
आध्यात्मिक शक्ति के आधार
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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 15 सितम्बर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो,
आपको मैंने अपने जीवन और साधना के अनुभव सुनाये ताकि आप इन पर चल सकें। जिनको अनुभव होते हैं, वे दूसरों को बताते हैं। जो बन्दूक चलाते हैं, वही बताते हैं कि बन्दूक ऐसे चलाई जाती है। प्राणायाम, ड्रिल, व्यायाम इत्यादि लोग बताते हैं कि किस प्रकार होते हैं। लोग उसी के मुताबिक करने तथा चलने लगते हैं। आजकल भौतिक सहायता चाहने वाले लोगों की अधिकता है। मैंने लौकिक सहायता चाहने वाले लोगों को ही अधिक देखा है। मैंने काफी लौकिक सहायता की है। अब मैं चाहता हूं कि अध्यात्म की बातों को आप लोग जीवन में ढालें। लोग हमसे भौतिक चीजें मांगने आते हैं, हम कहते हैं भगवान पूरा करेगा। हम देना चाहते हैं अध्यात्म, पर लोगों का लेने के लिए मन नहीं करता। बस हमको बेटा दो, मकान दो, नौकरी दो। यही मांगते हैं।
एक मौलवी साहेब को कुछ दिनों के लिए बाहर जाना था। उनके स्थान पर एक मुल्ला की आवश्यकता थी, उन्होंने एक मुल्ला की व्यवस्था कराई और कहा—मैं पांच-छः दिन में वापस आऊंगा तब तक तुम यहीं रहना। नया मुल्ला वहां रहने लगा। उसको यहां खाने में अच्छा भोजन मिलने लगा, पहनने के लिए अच्छे कपड़े और दुनिया भर के सुख-आराम आदि मिलने लगे। उसको यहां बहुत आनन्द आया। उसने सोचा पुराना मौलवी आ जायेगा तो फिर मुझे यहां से जाना पड़ेगा। कोई युक्ति निकालनी चाहिए। कुछ दिन बाद मौलवी साहब आ गये। नये मुल्ला ने लोगों से कहा—ये जो मौलवी साहब हैं, ये बड़े चमत्कारी हैं, करामाती हैं। इनकी दाढ़ी का एक बाल आप डिब्बी में रख लें, तो मकान, नौकरी, सन्तान आदि की समस्या दूर हो जायेगी। यह बात तेजी से शहर में फैल गयी। पुराने मौलवी जी की दाढ़ी का बाल लेने के लिए हजारों लोग आ गये। धक्का-मुक्की करके कुछ लोगों ने जबरदस्ती पुराने मौलवी की दाढ़ी के बाल उखाड़ लिए। डर के मारे उसे वापस भागना पड़ा। वह मौलवी साहब लोगों को जीवन का लक्ष्य बताने आये थे, परन्तु भौतिक कामना वालों ने उससे वही पाना चाहा, जो सांसारिक है।
मैं आप लोगों को दिशा देना चाहता हूं, आपकी आत्मा को प्रकाश देना चाहता हूं। उससे आप अपना जीवन लक्ष्य पूरा कर सकते हैं और दूसरों को भी रास्ता बतला सकते हैं। अपनी कठिनाई भी दूर कर सकते हैं। आपकी कठिनाइयां भगवान राम, भगवान कृष्ण, हनुमानजी, गायत्री माता दूर नहीं करेंगी। अपनी कठिनाइयों को आप स्वयं ही हल कर सकें। आप स्वयं लाठी लेकर चलो, अपनी कठिनाइयां दूर करो। मेरा स्कूल खाली पड़ा है, कोई आता है, कोई नहीं आता। कोई आता है वह गंगा स्नान करके मुक्ति प्राप्त करना चाहता है। उनको छोटे खिलौने के साथ कुछ भी नहीं मिल सकता। मेरी दिशा मेरा रास्ता अलग हैं, परन्तु आप तो थोड़ी सी पूजा करके चाहते हैं कि बड़ा-सा जखीरा मिल जाये। आज आपको और बातें सुना रहा हूं। कल मैंने बताया था कि मेरे गुरु कोठरी में आये थे। गुरु वह होता है, जो शिष्य को काम करने की शक्ति देता है। मैं गुरु को कहां खोजता? गुरु कहां है? मेरे गुरु मेरी तलाश करने आये और मुझसे खुलकर बातें करने लगे। मैंने गुरु से कहा—आप एक बात बतलाइये कि आप मेरे पास ही क्यों आये, औरों के पास क्यों नहीं गये। गुरु ने कहा—हमारे पास कमाई की पूंजी है, हम तलाश करते हैं कि कोई इसके योग्य है क्या? हमने आपको देखा और पाया