• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • परकाया प्रवेश की सूक्ष्मीकरण साधना
    • VigyapanSuchana
    • मौनं सर्वार्थ साधनम्
    • सद्विचारों का प्रेरणा तंत्र
    • Quotation
    • साधना संग्रह करने की क्षमता
    • वृत्रासुर हनन का इन्द्रवज्र
    • Quotation
    • मुक्तिदायिनी गुफा में स्थिर प्रवेश
    • Quotation
    • सामर्थ्य एवं सुरक्षा देने वाली शक्ति
    • स्थूल शरीर की वर्तमान एकान्त साधना
    • भगवान को प्राप्त करने का सुनिश्चित मार्ग
    • झोलियों की अदला-बदली (kahani)
    • Quotation
    • ईश्वरार्पण अर्थात् श्रेष्ठता को अपनाना
    • सम्पदा महानता के पीछे-पीछे चलती है।
    • Quotation
    • कार्लमार्क्स का साम्यवाद
    • जो दीन है सो प्रेमी कैसा?
    • Quotation
    • वैज्ञानिक अध्यात्मवाद बनाम वैज्ञानिक मानसिकता
    • Quotation
    • मानवी मन का मायावी ‘रसायन शास्त्र’
    • Quotation
    • लक्ष्य सिद्धि का चरम सोपान
    • आइए! आपका प्रेतों से साक्षात्कार करायें।
    • “स एको मानुष आनन्दः”
    • बाँटने वालों की मिठास सराही जाती है (kahani)
    • युग-ऋषि “आइन्स्टाइन”
    • आयुर्वेद की गौरव-गरिमा अक्षुण्ण रहे
    • Quotation
    • प्रतिकूलताएँ (kahani)
    • बड़ों के बड़े अन्धविश्वास
    • मूक, किन्तु विलक्षणता सम्पन्न ये पशु-पक्षी
    • सुख और बड़प्पन की खोज (kahani)
    • “संगत बुरी असाधु की- आठों पहर उपाधि”
    • अभागा हीरा
    • नर और नारी के मध्यवर्ती अनुदान प्रतिदान
    • Quotation
    • शब्द शक्ति के दुरुपयोग का दुष्परिणाम
    • क्रोध की चुनौती (kahani)
    • शाप और वरदान का दैवी उपक्रम
    • यह सितारे गिनने के लिए नहीं (kahani)
    • मुस्कराना सीखें- सदा स्वस्थ रहें
    • पुजारी का सपना (kahani)
    • पशु-पक्षियों पर मुकदमे
    • शाकाहार और निद्रा का पारस्परिक सम्बन्ध
    • वस्तुओं का पूरा सदुपयोग (kahani)
    • गायत्री और सावित्री का देवता सविता
    • वांछापूरक- गौ दुग्ध कल्प
    • इस शताब्दी के अन्त में भारी उथल-पुथल की संभावना
    • तप साधना के फलितार्थ एवं परिजनों की अनुभूतियाँ
    • पू. गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
    • तपोमय जीवन
    • तपोमय जीवन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • परकाया प्रवेश की सूक्ष्मीकरण साधना
    • VigyapanSuchana
    • मौनं सर्वार्थ साधनम्
    • सद्विचारों का प्रेरणा तंत्र
    • Quotation
    • साधना संग्रह करने की क्षमता
    • वृत्रासुर हनन का इन्द्रवज्र
    • Quotation
    • मुक्तिदायिनी गुफा में स्थिर प्रवेश
    • Quotation
    • सामर्थ्य एवं सुरक्षा देने वाली शक्ति
    • स्थूल शरीर की वर्तमान एकान्त साधना
    • भगवान को प्राप्त करने का सुनिश्चित मार्ग
    • झोलियों की अदला-बदली (kahani)
    • Quotation
    • ईश्वरार्पण अर्थात् श्रेष्ठता को अपनाना
    • सम्पदा महानता के पीछे-पीछे चलती है।
    • Quotation
    • कार्लमार्क्स का साम्यवाद
    • जो दीन है सो प्रेमी कैसा?
    • Quotation
    • वैज्ञानिक अध्यात्मवाद बनाम वैज्ञानिक मानसिकता
    • Quotation
    • मानवी मन का मायावी ‘रसायन शास्त्र’
    • Quotation
    • लक्ष्य सिद्धि का चरम सोपान
    • आइए! आपका प्रेतों से साक्षात्कार करायें।
    • “स एको मानुष आनन्दः”
    • बाँटने वालों की मिठास सराही जाती है (kahani)
    • युग-ऋषि “आइन्स्टाइन”
    • आयुर्वेद की गौरव-गरिमा अक्षुण्ण रहे
    • Quotation
    • प्रतिकूलताएँ (kahani)
    • बड़ों के बड़े अन्धविश्वास
    • मूक, किन्तु विलक्षणता सम्पन्न ये पशु-पक्षी
    • सुख और बड़प्पन की खोज (kahani)
    • “संगत बुरी असाधु की- आठों पहर उपाधि”
    • अभागा हीरा
    • नर और नारी के मध्यवर्ती अनुदान प्रतिदान
    • Quotation
    • शब्द शक्ति के दुरुपयोग का दुष्परिणाम
    • क्रोध की चुनौती (kahani)
    • शाप और वरदान का दैवी उपक्रम
    • यह सितारे गिनने के लिए नहीं (kahani)
    • मुस्कराना सीखें- सदा स्वस्थ रहें
    • पुजारी का सपना (kahani)
    • पशु-पक्षियों पर मुकदमे
    • शाकाहार और निद्रा का पारस्परिक सम्बन्ध
    • वस्तुओं का पूरा सदुपयोग (kahani)
    • गायत्री और सावित्री का देवता सविता
    • वांछापूरक- गौ दुग्ध कल्प
    • इस शताब्दी के अन्त में भारी उथल-पुथल की संभावना
    • तप साधना के फलितार्थ एवं परिजनों की अनुभूतियाँ
    • पू. गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
    • तपोमय जीवन
    • तपोमय जीवन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1984 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सद्विचारों का प्रेरणा तंत्र

