
व्यक्तित्व और स्वास्थ्य
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(सुश्री लीलारानी)
व्यक्तित्व एक ऐसा विषय है जिसकी ठीक-ठीक परिभाषा कर सकना बड़ा कठिन है। वैसे तो व्यक्तित्व का आशय अपने को जानना है, यह कार्य बड़ा कठिन है, क्योंकि आध्यात्मिक भाषा में अपने को जानना तब तक कदापि संभव नहीं जब तक हम ईश्वर को न जान लें।
पर साधारण भाषा में व्यक्तित्व का अर्थ वह प्रभाव है जो हम प्रायः दूसरों पर डाला करते हैं। कुछ लोग इसका अर्थ ऊपरी वेष भूषा, शारीरिक गठन और व्यवहार कुशलता से लेते हैं। यह सच है कि भारी भरकम और रौबीली आकृति के व्यक्ति अनेक लोगों पर शीघ्र प्रभाव डाल देते हैं। इसी प्रकार बढ़िया और उपयुक्त पोशाक तथा वेष भूषा वाले भी उसके द्वारा सर्व साधारण में प्रभाव जमा लेते हैं।
पर ये ऊपरी बातें व्यक्तित्व को बढ़ाने के साधन होते हुए भी उसकी मूल आधार नहीं मानी जा सकतीं। व्यक्तित्व आन्तरिक वस्तु है। जैसे हमारे मानसिक विचार और प्रवृत्तियाँ होंगी, वैसा ही प्रभाव हमारी बाहरी आकृति पर भी पड़ेगा। बड़े-बड़े महात्मा देखने में बिल्कुल साधारण आकृति के हुए हैं, कितने ही तो अंधे और अपाहिज भी हो गये हैं, पर उनके विचारों और आत्मा के आकर्षण से लोग सदैव उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। महात्मा गाँधी इस युग के सबसे महान व्यक्ति हुए हैं, जिनका प्रभाव संसार के बड़े से बड़े वैभवशाली और विद्वान लोगों पर भी तुरन्त पड़ता था, पर वे न तो आकृति से रौबदार थे और वस्त्रों के नाम पर तो एक खद्दर की लँगोटी ही उनके शरीर पर रहती थी।
यों तो प्रकृति ने सभी मनुष्यों को उन्नति की ओर अग्रसर होने की क्षमता दी है और स्वभाव से उसे बली, वीर्यवान तथा शारीरिक सौंदर्य से युक्त बनाया है। जहाँ कमजोरी, बीमारी, विकृतता है, वहाँ खोज करने से पता चलेगा कि व्यक्तित्व के विकास में कोई बाधा अवश्य पड़ती है। शारीरिक, मानसिक, भौतिक और सामाजिक कुरीतियों के कारण व्यक्तित्व के स्वाभाविक विकास में बाधा पड़ जाती है और मनुष्य एक मशीन की तरह खाता, पीता, और शारीरिक या मानसिक मजदूरी करता हुआ समय से बहुत पहले ही जीवन-यात्रा को समाप्त कर देता है।
इस दृष्टि से व्यक्तित्व का बहुत कुछ सम्बन्ध उत्तम स्वास्थ्य से है। जिसका आन्तरिक और बाह्य स्वास्थ्य ठीक दशा में रहता है वह सदैव प्रसन्न रहता है। जीवन में निरन्तर उत्साह, आनन्द और संतोष की लहरें अनुभव करता रहता है। ऐसे मनुष्य की दूसरों से बड़ी जल्दी मित्रता हो जाती है और वे उसका आदर करते हैं। स्वच्छ वर्ण, चमकीली आँखें, लचकीली देह, सब तरह के कार्य करने की स्फूर्ति स्वास्थ्य के बाहरी लक्षण हैं। निष्कपट भाव, दृढ़ता, उल्लास आदि मानसिक लक्षण हैं जो बराबर व्यवहार में प्रकट होते रहते हैं।
स्वास्थ्य की कमी से व्यक्तित्व का भी अभाव हो जाता है। अनेक व्यक्ति बिना किसी रोग के स्वभाव से ही थके माँदे से रहते हैं और उनके चेहरे से उदासीनता टपका करती है। उनमें न तो उत्साह होता है, न शक्ति। जीवन के ऊँचे संवेगों का उन्हें परिचय नहीं होता और न वे सत्प्रेरणा को समझते है। ऐसे मनुष्यों के सब दिन एक समान होते हैं। भविष्य का सुख उनके लिये नहीं होता। ऐसे मनुष्यों का जीवन प्रायः निरर्थक और कभी-कभी निःसहाय हो जाता है।
निस्सन्देह व्यक्तित्व के विकास में उत्तम स्वास्थ्य का बड़ा हाथ रहता है। हम स्वयं अपने स्वामी हैं। अपने स्वास्थ्य को उत्तम रखना, प्रसन्नता से रहना, प्रभावशाली जीवन बिताना हमारे अपने ही हाथ में है। यदि हम इनसे वंचित रहते हैं तो यह हमारा दोष है।