
मनुष्य को ईश्वर के अनुदान
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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा मे 13 सितम्बर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो
भगवान ने इस संसार को कितना सुन्दर बनाया है। भगवान को बड़ा धन्यवाद! वह सर्वशक्तिमान है। भगवान से जो सम्पर्क रखेगा, वही लाभ प्राप्त करेगा। गायत्री माता सब कुछ देती है। जिस प्रकार सूर्य सबको प्रकाश देता है, परन्तु हम अपने ऊपर छतरी लगा लें, तो सूरज की रोशनी हमारे ऊपर नहीं आती, उसी प्रकार हम अपने और गायत्री माता के बीच अवरोध खड़े कर लें तो हम भी उसके अनुदानों से वंचित रह सकते हैं। गायत्री माता का अनुदान प्राप्त करना है, तो हमको उनसे सम्बन्ध जोड़ना पड़ेगा। आपके घर पंखे, कूलर, हीटर सभी हैं, बल्ब लगे हैं, परन्तु जब तक आपका सम्बन्ध पावर हाउस से नहीं होगा, तब तक वे किसी काम के नहीं। जिस प्रकार पंखा, कूलर, हीटर आदि पावर हाउस से कनेक्शन होने पर चलने लगते हैं, उसी प्रकार मनुष्य जीवन है, इसका सम्बन्ध भी परमेश्वर से जोड़ने पर ऐसा सब कुछ करने में समर्थ हो जाता है, जिसे अद्भुत और अद्वितीय कहा जा सके।
मनुष्य का शरीर भगवान की दया से मिला है। जब हम छोटे थे, तब मां का दूध पीते थे, मां दूध पिलाती थी, वह हमारे महतरानी, धोबिन, चौकीदारिन के काम अकेली और एक साथ करती थी। एक बैंक पिता के रूप में मिली, जो खर्च चलाते रहे। माता-पिता हमको भगवान ने दिये। यदि माता-पिता नहीं होते, तो हमारा क्या हाल होता? सामान्य दया सबको मिल जाती है। नौकरों को भी तरक्की मिलती रहती है। सामान्य कृपा तो किसी को भी मिल जाती है। असामान्य कृपा जिसको मिलती है, वह महापुरुष बन जाता है। यह साधारण व्यक्ति को नहीं मिलती, वह हमको मिल गयी। इसके लिए विशेष प्रयत्न करना पड़ता है, वह है ‘‘गायत्री पुरश्चरण’’। हम इसके द्वारा भगवान की शक्ति प्राप्त करते हैं। भगवान की कृपा के बिना शरीर बल, धन बल, बुद्धि बल सब बेकार है। आप दूध, घी, मेवा, खाकर शरीर अच्छा बना लेंगे, परन्तु भगवान की कृपा नहीं रहे तो लकवा मार सकता है। चोर आता है, सारा धन चुराकर ले जाता है। बालक शराब पीते, जुआ खेलते और न जाने क्या-क्या करते हैं। धन भी सुख नहीं देता है। आपके चार बच्चे हुए परन्तु चारों जुआरी, पागल, शराबी हो जायें, तो सब बेकार हो जाता है। आपने संतान मांगी, संतान भी हो गयी, परन्तु संतान ही निकम्मी निकल गयी, तो संतान सुख नहीं मिलेगा। भगवान की कृपा नहीं हो, तो सारा घर नरक बन जाता है। हर आदमी को विद्या, धन और शरीर बल बढ़ाना चाहिए, परन्तु उनका ठीक उपयोग तभी होता है, जब भगवान की कृपा होती है। उस कृपा को प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए।
अकबर बादशाह बिना पढ़ा-लिखा था, रवीन्द्रनाथ टैगोर सातवीं कक्षा पास थे। भगवान की कृपा से आदमी क्या से क्या हो जाता है? भगवान की दया के बिना कुछ नहीं हो सकता है। पुरुषार्थ भी काफी नहीं है। हवा का रुख आपके खिलाफ हो जाये, तो साइकिल चलाने में भी परेशानी होती है। पुरुषार्थ करें और जीवन को भी निर्मल बनायें। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाना होगा। उसी कृपा की प्राप्ति के लिए आप यहां आये हैं। अपना सम्बन्ध भगवान से जोड़ने, गायत्री माता से जोड़ने। बल्ब फ्यूज हो और बिजली से कनेक्शन भी जुड़ा हो, तो भी प्रकाश नहीं होगा। हमारा भी गायत्री माता से सम्बन्ध जुड़ गया, परन्तु हमारी पात्रता नहीं, तो फिर वे अनुदान व्यर्थ चले जायेंगे, जिनके रहते बड़े-बड़े काम सम्पन्न हो सकते हैं।
विद्या, धन बड़े हैं, परन्तु सबसे अधिक अनुग्रह भगवान का है। प्रेरणा की आवश्यकता है। गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म का मूल मंत्र है। गायत्री मंत्र का जप सप्त ऋषि भी करते थे। भगवान राम को उनके गुरु वशिष्ठ ने गायत्री मंत्र ही दिया था। भगवान कृष्ण को भी गुरु सांदीपनी ने यही मंत्र दिया था।
पहले तैंतीस करोड़ व्यक्ति थे, सब देवता कहलाते थे क्योंकि वे गायत्री की उपासना करते थे। वेदों में अनेक मंत्र हैं, उनमें से मात्र गायत्री मंत्र मूल मंत्र है। यह महापुरुष बनने का मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है। आजकल मजहब वालों ने ढोंग फैला दिया है। कितने मार्ग और कितने मंत्र हैं। भ्रान्तियां फैल गयी हैं। हम सड़क से भाग रहे हैं, परन्तु प्रकाश नहीं मिल रहा है। आप जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह रास्ता शैतान का है। भटकते हुए मनुष्य को सही रास्ते पर लाना पड़ेगा। आज तक हमने शरीर के लिए ही सब काम किये हैं। क्या हमारा शरीर ही सब कुछ है? सारा जीवन इसी में गंवा दिया जाय। सारा ध्यान शरीर ही शरीर पर लगा रखा है। आत्मा की तरफ आपने ध्यान नहीं जाने दिया। शैतान ने हमारे मन को कभी टस से मस नहीं होने दिया। आपको आत्मा के लिए भी समय निकालना चाहिए अन्यथा इस देह को जो चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के उपरान्त प्राप्त हुई है, पुनः उसी में भ्रमण करना होगा। पेट और प्रजनन यह दो काम तो पशु-पक्षी भी कर लेते हैं। मानव वृत्ति यह नहीं है कि शरीर की ही पूर्ति में सारा जीवन खपा दे। यह तो शैतान की वृत्ति है। मानव वृत्ति वह है, जिसमें आत्मा और परमात्मा पर ध्यान दिया जाता है। हमें शैतान को ठुकराना चाहिए। आपने तो जीवन भर शैतान का ही टेलीफोन सुना, भगवान का टेलीफोन रखा रहा और आपने सुना ही नहीं। हमने शैतान से दोस्ती की और भगवान से दूर रहे। भगवान की हमने उपेक्षा की और शैतान से जिगरी दोस्ती की। फिर कृपा किसकी प्राप्त होगी? भगवान की कृपा? नहीं। क्योंकि शैतान से आपको मोहब्बत है। भगवान के पास बैठने का समय कहां है? सिनेमा देखने में मन लगा रहता है, गाना सुनने में मन लगा रहता है, बीबी के पास बैठने में मन लगा रहता है। एक घण्टा उपासना करने बैठे तो घुटने में दर्द होता है, नींद आने लगती है, ऐसा क्यों, इसलिए कि भगवान से दोस्ती नहीं है। सारे संसार का मन शैतान से दोस्ती करने में लगा है। जहां रहने, खाने, मनोरंजन की सुविधा थी, वहां मन लग गया। हमें प्रसन्नता है कि आप सब यहां आये हैं। आपने हिम्मत की है शैतान से नाता तोड़ने की। यहां भगवान की आवाज है जिसे सुनने के लिए आप यहां आये हैं। भगवान से दोस्ती जोड़ी। अपने जीवन को मोड़ लेना बड़ा अच्छा है। बड़े आदमी से हमारा मेल हो जाये, मिनिस्टर से मित्रता हो जाये, तो हम फायदे में हो जाते हैं। अगर हमारी भगवान से दोस्ती हो जाये, तो फायदे में क्यों नहीं हो सकते?
भगवान जिसने आपको जन्म दिया है, उसके रास्ते पर चलने के लिए आप तैयार हो गये। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। आप यहां नौ दिन की साधना करने आये हैं। यह नौ दिन ऐसे हैं, जैसे हम नौ माह मां के पेट में रहे, मां खून देती रही, पोषण करती रही। इसी प्रकार इन नौ दिन में आपको बहुत-सी मूल्यवान वस्तुएं मिलेंगी। उनकी रखवाली करनी पड़ेगी। घी ले जाने के लिए बोतल या डिब्बे की आवश्यकता होती है। हाथ पर घी नहीं ले जाया जा सकता। आपके कपड़े भी खराब होंगे और घी भी खराब होगा। घी रखने के लिए आपको डिब्बा चाहिए। यहां हमने आपको डिब्बा मिलने की जगह बता दी है। जिस प्रकार मैंने इस मां का दूध पिया है, उसी प्रकार आप भी पी सकते हैं और असंख्य मनुष्यों का भला कर सकते हैं। सामान्य अनुदान सामान्य प्रयत्न से प्राप्त हो जाते हैं। इंक्रीमेण्ट मिलना स्वाभाविक घटना है, लेकिन प्रमोशन लेना हो तो उसके लिए अलग से कोशिश करनी पड़ती है। विशेष अनुग्रह के लिए विशेष प्रयास करना पड़ता है। ईश्वरीय अनुग्रह के बिना सभी सांसारिक विभूतियां फीकी पड़ जाती हैं। अनुग्रह रहने पर थोड़ा पुरुषार्थ करने पर भी अधिक प्राप्ति होती है। हवा अनुकूल हो तो साइकिल का सफर थोड़े प्रयास से ही पूरा हो जाता है।
आप सभी के लिए आज हवा अनुकूल है। आज भगवान अनुग्रह देने को खड़े हैं, परन्तु उसके लिए पात्रता विकसित करनी होगी। पात्रता पैदा करने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। हमें विश्वास है कि आप सब अपना सम्बन्ध गायत्री माता से जोड़े रखेंगे। मां-बच्चे का नाता तोड़ा नहीं जाता। बालक को मां के प्रति आज्ञाकारी होना चाहिए। उद्दण्ड बालक मां की प्रताड़ना का शिकार बनते हैं। ईश्वरीय संरक्षण में चलकर आत्मा के उद्धार का मार्ग खोजें। गायत्री उपासना ने ही राम को भगवान राम बनाया। हम सबको भी ऐसी ही पात्रता पैदा करनी चाहिए।
देवियो और भाइयो
भगवान ने इस संसार को कितना सुन्दर बनाया है। भगवान को बड़ा धन्यवाद! वह सर्वशक्तिमान है। भगवान से जो सम्पर्क रखेगा, वही लाभ प्राप्त करेगा। गायत्री माता सब कुछ देती है। जिस प्रकार सूर्य सबको प्रकाश देता है, परन्तु हम अपने ऊपर छतरी लगा लें, तो सूरज की रोशनी हमारे ऊपर नहीं आती, उसी प्रकार हम अपने और गायत्री माता के बीच अवरोध खड़े कर लें तो हम भी उसके अनुदानों से वंचित रह सकते हैं। गायत्री माता का अनुदान प्राप्त करना है, तो हमको उनसे सम्बन्ध जोड़ना पड़ेगा। आपके घर पंखे, कूलर, हीटर सभी हैं, बल्ब लगे हैं, परन्तु जब तक आपका सम्बन्ध पावर हाउस से नहीं होगा, तब तक वे किसी काम के नहीं। जिस प्रकार पंखा, कूलर, हीटर आदि पावर हाउस से कनेक्शन होने पर चलने लगते हैं, उसी प्रकार मनुष्य जीवन है, इसका सम्बन्ध भी परमेश्वर से जोड़ने पर ऐसा सब कुछ करने में समर्थ हो जाता है, जिसे अद्भुत और अद्वितीय कहा जा सके।
मनुष्य का शरीर भगवान की दया से मिला है। जब हम छोटे थे, तब मां का दूध पीते थे, मां दूध पिलाती थी, वह हमारे महतरानी, धोबिन, चौकीदारिन के काम अकेली और एक साथ करती थी। एक बैंक पिता के रूप में मिली, जो खर्च चलाते रहे। माता-पिता हमको भगवान ने दिये। यदि माता-पिता नहीं होते, तो हमारा क्या हाल होता? सामान्य दया सबको मिल जाती है। नौकरों को भी तरक्की मिलती रहती है। सामान्य कृपा तो किसी को भी मिल जाती है। असामान्य कृपा जिसको मिलती है, वह महापुरुष बन जाता है। यह साधारण व्यक्ति को नहीं मिलती, वह हमको मिल गयी। इसके लिए विशेष प्रयत्न करना पड़ता है, वह है ‘‘गायत्री पुरश्चरण’’। हम इसके द्वारा भगवान की शक्ति प्राप्त करते हैं। भगवान की कृपा के बिना शरीर बल, धन बल, बुद्धि बल सब बेकार है। आप दूध, घी, मेवा, खाकर शरीर अच्छा बना लेंगे, परन्तु भगवान की कृपा नहीं रहे तो लकवा मार सकता है। चोर आता है, सारा धन चुराकर ले जाता है। बालक शराब पीते, जुआ खेलते और न जाने क्या-क्या करते हैं। धन भी सुख नहीं देता है। आपके चार बच्चे हुए परन्तु चारों जुआरी, पागल, शराबी हो जायें, तो सब बेकार हो जाता है। आपने संतान मांगी, संतान भी हो गयी, परन्तु संतान ही निकम्मी निकल गयी, तो संतान सुख नहीं मिलेगा। भगवान की कृपा नहीं हो, तो सारा घर नरक बन जाता है। हर आदमी को विद्या, धन और शरीर बल बढ़ाना चाहिए, परन्तु उनका ठीक उपयोग तभी होता है, जब भगवान की कृपा होती है। उस कृपा को प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए।
अकबर बादशाह बिना पढ़ा-लिखा था, रवीन्द्रनाथ टैगोर सातवीं कक्षा पास थे। भगवान की कृपा से आदमी क्या से क्या हो जाता है? भगवान की दया के बिना कुछ नहीं हो सकता है। पुरुषार्थ भी काफी नहीं है। हवा का रुख आपके खिलाफ हो जाये, तो साइकिल चलाने में भी परेशानी होती है। पुरुषार्थ करें और जीवन को भी निर्मल बनायें। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाना होगा। उसी कृपा की प्राप्ति के लिए आप यहां आये हैं। अपना सम्बन्ध भगवान से जोड़ने, गायत्री माता से जोड़ने। बल्ब फ्यूज हो और बिजली से कनेक्शन भी जुड़ा हो, तो भी प्रकाश नहीं होगा। हमारा भी गायत्री माता से सम्बन्ध जुड़ गया, परन्तु हमारी पात्रता नहीं, तो फिर वे अनुदान व्यर्थ चले जायेंगे, जिनके रहते बड़े-बड़े काम सम्पन्न हो सकते हैं।
विद्या, धन बड़े हैं, परन्तु सबसे अधिक अनुग्रह भगवान का है। प्रेरणा की आवश्यकता है। गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म का मूल मंत्र है। गायत्री मंत्र का जप सप्त ऋषि भी करते थे। भगवान राम को उनके गुरु वशिष्ठ ने गायत्री मंत्र ही दिया था। भगवान कृष्ण को भी गुरु सांदीपनी ने यही मंत्र दिया था।
पहले तैंतीस करोड़ व्यक्ति थे, सब देवता कहलाते थे क्योंकि वे गायत्री की उपासना करते थे। वेदों में अनेक मंत्र हैं, उनमें से मात्र गायत्री मंत्र मूल मंत्र है। यह महापुरुष बनने का मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है। आजकल मजहब वालों ने ढोंग फैला दिया है। कितने मार्ग और कितने मंत्र हैं। भ्रान्तियां फैल गयी हैं। हम सड़क से भाग रहे हैं, परन्तु प्रकाश नहीं मिल रहा है। आप जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह रास्ता शैतान का है। भटकते हुए मनुष्य को सही रास्ते पर लाना पड़ेगा। आज तक हमने शरीर के लिए ही सब काम किये हैं। क्या हमारा शरीर ही सब कुछ है? सारा जीवन इसी में गंवा दिया जाय। सारा ध्यान शरीर ही शरीर पर लगा रखा है। आत्मा की तरफ आपने ध्यान नहीं जाने दिया। शैतान ने हमारे मन को कभी टस से मस नहीं होने दिया। आपको आत्मा के लिए भी समय निकालना चाहिए अन्यथा इस देह को जो चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के उपरान्त प्राप्त हुई है, पुनः उसी में भ्रमण करना होगा। पेट और प्रजनन यह दो काम तो पशु-पक्षी भी कर लेते हैं। मानव वृत्ति यह नहीं है कि शरीर की ही पूर्ति में सारा जीवन खपा दे। यह तो शैतान की वृत्ति है। मानव वृत्ति वह है, जिसमें आत्मा और परमात्मा पर ध्यान दिया जाता है। हमें शैतान को ठुकराना चाहिए। आपने तो जीवन भर शैतान का ही टेलीफोन सुना, भगवान का टेलीफोन रखा रहा और आपने सुना ही नहीं। हमने शैतान से दोस्ती की और भगवान से दूर रहे। भगवान की हमने उपेक्षा की और शैतान से जिगरी दोस्ती की। फिर कृपा किसकी प्राप्त होगी? भगवान की कृपा? नहीं। क्योंकि शैतान से आपको मोहब्बत है। भगवान के पास बैठने का समय कहां है? सिनेमा देखने में मन लगा रहता है, गाना सुनने में मन लगा रहता है, बीबी के पास बैठने में मन लगा रहता है। एक घण्टा उपासना करने बैठे तो घुटने में दर्द होता है, नींद आने लगती है, ऐसा क्यों, इसलिए कि भगवान से दोस्ती नहीं है। सारे संसार का मन शैतान से दोस्ती करने में लगा है। जहां रहने, खाने, मनोरंजन की सुविधा थी, वहां मन लग गया। हमें प्रसन्नता है कि आप सब यहां आये हैं। आपने हिम्मत की है शैतान से नाता तोड़ने की। यहां भगवान की आवाज है जिसे सुनने के लिए आप यहां आये हैं। भगवान से दोस्ती जोड़ी। अपने जीवन को मोड़ लेना बड़ा अच्छा है। बड़े आदमी से हमारा मेल हो जाये, मिनिस्टर से मित्रता हो जाये, तो हम फायदे में हो जाते हैं। अगर हमारी भगवान से दोस्ती हो जाये, तो फायदे में क्यों नहीं हो सकते?
भगवान जिसने आपको जन्म दिया है, उसके रास्ते पर चलने के लिए आप तैयार हो गये। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। आप यहां नौ दिन की साधना करने आये हैं। यह नौ दिन ऐसे हैं, जैसे हम नौ माह मां के पेट में रहे, मां खून देती रही, पोषण करती रही। इसी प्रकार इन नौ दिन में आपको बहुत-सी मूल्यवान वस्तुएं मिलेंगी। उनकी रखवाली करनी पड़ेगी। घी ले जाने के लिए बोतल या डिब्बे की आवश्यकता होती है। हाथ पर घी नहीं ले जाया जा सकता। आपके कपड़े भी खराब होंगे और घी भी खराब होगा। घी रखने के लिए आपको डिब्बा चाहिए। यहां हमने आपको डिब्बा मिलने की जगह बता दी है। जिस प्रकार मैंने इस मां का दूध पिया है, उसी प्रकार आप भी पी सकते हैं और असंख्य मनुष्यों का भला कर सकते हैं। सामान्य अनुदान सामान्य प्रयत्न से प्राप्त हो जाते हैं। इंक्रीमेण्ट मिलना स्वाभाविक घटना है, लेकिन प्रमोशन लेना हो तो उसके लिए अलग से कोशिश करनी पड़ती है। विशेष अनुग्रह के लिए विशेष प्रयास करना पड़ता है। ईश्वरीय अनुग्रह के बिना सभी सांसारिक विभूतियां फीकी पड़ जाती हैं। अनुग्रह रहने पर थोड़ा पुरुषार्थ करने पर भी अधिक प्राप्ति होती है। हवा अनुकूल हो तो साइकिल का सफर थोड़े प्रयास से ही पूरा हो जाता है।
आप सभी के लिए आज हवा अनुकूल है। आज भगवान अनुग्रह देने को खड़े हैं, परन्तु उसके लिए पात्रता विकसित करनी होगी। पात्रता पैदा करने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। हमें विश्वास है कि आप सब अपना सम्बन्ध गायत्री माता से जोड़े रखेंगे। मां-बच्चे का नाता तोड़ा नहीं जाता। बालक को मां के प्रति आज्ञाकारी होना चाहिए। उद्दण्ड बालक मां की प्रताड़ना का शिकार बनते हैं। ईश्वरीय संरक्षण में चलकर आत्मा के उद्धार का मार्ग खोजें। गायत्री उपासना ने ही राम को भगवान राम बनाया। हम सबको भी ऐसी ही पात्रता पैदा करनी चाहिए।