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
अज्ञातवास में लम्बे समय तक रहते और विपन्न परिस्थितियों का सामना करते-करते अर्जुन पुरुषार्थ शिथिल हो गया था। भगवान कृष्ण उससे महाभारत का नेतृत्व कराना चाहते थे। किन्तु उसका मन बैठ गया था। उसकी आँखों से देश, जाति, समाज की विषम समस्याएं ओझल हो गई थीं, गुजारे का प्रश्न भर सामने था। कृष्ण ने कई बार उकसाया किन्तु उसके उत्तर इतने भर थे कि पेट पालने के लिये और कुछ न बन पड़ेगा तो भीख माँगकर ही गुजारा कर लेंगे। अज्ञातवास की अवधि में वह भाइयों समेत ऐसे ही छोटे काम करना रहा था। सो प्रश्न पेट भरने भर का सामने रह गया था। उसके लिए छोटे दर्जे की मजूरी से भी काम चल जाता था। अर्जुन इतना ही छोटा रह गया था। अस्त-व्यस्त भारत को सर्व समर्थ महाभारत बनाने की कृष्ण ने जो योजना बनाई थी सो उसके गले ही न उतर रही थी। दोनों पक्ष की सेनाएं तो आमने सामने आ खड़ी हुई थीं, पर अर्जुन का छोटा मन छोटी बातें ही सोच रहा था। कृष्ण की योजना ही अस्त-व्यस्त हुई जा रही थी। तब भगवान ने न केवल उद्बोधन भरे परामर्श दिये वरन् खीज कर गाली-गलौज पर उतर आये। बोले- “कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।” अन्त में उसे डरा धमका कर उस स्थिति पर ले आये जिसमें वह कहने लगा- ‘करिष्ये वचनं तवं?’ यदि कृष्ण ने धमकाया न होता तो कदाचित् वह मोर्चा छोड़कर भाग ही खड़ा हुआ होता। उन्हीं कृष्ण ने यह भी कहा था- “क्लैव्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते।” सच तो यह है कि उनने मुर्दे में प्राण फूँके थे और जो वह नहीं चाहता था वह भी उससे करा लिया था।

