
विकास चाहिए पर समग्र
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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 23 सितम्बर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो
साधना और उपासना दोनों का एक-दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। उपासना आधा-एक घण्टा करने से काम चल जाता है, परन्तु साधना पूरे चौबीस घण्टे की होती है। हमें अपने हर क्रिया-कलाप पर पूरा ध्यान रखना पड़ता है। उपासना साधना का ही एक हिस्सा है। जिस प्रकार नाक शरीर का एक अंग है, उसी प्रकार उपासना भी साधना का एक अंग है। जिस प्रकार सारा शरीर बीमार पड़ जाये और केवल नाक ठीक रहे, भी तो उसका क्या महत्व? उपासना यदि नहीं की और साधना की तो ऐसा समझो जैसे नाक काट ली। बिना नाक के आदमी का चेहरा बुरा अवश्य लगेगा, परन्तु वह काम तो पूरा करता रहेगा। उपासना साधना की अपेक्षा छोटी होती है। आपके पास हीरा है, तो अच्छी कीमत मिल जायेगी, परन्तु यदि आपके पास कांच है, तो कांच की कीमत तो मिलेगी, परन्तु बहुत कम। हीरा जब खरीदा जाता है, जब पास में बहुत रुपया होता है। साधना हीरा है तो उपासना कांच। साधना बन्दूक है, तो उपासना कारतूस। बिना बन्दूक के कारतूस नहीं चलाया जा सकता। जीवन को शुद्ध, पवित्र किये बिना उपासना बेकार है। जीवन को परिष्कृत करना, चिंतन-चरित्र-व्यवहार सुधारना यह सब साधना के अन्तर्गत आता है।
एक दिन राजा दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ के पास गये और गुरु से कहा—गुरुदेव हमने तीन शादियां कर लीं, परन्तु सन्तान नहीं हुई, आगे हमारे बाद इस राज्य को कौन चलायेगा? आप हमारे गुरु हैं, कोई ऐसा उपाय निकालिए जिससे सन्तान हो। गुरु वशिष्ठ ने कहा—एक तरकीब है, पुत्रेष्टि यज्ञ किया जाय। राजा दशरथ ने कहा कि मैं यज्ञ का सारा प्रबन्ध करूंगा, आप यज्ञ करने के लिए चलिए। गुरु वशिष्ठ ने कहा—पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए कोई आचार्य दिखाई नहीं देता। राजा दशरथ ने कहा—गुरुदेव! क्या आप यज्ञ नहीं करा सकते? गुरुजी ने कहा—राजन्! पुत्रेष्टि यज्ञ मैं नहीं करा सकता, मंत्रों में तो शक्ति है, परन्तु उसके मुताबिक ऋषित्व चाहिए। भोग करने से मेरी शक्ति क्षीण हो गयी है। मेरे सौ बच्चे हैं। मेरा आत्मबल क्षीण हो गया है। एक ऋषि है और वह है—श्रृंगी ऋषि। उसको बुलाया जाये, तो आपका यज्ञ सफल होगा। राजा ने कहा—यह ऋषि तो अठारह वर्ष का छोकरा है। क्या वह यह यज्ञ सफल करा सकता है? गुरु वशिष्ठ ने कहा—उसके दिमाग में आज तक स्त्री का स्वरूप भी नहीं आया है। संयमशीलता के कारण उसके अन्दर प्रचण्ड आत्मबल और तेज है। गुरु वशिष्ठ राजा दशरथ को लोमश ऋषि के आश्रम में ले गये। राजा का भ्रम दूर करने के लिए वे अप्सराओं को भी साथ ले गये। उन्होंने पहले अप्सराओं को श्रृंगी ऋषि के पास भेजा। श्रृंगी ऋषि ने अप्सराओं से कहा—आप कहां की निवासी हैं? आपकी मूंछें क्यों नहीं हैं? आपका सीना ऊंचा क्यों है? अप्सराओं ने कहा—हमारा देश ठण्डा है। वहां पर पचास वर्ष की उम्र के बाद मूंछें निकलती हैं। हमारे गुरु प्राणायाम कराते हैं, जिससे हमारा सीना चौड़ा हो गया है। अप्सराओं ने मिठाई निकालकर श्रृंगी ऋषि को दी और कहा यह हमारे यहां के फल हैं। आपके यहां तो कटहल जैसे फल होते हैं। श्रृंगी ऋषि ने कहा—हम गुरु की आज्ञा के बिना फल नहीं खाते। उस मिठाई को लेकर वे लोमश ऋषि के पास आये। लोमश ऋषि ने अप्सराओं को देखा तो गुस्से में कहने लगे—मेरे लड़के को कौन बहकाने आया है? गुरु वशिष्ठ ने कहा—हम राजा दशरथ का भ्रम दूर करने के लिए अप्सराओं को साथ लाये हैं। गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ से कहा—तुमने ऐसा ऋषि नहीं देखा, वह दिखाने आया हूं।
श्रृंगी ऋषि ने किसी स्त्री को नहीं देखा था। उन्होंने कभी मिर्च, मसाले, पकौड़ी, मिठाई, रसगुल्ले नहीं खाये थे। संयमी जीवन, सधा हुआ जीवन जीया था। परिणामस्वरूप उनके पास प्रचण्ड आत्म शक्ति एकत्र हो गई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया, तो चार भगवान पैदा हुए। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न। उपासना जिसके द्वारा सफल होती है, वह है व्यक्तित्व का परिष्कार। मेरे गुरु ने मुझे बताया कि पहले तुम्हें साधना करनी होगी। पहले साधना का मंत्र देंगे, उसके बाद उपासना का।
आजकल तो सब उपासना की ही बात करते हैं, साधना का तो कोई नाम ही नहीं लेता। आपने मैट्रिक पास नहीं किया तो कॉलेज में दाखिला कैसे मिल जायेगा? उपासना के लिए हम गायत्री मंत्र जपते हैं, परन्तु साधना के लिए दिन भर लगे रहना पड़ता है। सुबह उठते ही बैठकर चिन्तन करें। आज मेरा नया जन्म हुआ है। जिस प्रकार ब्रह्मा जी कमल के फूल पर पैदा हुए। हम चारपाई में से पैदा हो रहे हैं। हमारे लिए यह चारपाई ही कमल का फूल है। आज का दिन अच्छा जीयेंगे, शानदार जीयेंगे। रात तक उल्लास से उमंग भरा जीवन जीयेंगे। सारा दिन नाटक की तरह जीयेंगे। दिन भर नाटक में सौंपी हुई भूमिका ऐसी करेंगे कि लोग तारीफ करते रह जायें। आज तक मैं बुरा व्यवहार करता था, अब नहीं करूंगा। मैं भगवान का पुत्र हूं। भगवान के पुत्र को बुरे काम, बुरा व्यवहार पसन्द नहीं होना चाहिए। मैं परमपिता परमेश्वर की आज्ञा पालन करने वाला हूं। रात को सोते समय भावना करें कि हमारी मौत आ गयी। हमारी आज की जिन्दगी समाप्त। दिन भर की इस जिन्दगी में मैंने कहीं अनुचित कार्य तो नहीं किये। यदि भूल की हो तो उसका प्रायश्चित करें ताकि ऐसी भूल आगे न हो। मौत हमारी प्यारी मां है। इससे अधिक हमारी कोई चीज नहीं होती। जिस प्रकार मां के पास बहुत से लोग शिकायत लाते हैं, तो भी वह अपने बच्चों को गोदी में लिटाकर सुलाती है और कहती है—बेटा! मैं सबको धमका दूंगी। सोजा बेटा! सोजा!! हम सबको रात में सोते समय, नींद की, मौत की गोदी में जाते समय ईर्ष्या, राग, द्वेष, जलन, कुढ़न आदि सबको भूल जाना चाहिए। मौत मां की तरह गोदी में सुलाती है। जिस प्रकार डॉक्टर बेहोशी का इंजेक्शन लगा कर सुला देता है। आप अपने व्यवहार पर सोचेंगे तो सुधार आयेगा। मैं पत्नी से अच्छा व्यवहार करूंगा। मां को बुरा नहीं कहूंगा। प्रेम से आदमी सुधरता है। स्त्री भी कहे कि मेरा पति तो साक्षात् देवता है, जब आते हैं प्रशंसा करते हैं। आप गुणों की प्रशंसा करना सीखें। यहां गायत्री तपोभूमि में एक लड़का आया, उसने एक व्यक्ति के साठ रुपये चुरा लिए। हमने उस लड़के को प्यार से समझाया और कहा—बेटा! चोरी करना बहुत बुरा है। चोरी नहीं करनी चाहिए। वह लड़का यहां से सुधर कर गया। पहले वह सब्जी लेने जाता था, तो चोरी करता था। अब वह घर का सामान ठीक से लाने लगा। घर वालों ने कहा—क्या हो गया है, तुझको। अब तो तू बदल ही गया है। उसने कहा—मैं चोरी क्या कोई भी बुरा काम नहीं करूंगा। मैं मथुरा से सुधर कर आया हूं। उस लड़के का जीवन ही बदल गया। घर वाले सभी उसकी प्रशंसा करने लगे। प्रशंसा से आप दूसरों को नया जीवन दे सकते हैं। आप अपनी तरह से व्यवहार तो बदलिए। देखो! कितना चमत्कार होता है।
धर्मपत्नी ने किसी दिन कपड़े नहीं धोये, तो आप उसे डांटने लगे। आपको कहना चाहिए कि तुम दिन भर काम करती रहती हो। तुम कपड़ों में साबुन लगाओ मैं धोता चलता हूं। धर्मपत्नी कहेगी—नहीं! कल से सब कपड़े धुले हुए मिलेंगे। एक-दूसरे से मीठे वचन बोलने चाहिए। एक से एक बढ़िया काम करने चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि हमारे मन में कहीं विकार तो नहीं उठ रहे हैं। सारे दिल-दिमाग पर ध्यान देना चाहिए।
हम समय को बरबाद करते हैं, तो समय हमको बरबाद कर देता है। शरीर को काम में लगाना चाहिए और मन को ऊंचे विचारों में लगाकर रखना चाहिए। जब भी गन्दे विचार आयें शीघ्र ही आप उनको काटिये। जब किसी के प्रति वासना के विचार आयें तो आप विचार लाइये कि यह हमारी बहिन है। दूसरे की कन्या हमारी बहिन है। जब आपके मन में काम वासना के विचार आयें तो उन विचारों को काट डालिए। जिसकी तरफ आपका मन दौड़ता है, आप विचार कीजिये—उसके पेट का पोस्टमार्टम कीजिये, पेट के अन्दर देखिये, अरे! यह तो मल का, पेशाब का घर है। मन को कहना—यह देख अभागे! तू कहां भटक रहा है। गन्दे विचार आये, पाप के, चोरी के, बेईमानी के विचार आयें, तो आप अच्छे विचार तैयार रखिये, जो बुरे विचारों को घुसने ही न दें। चौकीदार सोता है, तो चोर घुस आता है। आप अपनी चौकीदारी नहीं कर सकते। जिस प्रकार डॉक्टर अपने पास दवाइयां तैयार रखते हैं, जैसे ही कोई बीमार आता है, उसे दवाइयां देता है। आपने अपने घर की, परिवार की, दुकान की, मकान की, सबकी रक्षा की परन्तु आपने अपने विचारों की रक्षा क्यों नहीं की? शानदार जीवन जीऊंगा। अपने जीवन को बदल डालूंगा। अंगुलिमाल, गणिका, अम्बपाली जैसों ने अपने जीवन को बदल लिया, तो क्या मैं अपने को नहीं बदल सकता? अपने जीवन को बदल डालिए। अपने जीवन की साधना आपको भगवान तक पहुंचा सकती है। हमने उपासना और साधना दोनों को महत्व दिया। हमने अखण्ड दीपक जलाया, जो आज तक जल रहा है। हमने उस दीपक की रक्षा भी की और हमारे अंदर वाले दीपक की भी। हमारे दोनों दीपक जलते जा रहे हैं।
एक पहिये की गाड़ी नहीं चलती। एक पहिये की गाड़ी सिर्फ सर्कस में भागती है। वह थोड़ा घूम सकती है। लम्बे सफर के लिए तो दो पहिये की साइकिल ही चाहिए। उपासना और साधना दो पहिये की गाड़ी है। वास्तविक कल्याण के लिए यही वाहन चाहिए। आपकी एक आंख है और एक नहीं, तो अच्छा नहीं लगेगा। एक टांग आपकी ठीक है और एक खराब, तो आप चल नहीं पायेंगे। इसी प्रकार हमने मात्र जप ही किया और साधना का काम छोड़ दिया, तो इससे हमारा जीवन सफल कैसे होगा? हम हिमालय अज्ञातवास को गये, वहां दो महात्माओं को देखा। एक का नाम सीताराम था और दूसरे का सदानंद। दोनों नंगे रहते थे। दोनों मौनी थे। कभी गुफाओं में, कभी झोंपड़ी में रहते थे। उनकी कुटिया के पास थोड़ी जगह थी, जहां दोनों महात्मा अपनी-अपनी जगह में थोड़ी साग-सब्जी बो देते थे। दोनों महात्माओं में एक दिन जमीन के लिए झगड़ा हो गया। वे दोनों मौनी थे, बोलते नहीं थे। पहले दिन उनने इशारे से क्रोध प्रकट किया, दूसरे दिन आंखें बदलीं और तीसरे दिन हाथा-पाई हो गयी। दोनों ने एक-दूसरे की दाढ़ी उखाड़ दी। वे दोनों महात्मा नित्य प्रति गंगा स्नान करते थे। परन्तु उनका क्रोध नहीं गया, तो क्या उनको गंगा-स्नान करने से मुक्ति मिल गई होगी। मुक्ति कैसे मिली होगी मित्रो! उनके भीतर राग, द्वेष और क्रोध की ज्वालाएं तो धधकती रही थीं। भगवान को पा लेने वाले की एक ही पहचान है कि उसमें मनोविकार नहीं होना चाहिए। मनोविकार वाले मनुष्य कहीं स्वर्ग चले गये तो स्वर्ग को भी नरक बना देंगे। मनोविकारों को दूर करने वाले को साधक कहते हैं। बद्रीनाथ के दर्शन करके, गंगास्नान करके भी लोभ-मोह दूर नहीं हुआ, तो सब बेकार है। तब आपको मुक्ति नहीं मिल सकती। मेरे दिल में खलबली उठ गयी थी। क्या ये सिद्धान्त गलत हैं। मेरे गुरु आये और कहा—तुम साधना का महत्व भूल गये क्या? गुरु ने गंगा नहाना भी, माला घुमाना भी सिखाया और साधना की बात भी बतायी। जब तक आप मनोविकारों को दूर नहीं करेंगे, जीवन का परिष्कार नहीं करेंगे, तब तक उपासना की, भजन की कीमत बीज के समान है। जमीन की कीमत तीन हजार रुपया बीघा है। बीज तो पांच-छः रुपया किलो मिल जायेगा। पहला मंत्र तो यह सीखें। सुबह उठकर यह साधना करें—मैं शानदार जीवन, उत्कृष्ट जीवन जीऊंगा, भगवान का बेटा बनकर जीऊंगा। बढ़िया जीवन जीऊंगा। यदि आप अच्छे विचार रखेंगे तो आपका चेहरा चमकेगा। हम आपको रास्ता बतला रहे हैं। गुरु वह है जो साधना बतलाये। शिष्य वह है, जो गुरु के कहने पर साधना करें। जीवन को साधनामय बनाना आवश्यक है।
मंत्र शरीर है, तो साधना आत्मा है। उपासना के साथ साधना आवश्यक ही है। आप उपासना के साथ साधना भी करें। आप भी ऐसा करें और दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करें।
देवियो और भाइयो
साधना और उपासना दोनों का एक-दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। उपासना आधा-एक घण्टा करने से काम चल जाता है, परन्तु साधना पूरे चौबीस घण्टे की होती है। हमें अपने हर क्रिया-कलाप पर पूरा ध्यान रखना पड़ता है। उपासना साधना का ही एक हिस्सा है। जिस प्रकार नाक शरीर का एक अंग है, उसी प्रकार उपासना भी साधना का एक अंग है। जिस प्रकार सारा शरीर बीमार पड़ जाये और केवल नाक ठीक रहे, भी तो उसका क्या महत्व? उपासना यदि नहीं की और साधना की तो ऐसा समझो जैसे नाक काट ली। बिना नाक के आदमी का चेहरा बुरा अवश्य लगेगा, परन्तु वह काम तो पूरा करता रहेगा। उपासना साधना की अपेक्षा छोटी होती है। आपके पास हीरा है, तो अच्छी कीमत मिल जायेगी, परन्तु यदि आपके पास कांच है, तो कांच की कीमत तो मिलेगी, परन्तु बहुत कम। हीरा जब खरीदा जाता है, जब पास में बहुत रुपया होता है। साधना हीरा है तो उपासना कांच। साधना बन्दूक है, तो उपासना कारतूस। बिना बन्दूक के कारतूस नहीं चलाया जा सकता। जीवन को शुद्ध, पवित्र किये बिना उपासना बेकार है। जीवन को परिष्कृत करना, चिंतन-चरित्र-व्यवहार सुधारना यह सब साधना के अन्तर्गत आता है।
एक दिन राजा दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ के पास गये और गुरु से कहा—गुरुदेव हमने तीन शादियां कर लीं, परन्तु सन्तान नहीं हुई, आगे हमारे बाद इस राज्य को कौन चलायेगा? आप हमारे गुरु हैं, कोई ऐसा उपाय निकालिए जिससे सन्तान हो। गुरु वशिष्ठ ने कहा—एक तरकीब है, पुत्रेष्टि यज्ञ किया जाय। राजा दशरथ ने कहा कि मैं यज्ञ का सारा प्रबन्ध करूंगा, आप यज्ञ करने के लिए चलिए। गुरु वशिष्ठ ने कहा—पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए कोई आचार्य दिखाई नहीं देता। राजा दशरथ ने कहा—गुरुदेव! क्या आप यज्ञ नहीं करा सकते? गुरुजी ने कहा—राजन्! पुत्रेष्टि यज्ञ मैं नहीं करा सकता, मंत्रों में तो शक्ति है, परन्तु उसके मुताबिक ऋषित्व चाहिए। भोग करने से मेरी शक्ति क्षीण हो गयी है। मेरे सौ बच्चे हैं। मेरा आत्मबल क्षीण हो गया है। एक ऋषि है और वह है—श्रृंगी ऋषि। उसको बुलाया जाये, तो आपका यज्ञ सफल होगा। राजा ने कहा—यह ऋषि तो अठारह वर्ष का छोकरा है। क्या वह यह यज्ञ सफल करा सकता है? गुरु वशिष्ठ ने कहा—उसके दिमाग में आज तक स्त्री का स्वरूप भी नहीं आया है। संयमशीलता के कारण उसके अन्दर प्रचण्ड आत्मबल और तेज है। गुरु वशिष्ठ राजा दशरथ को लोमश ऋषि के आश्रम में ले गये। राजा का भ्रम दूर करने के लिए वे अप्सराओं को भी साथ ले गये। उन्होंने पहले अप्सराओं को श्रृंगी ऋषि के पास भेजा। श्रृंगी ऋषि ने अप्सराओं से कहा—आप कहां की निवासी हैं? आपकी मूंछें क्यों नहीं हैं? आपका सीना ऊंचा क्यों है? अप्सराओं ने कहा—हमारा देश ठण्डा है। वहां पर पचास वर्ष की उम्र के बाद मूंछें निकलती हैं। हमारे गुरु प्राणायाम कराते हैं, जिससे हमारा सीना चौड़ा हो गया है। अप्सराओं ने मिठाई निकालकर श्रृंगी ऋषि को दी और कहा यह हमारे यहां के फल हैं। आपके यहां तो कटहल जैसे फल होते हैं। श्रृंगी ऋषि ने कहा—हम गुरु की आज्ञा के बिना फल नहीं खाते। उस मिठाई को लेकर वे लोमश ऋषि के पास आये। लोमश ऋषि ने अप्सराओं को देखा तो गुस्से में कहने लगे—मेरे लड़के को कौन बहकाने आया है? गुरु वशिष्ठ ने कहा—हम राजा दशरथ का भ्रम दूर करने के लिए अप्सराओं को साथ लाये हैं। गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ से कहा—तुमने ऐसा ऋषि नहीं देखा, वह दिखाने आया हूं।
श्रृंगी ऋषि ने किसी स्त्री को नहीं देखा था। उन्होंने कभी मिर्च, मसाले, पकौड़ी, मिठाई, रसगुल्ले नहीं खाये थे। संयमी जीवन, सधा हुआ जीवन जीया था। परिणामस्वरूप उनके पास प्रचण्ड आत्म शक्ति एकत्र हो गई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया, तो चार भगवान पैदा हुए। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न। उपासना जिसके द्वारा सफल होती है, वह है व्यक्तित्व का परिष्कार। मेरे गुरु ने मुझे बताया कि पहले तुम्हें साधना करनी होगी। पहले साधना का मंत्र देंगे, उसके बाद उपासना का।
आजकल तो सब उपासना की ही बात करते हैं, साधना का तो कोई नाम ही नहीं लेता। आपने मैट्रिक पास नहीं किया तो कॉलेज में दाखिला कैसे मिल जायेगा? उपासना के लिए हम गायत्री मंत्र जपते हैं, परन्तु साधना के लिए दिन भर लगे रहना पड़ता है। सुबह उठते ही बैठकर चिन्तन करें। आज मेरा नया जन्म हुआ है। जिस प्रकार ब्रह्मा जी कमल के फूल पर पैदा हुए। हम चारपाई में से पैदा हो रहे हैं। हमारे लिए यह चारपाई ही कमल का फूल है। आज का दिन अच्छा जीयेंगे, शानदार जीयेंगे। रात तक उल्लास से उमंग भरा जीवन जीयेंगे। सारा दिन नाटक की तरह जीयेंगे। दिन भर नाटक में सौंपी हुई भूमिका ऐसी करेंगे कि लोग तारीफ करते रह जायें। आज तक मैं बुरा व्यवहार करता था, अब नहीं करूंगा। मैं भगवान का पुत्र हूं। भगवान के पुत्र को बुरे काम, बुरा व्यवहार पसन्द नहीं होना चाहिए। मैं परमपिता परमेश्वर की आज्ञा पालन करने वाला हूं। रात को सोते समय भावना करें कि हमारी मौत आ गयी। हमारी आज की जिन्दगी समाप्त। दिन भर की इस जिन्दगी में मैंने कहीं अनुचित कार्य तो नहीं किये। यदि भूल की हो तो उसका प्रायश्चित करें ताकि ऐसी भूल आगे न हो। मौत हमारी प्यारी मां है। इससे अधिक हमारी कोई चीज नहीं होती। जिस प्रकार मां के पास बहुत से लोग शिकायत लाते हैं, तो भी वह अपने बच्चों को गोदी में लिटाकर सुलाती है और कहती है—बेटा! मैं सबको धमका दूंगी। सोजा बेटा! सोजा!! हम सबको रात में सोते समय, नींद की, मौत की गोदी में जाते समय ईर्ष्या, राग, द्वेष, जलन, कुढ़न आदि सबको भूल जाना चाहिए। मौत मां की तरह गोदी में सुलाती है। जिस प्रकार डॉक्टर बेहोशी का इंजेक्शन लगा कर सुला देता है। आप अपने व्यवहार पर सोचेंगे तो सुधार आयेगा। मैं पत्नी से अच्छा व्यवहार करूंगा। मां को बुरा नहीं कहूंगा। प्रेम से आदमी सुधरता है। स्त्री भी कहे कि मेरा पति तो साक्षात् देवता है, जब आते हैं प्रशंसा करते हैं। आप गुणों की प्रशंसा करना सीखें। यहां गायत्री तपोभूमि में एक लड़का आया, उसने एक व्यक्ति के साठ रुपये चुरा लिए। हमने उस लड़के को प्यार से समझाया और कहा—बेटा! चोरी करना बहुत बुरा है। चोरी नहीं करनी चाहिए। वह लड़का यहां से सुधर कर गया। पहले वह सब्जी लेने जाता था, तो चोरी करता था। अब वह घर का सामान ठीक से लाने लगा। घर वालों ने कहा—क्या हो गया है, तुझको। अब तो तू बदल ही गया है। उसने कहा—मैं चोरी क्या कोई भी बुरा काम नहीं करूंगा। मैं मथुरा से सुधर कर आया हूं। उस लड़के का जीवन ही बदल गया। घर वाले सभी उसकी प्रशंसा करने लगे। प्रशंसा से आप दूसरों को नया जीवन दे सकते हैं। आप अपनी तरह से व्यवहार तो बदलिए। देखो! कितना चमत्कार होता है।
धर्मपत्नी ने किसी दिन कपड़े नहीं धोये, तो आप उसे डांटने लगे। आपको कहना चाहिए कि तुम दिन भर काम करती रहती हो। तुम कपड़ों में साबुन लगाओ मैं धोता चलता हूं। धर्मपत्नी कहेगी—नहीं! कल से सब कपड़े धुले हुए मिलेंगे। एक-दूसरे से मीठे वचन बोलने चाहिए। एक से एक बढ़िया काम करने चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि हमारे मन में कहीं विकार तो नहीं उठ रहे हैं। सारे दिल-दिमाग पर ध्यान देना चाहिए।
हम समय को बरबाद करते हैं, तो समय हमको बरबाद कर देता है। शरीर को काम में लगाना चाहिए और मन को ऊंचे विचारों में लगाकर रखना चाहिए। जब भी गन्दे विचार आयें शीघ्र ही आप उनको काटिये। जब किसी के प्रति वासना के विचार आयें तो आप विचार लाइये कि यह हमारी बहिन है। दूसरे की कन्या हमारी बहिन है। जब आपके मन में काम वासना के विचार आयें तो उन विचारों को काट डालिए। जिसकी तरफ आपका मन दौड़ता है, आप विचार कीजिये—उसके पेट का पोस्टमार्टम कीजिये, पेट के अन्दर देखिये, अरे! यह तो मल का, पेशाब का घर है। मन को कहना—यह देख अभागे! तू कहां भटक रहा है। गन्दे विचार आये, पाप के, चोरी के, बेईमानी के विचार आयें, तो आप अच्छे विचार तैयार रखिये, जो बुरे विचारों को घुसने ही न दें। चौकीदार सोता है, तो चोर घुस आता है। आप अपनी चौकीदारी नहीं कर सकते। जिस प्रकार डॉक्टर अपने पास दवाइयां तैयार रखते हैं, जैसे ही कोई बीमार आता है, उसे दवाइयां देता है। आपने अपने घर की, परिवार की, दुकान की, मकान की, सबकी रक्षा की परन्तु आपने अपने विचारों की रक्षा क्यों नहीं की? शानदार जीवन जीऊंगा। अपने जीवन को बदल डालूंगा। अंगुलिमाल, गणिका, अम्बपाली जैसों ने अपने जीवन को बदल लिया, तो क्या मैं अपने को नहीं बदल सकता? अपने जीवन को बदल डालिए। अपने जीवन की साधना आपको भगवान तक पहुंचा सकती है। हमने उपासना और साधना दोनों को महत्व दिया। हमने अखण्ड दीपक जलाया, जो आज तक जल रहा है। हमने उस दीपक की रक्षा भी की और हमारे अंदर वाले दीपक की भी। हमारे दोनों दीपक जलते जा रहे हैं।
एक पहिये की गाड़ी नहीं चलती। एक पहिये की गाड़ी सिर्फ सर्कस में भागती है। वह थोड़ा घूम सकती है। लम्बे सफर के लिए तो दो पहिये की साइकिल ही चाहिए। उपासना और साधना दो पहिये की गाड़ी है। वास्तविक कल्याण के लिए यही वाहन चाहिए। आपकी एक आंख है और एक नहीं, तो अच्छा नहीं लगेगा। एक टांग आपकी ठीक है और एक खराब, तो आप चल नहीं पायेंगे। इसी प्रकार हमने मात्र जप ही किया और साधना का काम छोड़ दिया, तो इससे हमारा जीवन सफल कैसे होगा? हम हिमालय अज्ञातवास को गये, वहां दो महात्माओं को देखा। एक का नाम सीताराम था और दूसरे का सदानंद। दोनों नंगे रहते थे। दोनों मौनी थे। कभी गुफाओं में, कभी झोंपड़ी में रहते थे। उनकी कुटिया के पास थोड़ी जगह थी, जहां दोनों महात्मा अपनी-अपनी जगह में थोड़ी साग-सब्जी बो देते थे। दोनों महात्माओं में एक दिन जमीन के लिए झगड़ा हो गया। वे दोनों मौनी थे, बोलते नहीं थे। पहले दिन उनने इशारे से क्रोध प्रकट किया, दूसरे दिन आंखें बदलीं और तीसरे दिन हाथा-पाई हो गयी। दोनों ने एक-दूसरे की दाढ़ी उखाड़ दी। वे दोनों महात्मा नित्य प्रति गंगा स्नान करते थे। परन्तु उनका क्रोध नहीं गया, तो क्या उनको गंगा-स्नान करने से मुक्ति मिल गई होगी। मुक्ति कैसे मिली होगी मित्रो! उनके भीतर राग, द्वेष और क्रोध की ज्वालाएं तो धधकती रही थीं। भगवान को पा लेने वाले की एक ही पहचान है कि उसमें मनोविकार नहीं होना चाहिए। मनोविकार वाले मनुष्य कहीं स्वर्ग चले गये तो स्वर्ग को भी नरक बना देंगे। मनोविकारों को दूर करने वाले को साधक कहते हैं। बद्रीनाथ के दर्शन करके, गंगास्नान करके भी लोभ-मोह दूर नहीं हुआ, तो सब बेकार है। तब आपको मुक्ति नहीं मिल सकती। मेरे दिल में खलबली उठ गयी थी। क्या ये सिद्धान्त गलत हैं। मेरे गुरु आये और कहा—तुम साधना का महत्व भूल गये क्या? गुरु ने गंगा नहाना भी, माला घुमाना भी सिखाया और साधना की बात भी बतायी। जब तक आप मनोविकारों को दूर नहीं करेंगे, जीवन का परिष्कार नहीं करेंगे, तब तक उपासना की, भजन की कीमत बीज के समान है। जमीन की कीमत तीन हजार रुपया बीघा है। बीज तो पांच-छः रुपया किलो मिल जायेगा। पहला मंत्र तो यह सीखें। सुबह उठकर यह साधना करें—मैं शानदार जीवन, उत्कृष्ट जीवन जीऊंगा, भगवान का बेटा बनकर जीऊंगा। बढ़िया जीवन जीऊंगा। यदि आप अच्छे विचार रखेंगे तो आपका चेहरा चमकेगा। हम आपको रास्ता बतला रहे हैं। गुरु वह है जो साधना बतलाये। शिष्य वह है, जो गुरु के कहने पर साधना करें। जीवन को साधनामय बनाना आवश्यक है।
मंत्र शरीर है, तो साधना आत्मा है। उपासना के साथ साधना आवश्यक ही है। आप उपासना के साथ साधना भी करें। आप भी ऐसा करें और दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करें।