
कार्लमार्क्स का साम्यवाद
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एक युवक सिर झुकाये अपने काम पर तेजी से जा रहा था। रास्ते में एक मजदूर को दीवार पर पेन्ट करते देखा। युवक कुछ समय रुका और मजदूर के पास जाकर बोला- “दोस्त! इससे भी कम समय और कम रंग में इससे अच्छी रंगाई हो सकती है। क्या तुम उस तरकीब को सीखना चाहोगे।” मजदूर भौंचक्का रह गया। पास ही मालिक भी खड़ा था। दोनों ने कहा- “भाई ऐसी कोई तरकीब हो सकती है तो कर दिखाओ न”।
युवक आस्तीन ऊँची करके मजदूर का ब्रुश और रंग डिब्बा हाथ में लेकर काम पर जुट गया। शाम होने से पहले ही उसने अपनी बात सही सिद्ध करके दिखा दी। चलते समय मालिक ने इस युवक के हाथ में पारिश्रमिक और इनाम थमाया तो उसने उसे काम पर लगे मजदूर को दे दिया। कहा- करना तो इन्हीं को है- मैंने तो ऐसे ही थोड़ी अकल लगा दी।
यह युवक था- कार्लमार्क्स। जिसकी अकल ने दुनिया को अधिक अच्छी, कम समय और कम परिश्रम में बना देने की तरकीब बताई और वह साम्यवाद के रूप में सबके सामने आई।