ठीक इससे ही मिलती-जुलती दूसरी घटना है। लंका दहन के समय समुद्र लाँघकर सीता का पता लगाकर लाने की। जामवन्त सभी सेनापतियों से कह रहे थे कि इस कठिन काम को करने के लिये कौन जाएगा। हनुमान समेत सभी ने चुप्पी साध रखी थी। इतने कठिन काम में हाथ डालना और जान गँवाना एक ही बात है। इसे आगे बढ़कर कौन अपनाये? जामवन्त ने हनुमान के सोते हुए साहस को जगाया, और कहा- “तुम आसानी से इस काम को कर सकते हो, फिर क्यों चुप बैठे हो?” आत्मबोध जागा तो ‘तव कपि भयेऊ पर्वताकारा’ शरीर तो शायद ही उतना लम्बा चौड़ा रहा होगा, पर मनोबल जाग पड़ने से वह पहले की तुलना में इतना अधिक विशाल हो गया जितना कि सामान्य मनुष्य शरीर की तुलना में पहाड़ होता है। सामर्थ्य का इतना अधिक स्फुरण होने पर बल की कुछ कमी नहीं रही। समुद्र छलाँगना, सीता का पता लगाना, अशोक वाटिका उजाड़ना, लंका जलाना जैसे कई एक से एक कठिन काम उनने लगे हाथों कर डाले। सुरसा ने परीक्षा ली तो वे उसमें हर दृष्टि से उत्तीर्ण हुए-

जस-जस सुरसा बदन बढ़ावा। तासु दुगुन कपि रूप दिखावा॥

सामान्य वानर जो सुग्रीव का सेवक मात्र था, अपने स्वामी के साथ-साथ अपनी भी जाने बचाये ऋष्य मूक पर्वत पर दिन काट रहा था, राम लक्ष्मण का पता लगाने भेजा गया तो वेश बदलकर गिड़गिड़ाते हुए किसी प्रकार नाम पता भर पूछकर लाया था। किन्तु जब मनःस्थिति बदली परिस्थिति भी बदली। सामान्य वानर हनुमान हो गया और पर्वत उखाड़ लाने का अद्भुत पराक्रम दिखाने लगा।

मनुष्य सामान्य ही होते हैं। हाड़-माँस की दृष्टि से सब एक जैसे ही होते हैं। पर भीतर वाले में जब अन्तर पड़ जाता है तो मनुष्य सामान्य न रहकर असामान्य हो जाता है। हजार वर्ष का गुलामी का दमन उत्पीड़न सहते-सहते सारा देश लुँज-पुँज हो गया था। मुट्ठी भर अंग्रेज इतने विशालकाय देश पर दो सौ वर्ष शासन करते रहे। उनके सामने किसी की हिम्मत चूँ तक करने की न थी। पर जब गाँधी ने हुँकार भरी और मनोबल उभारा तो हजारों लाखों सत्याग्रही जेल जाने, घर लुटाने, गोली खाने और फाँसी का तख्ता चूमने के लिए कटिबद्ध हो गये। 96 पौण्ड के दुर्बलकाय इस व्यक्ति का आत्मबल जब उभरा तो उनके साथियों अनुगामियों की कमी न रही। जिसके राज्य में कभी सूर्य अस्त न होता था, उस ब्रिटेन के सिंह को गाँधी के सामने पराजय माननी पड़ी। और बिस्तर बाँधकर अपने देश को वापस लौट गया। यह चर्चा आत्मबल की हो रही है। यह चेतना होती हर किसी में है। पर जागती तब है जब कोई जगाने वाला हो। अर्जुन की, हनुमान की, गाँधी की चर्चा इसी प्रसंग में हुई है कि जब उनका आत्मबल जगाया गया तो वे सामान्य से असामान्य हो गये और वह काम कर गुजरे जो अद्भुत असम्भव जैसे दिखते थे। इतिहास इसी घटनाक्रम से भरा हुआ है। उद्बोधन की शक्ति महान है, यदि वह छिन जाय तो फिर बलिष्ठ भी दुर्बल हो जाता है।

महाभारत युद्ध में प्रधान सेनापति कर्ण था। उसे हराना असम्भव ठहराया गया था। चतुरता से उसके बल का अपहरण किया गया। कर्ण का सारथी शल्य था। श्रीकृष्ण के साथ तालमेल बिठाकर उसने एक योजना स्वीकार कर ली। जब कर्ण जीतने को होता तब शल्य चुपके से दो बातें कह देता, यह कि- तुम सूत पुत्र हो। द्रोणाचार्य ने विजयदायिनी विद्या राजकुमारों को सिखाई है। तुम राजकुमार कहाँ हो जो विजय प्राप्त कर सको। जीत के समय पर भी शल्य हार की आशंका बताता। इस प्रकार उसका मनोबल तोड़ता रहता। मनोबल टूटने पर वह जीती बाजी हार जाता। अन्ततः विजय के सारे सुयोग उसके हाथ से निकलते गये और पराजय का मुँह देखने का परिणाम भी सामने आ खड़ा हुआ।

