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Magazine - Year 1957 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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अ. भा. गायत्री परिवार सम्मेलनपूर्ण सफलता एवं उत्साहवर्धक वातावरण में सम्पन्न

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First 20 22 Last
(एक प्रत्यक्षदर्शी)

गायत्री तपोभूमि में यह मास बड़ा महत्वपूर्ण कार्यक्रम सम्पादित करते हुए व्यतीत हुआ। ता. 12 मई से 12 जून तक एक मास का साँस्कृतिक शिक्षण शिविर बड़े उत्साह वर्धक वातावरण में चलता रहा। भारत के विभिन्न प्रान्तों से लगभग 50 व्यक्ति आ गये थे, जिन्होंने इस एक मास में भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और उसके अनुसार अपने व्यक्तिगत जीवन को ढालने तथा अपने समीपवर्ती क्षेत्र में उस विचारधारा को प्रसारित करने का प्रण किया। सफल शिक्षा प्राप्त करने वालों को प्रमाण पत्र दिये गये। अ.भा.गायत्री परिवार सम्मेलन ता.7 से 12 जून तक, छह दिनों में सम्पन्न हुआ। देश की कोने-कोने में फैली हुई गायत्री परिवार की शाखाओं के लगभग पाँच सौ प्रतिनिधि आये थे। अब तक के कार्य की गतिविधि तथा भावी कार्यक्रम की रूपरेखा पर पूरे छहों दिन गम्भीर विचार विनिमय होता रहा। आज-कल रिवाज चल पड़ा है कि जिस सभा, सम्मेलन में अनेक प्रकार के, अनेक विचार धाराओं के, अनेक व्यक्तियों द्वारा, अनेक भजन भाषण हों, वही उत्सव सफल माना जाता है, पर यहाँ वह बात नहीं रखी गयी थी। साल भर के बिछुड़े हुए गायत्री परिजनों ने अपनी समस्याएं आचार्य जी के सामने उपस्थित कीं और आचार्य जी ने अपना हृदय खोलकर परिजनों के सामने रखा। इस प्रकार के आदान-प्रदान में जो स्वर्गीय सुख सभी को मिला उस आनन्द का वर्णन हो सकना कठिन है।

प्रातः काल 4 बजे घंटी बजते ही सब लोग सोकर उठ बैठते थे। शौच, स्नान से निवृत्त होकर 5 बजे जप पर बैठ जाते थे। 6 बजे से 100 कुण्डों की यज्ञ शालाओं में हवन आरम्भ होता था। 100 कुण्डों पर 500 उपासक पीले दुपट्टा डाले हुए जब यज्ञ करते थे और वेद मंत्रों की ध्वनि से आकाश गुँजायमान हो जाता था, उस दृश्य को देखकर सतयुग के ऋषि आश्रमों का दृश्य आँखों के आगे खड़ा हो जाता था। 8 बजे तक यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात सम्मेलन की कार्यवाही आरम्भ होती जो 10 बजे तक चलती । इसके उपराँत सब लोग एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते। दाल चावल, रोटी शाक का परम सात्विक भोजन, अपने ही परिवार के नर-नारियों द्वारा बनाया हुआ, उन्हीं के द्वारा परोसा हुआ, ऐसा मधुर और संस्कारित लगता था कि उस अन्न की सात्विक मस्ती साधकों के मन पर सारे दिन छाई रहती। काश, पूड़ी पकवान की छूतछात मानने वाले संकीर्ण विचारों वाले लोग इस सामूहिक परमसात्विक पारिवारिक भोजन के महत्व को समझ पावें तो उन्हें अपनी संकुचित मनोवृत्ति को छोड़ने में जरा भी देर न लगे। भोजन करने के बाद लोग स्वाध्याय करते रहते फिर 3 से 6 बजे तक सम्मेलन की कार्यवाही आरम्भ हो जाती। आचार्य जी का प्रवचन नित्य ही होता, इसके पश्चात अन्य परिजन अपने अपने विचार प्रकट करते। 6 बजे ये सम्मेलन समाप्त होने के पश्चात शौच, स्नान, आरती, कीर्तन, भोजन का कार्यक्रम चलता। रात को परिजन परस्पर विचार विनिमय करते रहते और दस बजे चटाइयों पर सो जाते, रात्रि में मेजिक लालटेन तथा सिनेमा के चित्र भी दिखाये गये। मथुरा, वृंदावन की सामूहिक तीर्थ यात्रा भी हुई। इस प्रकार गृहस्थ के जंजालों में साल भर तक थकाने वाला परिश्रम करने के उपराँत छह दिन के लिए जो लोग यहाँ आ सके उन्होंने अपने आपको धन्य माना। पृथ्वी पर स्वर्ग का अनुभव किया, नई प्रेरणा, चेतना और जीवनी शक्ति प्राप्ति की तथा अपने भाग्य को बार-बार सराहा।