कि आप ही इसके लिए सर्वथा योग्य हैं। हमें आपकी जरूरत है। आप जैसों की आवश्यकता है। मेरे पास गाय की तरह थनों में दूध भरा पड़ा है। मैं किसको पिलाऊं? हम चाहते हैं, अपनी धरोहर को, कमाई को किसी को दें? हम सिद्ध पुरुष देखते रहते हैं। कहीं फूल खिला है क्या? गुरु ने कहा—तेरा दृष्टिकोण ऊंचा है, जिसका दृष्टिकोण नहीं बदला वह कितनी ही उपासना करें। उनके पास हम नहीं जाते। जिसने पात्रता विकसित की है। उनको गुरु मिल जाता है। फूल, मिठाई, माला, धन से गुरु नहीं मिलता। आप अपना परिष्कार करना चाहते हैं, तो आपको अपना आत्म निरीक्षण करना चाहिए। समाज की सेवा करनी चाहिए। ध्रुव, प्रहलाद ने भगवान की बात मानी, उनको भगवान मिला। आप छोटी-सी चीजों से भगवान को खरीदना चाहते हैं। भगवान चौबीसों घण्टे आपको पुकारता रहता है। आपने उनकी आवाज नहीं सुनी। माला जपने का मतलब है। भगवान को पाने का अभ्यास करना। परन्तु आप तो सोचते हैं तीन माला जप किया है, इसका क्या फल मिलेगा? समस्यायें जीवन में कहां हैं? उसे हमने समझ रखा है। आत्मबल बढ़ाना चाहिए। जो आत्मा को बलवान बनाता है, वह भक्त है। समस्याओं के समाधान के लिए आत्मबल बढ़ाना चाहिए। आत्मा से आत्मा की सेवा होती है। शरीर से शरीर की।
हमने गंगोत्री के पास एक महात्मा का घर देखा उसके पास सारी भौतिक चीजें थीं। मैं घर छोड़ने को ही माया छोड़ना नहीं कहता। माया तो कहीं दिखाई दे और बांध सकती है। आसक्ति नहीं होनी चाहिए। उस महात्मा ने एक काम किया था, वह है—अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन। आदमी का दृष्टिकोण बदल जाता है, तो बड़ा आनन्द आता है। आप कीर्तन करते रहे, हनुमान चालीसा पढ़ते रहे, परन्तु आपने कभी अपनी मौत को देखा है? अगर आपको अपनी मौत की याद आई होती तो आपके विचार बदलने लगते। आपने अपना हृदय परिवर्तन नहीं किया। अपनी स्त्री को ऐसा मौका नहीं देना चाहिए कि वह कहे मेरा पति मुझसे जीवन भर लड़ता रहा।
अपना दृष्टिकोण बदलकर कभी आपने यह नहीं सोचा कि पड़ोसी पर, बीबी-बच्चों पर क्रोध क्यों आया? अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए। सबके अन्दर हम अपने को देखें तो दूसरों को पीटने की हिम्मत क्यों होगी? अगर आप अपने विचार करने की शैली बदल डालें तो माला से भगवान को पाया जा सकता है। हम भगवान के बड़े पुत्र हैं। भगवान के बेटे को किस प्रकार रहना चाहिए। व्यवहार कैसा करना चाहिए? हमें ऐसा काम करना चाहिए कि भगवान का बगीचा खूबसूरत बने, नाक, कान, मुंह नहीं बदलते, केवल विचार ही बदलते हैं। भावनायें बदल जाती हैं तो मनुष्य देवता जैसा बन जाता है। जब विचार बदलते हैं, तो व्यक्ति सामान्य से असामान्य हो जाता है। एक जुलाहे ने अपने विचार बदले, तो वह जुलाहे का कर्म करते रहकर भी संत हो गया। नाम आप जानते हैं—संत कबीर। जूता बनाने वाले एक व्यक्ति ने अपने विचार करने की शैली बदली, तो वह संत रैदास कहलाया। कुछ खाने की भगवान की कोई इच्छा नहीं है। हमें भगवान के कानून के मुताबिक रहना होगा। भगवान की उन्नति फायदे-कानून में छिपी है। भगवान नारियल का भूखा नहीं है। भगवान आन्तरिक दृष्टिकोण बदलने से खुश होता है।
मेरी आंखों में सबके प्रति प्रेम है। मैंने भगवान को माला आरती से नहीं पाया, मैंने तो अपने खयालों को बदलकर सबके अन्दर भगवान को देखा है। मैं हर आदमी में भरत-लक्ष्मण को देखता हूं। दृष्टिकोण को बदलना ही अध्यात्म है। दृष्टिकोण को बदलने की हिम्मत पैदा करें और अपने विचारों को बदलें, अपने व्यवहार को बदलें और उत्कृष्ट जीवन जीयें, तब आप दूसरों को भी बदल सकते हैं।
देवियो और भाइयो,
आपको मैंने अपने जीवन और साधना के अनुभव सुनाये ताकि आप इन पर चल सकें। जिनको अनुभव होते हैं, वे दूसरों को बताते हैं। जो बन्दूक चलाते हैं, वही बताते हैं कि बन्दूक ऐसे चलाई जाती है। प्राणायाम, ड्रिल, व्यायाम इत्यादि लोग बताते हैं कि किस प्रकार होते हैं। लोग उसी के मुताबिक करने तथा चलने लगते हैं। आजकल भौतिक सहायता चाहने वाले लोगों की अधिकता है। मैंने लौकिक सहायता चाहने वाले लोगों को ही अधिक देखा है। मैंने काफी लौकिक सहायता की है। अब मैं चाहता हूं कि अध्यात्म की बातों को आप लोग जीवन में ढालें। लोग हमसे भौतिक चीजें मांगने आते हैं, हम कहते हैं भगवान पूरा करेगा। हम देना चाहते हैं अध्यात्म, पर लोगों का लेने के लिए मन नहीं करता। बस हमको बेटा दो, मकान दो, नौकरी दो। यही मांगते हैं।
एक मौलवी साहेब को कुछ दिनों के लिए बाहर जाना था। उनके स्थान पर एक मुल्ला की आवश्यकता थी, उन्होंने एक मुल्ला की व्यवस्था कराई और कहा—मैं पांच-छः दिन में वापस आऊंगा तब तक तुम यहीं रहना। नया मुल्ला वहां रहने लगा। उसको यहां खाने में अच्छा भोजन मिलने लगा, पहनने के लिए अच्छे कपड़े और दुनिया भर के सुख-आराम आदि मिलने लगे। उसको यहां बहुत आनन्द आया। उसने सोचा पुराना मौलवी आ जायेगा तो फिर मुझे यहां से जाना पड़ेगा। कोई युक्ति निकालनी चाहिए। कुछ दिन बाद मौलवी साहब आ गये। नये मुल्ला ने लोगों से कहा—ये जो मौलवी साहब हैं, ये बड़े चमत्कारी हैं, करामाती हैं। इनकी दाढ़ी का एक बाल आप डिब्बी में रख लें, तो मकान, नौकरी, सन्तान आदि की समस्या दूर हो जायेगी। यह बात तेजी से शहर में फैल गयी। पुराने मौलवी जी की दाढ़ी का बाल लेने के लिए हजारों लोग आ गये। धक्का-मुक्की करके कुछ लोगों ने जबरदस्ती पुराने मौलवी की दाढ़ी के बाल उखाड़ लिए। डर के मारे उसे वापस भागना पड़ा। वह मौलवी साहब लोगों को जीवन का लक्ष्य बताने आये थे, परन्तु भौतिक कामना वालों ने उससे वही पाना चाहा, जो सांसारिक है।
मैं आप लोगों को दिशा देना चाहता हूं, आपकी आत्मा को प्रकाश देना चाहता हूं। उससे आप अपना जीवन लक्ष्य पूरा कर सकते हैं और दूसरों को भी रास्ता बतला सकते हैं। अपनी कठिनाई भी दूर कर सकते हैं। आपकी कठिनाइयां भगवान राम, भगवान कृष्ण, हनुमानजी, गायत्री माता दूर नहीं करेंगी। अपनी कठिनाइयों को आप स्वयं ही हल कर सकें। आप स्वयं लाठी लेकर चलो, अपनी कठिनाइयां दूर करो। मेरा स्कूल खाली पड़ा है, कोई आता है, कोई नहीं आता। कोई आता है वह गंगा स्नान करके मुक्ति प्राप्त करना चाहता है। उनको छोटे खिलौने के साथ कुछ भी नहीं मिल सकता। मेरी दिशा मेरा रास्ता अलग हैं, परन्तु आप तो थोड़ी सी पूजा करके चाहते हैं कि बड़ा-सा जखीरा मिल जाये। आज आपको और बातें सुना रहा हूं। कल मैंने बताया था कि मेरे गुरु कोठरी में आये थे। गुरु वह होता है, जो शिष्य को काम करने की शक्ति देता है। मैं गुरु को कहां खोजता? गुरु कहां है? मेरे गुरु मेरी तलाश करने आये और मुझसे खुलकर बातें करने लगे। मैंने गुरु से कहा—आप एक बात बतलाइये कि आप मेरे पास ही क्यों आये, औरों के पास क्यों नहीं गये। गुरु ने कहा—हमारे पास कमाई की पूंजी है, हम तलाश करते हैं कि कोई इसके योग्य है क्या? हमने आपको देखा और पाया कि आप ही इसके लिए सर्वथा योग्य हैं। हमें आपकी जरूरत है। आप जैसों की आवश्यकता है। मेरे पास गाय की तरह थनों में दूध भरा पड़ा है। मैं किसको पिलाऊं? हम चाहते हैं, अपनी धरोहर को, कमाई को किसी को दें? हम सिद्ध पुरुष देखते रहते हैं। कहीं फूल खिला है क्या? गुरु ने कहा—तेरा दृष्टिकोण ऊंचा है, जिसका दृष्टिकोण नहीं बदला वह कितनी ही उपासना करें। उनके पास हम नहीं जाते। जिसने पात्रता विकसित की है। उनको गुरु मिल जाता है। फूल, मिठाई, माला, धन से गुरु नहीं मिलता। आप अपना परिष्कार करना चाहते हैं, तो आपको अपना आत्म निरीक्षण करना चाहिए। समाज की सेवा करनी चाहिए। ध्रुव, प्रहलाद ने भगवान की बात मानी, उनको भगवान मिला। आप छोटी-सी चीजों से भगवान को खरीदना चाहते हैं। भगवान चौबीसों घण्टे आपको पुकारता रहता है। आपने उनकी आवाज नहीं सुनी। माला जपने का मतलब है। भगवान को पाने का अभ्यास करना। परन्तु आप तो सोचते हैं तीन माला जप किया है, इसका क्या फल मिलेगा? समस्यायें जीवन में कहां हैं? उसे हमने समझ रखा है। आत्मबल बढ़ाना चाहिए। जो आत्मा को बलवान बनाता है, वह भक्त है। समस्याओं के समाधान के लिए आत्मबल बढ़ाना चाहिए। आत्मा से आत्मा की सेवा होती है। शरीर से शरीर की।
हमने गंगोत्री के पास एक महात्मा का घर देखा उसके पास सारी भौतिक चीजें थीं। मैं घर छोड़ने को ही माया छोड़ना नहीं कहता। माया तो कहीं दिखाई दे और बांध सकती है। आसक्ति नहीं होनी चाहिए। उस महात्मा ने एक काम किया था, वह है—अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन। आदमी का दृष्टिकोण बदल जाता है, तो बड़ा आनन्द आता है। आप कीर्तन करते रहे, हनुमान चालीसा पढ़ते रहे, परन्तु आपने कभी अपनी मौत को देखा है? अगर आपको अपनी मौत की याद आई होती तो आपके विचार बदलने लगते। आपने अपना हृदय परिवर्तन नहीं किया। अपनी स्त्री को ऐसा मौका नहीं देना चाहिए कि वह कहे मेरा पति मुझसे जीवन भर लड़ता रहा।
अपना दृष्टिकोण बदलकर कभी आपने यह नहीं सोचा कि पड़ोसी पर, बीबी-बच्चों पर क्रोध क्यों आया? अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए। सबके अन्दर हम अपने को देखें तो दूसरों को पीटने की हिम्मत क्यों होगी? अगर आप अपने विचार करने की शैली बदल डालें तो माला से भगवान को पाया जा सकता है। हम भगवान के बड़े पुत्र हैं। भगवान के बेटे को किस प्रकार रहना चाहिए। व्यवहार कैसा करना चाहिए? हमें ऐसा काम करना चाहिए कि भगवान का बगीचा खूबसूरत बने, नाक, कान, मुंह नहीं बदलते, केवल विचार ही बदलते हैं। भावनायें बदल जाती हैं तो मनुष्य देवता जैसा बन जाता है। जब विचार बदलते हैं, तो व्यक्ति सामान्य से असामान्य हो जाता है। एक जुलाहे ने अपने विचार बदले, तो वह जुलाहे का कर्म करते रहकर भी संत हो गया। नाम आप जानते हैं—संत कबीर। जूता बनाने वाले एक व्यक्ति ने अपने विचार करने की शैली बदली, तो वह संत रैदास कहलाया। कुछ खाने की भगवान की कोई इच्छा नहीं है। हमें भगवान के कानून के मुताबिक रहना होगा। भगवान की उन्नति फायदे-कानून में छिपी है। भगवान नारियल का भूखा नहीं है। भगवान आन्तरिक दृष्टिकोण बदलने से खुश होता है।
मेरी आंखों में सबके प्रति प्रेम है। मैंने भगवान को माला आरती से नहीं पाया, मैंने तो अपने खयालों को बदलकर सबके अन्दर भगवान को देखा है। मैं हर आदमी में भरत-लक्ष्मण को देखता हूं। दृष्टिकोण को बदलना ही अध्यात्म है। दृष्टिकोण को बदलने की हिम्मत पैदा करें और अपने विचारों को बदलें, अपने व्यवहार को बदलें और उत्कृष्ट जीवन जीयें, तब आप दूसरों को भी बदल सकते हैं।