सामान्य लोगों में असामान्य मनोबल भर देना किसी किसी प्राणवान का ही काम होता है। भामाशाह पूरे वणिक थे। जीवन में पहले कभी बड़े दान दिये होते तो उनकी जेब कब की खाली हो गई होती। राणाप्रताप के मन्त्री एक दिन उनके पास गये और संग्रहित पूँजी राणा को देने में लाभ और न देने की हानि समझाते रहे। उत्तेजना भरे शब्द लालजी के कलेजे से पार हो गये और आवेश में आकर 30 लाख के लगभग जो पूँजी थी सो सब की सब राजा के चरणों पर अर्पित कर दी। जौहर राणा ने दिखाये। दानवीर भामाशाह बने। परिस्थितियाँ बदल जाने का वर्णन इतिहासकारों ने किया। पर राणा के उन मंत्री की कहीं चर्चा भी नहीं होती, जिसने भामाशाह को नीच-ऊँच समझाकर उस काम के लिए सहमत किया जिसे स्वेच्छापूर्वक वे कदाचित् ही करते।

यह उल्लेख सूक्ष्मीकरण के संदर्भ में किया जा रहा है। गुरुदेव का सामान्य शरीर भी उतना ही है जितना कि वे विदित पराक्रम दिखा चुके हैं। मनुष्य जो कर सकता है वह चरम सीमा तक उनने कर दिया है। अब उन हजारों लाखों का प्रसंग है जो प्रत्यक्ष सामर्थ्य की दृष्टि से गुरुदेव के समान ही नहीं उनसे अधिक बढ़े-चढ़े भी हैं। किन्तु उनका प्रसुप्त मनोबल पराक्रम एक प्रकार से मूर्छाग्रस्त स्थिति में पड़ा हुआ है। यदि कोई उसे जगा दे तो वे महामानवों की पंक्ति में गिने जा सकते हैं और ऐसे काम कर सकते हैं जिनने भारत के इतिहास को स्वर्णाक्षरों से लिखने योग्य बनाया है। तिलक, गोखले, पटेल, मालवीय, सुभाष जैसों का बचपन या आरंभिक जीवन देखा जाये तो वे सामान्य से बढ़कर और कुछ प्रतीत नहीं होते। किन्तु प्रसुप्त को यदि कोई जगा दे तो वर्तमान परिस्थितियों में भी ऐसे कितने ही दीख पड़ेंगे जिन्हें गेंद की तरह थोड़ा-सा सहारा मिले तो उछलकर कहीं से कहीं पहुँच सकते हैं। आज जो पैसा, पदवी, बड़प्पन के क्षेत्र में बड़े आदमी भर कहला पाते हैं यदि इनकी दिशा में कोई बड़ा-सा मोड़ मरोड़ दे तो वे उनकी जीवन गाथा सामान्य न रहे, कुछ से कुछ हो जाय। प्रतिभावानों की कहीं कोई कमी नहीं है। हर क्षेत्र में ऐसे असंख्य लोग मौजूद हैं जिनने जो काम हाथ में लिये हैं उनमें आश्चर्यजनक सफलताएं पाई हैं। भूखे-नंगे, लोग अरबपति बने हैं। निरक्षर आदमी कालिदास, रणजीत सिंह, अकबर बने हैं। सफलता की हजार धाराएँ हैं। प्रतिभावानों ने इनमें से जिस भी धारा को पकड़ा है, एक के बाद दूसरी सीढ़ी पार करते हुए उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचे हैं। किन्तु यह सफलताएँ हैं विशुद्ध व्यक्तिगत। यदि इनकी दिशा मुड़ी होती तो लोक मंगल के ऐसे काम दिखाते जिसमें उनकी गणना महा-मानवों में हुई होती और उनके पुरुषार्थ ने देश, धर्म, समाज, संस्कृति का ढाँचा ही बदल दिया होता। कठिनाई एक ही है कि ऐसी दिशा में धकेलने वाली प्रेरणा देने वाले शक्ति पुँज निगाह दौड़ाने पर भी दृष्टिगोचर होते नहीं। योरोप के इतिहास में लेनिन से लेकर मार्टिन लूथर तक कितने ही नक्षत्र चमके हैं। लेखकों की कमी नहीं रही पर साम्यवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स और प्रजातन्त्र के जन्मदाता रूसो की तुलना करने वाले बहुत खोजने पर ही थोड़े से मिल सकेंगे। अमेरिका के लिंकन और वाशिंगटन गरीब घरों में पैदा हुए थे पर उस देश का काया-कल्प करने में उनकी महती भूमिका है। भारत में सुभाष, विनोबा मुश्किल से ढूंढ़े मिलेंगे। वे पूर्व जन्मों के वंचित संस्कारों के बलबूते ही महान प्रतीत होते हैं। उन लोगों के नाम दृष्टि में नहीं हैं जिन्हें दूसरों के द्वारा बनाया कहा जा सके। समर्थ के शिवाजी, राम-कृष्ण के विवेकानन्द जैसे उदाहरण कठिनाई से ही मिल पावेंगे।

अपने बलबूते अथवा दूसरों की सहायता से कितने ही लोग विद्वान बने हैं। व्यवसाय में प्रचुर मात्रा में धन कमाने में सफल हुए हैं। सरकारी उच्च पदों पर आसीन होने का उन्हें अवसर मिला है। सेना नायक बनकर वे शत्रु के छक्के छुड़ा चुके हैं। विज्ञान के कई आश्चर्यजनक आविष्कार वे कर चुके हैं। कइयों ने शासन चलाये और कई तरह के सुधार किये हैं। कइयों की प्रशंसाएं छपी हैं और नोबेल पुरस्कार जैसे उपहार मिले हैं। इन सफलताओं के लिए उनकी चर्चा भी होती है। पर इन उपलब्धियों का विश्लेषण करने पर निष्कर्ष यही निकलता है कि यह व्यक्तिगत स्तर की सफलताएँ थीं। धन वालों के सम्बन्ध में अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है कि उनके कारखाने में कितनों को नौकरी मिली और पेट भरने का इन्तजाम हुआ। कवियों, गायकों, कलाकारों को यश मिला। दर्शकों की भारी भीड़ उन्हें देखने के लिए एकत्रित होती रही। फिर इस कारण समूचे समाज को आदर्शवाद की ओर चलने की कितनी प्रेरणा मिली, इसका लेखा-जोखा लेने पर इतना ही सार निकलता है कि लम्बी पूँछ वाली घोड़ी अपनी मक्खी भर उड़ाती रही। जिनको उनके द्वारा लाभ मिलता रहा वे उनकी चमचागिरी करते रहे। इस बड़प्पन के लिए उस महानता की पदवी उन्हें कैसे दी जाय जिससे समाज में आदर्शवादिता का माहौल बना, वातावरण बदला और उत्कृष्टता की दिशा से जन-साधारण को प्रोत्साहन मिला।

सम्पदा की कहीं कमी नहीं। मनुष्य का श्रम निरन्तर धन कमाता है। मनुष्य जो कमाता है उसे यदि खर्च न किया जाय तो सोने-चाँदी के पर्वत जमा हो सकते हैं। पर वे सब खर्च हो जाते हैं। खर्च किसमें होते हैं, इसकी देखभाल की जाय तो प्रतीत होगा कि आवश्यक की तुलना में अनावश्यक कहीं अधिक होता है। इस अनावश्यक में कटौती की जा सके तो ईमानदारी से कमाने वाला और नितान्त आवश्यक है वही खर्च करने वाला कोई भी व्यक्ति निर्धन नहीं रह सकता। देखा यह गया है कि सही की अपेक्षा गलत खर्च कहीं अधिक होता है। मात्र इस गलत की रोकथाम की जा सके तो मनुष्य के पास इतना पैसा हो सकता है जिसे सदुपयोग में लगाया जा सके तो उसके परिणाम आश्चर्यजनक हो सकते हैं। आवश्यक नहीं कि लोकमंगल के रुके हुए कामों के लिए कहीं चोरी, डाका डाला जाय या गढ़ा खजाना ढूँढ़ा जाय। इसके लिए पूरा श्रम और उचित खर्च करने की नीति बना लेने के उपरान्त हर व्यक्ति के पास उतना पैसा हो सकता है कि उसे योजनाबद्ध उपयोग करके उन कामों को सम्भाला जा सके जो आज पैसे के अभाव में रुके हुए हैं। प्रश्न उस समझदारी का है जो “कमाई को किस काम में लगाया जा सके”, इस समस्या को सही ढंग से हल कर सके। उदाहरण के लिए विवाह शादियों में होने वाले अपव्यय में कटौती की जा सके तो हर हिन्दू परिवार के पीछे इतनी राशि जमा हो सकती है जिसे लोक मंगल के आवश्यक कामों में दान की तरह न सही पूँजी की तरह लगाया जा सके तो उसका परिणाम बहुत ही सुखद हो सकता है।

फिर ऐसे आदमी कम नहीं हैं जिनके पास आवश्यकता से अधिक सम्पदा है। कीमती कपड़े न खरीदे जायें तो ढेरों बचत हो सकती है। जेवरों में लगी हुए रकम निरर्थक न लगे और उसे चालू रखा जाये तो भी उतना पैसा निकल सकता है, जिससे रचनात्मक कामों के लिए पैसे का अभाव प्रतीत न हो। सरकारी शिक्षा के अतिरिक्त जन-समाज की ओर से व्यावसायिक ढंग से एक अलग शिक्षा तंत्र खड़ा किया जा सकता है। बहुत अधिक लाभ कमाने का लालच न हो तो वे कुटीर उद्योग चालू किये जा सकते हैं जिनके द्वारा हजारों व्यक्तियों को नये उद्योग मिल सकें। प्रौढ़ महिला शिक्षा, लड़कों को स्कूलों के अतिरिक्त शिक्षा देने की व्यवस्था आरम्भ करने के लिए पूँजी का जो अभाव इन दिनों प्रतीत होता है उसे कुछ ही समझदार आदमी सहकारी तन्त्र के आधार पर परस्पर मिल-जुलकर जुटा सकते हैं।

यह तो गरीब और मध्यम श्रेणी के लोगों द्वारा जुटाई जाने वाली पूँजी की चर्चा हुई। इसके अतिरिक्त जमींदार, साहूकार, मिल मालिक, लम्बी चौड़ी जमीन जायदाद के मालिक भी तो हैं, जिनके परिवार विलासिता में ढेरों पैसा खर्च करते हैं। उत्तराधिकार के बँटवारे पर मुकदमे बाजी चलने में ही ढेरों पैसा अदालत कचहरियों में खर्च हो जाता है। इन लोगों की समझ उल्टी से सीधी दिशा में मुड़ सके तो वह बर्बाद होने वाला धन उस पूँजी का काम दे सकता है जिनके बिना प्रगति का काफी काम रुका हुआ है। उपयोगी साहित्य प्रकाशन, उपयोगी फिल्मों का निर्माण यह दो काम ही ऐसे हैं, जो लोगों के मस्तिष्क को उलटकर सीधा कर सकते हैं। बड़े गाँवों में सोलह मिलीमीटर के सिनेमा घर खड़े किये जा सकते हैं। विचार क्राँति की आवश्यकता पूरी करने वाली एक-एक घण्टे दिखाई जाने वाली फिल्में बनाने में कहीं कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। अभी तो भाषा की दृष्टि से हिन्दी की गणना ही उनमें होती है जिनमें विचारोत्तेजक साहित्य उपलब्ध होता है। अन्य भाषाऐं इस दृष्टि से दरिद्र मानी जाती हैं। फिर इस प्रकार का साहित्य महंगा भी बहुत है। इन समस्याओं को हल करने में तनिक भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए। मात्र समझदार लोगों का दिमाग इस ओर मुड़ने की आवश्यकता है कि समय की आवश्यकता पूरी करने वाली सामग्री तैयार की जानी चाहिए और उसके प्रकाशन, विक्रय का उपयुक्त प्रबन्ध होना चाहिए। ऐसे कामों में सम्पन्न लोग, लिमिटेड कम्पनियाँ खड़ी कर सकते हैं। इससे जहाँ लाखों व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा वहाँ उलटे विचारों को सीधे करने का एक अति महत्वपूर्ण तन्त्र खड़ा हो जायेगा।

धर्म के नाम पर अनेकों पाखण्ड चलते हैं। ढेरों पैसा खर्च होता है। इसे रोककर सच्चे धर्म प्रचारक पैदा किये जायें तो प्राचीन काल की तरह साधु, ब्राह्मण, वानप्रस्थों, परिव्राजकों की आवश्यकता सहज ही पूरी होने लगे। ईसाई मिशन का धन योजनाबद्ध रीति से खर्च होता है। कितने पादरी, कितने चर्च, कितने विद्यालय कितने प्रकाशन उस पैसे में चलते हैं। फलतः दो हजार से भी कम वर्षों में संसार की आबादी आधी से अधिक ईसाई हो गई और उस संस्था को, उन्हें दान देने वालों को श्रेय मिलता है सो अलग। हम सब भी यही कर सकते हैं।

सूक्ष्मीकरण प्रक्रिया का एक वीरभद्र ऐसे ही विचारशील लोग पैदा करने में जुटेगा जो अपना समय और धन लोक-मानस के परिष्कार में लगा सकें। सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन की बहुमुखी योजना में विचारशील लोग यदि अपना चिन्तन, श्रम और धन लगाने लगें तो समझाना चाहिए कि कल्याण ही कल्याण है।

First 3 5 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • परकाया प्रवेश की सूक्ष्मीकरण साधना
  • VigyapanSuchana
  • मौनं सर्वार्थ साधनम्
  • सद्विचारों का प्रेरणा तंत्र
  • Quotation
  • साधना संग्रह करने की क्षमता
  • वृत्रासुर हनन का इन्द्रवज्र
  • Quotation
  • मुक्तिदायिनी गुफा में स्थिर प्रवेश
  • Quotation
  • सामर्थ्य एवं सुरक्षा देने वाली शक्ति
  • स्थूल शरीर की वर्तमान एकान्त साधना
  • भगवान को प्राप्त करने का सुनिश्चित मार्ग
  • झोलियों की अदला-बदली (kahani)
  • Quotation
  • ईश्वरार्पण अर्थात् श्रेष्ठता को अपनाना
  • सम्पदा महानता के पीछे-पीछे चलती है।
  • Quotation
  • कार्लमार्क्स का साम्यवाद
  • जो दीन है सो प्रेमी कैसा?
  • Quotation
  • वैज्ञानिक अध्यात्मवाद बनाम वैज्ञानिक मानसिकता
  • Quotation
  • मानवी मन का मायावी ‘रसायन शास्त्र’
  • Quotation
  • लक्ष्य सिद्धि का चरम सोपान
  • आइए! आपका प्रेतों से साक्षात्कार करायें।
  • “स एको मानुष आनन्दः”
  • बाँटने वालों की मिठास सराही जाती है (kahani)
  • युग-ऋषि “आइन्स्टाइन”
  • आयुर्वेद की गौरव-गरिमा अक्षुण्ण रहे
  • Quotation
  • प्रतिकूलताएँ (kahani)
  • बड़ों के बड़े अन्धविश्वास
  • मूक, किन्तु विलक्षणता सम्पन्न ये पशु-पक्षी
  • सुख और बड़प्पन की खोज (kahani)
  • “संगत बुरी असाधु की- आठों पहर उपाधि”
  • अभागा हीरा
  • नर और नारी के मध्यवर्ती अनुदान प्रतिदान
  • Quotation
  • शब्द शक्ति के दुरुपयोग का दुष्परिणाम
  • क्रोध की चुनौती (kahani)
  • शाप और वरदान का दैवी उपक्रम
  • यह सितारे गिनने के लिए नहीं (kahani)
  • मुस्कराना सीखें- सदा स्वस्थ रहें
  • पुजारी का सपना (kahani)
  • पशु-पक्षियों पर मुकदमे
  • शाकाहार और निद्रा का पारस्परिक सम्बन्ध
  • वस्तुओं का पूरा सदुपयोग (kahani)
  • गायत्री और सावित्री का देवता सविता
  • वांछापूरक- गौ दुग्ध कल्प
  • इस शताब्दी के अन्त में भारी उथल-पुथल की संभावना
  • तप साधना के फलितार्थ एवं परिजनों की अनुभूतियाँ
  • पू. गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
  • तपोमय जीवन
  • तपोमय जीवन (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj