष्य की शाश्वत आशायें और सान्त्वनाएं घनीभूत थीं। ऋषियों की गम्भीरता को हृदयंगम कर पाना भी कठिन है जिन्होंने सर्वप्रथम इस संसार में विचार और विवेक को जनम दिया था। वास्तविक जीवन के सिद्धान्तों का अनुसंधान इसी पवित्र भूमि में हुआ है। इसलिए सारे संसार ने इसे शीश झुकाया, इसकी अभ्यर्थना की है। एम. लुई जेकोलियट ने लिखा है—

‘‘ऐ प्राचीन भारत वसुन्धरे! मनुष्य जाति का पालन करने वाली, पोषणदायिनी तुझे प्रणाम है। शताब्दियों से चलने वाले आघात भी तेरी पवित्रता को नष्ट नहीं कर पाये। श्रद्धा, प्रेम, कला और विज्ञान को जन्म देने वाली भारत-भूमि को मेरा कोटिशः नमस्कार है।’’

भारतवर्ष का सम्मान और इसकी प्रतिष्ठा का मूल कारण यहां का धर्म है। इसे औरों ने सम्प्रदाय के रूप में भले ही देखा हो किन्तु वस्तुतः हिन्दू धर्म का मूल सिद्धान्त है मानवीय आत्मा के गौरव को प्राप्त करना और फिर उसी के अनुसार आचरण करना। शास्त्रकार ने लिखा है—

श्रूयता धर्म सर्वस्वं श्रुष्वा चाऽवधार्यताम् । आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।।

अर्थात् सुनो, धर्म का सार यह है कि दूसरों के साथ वैसा व्यवहार मत करो जैसा तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे प्रति किया जाय, इसको सुनो ही नहीं आचरण भी करो।’’ धर्म का यही स्वरूप सुखद व सर्व-हित में है। इसमें प्राणिमात्र के जीवन-रक्षा और सुखोपभोग की व्यावहारिक कल्पना है। अपने इसी रूप में हमारा अतीत उज्ज्वल, सुखी और शांतिमय रहा है। आज भी सारे विश्व को इसी की आवश्यकता है।

धर्म के जिस रूप की यहां व्याख्या की गई है वह आदर्श है किन्तु वह बिना किसी महान शक्ति के आश्रय में रहे हुए स्थिर नहीं रह सकता। मानवीय हितों की सुरक्षा की आज भी सारे संसार में व्यवस्था है किन्तु उसका परिपालन पूर्णतया कहीं भी नहीं होता है इससे सर्वत्र अस्त-व्यस्तता है। जो शक्तियां इन कार्यों के लिए नियुक्त भी हैं वे भी पूर्णतया विध्वंसक हैं। भारतीय धर्म की पूर्ण शक्ति समन्वय-युक्त है। इसलिए इसमें समाज के एक व्यक्ति की भी सुरक्षा रही है। वह शक्ति यहां की आध्यात्मिक शक्ति ही है। शक्ति का विकास गुण विकास पर भी है और उसका एक नितान्त वैज्ञानिक अंग भी है। ऐसी विशेषता केवल हमारे यहां ही है। ‘‘धर्म’’ के साथ ‘‘साधना’’ का शब्द जोड़ दिया जाता है, यह इसी शक्ति का ही बोधक है। आध्यात्मिक शक्तियों के विकास पर ही सम्पूर्ण प्राणियों के हित का सिद्धान्त निश्चयात्मक रूप से चल सकता है। बिना इसके सामाजिक जीवन की सुव्यवस्था का और कोई दूसरा ठोस आधार हो नहीं सकता। इसी रूप में हम अपने आपको पूर्ण शक्ति-सम्पन्न श्रेष्ठ और शिरोमणि सिद्ध कर सके हैं। विक्टर कोसिन ने इसी तथ्य का दावा करते हुए लिखा है—

‘‘जब हम भारत की साहित्यिक एवं दार्शनिक कृतियों का अवलोकन करते हैं तब हमें ऐसे अनेक गम्भीर सत्यों का पता चलता है, जहां पर पहुंच कर योरोपीय ज्ञान की शक्ति शिथिल पड़ जाती है। हमें भारतवर्ष के इसी तत्व के आगे अपने घुटने टेक देने पड़ते हैं।’’

आज प्रभाव से यद्यपि अब वैसी शक्ति और सामर्थ्य हममें नहीं रही जो हमारे अतीव का गौरव थी किन्तु अभी न तो वह ज्ञान ही नष्ट हुआ है और न विज्ञान ही पूर्णतया समाप्त हुआ है। हमारी वृत्तियों में जो भौतिकवादी निकम्मापन भर गया है उसी के कारण आज यह दुर्दशा हो रही है कि हमारा न तो व्यक्तिगत जीवन ही कुशल है न सामाजिक ढांचा ही व्यवस्थित है। जिन तथ्यों को विदेशियों ने समझ लिया है उन पर अभी हमारे अपने ही लोगों की गहरी दृष्टि नहीं। हमारे आदर्शों की गहराई में पहुंचने वाले व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा। उन्हें कुछ मिला ही है। अतः अपनी शक्ति का आभास होना पुनर्जागरण की इस पुण्य बेला में प्रत्येक दृष्टि से आवश्यक है। वे चरित्र और आदर्श जो यहां के मानस को संस्कार देते हैं, भले ही प्रसुप्त हों पर अभी भी जीवित हैं। यदि ऐसा न रहा होता तो हमारा धर्म, संस्कृति तथा सभ्यता कभी की टूटकर बिखर गई होती, जैसा कि और जातियों की संस्कृतियों के साथ हुआ। अपने दृढ़ सिद्धान्तों और पुष्ट संस्कारों के कारण ही वह आज भी अटूट और अडिग बनी हुई है। अब उन आदर्शों को पुनः जागृत करना होगा। खोये हुये अतीत को पुनः प्रतिष्ठित करना होगा, उसी से हमारा और समस्त संसार का कल्याण होगा।
First 26 28 Last


Other Version of this book



आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • ​​​दो शब्द
  • भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  • क्या यही हमारी राय है?
  • भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिये नरक सृजन करेगा
  • भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  • अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  • अध्यात्म की अनन्त शक्ति-सामर्थ्य
  • अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  • आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  • अध्यात्म—मानवीय प्रगति का आधार
  • अध्यात्म से मानव जीवन का चर्मोत्कर्ष
  • हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  • आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  • लौकिक सुखों का एक मात्र आधार
  • अध्यात्म ही है सब कुछ
  • आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  • लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  • अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  • आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  • आत्म—शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  • आत्मोत्कर्ष-अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  • आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान शिव
  • आद्य शक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए?
  • आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय
  • आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  • अध्यात्म लक्ष्य की सर्वांगपूर्णता
  • अपने अतीत को भूलिये नहीं
  • महान अतीत को वापिस लाने का पुण्य प्रयत्न
  • लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj