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Books - धर्म चेतना का जागरण और आह्वान

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


फूल खिलायें तो अनुग्रह आये

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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 16 सितम्बर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो,
जिसका मन लोभ, मोह में जितना फंसा हुआ है, वह भगवान से उतना ही दूर है। गंगा नहाने वाले, रामेश्वरम् जाने वाले, रोज आरती उतारने वाले, पूजा करने वाले के मन में, विचार में बदलाव नहीं आया, क्योंकि उन्होंने साधना नहीं की। मैं उपासना के महत्व को कम क्यों बताऊं? मैंने सारे जीवन उपासना की है, उपासना से अनुभव सीखा है। जिनने अपने विचार नहीं बदले, अपने को नहीं सुधारा, वे भजन करते रहे पर उन्होंने भगवान को नहीं जाना। छप्पन लाख बाबाजी हैं, वे रात-दिन भजन करते रहे, परन्तु उनके विचारों में जरा भी फर्क नहीं आया क्योंकि वे केवल उपासना करते हैं। उपासना के साथ साधना भी करनी चाहिए। जो अपने बारे में जानकारी प्राप्त कर लेता है, उसकी आत्मोन्नति का द्वार खुल जाता है। वही व्यक्ति आत्मा की तरफ बढ़ सकता है। अरे लोगों अपने बारे में सोचो! विचार करो!!
नशे में शराबी के हाथ-पांव लड़खड़ाते हैं। बोली लड़खड़ा जाती है। शराबी की हालत ही कुछ और ही होती है। आध्यात्मिकता भी एक नशा है। इसमें व्यक्ति के काम करने का तरीका, चलने का तरीका बदल जाता है, जो सामान्य लोगों से अलग होता है। आप अपने विचार करने की शैली को बदल डालना, तभी भगवान मिलेगा। मेरा फूल खिल गया है। आपका फूल नहीं खिला क्योंकि आपने विचार नहीं किया कि आप कौन हैं? क्यों आये हैं? इस पर विचार किया होता, तो आप भगवान को अवश्य पाते परन्तु आपने तो शरीर, मकान और रुपये का ही विचार किया। इसीलिए फूल नहीं खिला, तो भगवान कहां बैठेगा। फूल खिलता है तो भौंरा उस पर आकर बिना बुलाये बैठ जाता है।
भूले हुए आदमी को सिखाने के लिए, याद करने के लिए पूजा-पाठ बतलाया जाता है। पुजारी भगवान को भोजन कराने का, कपड़ा पहनाने का, नहलाने का काम करता है, परन्तु वह जैसे का तैसा ही रहा। भगवान से सम्पर्क नहीं हुआ तो क्या फायदा? जो व्यक्ति इस संसार में ठीक प्रकार से नहीं रह सकता, उसे भला भगवान वैकुण्ठ में रहने देंगे। इस संसार में जिसने ठीक तरह जीवन नहीं जिया, ठीक व्यवहार नहीं किया, वे वैकुण्ठ में जायेंगे, तो वहां भी गन्दगी फैलायेंगे, मुकदमा चलायेंगे, एक-दूसरे की चुगली करेंगे। ऐसे व्यक्तियों को अगर स्वर्ग में भेज भी दें तो वे वहां चन्द्रमा-सूर्य में झगड़ा करा देंगे क्योंकि जीवन भर चुगली करने का, चापलूसी का अभ्यास जो रहा है।
वैकुण्ठ में जाने के लिए पहले तैयारी करनी पड़ती है। गन्दे जीवन वाले को तो वैकुण्ठ से मार-मार कर निकाल दिया जायेगा। जिसने उत्कृष्ट जीवन, शुद्ध जीवन, पवित्र जीवन जीया है, वही वैकुण्ठ जा सकता है। जो सोचता है, तंगी आवेगी तो भी प्रसन्न रहूंगा। ऊंचा जीवन जीऊंगा, मैं कीड़ा-मकोड़ा नहीं हूं, मैं तो मनुष्य हूं। भगवान का बड़ा बेटा हूं, मुझे अपने परमपिता की मर्यादाओं में रहकर जीना चाहिए। ऐसा व्यक्ति भगवान को प्राप्त करेगा।
मेरे गुरु ने मुझसे कहा—बेटा। तुमने फूल खिलाया और तुम्हारा गुरु आ गया। आप हमेशा शिकायत करते हैं—भगवान हमें दर्शन क्यों नहीं देते? हमारे दुःख दूर क्यों नहीं करते? आपका फूल खिला नहीं तो भगवान कहां से आयेगा? मुझसे गुरु ने कहा—तुम्हारा फूल खिला और मैं आ गया। तब मैंने सोचा कि मैं बड़े बाप का बेटा हूं, उसकी शान गिरने नहीं दूंगा। शानदार जीवन जीऊंगा। एक बार गांधी जी का बेटा शराब पीकर रास्ते से जाता पकड़ा गया, तब वह सारे देश में चर्चा का विषय बन गया क्योंकि वह गांधीजी का बेटा था। सोचिये जरा! वह गांधीजी का बेटा नहीं होता तो क्या उसकी चर्चा होती। वैसे भी रोज कितने ही लोग सड़क पर शराब पीकर झूमते, ऊधम मचाते हुए पकड़े जाते हैं उनकी चर्चा कहां होती है? गांधीजी के बेटे की चर्चा इसलिए हुई कि वह एक बड़े महात्मा का पुत्र था। उस महात्मा की दुनिया भर में प्रतिष्ठा थी और उनके बेटे ने शराब पी और पीकर ऊधम मचाया, तो बाप की शान में बट्टा लगा। सोचने के लिए मैं भगवान का बेटा हूं और भगवान का बेटा बुरे काम करे, खाने, पीने, मकान और बच्चों के लिए ही जिये, सिनेमा देखता रहे, तो भगवान की शान में बट्टा लगेगा या नहीं।
बच्चे को चाहिए कि पिता की शान रखें। मैं आप लोगों की तरह खाता हूं, सोता हूं, रहता हूं परन्तु मेरा सोचने का तरीका अलग है। गुलीवर एक बार बौनों के देश में पहुंचा। वहां के लोग उसको देखकर डरने लगे। बौने लोगों ने धागे से उसके हाथ-पैर बांध दिये। गुलीवर ने एक झटके में सब बन्धन तोड़ दिये। उसी तरह मैंने हीन, निकृष्ट विचारों को फेंक दिया। मुझे गुरुजी ने भजन करना बतला दिया। तब मैं रात के दो बजे से प्रातः छः बजे तक बड़े जोश के साथ उपासना करता रहा। ऐसा उत्साह आपके अन्दर आ जाये, तो आपकी उपासना भी सफल हो जायेगी। थोड़ा-सा समय बीतता है और हमारा मन ऊबने लगता है। मन उपासना से ऊबने लगता है, तब मन भागने लगता है, दौड़ने लगता है। मेरा भी मन ऊबने लगता था, पर मेरा मन से झगड़ा होने लगा। मन कहता यहां से उठ, मैं कहता बैठ! मैं चौबीस वर्ष तक कठोर साधना में लगा रहा। अपने गुरु के इशारे पर मैं कठपुतली की तरह नाचता रहा। मेरे गुरु ने मुझे मन लगाने का नुस्खा बतलाया। उसमें मुझे आनन्द आया। मन वहां लगता है, जहां प्यार होता है। मुझे मेरे गुरुजी ने कहा—बेटा! तुमने कभी भगवान से प्यार किया है? मैंने कहा—गुरुजी! मैंने तो सिर्फ कागज का खिलौना रखा है। कागज से कैसे मोहब्बत करूं? उन्होंने कहा—ध्यान कर! यह कागज नहीं है। इस मूर्ति में भगवान बैठा है, चारों तरफ भगवान है। आपके घर में मोरारजी देसाई या इंदिरा गांधी आयें, तो क्या मजा आयेगा? आप उनके आने से पहले सफाई करेंगे, बिठाने की व्यवस्था करेंगे। क्या लाऊं? क्या खिलाऊं? आप उनको खुश करने के लिए कितना मनोयोग लगाते हैं? आपको आस-पास के लोग बुलायेंगे, आपसे बातें करेंगे क्योंकि आपका सम्पर्क इंदिरा गांधी से है। इनसे सब काम निकल जायेंगे। मुहल्ले वालों पर आपका रौब हो जायेगा क्योंकि उनकी आंखों में आपकी हैसियत का चित्र जो बैठ गया है। यदि भगवान की सत्ता का हमारे दिमाग में विचार, विश्वास बैठ जाता, तो आप भगवान से क्यों प्रेम नहीं करते?
उनके पास बैठने का मन क्यों नहीं करता? हमने कभी यह सोचने का प्रयास किया है कि भगवान की शक्ति कितनी है? भगवान के पास बैठने का मन नहीं होता तो हम नास्तिक हैं। भगवान ऐसे हैं जिनकी शक्ति से सूर्य और चन्द्रमा चलते हैं। भगवान की शक्ति से मनुष्य भी भगवान बन जाता है। यदि ऐसा सोचा होता तो हम जिस प्रकार प्रधानमंत्री के आने पर अपना सारा काम छोड़कर उन्हीं की सेवा में लगे रहते हैं, वैसे ही भगवान की हैसियत को, शक्ति को आप मानते, तो मन उन्हीं के पीछे-पीछे डोलता। कलेक्टर एस.पी. साहब आपके यहां आते हैं तो आप साथ-साथ घूमते हैं, खुशामद करते हैं, सेवा करते हैं, परन्तु भगवान के बारे में ऐसा कभी नहीं सोचा। भगवान को कभी याद नहीं करते, तो बिना भावना के भगवान की पूजा में मन कहां से लगेगा? क्या मार-पीट कर मन को लगाना चाहते हैं? लकीर पीटकर सांप नहीं मारा जा सकता। हम जीवन भर यदि लकीर ही पीटते रहें तो भगवान कैसे मिलेगा?
हमसे गुरुजी ने कहा—तुम्हें मालूम होना चाहिए कि हमारा भगवान हमारे चारों तरफ है। जब हम छोटे थे किसी का सहारा नहीं था, तब भगवान ने मां का दूध दिया। मां से धोबिन, भंगिन का काम कराया, तो क्या भगवान हमारा पेट नहीं भरेगा? हमने भगवान से दोस्ती करली। भगवान और हम दोनों मित्र की तरह बात करते हैं। हमारे चारों तरफ भगवान है, यह विश्वास हो जाये, तो मजा क्यों नहीं आयेगा? लोभ से मनुष्य की हालत कुत्ते की पूंछ की तरह टेढ़ी रही। हमारे विचार गन्दे, हमारे लक्ष्य छोटे, हमारी इच्छायें छोटी हैं। हम भगवान को शर्मिन्दा करने वाले हैं, फिर भगवान को क्या पायेंगे? हम भजन करते हैं, परन्तु मन सिनेमा देखने में लगा रहता है। सिनेमा के लिए घर की कोई वस्तु बेच देते हैं, चार दोस्तों को लेकर सिनेमा देखने जाते हैं क्योंकि आप सिनेमा से प्यार करते हैं। सिनेमा में खर्च करने के लिए रिश्वत लेते हैं। घर में पत्नी को बहाना बनाकर कहते हैं कि आज दफ्तर में साहब ने रोक लिया था, कुछ काम करना था। सिनेमा के लिए झूठ भी बोलते हैं क्योंकि सिनेमा से प्यार है? जिनका शराब में मन लग जाता है, तो वह घर की सभी चीजें बेच देते हैं। पत्नी के जेवर भी बेच देते हैं, इज्जत का भी ध्यान नहीं रहता। आप भगवान के प्रति मुहब्बत करें, तो आपका हर काम उसी के अनुरूप होगा। देवत्व की झलक आपके क्रियाकलाप में मिलेगी। आज का नकली अध्यात्म तो छोटी चीजें देकर भगवान से बड़ी चीजें मिलने की बात कहता है। इसी से लोगों की आस्था डगमगा गई है। केवल गंगा स्नान करने से वह लाभ मिल जाता है, जिससे कि आप स्वर्ग के अधिकारी हो जाते हैं। इन बातों ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है। आप भगवान को अपना कुटुम्बी बना लीजिये। जब प्रधानमंत्री पर आपकी आस्था है कि वे परमिट दिला सकते हैं, बच्चे को नौकरी दिला सकते हैं, तो भगवान के प्रति आस्था होने पर, विश्वास होने पर आपको आनन्द ही आनन्द मिलेगा। भगवान से दोस्ती करने में फायदा ही फायदा है। मेरी भगवान से दोस्ती है। मैंने भगवान से कहा—चाय पीओगे, पान खाओगे, उन्होंने कहा—मैं चाय नहीं पीता, पान नहीं खाता, मुझे तो सिर्फ प्यार चाहिए। जो मुझसे जितना प्यार करता है, मैं भी उससे उतना ही प्यार करता हूं। हमें दौलत को छोड़कर पीताम्बर से प्यार करना चाहिए। जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री अपने पति को नहीं छोड़ती है, उसी प्रकार मैं भगवान से मुहब्बत करता हूं। आत्म जागरण करता हूं। जब व्यक्तित्व का परिष्कार हो जाता है, तो भगवान दौड़ता चला आता है। भगवान प्यार से खरीदा जा सकता है। द्रौपदी की पुकार, गज की पुकार सुनकर भगवान को दौड़कर आना पड़ा था। आप भगवान से प्यार करते हैं, तो मैं उसे भक्ति कहता हूं। भक्ति का मतलब दाढ़ी बढ़ाना, घण्टी हिलाना, तिलक लगाना, माला लेकर बैठे रहना नहीं है। आपको भगवान से वैसा ही प्रेम करना होगा जैसा मैंने भगवान से किया है। क्या मेरे बीबी-बच्चे नहीं हैं? क्या मुझे खाने-पीने की चिन्ता नहीं है? सबकी चिन्ता है, परन्तु मैं ज्यादा सुखी हूं। चार-पांच घण्टे सोने का गुनाहगार हूं, परन्तु अठारह घण्टे भगवान का काम करता हूं। सांसारिक दृष्टि से क्या मैं किसी से कम हूं? अमुक कर्मकाण्ड से यह मिल जायगा, वह मिल जायगा, प्राण नहीं रहा तो कलेवर का क्या करेंगे? भगवान से प्यार करना सीखो, तभी भक्ति कर सकोगे। मुझे सद्गुणों से, सत्कर्मों से प्रेम करना, भगवान से प्रेम करना मेरे गुरु ने सिखाया। यह जीवन जीने की कला है। प्रेम ही भगवान है। इसकी शरीर में आकर भगवान को पा सकते हैं।
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