छह दिनों में बहुत ही महत्व की मंत्रणाएं हुईं। सभी लोगों ने गत वर्ष में 20 हजार गायत्री परिवार के सदस्य बनने और 700 शाखाएं स्थापित करने पर हर्ष प्रकट किया और निश्चय किया कि इस संख्या को तीव्र गति से बढ़ाने के लिए पूरे मनोयोग से काम करेंगे। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के अंतर्गत जो इन दिनों 24 लक्ष जप, 24 हजार पाठ, 24 हजार लेखन, 24 हजार आहुतियों का दैनिक कार्यक्रम देश भर में चल रहा है उसे पाँच गुना बढ़ा दिया जाय अर्थात् प्रतिदिन 1 करोड़ जप, 1 लाख पाठ, 1 लाख लेखन एवं 1 लाख आहुतियों का हवन दैनिक होता रहे। पारिवारिक वर्तमान सभी सदस्यों को मिलकर इस संकल्प की पूर्ति में जुट जाना चाहिए ताकि पाँच गुना जो कार्य कंधों पर आ गया है उसे पूरा किया जा सके। सदस्यों की संख्या भी इस वर्ष पाँच गुनी नहीं तो दूनी अवश्य होनी चाहिए।

इस संगठनात्मक प्रक्रिया के पूर्ण होने पर जो संघ शक्ति उत्पन्न होगी उसका उपयोग आध्यात्मिक साधना के अतिरिक्त मानवता, संस्कृति, धर्म, नैतिकता एवं समाज सुधार के कार्यक्रमों में किया जायेगा। देवताओं के आगे पशुबलि, दहेज, बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह, बहु-विवाह, नशेबाजी, जुआ, मृतभोज, पर्दाप्रथा आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करने और शिक्षा, सहयोग, सफाई, धर्मचर्चा आदि की सत्प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए रचनात्मक कार्य हाथ में लिया जायेगा। ऐसे व्रतधारी सक्रिय सदस्यों की संख्या हर शाखा में अधिक से अधिक होनी चाहिए जो नित्य नियमित रूप से कुछ समय लोक सेवा के लिए दिया करें। यह व्रतधारी सदस्य ही साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना के प्रधान स्तम्भ माने जायेंगे क्योंकि उनके श्रमदान के ऊपर ही सद्-विचारों के प्रचार का आधार रहेगा। यह व्रतधारी सदस्य हर रविवार को व्रत रखेंगे और उपवास में बचाया हुआ अन्न सद्ज्ञान प्रसार के लिए व्यय किया करेंगे।

तपोभूमि की ओर से अत्यंत सस्ता साहित्य छापा जायेगा जो नैतिकता, मानवता, कर्तव्यपरायणता, संस्कृति संयम, सेवा भावना, सहयोग, मातृभाव आदि गुणों के विकसित करने में सहायक हो। व्रतधारी सदस्य इस साहित्य को मंगाते रहेंगे और अपने घर में पुस्तकालय की तरह उसे स्थापित करके प्रतिदिन एक व्यक्ति को पढ़ाने या सुनाने का प्रयत्न किया करेंगे। सप्ताह में छह दिन यह चलता फिरता पुस्तकालय घर-घर पुस्तकें पहुँचाने और वापिस लाने का काम करेगा और सातवें दिन उन पढ़ने वालों की मीटिंग हुआ करेगी जिस पर पढ़े हुए विषयों पर विचार विनिमय हुआ करेगा। यह साप्ताहिक सत्संग गायत्री जप-पाठ, कीर्तन, हवन आदि कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न होंगे। इस प्रकार प्रत्येक व्रतधारी छह नये सदस्यों का साँस्कृतिक अध्यापक होगा। इसे उपाध्याय कहा जाया करेगा। जिनने शिक्षा प्राप्त की है वे भी कुछ समय में स्वयं अध्यापक बनेंगे और वे भी नये शिक्षार्थी बनाएंगे। इस प्रकार यह शृंखला फैलती हुई सारे देश में घर-घर, जन-जन के मन-मन में भारतीय धर्म और संस्कृति का संदेश पहुँचाने का सफल कार्यक्रम सम्पन्न कर सकेगी। यह संस्कृति विश्व विद्यालय अपने व्रतधारी उपाध्यायों की सहायता से अत्यन्त व्यापक क्षेत्र में मानवता को उज्ज्वल करने वाले सद्गुणों को प्रशाँत करते हुए युग निर्माण की एक महान भूमिका का सम्पादन कर सकेगा।

अ.भ. गायत्री परिवार को जहाँ मानवता की सेवा के लिए सद्-विचारों को फैलाना है वहाँ अपने आप भी सुसंगठित एवं अत्यंत घनिष्ठ आत्मीयता से ओतप्रोत होना है। यदि कोई परिजन अपना कच्चा परिवार असहाय छोड़कर मर जाय तो 20 हजार सदस्य एक-एक पैसा भी दे दें तो उसकी भारी सहायता कर सकते हैं। इसी प्रकार अपने परिवार के लोग अपनी जाति के गायत्री परिजनों में ही विवाह शादी करें तो दहेज की समस्या ही न उठे। साथ ही सुसंस्कृति विचार धारा के वर-वधू से उत्पन्न हुई संतान भी शुभ संस्कार ही लेकर पैदा होगी, ऐसे बालक निश्चित रूप से नर रत्न एवं महापुरुष हो सकते हैं। गायत्री परिवार के समस्त बालकों की शिक्षा पूर्ण निःशुल्क रूप से एक ही स्थान पर हो। महिलाओं को एवं बच्चों को सुसंस्कृत बनाने के लिए समय-समय पर उनके नगरों में शिक्षण शिविर किये जाया करें। परिजनों की उत्तम चिकित्सा के लिए कोई केन्द्रीय चिकित्सालय रहे, आदि बातें ऐसी हैं जो परिवार का आँतरिक संगठन मजबूत बनाने में बहुत सहायक हो सकती हैं।

उपरोक्त बातों पर सम्मेलन में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने बहुत गंभीरता पूर्वक विचार किया और निश्चय किया कि संगठन को एक आदर्श मानव परिवार के रूप में बनाया जाय। यह इस युग का एक महान प्रयोग एवं परीक्षण होगा कि बिना किसी भौतिक स्वार्थ के भी नैतिकता, मानवता, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता के आधार पर भी विचारशील मानव प्राणी एक दूसरे की सेवा सहायता करता हुआ कितनी सुख शाँति का अनुभव कर सकता है।

प्रतिनिधियों ने निश्चय किया कि नई शाखाएं स्थापित करने, नये सदस्य बनाने के साथ-साथ पुराने सदस्यों में नई प्रेरणा का संचार करेंगे कि अब व्रतधारी बनने का समय आ गया। केवल एक दो माला जप लेने मात्र से गायत्री परिवार में सम्मिलित होने का उद्देश्य पूरा होने वाला नहीं है। उसे प्राप्त करने के लिए व्रतधारी गौरव के उपयुक्त (1) आत्मचेतना के लिए आदर्श की प्रेरणा देने वाला स्वाध्याय (2) प्रतिदिन धर्म सेवा के लिए कुछ समय लगाना तथा (3) रविवार को उपवास करके बचाया हुआ अन्न सद्ज्ञान प्रसार के लिए लगाना, यह तीन जिम्मेदारियाँ भी कंधे पर उठाना आवश्यक है। उपस्थित लोगों में से अधिकाँश ने अपने व्रतधारी प्रतिज्ञा पत्र सम्मेलन में ही भर दिये और अपनी शाखाओं में से और भी ऐसे ही सजीव सदस्य ढूँढ़ने का निश्चय किया।

गत वर्ष स्थान-स्थान पर बहुत बड़ी संख्या में गायत्री यज्ञ और साँस्कृतिक सम्मेलन बड़े उत्साह पूर्वक हुए। इस बात पर संतोष प्रकट करते हुए अगले वर्ष यह शृंखला और भी उत्साह के साथ चलाने का निश्चय किया गया। साथ ही यह भी मान लिया गया कि आचार्य जी को अगले वर्ष देश व्यापी संगठन सूत्र के संचालन, आवश्यक मार्ग दर्शन, एवं यज्ञ आदि सूक्ष्म विद्याओं की शोध करने के लिए मथुरा ही छोड़ा जाय। यह ठीक है कि परिवार में सर्वत्र उनके लिए असाधारण श्रद्धा और आत्मीयता होने के कारण सभी यज्ञों और सम्मेलनों में उनके बुलाने की माँग रहती है, पर उनके दुर्बल स्वास्थ्य तथा अखिल भारत वर्षीय और अन्य दायित्वों को देखते हुए हर जगह बुलाने का आग्रह न किया जाए, उन्हें केवल वहीं बुलाया जाय जहाँ अत्यधिक आवश्यकता एवं उपयोगिता हो तथा सवारी का ऐसा समुचित प्रबंध हो जिससे उनके स्वास्थ्य पर अनावश्यक दबाव न पड़े।

गत एक वर्ष से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को शिक्षा की पूर्णता के प्रमाण पत्र दिये गये और निश्चय किया गया कि इस वर्ष ऐसे ही लोग संस्कृति शिक्षा में प्रवृत्त किये जाएं जिनकी परिस्थिति एवं मनोभूमि आगे चलकर धर्म प्रचार में पूरी तरह लगने की है। इस वर्ष तपोभूमि में अधिकाँश ऐसे व्यक्ति रहेंगे जो स्थिर बुद्धि से साधनात्मक जीवन व्यतीत करने के इच्छुक हैं। ऐसे लोगों को भोजन, वस्त्र आदि की निर्वाह व्यवस्था तपोभूमि करेगी। चालीस वर्ष से अधिक आयु के लोग ही इस दृष्टि से उपयुक्त होते हैं ऐसा अनुभव किया गया।

अखण्ड ज्योति में अब तक गायत्री परिवार के वे समाचार छपते हैं जिनमें सामूहिक जप, हवन, सम्मेलन आदि की चर्चा रहती है। अब ऐसे समाचार भी रहा करेंगे जिनमें परिवार के किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा सत्कार्य, आदर्श, एवं अनुकरणीय उदाहरण उपस्थित किया हो जिससे दूसरे लोगों को भी श्रेष्ठता का उदाहरण उपस्थित करने की प्रेरणा मिले। गायत्री परिवार में बड़े आदमी (अमीर) भले ही न हों पर बढ़िया आदमी (महापुरुष) तो इस भण्डार में रत्न राशि की तरह जगमगाते ही रहने चाहिएं। माता से धन दौलत, बेटा, पोता माँगने वाले भिखमंगों की अपेक्षा अब ऐसे उदार सपूतों को प्रकाश में आना है जो माता की आत्मा को शाँति देने वाले आदर्श सत्कार्य कर दिखाने की श्रेष्ठता प्रकट कर सकें।

इस प्रकार अनेक महत्वपूर्ण विचार और कार्यों के साथ-साथ यह सम्मेलन बड़े ही उत्साह वर्धक वातावरण में समाप्त हुआ। विदाई के समय हर सदस्य की आँखों से वियोग जन्य प्रेमाश्रु बह रहे थे। आचार्य जी बहती आँखों और रुंधे कंठ से बड़ी कठिनाई से ही अंतिम भाषण पूरा कर सके। सम्मेलन संख्या और भीड़ की दृष्टि से छोटा था परंतु देश भर से जिस उच्च स्तर के लोग आये और उनने जो निश्चय किये इस दृष्टि से वह पूर्ण सफल रहा। प्रति वर्ष इन्हीं दिनों गायत्री जयन्ती के अवसर पर ऐसा ही एक सम्मेलन भविष्य में भी किया जाता रहेगा। सम्मेलन का दीक्षाँत भाषण श्री लक्ष्मीरमण जी आचार्य मंत्री उत्तर प्रदेशीय सरकार के द्वारा सम्पन्न हुआ। एक दिन महिला सम्मेलन भी रखा गया जिसमें नारी समस्या पर बड़े ही मार्मिक विचार प्रकट किये गये।

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