
साधना का क्रम सतत चलता रहे
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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 29 अक्टूबर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो,
आज शिविर का अंतिम दिन है। यह तपोभूमि है। इस तपोभूमि में अम्बरीष से लेकर दुर्वासा तक ने तपस्या की है। यह जमीन गुरु की आज्ञा से मिली और यहां गायत्री तपोभूमि बनी। यह आज से नहीं प्राचीनकाल से ही तपोभूमि है। आप जहां बैठे हैं, यह भूमि सामान्य नहीं है। दिव्य चेतना से अनुप्राणित भूमि है। हमने यहां चौबीस दिन तक जल उपवास किया। सवा करोड़ मंत्र की स्थापना की और चौबीस हजार तीर्थों के जल और रज को लाकर स्थापित किया। तब हमने यहां गायत्री माता की प्राण प्रतिष्ठा की है। यह संस्कारवान भूमि है। इस भूमि में बीज रूप में संस्कार हैं, जिन्हें हमने जगाया है और उनका लाभ देने के लिए आप लोगों को बुलाता रहता हूं। स्थान का विशेष महत्व होता है। आपने इस तपोभूमि में पांच दिन तक रहकर तपश्चर्या की, यह कम महत्वपूर्ण नहीं है। आपने यहां जो साधना की इसमें और घर पर जो साधना की, उसमें अन्तर है। एक यह संस्कारवान् भूमि, तीर्थ चेतना की प्रखरता और हमारा मार्गदर्शन, दैवी सत्ता का संरक्षण इन सब बातों से मिलकर यहां की साधना विशेष महत्व रखती है। आप यहां से एक विशेष शक्ति लेकर जा रहे हैं। नई शक्ति और नई उमंग और आत्मबल लेकर जा रहे हैं। नई शक्ति और नई उमंग और आत्मबल लेकर जा रहे हैं। इसको समाज में फैलाना है। प्राण और विचार दो शक्ति होती हैं। मैं आपको प्राण शक्ति और विचार शक्ति दोनों ही देता चला हूं। विचार एक पुस्तक है। विचारों को रेडियो के द्वारा भी फैला सकते हैं। हम जो मुंह से बोलते हैं वह बैखरी वाणी है। इसी वाणी से मास्टर स्कूल में पढ़ाता है। पण्डित लोग कथा कहते रहते हैं। यह बैखरी वाणी है। ब्रह्माजी चार मुख से बोलते हैं। ये चार प्रकार की वाणी है। महर्षि रमण मौन रहते थे लेकिन उनके संदेश को हजारों लोगों ने ग्रहण किया। आज कार्ल मार्क्स के विचार डेढ़ अरब लोगों के दिमाग पर छाये हैं। यह परावाणी है। ऋषियों के आश्रम में शेर और गाय साथ-साथ रहते थे। ये ऋषियों की प्राण शक्ति थी।
नारदजी ने वाल्मीकि का जीवन बदल दिया था। यह परावाणी का ही चमत्कार था। बैखरी, मध्यमा, परा और पश्यंती यह चार प्रकार की वाणी होती हैं। मैंने आपके ऊपर चारों प्रकार की वाणियों का प्रयोग किया है। दिमाग से निकली बात दिमाग को छूती है। मैंने जो विचार दिये, उन्हें आप भूल नहीं सकते। मैंने अपने मन की आग उड़ेली है। मैंने साठ वर्ष तक बड़ी सम्पदा पाई है। मेरा जीवन बहुत सुखी रहा है। मैंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। मुझे सदैव देने में ही आनन्द आता रहा है। मैं जिस हंसी के साथ आया उसी खुशी के साथ जीता हुआ चला जा रहा हूं। मैंने खुशी का जीवन जीया है, आप भी उसी शान से जीयें, जिससे किसी को शिकायत नहीं रहे। रामचन्द्रजी ने लक्ष्मण जी से कहा था—रावण ऐसा विद्वान है, जिसके समान इस संसार में कोई नहीं। लक्ष्मण जाओ और उससे राजनीति सीख कर आओ। लक्ष्मण रावण के पास गया और कहा—मैं आपके पास शिष्य के रूप में आया हूं, मुझे राजनीति पढ़ाइये। रावण ने कहा—मैं अब मरने जा रहा हूं, तब तो तुम आये हो। एक बात को हमेशा ध्यान में रखना कि आज का काम कल पर मत छोड़ना। हम आपको अपने जीवन के अनुभव बता रहे थे। यदि आप भगवान से कुछ चाहते हैं, उसकी उपासना करते हैं, तो पहली बात याद रखो—उपासना करनी चाहिये तो ठीक ढंग से करनी चाहिये अन्यथा छोड़ देनी चाहिये। उपासना के पीछे भगवान का सान्निध्य जुड़ा हुआ है। भगवान को जानिये, भगवान की क्षमता का अनुभव कीजिये और उल्लास पैदा कीजिये। आपकी बैठक भगवान के पास हो जाये, तो बहुत अच्छी बात है। भगवान के प्रति निष्ठा उत्पन्न करनी चाहिये। भगवान के प्रति आप श्रद्धा उत्पन्न करें। आपकी श्रद्धा जितनी अधिक होगी भगवान आपको उतना ही प्रकाश प्रदान करता रहेगा। भगवान से प्रार्थना करो—‘‘हे भगवान हमें प्रकाश दो, हम अज्ञान के अन्धकार में भटके हुए दुःखी हैं। हमारी जिंदगी में प्रकाश भर दो, नस-नस में शक्ति भर दो।’’ जिस प्रकार अन्धकार में सांप, चोर, डाकू का डर लगता है, उसी प्रकार जीवन में अन्धकार रहने से डरा हुआ, दुःखी जीवन जीना पड़ता है। अज्ञान हमेशा दुःख देता है। आपने जीभ से क्या–क्या खाया? लोहा-लक्कड़ जो आया सबको खा लिया। अब जब बीमारी आयी तो क्यों रोते हैं? इसके जिम्मेदार आप स्वयं हैं। बुद्धि होती तो सोचते कि हमें क्या खाना चाहिये, क्या नहीं।
दूसरी शिक्षा जीवन को शुद्ध बनाना चाहिये। इस जीवन की चादर को धब्बे लगाकर मत जाना। पिछले जीवन में लगे धब्बों को छुड़ाना और उनको धोना। आगे के जीवन में धब्बे मत लगने देना। नेक, सज्जन, शरीफ, भलमनसाहत का जीवन जीना। बगैर दाग-धब्बे का जीवन जीना। यह सारे अनुभव मेरे जीवन के निचोड़ हैं। जो इन पर चलता है, वह जीवन भर सम्मान पाता है।
तीसरी शिक्षा—तुमको परिश्रम करना चाहिये। परिश्रम से इस संसार को खूबसूरत बनाने में मदद करना। बाप अपने बेटे को पढ़ाता-लिखाता है और यह आशा करता है कि बुढ़ापे में यह बेटा मुझे आराम देगा। घर का काम किया करेगा। भगवान ने भी मनुष्य को इसी ख्याल से बनाया है। भगवान को भी आशा है कि मनुष्य संसार को खूबसूरत बनायेगा। संसार में उल्लास, आनन्द पैदा करेगा। भगवान ने आपको इसलिए पैदा नहीं किया है कि आप अपना पेट पालते रहे। भगवान ने तुमको हर काम के लिए हर सुविधा प्रदान की है। मनुष्य को जितनी सुविधा दी है, इतनी किसी अन्य प्राणी को नहीं दी। भगवान ने कहा—तुम पेट का विचार मत करना। पेट तो भर ही जावेगा। क्या आपने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है। आप भगवान के काम से भागते रहे, जीवन का लक्ष्य भूल गये। मौत के दिन आपको पछताना पड़ेगा। आप मरघट में जल रहे होंगे। चौरासी लाख योनियां आपके सामने होंगी। चौरासी लाख योनियों के बन्धन आपके सामने खड़े होंगे। तब आपको इस जीवन की याद आयेगी। हम गुब्बारों से खेलते रहे और जीवन बर्बाद कर दिया। ऊंचे विचार रखना और ऊंचे कर्म करना। ऊंचे विचार गायत्री हैं और ऊंचे कर्म-यज्ञ। जीवन में इनको शिरोधार्य करना। शरीर और प्राण इन दोनों के बिना कोई मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता। मैंने अपने जीवन में प्राणवान उपासना की है। आप उपासना की लाश लिये फिरते हैं। जिस प्रकार बन्दरिया अपने मरे हुए बच्चे को छाती से लगाये रहती है। प्राणवान भावनाओं के साथ उपासना करनी चाहिये। लोकमंगल के लिये कर्तव्य करते चले जाना चाहिये। अपनी बात भी सोचो और समाज की बात भी सोचो, इसी को अध्यात्म कहते हैं। आप यहां से अध्यात्मवादी बनकर जायें। हाथी का बच्चा हाथी होता है और शेर का शेर। आप आचार्य के बच्चे हैं आपको आचार्य बनकर जाना चाहिये। आपके अन्दर शक्ति भरी पड़ी है, उसे जगाओ। गीता में कहा गया है—‘‘मनुष्य! अपना उद्धार आप करो।’’ गायत्री माता, शंकरजी, हनुमानजी कोई आपका उद्धार नहीं करेंगे। आपको स्वयं ही उठकर खड़ा होना पड़ेगा। आप यहां तक आये हैं, मैं आपको खाली नहीं जाने दूंगा। परन्तु आपने जो कर्म किये हैं, उन्हें भुगतना ही पड़ेगा। कठिनाइयों को हटा दें। जो भी कर्म किये हैं, उनके फल को हंसकर भोगें। रोकर आप भोगेंगे तो दुःख कम नहीं होगा। आप भी हिम्मत से आगे आयें और उपासना की कीमत चुकायें। मैं आपके आत्मकल्याण की बात बता रहा हूं। आप समाज के लिये कार्य करना। मैं आपकी परख कर रहा हूं। आपके अन्दर लोकमंगल के विचार हैं या नहीं। मेरे पास देने को बहुत है, परन्तु आपके पास पात्रता होनी चाहिये। आप अपनी पात्रता विकसित करें। यहां से जाकर समाज में मेरे विचार फैलाना, तो तुम्हारा कल्याण होगा। समाज को दिशा मिलेगी। सर्वत्र सुख-शांति एवं सहकार का वातावरण बनेगा। नये युग की भूमिका बनेगी। आप यहां से जाकर समाज के विचारों में मत घुल जाना। तुम्हें अपने जैसा दूसरों को बनाना है। तुम सांचा बन कर जा रहे हो, इससे एक से एक बढ़कर लोकसेवियों का निर्माण होगा। आप इतना कर सकें, तो आपका यहां आना और तपश्चर्या करना सार्थक होगा। यही हमारा संदेश है।
देवियो और भाइयो,
आज शिविर का अंतिम दिन है। यह तपोभूमि है। इस तपोभूमि में अम्बरीष से लेकर दुर्वासा तक ने तपस्या की है। यह जमीन गुरु की आज्ञा से मिली और यहां गायत्री तपोभूमि बनी। यह आज से नहीं प्राचीनकाल से ही तपोभूमि है। आप जहां बैठे हैं, यह भूमि सामान्य नहीं है। दिव्य चेतना से अनुप्राणित भूमि है। हमने यहां चौबीस दिन तक जल उपवास किया। सवा करोड़ मंत्र की स्थापना की और चौबीस हजार तीर्थों के जल और रज को लाकर स्थापित किया। तब हमने यहां गायत्री माता की प्राण प्रतिष्ठा की है। यह संस्कारवान भूमि है। इस भूमि में बीज रूप में संस्कार हैं, जिन्हें हमने जगाया है और उनका लाभ देने के लिए आप लोगों को बुलाता रहता हूं। स्थान का विशेष महत्व होता है। आपने इस तपोभूमि में पांच दिन तक रहकर तपश्चर्या की, यह कम महत्वपूर्ण नहीं है। आपने यहां जो साधना की इसमें और घर पर जो साधना की, उसमें अन्तर है। एक यह संस्कारवान् भूमि, तीर्थ चेतना की प्रखरता और हमारा मार्गदर्शन, दैवी सत्ता का संरक्षण इन सब बातों से मिलकर यहां की साधना विशेष महत्व रखती है। आप यहां से एक विशेष शक्ति लेकर जा रहे हैं। नई शक्ति और नई उमंग और आत्मबल लेकर जा रहे हैं। नई शक्ति और नई उमंग और आत्मबल लेकर जा रहे हैं। इसको समाज में फैलाना है। प्राण और विचार दो शक्ति होती हैं। मैं आपको प्राण शक्ति और विचार शक्ति दोनों ही देता चला हूं। विचार एक पुस्तक है। विचारों को रेडियो के द्वारा भी फैला सकते हैं। हम जो मुंह से बोलते हैं वह बैखरी वाणी है। इसी वाणी से मास्टर स्कूल में पढ़ाता है। पण्डित लोग कथा कहते रहते हैं। यह बैखरी वाणी है। ब्रह्माजी चार मुख से बोलते हैं। ये चार प्रकार की वाणी है। महर्षि रमण मौन रहते थे लेकिन उनके संदेश को हजारों लोगों ने ग्रहण किया। आज कार्ल मार्क्स के विचार डेढ़ अरब लोगों के दिमाग पर छाये हैं। यह परावाणी है। ऋषियों के आश्रम में शेर और गाय साथ-साथ रहते थे। ये ऋषियों की प्राण शक्ति थी।
नारदजी ने वाल्मीकि का जीवन बदल दिया था। यह परावाणी का ही चमत्कार था। बैखरी, मध्यमा, परा और पश्यंती यह चार प्रकार की वाणी होती हैं। मैंने आपके ऊपर चारों प्रकार की वाणियों का प्रयोग किया है। दिमाग से निकली बात दिमाग को छूती है। मैंने जो विचार दिये, उन्हें आप भूल नहीं सकते। मैंने अपने मन की आग उड़ेली है। मैंने साठ वर्ष तक बड़ी सम्पदा पाई है। मेरा जीवन बहुत सुखी रहा है। मैंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। मुझे सदैव देने में ही आनन्द आता रहा है। मैं जिस हंसी के साथ आया उसी खुशी के साथ जीता हुआ चला जा रहा हूं। मैंने खुशी का जीवन जीया है, आप भी उसी शान से जीयें, जिससे किसी को शिकायत नहीं रहे। रामचन्द्रजी ने लक्ष्मण जी से कहा था—रावण ऐसा विद्वान है, जिसके समान इस संसार में कोई नहीं। लक्ष्मण जाओ और उससे राजनीति सीख कर आओ। लक्ष्मण रावण के पास गया और कहा—मैं आपके पास शिष्य के रूप में आया हूं, मुझे राजनीति पढ़ाइये। रावण ने कहा—मैं अब मरने जा रहा हूं, तब तो तुम आये हो। एक बात को हमेशा ध्यान में रखना कि आज का काम कल पर मत छोड़ना। हम आपको अपने जीवन के अनुभव बता रहे थे। यदि आप भगवान से कुछ चाहते हैं, उसकी उपासना करते हैं, तो पहली बात याद रखो—उपासना करनी चाहिये तो ठीक ढंग से करनी चाहिये अन्यथा छोड़ देनी चाहिये। उपासना के पीछे भगवान का सान्निध्य जुड़ा हुआ है। भगवान को जानिये, भगवान की क्षमता का अनुभव कीजिये और उल्लास पैदा कीजिये। आपकी बैठक भगवान के पास हो जाये, तो बहुत अच्छी बात है। भगवान के प्रति निष्ठा उत्पन्न करनी चाहिये। भगवान के प्रति आप श्रद्धा उत्पन्न करें। आपकी श्रद्धा जितनी अधिक होगी भगवान आपको उतना ही प्रकाश प्रदान करता रहेगा। भगवान से प्रार्थना करो—‘‘हे भगवान हमें प्रकाश दो, हम अज्ञान के अन्धकार में भटके हुए दुःखी हैं। हमारी जिंदगी में प्रकाश भर दो, नस-नस में शक्ति भर दो।’’ जिस प्रकार अन्धकार में सांप, चोर, डाकू का डर लगता है, उसी प्रकार जीवन में अन्धकार रहने से डरा हुआ, दुःखी जीवन जीना पड़ता है। अज्ञान हमेशा दुःख देता है। आपने जीभ से क्या–क्या खाया? लोहा-लक्कड़ जो आया सबको खा लिया। अब जब बीमारी आयी तो क्यों रोते हैं? इसके जिम्मेदार आप स्वयं हैं। बुद्धि होती तो सोचते कि हमें क्या खाना चाहिये, क्या नहीं।
दूसरी शिक्षा जीवन को शुद्ध बनाना चाहिये। इस जीवन की चादर को धब्बे लगाकर मत जाना। पिछले जीवन में लगे धब्बों को छुड़ाना और उनको धोना। आगे के जीवन में धब्बे मत लगने देना। नेक, सज्जन, शरीफ, भलमनसाहत का जीवन जीना। बगैर दाग-धब्बे का जीवन जीना। यह सारे अनुभव मेरे जीवन के निचोड़ हैं। जो इन पर चलता है, वह जीवन भर सम्मान पाता है।
तीसरी शिक्षा—तुमको परिश्रम करना चाहिये। परिश्रम से इस संसार को खूबसूरत बनाने में मदद करना। बाप अपने बेटे को पढ़ाता-लिखाता है और यह आशा करता है कि बुढ़ापे में यह बेटा मुझे आराम देगा। घर का काम किया करेगा। भगवान ने भी मनुष्य को इसी ख्याल से बनाया है। भगवान को भी आशा है कि मनुष्य संसार को खूबसूरत बनायेगा। संसार में उल्लास, आनन्द पैदा करेगा। भगवान ने आपको इसलिए पैदा नहीं किया है कि आप अपना पेट पालते रहे। भगवान ने तुमको हर काम के लिए हर सुविधा प्रदान की है। मनुष्य को जितनी सुविधा दी है, इतनी किसी अन्य प्राणी को नहीं दी। भगवान ने कहा—तुम पेट का विचार मत करना। पेट तो भर ही जावेगा। क्या आपने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है। आप भगवान के काम से भागते रहे, जीवन का लक्ष्य भूल गये। मौत के दिन आपको पछताना पड़ेगा। आप मरघट में जल रहे होंगे। चौरासी लाख योनियां आपके सामने होंगी। चौरासी लाख योनियों के बन्धन आपके सामने खड़े होंगे। तब आपको इस जीवन की याद आयेगी। हम गुब्बारों से खेलते रहे और जीवन बर्बाद कर दिया। ऊंचे विचार रखना और ऊंचे कर्म करना। ऊंचे विचार गायत्री हैं और ऊंचे कर्म-यज्ञ। जीवन में इनको शिरोधार्य करना। शरीर और प्राण इन दोनों के बिना कोई मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता। मैंने अपने जीवन में प्राणवान उपासना की है। आप उपासना की लाश लिये फिरते हैं। जिस प्रकार बन्दरिया अपने मरे हुए बच्चे को छाती से लगाये रहती है। प्राणवान भावनाओं के साथ उपासना करनी चाहिये। लोकमंगल के लिये कर्तव्य करते चले जाना चाहिये। अपनी बात भी सोचो और समाज की बात भी सोचो, इसी को अध्यात्म कहते हैं। आप यहां से अध्यात्मवादी बनकर जायें। हाथी का बच्चा हाथी होता है और शेर का शेर। आप आचार्य के बच्चे हैं आपको आचार्य बनकर जाना चाहिये। आपके अन्दर शक्ति भरी पड़ी है, उसे जगाओ। गीता में कहा गया है—‘‘मनुष्य! अपना उद्धार आप करो।’’ गायत्री माता, शंकरजी, हनुमानजी कोई आपका उद्धार नहीं करेंगे। आपको स्वयं ही उठकर खड़ा होना पड़ेगा। आप यहां तक आये हैं, मैं आपको खाली नहीं जाने दूंगा। परन्तु आपने जो कर्म किये हैं, उन्हें भुगतना ही पड़ेगा। कठिनाइयों को हटा दें। जो भी कर्म किये हैं, उनके फल को हंसकर भोगें। रोकर आप भोगेंगे तो दुःख कम नहीं होगा। आप भी हिम्मत से आगे आयें और उपासना की कीमत चुकायें। मैं आपके आत्मकल्याण की बात बता रहा हूं। आप समाज के लिये कार्य करना। मैं आपकी परख कर रहा हूं। आपके अन्दर लोकमंगल के विचार हैं या नहीं। मेरे पास देने को बहुत है, परन्तु आपके पास पात्रता होनी चाहिये। आप अपनी पात्रता विकसित करें। यहां से जाकर समाज में मेरे विचार फैलाना, तो तुम्हारा कल्याण होगा। समाज को दिशा मिलेगी। सर्वत्र सुख-शांति एवं सहकार का वातावरण बनेगा। नये युग की भूमिका बनेगी। आप यहां से जाकर समाज के विचारों में मत घुल जाना। तुम्हें अपने जैसा दूसरों को बनाना है। तुम सांचा बन कर जा रहे हो, इससे एक से एक बढ़कर लोकसेवियों का निर्माण होगा। आप इतना कर सकें, तो आपका यहां आना और तपश्चर्या करना सार्थक होगा। यही हमारा संदेश है।