Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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मानवी काया का सूक्ष्म रसायनशास्त्र
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मानवी काया की रसायन प्रणाली इतनी सशक्त-सक्षम एवं सुव्यवस्थित है कि अन्न, जल, वस्त्र की तरह अन्तः की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए वह उसे पूर्णतः स्वस्थ बनाये रख सकती है। यदि रसायनों का सन्तुलन एवं सक्रियता बनी रहे तो शरीर सामान्य रोगों, कष्टों तथा विपत्तियों का सामना करते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा करता रह सकता है। अंतःस्रावी ग्रन्थियों से स्रवित होने वाले हारमोन रसायन अत्यल्प मात्रा में होते हुए भी मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी थोड़ी भी भी घट-बढ़ मानसिक चेतना को प्रभावित करती एवं तद्नुरूप सोचने और करने के लिए बाध्य करती है। दूसरी और यह कहा जाता है कि इनके सुनियोजन से अविज्ञात को जगाना एवं महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हस्तगत कर पाना भी संभव है।
चिकित्सा विज्ञान की नवीनतम शोधों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अंतःस्रावी ग्रन्थियों का बहुत कुछ संबंध मनुष्य की मनोवृत्तियों से है। निराशा और अहंकार जैसे मनोविकारों में प्रायः इनमें हारमोन रसायनों का विकास होता है। नम्र स्वभाव के व्यक्ति में ऐड्रेनालिन की तथा आतंकवादी एवं उत्पीड़न में रस लेने वालों में नार-ऐड्रनालिन की न्यूनता स्पष्ट रूप से देखी गई है।
आज विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों का ध्यान अंतःस्रावी ग्रन्थियों-इण्डोक्राइन सिस्टम तथा उनमें निस्सृत होने वाले हारमोन रसायनों की ओर विशेष रूप से केन्द्रित है। न ग्रन्थियों का नियंत्रणकर्ता मस्तिष्क में अव्यवस्थित “पेटयूटरी ग्लैंड” को ही समझा जाता है। दूसरे शब्दों में पे “मास्टर ग्लैण्ड” या अंतःस्रावी ग्रन्थियों का ‘कंडक्टर’ कहा जाता है। स्त्री-पुरुषों में प्रजनन क्षमता का मूल कण पिट्यूटरी ही है। पुरुषों में ऐन्ड्रोजीन तथा हलाओं में ओस्ट्रोजीन हारमोन के विद्यमान रहने से विभिन्न प्रकार की शारीरिक विविधताएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं।
सुप्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री डॉ. एच॰ शैले ने अपनी शोधों द्वारा यह पता लगाया है कि शरीर के स्वास्थ्य संरक्षण का दायित्व पिट्यूटरी ग्रन्थि ही मुख्य रूप में संभालती है। यह ग्रन्थि खासतौर से उस समय ज्यादा कमजोर हो जाती है, जब व्यक्ति के भीतर भावनात्मक द्वन्द्व, मानसिक उथल पुथल मची हुई हो। ऐसी दशा में पेशियों की ऐंटन से लेकर त्वचा विकार, हृदयरोग, पाचन विकार, रक्तचाप से लेकर हमेशा बना रहने वाला सिरदर्द तक पैदा हो सकता है। यह तो सभी जानते हैं कि शरीर के सभी अग-प्रत्यंगों का संचालन मस्तिष्क द्वारा भेजे गये निर्देशों से ही होता है। भावनाओं के कारण मस्तिष्क पर अवाँछनीय दबाव बना रहेगा तो यह निश्चित ही है कि उसकी प्रतिक्रिया शरीर पर भी हो। अधिकाँश रोगों के मूल में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भावनात्मक संक्षोभ ही पाया गया है, भले ही वह कोई दुराव-छुपाव का भाव हो अथवा आक्रोश-क्रोध का भाव।
पिछले दिनों यौन संवेदना को मनःशास्त्रियों ने मनुष्य की प्रेरक शक्ति माना था और कहा था कि मनुष्य के व्यक्तित्व का उत्थान-पतन इसी केन्द्र से होता हे। शूर, साहसी, कायर, निराश, प्रसन्न, दुखी, आदर्शवादी, ईशवरभक्त, अपराधी, अविकसित स्तर का निर्माण इसी केन्द्र से होता है। पर अब नया सिद्धान्त कायम हुआ है कि हारमोन ही यौन संवेदनाओं के लिए उत्तरदायी है। प्रख्यात मनःशास्त्री एडलर ने काम-प्रवृत्ति की शोध करते हुए पाया कि बाहर से अतीव सुन्दर, आकर्षक और कमनीय दिखाई देने वाली अनेक महिलाएं काम-शक्ति से सर्वथा रहित है। उनमें न तो रमणी प्रवृत्ति थी, न नारी सुलभ उमंग। खोज करने पर ज्ञात हुआ कि यौन-हारमोन्स के स्त्रोत ही इन विशेषताओं के आधार पर है।
इसी तरह एडलर ने अपनी खोज के दौरान देखा कि कितने ही युवकों की शारीरिक स्थिति सामान्य थी, ऊपर से उनमें मर्दानगी भरी ही दिखाई देती थी, पर थे वे वस्तुतः नपुँसक। न तो उनके मन में काम उमंग थी, न जननेन्द्रिय में उत्तेजना। कारण तलाश करने पर उनमें सेक्स हारमोनों का अभाव पाया गया। इसके विपरीत उन्हें ऐसे नर-नारी भी मिले जो अल्पवयस्क अथवा वयोवृद्ध होते हुए भी कामवासना से पीड़ित रहते थे।
चिकित्साशास्त्रियों के अनुसार नपुँसकता नर की हो य नारी की, प्रधानतया पिट्यूटरी ग्रन्थि की खराबी के कारण ही होती है। जननेन्द्रिय की स्थानीय कमी वासना अथवा प्रजनन को अधिक प्रभावित नहीं करती। सन्तान के प्रति माता का प्यार क्यों कम या ज्यादा पाया जाता है, इसका स्त्रोत भी पीयूष ग्रन्थि पिट्यूटरी ग्लैण्ड से स्रवित होने वाले हार्मोन्स में पाया जाता है।
लिंग परिवर्तन की घटनाओं में हारमोनों की ही प्रधान भूमिका होती है। इसमें नारी नर के रूप में या नर नारी के रूप में परिवर्तित हो जाते है। इस तरह की घटनाएं जब-तब घटित भी होती रहती है, जिनमें मनुष्य विपरीत लिंग में परिवर्तित किये जाते हैं। इनमें शारीरिक या मानसिक कारण नहीं, वरन् हारमोन रसायनों का सूक्ष्म प्रभाव ही इस प्रकार की पृष्ठभूमि विनिर्मित करता है।
शरीर की मुख्य अंतःस्रावी ग्रन्थि होने के कारण वैज्ञानिकों ने पिट्यूटरी का गहन अध्ययन, अनुसंधान किया और इससे स्रवित होने वाले नौ हारमोनों का पता लगाया है, साथ ही इनके व्यापक एवं अत्यन्त जटिल कार्यों का विश्लेषण किया है। विशेषज्ञों ने इसके अत्यन्त महत्वपूर्ण और प्रभावी कार्यों के कुछ ऐतिहासिक व आधुनिक उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। उनका कहना है कि नेपोलियन के जीवन में जो महत्वपूर्ण परिवर्तन आया, उसके लिए उसकी पिट्यूटरी ग्रन्थि की बढ़ती निष्क्रियता ही बहुत कुछ जिम्मेदार थी।
शहरी शास्त्रियों का यह भी कहना है कि इसके दो प्रमुख भागों में से जिस व्यक्ति में एण्टीरियर पिट्यूटरी की प्रधानता होती है, वह पुरुषोचित गुणों से युक्त होता है। इसके अतिरिक्त उसमें आत्म नियंत्रण व आत्मानुशासन की विलक्षण क्षमता भी होती है। वह प्रभावशाली, प्रबल पुरुषार्थी, दृढ़ निश्चयी एवं नेतृत्व प्रदान करने वाली उदात्त गुणों से सम्पन्न होता है। इसका ज्वलन्त उदाहरण अब्राहम लिंकन हैं। किन्तु ऐसा होता तभी देखा गया है, जब पीयूष ग्रन्थि के अग्रभाग की अल्फा कोशिकाएं बढ़ जाती है।
दूसरे मामलों में जब एण्टेरियर पिट्यूटरी की बेसोफिलिक कोशिकाओं का स्राव बढ़ जाता है तब व्यक्ति में अपेक्षाकृत मादा लक्षण प्रकट होते हैं। ऐसे व्यक्ति कद में ठिगने, अस्थिर स्वभाव वाले भावुक एवं संवेदनशील प्रकृति के होते हैं। इनमें साइक्लोथिमिया की प्रवृत्ति होती है अर्थात् यदा-कदा तो अति उत्साह दिखाते हैं और कभी-कभी निराश हो जाते है। ऐसे लोग प्रायः कवित्व, कला और संगीत की ओर अधिक आकृष्ट होते देखे जाते हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक लेखक बेंजामिन वाकर के अनुसार यह व्यक्तित्व फ्रेडारिक चोपिन में दिखाई देता था, जिसका वर्णन उन्होंने अपनी अनुपम कृति “एनसाइक्लोपीडिया आफ एसोटेरिक मैन” में किया है।
गले में अवस्थित थाइराइड ग्रन्थि मनुष्य की शारीरिक गतिविधियों पर विशेष प्रभाव डालती है। इससे निस्सृत हारमोन-थायरोक्सिन में उपस्थित आयोडीन तत्व की तनिक सी कमी होने पर व्यक्ति को ग्वायटर जैसी व्याधि से ग्रस्त होना पड़ता है। थायरोक्सिन के अभाव में हृदय एवं चयापचय की गति मंद पड़ने लगती है। ये सभी प्रतिक्रियाएं पीयूष ग्रन्थि के अग्रभाग से निकलने वाले हारमोन्स द्वारा नियंत्रित होती है। उसके पार्श्वभाग से स्रवित होने वाले आँक्सीटोसिन हारमोन का निर्माण नव प्रसूता माताओं में होता है जिसके परिणामस्वरूप वक्षस्थल से दूध का स्त्रोत उमगता है।
“दि ग्लैण्ड रेगुलेटिंग पर्सनैलिटी” पुस्तक के लेखक डॉ. लुई वैरमोन ने थाराइड ग्रन्थि की चर्चा करते हुए लिखा है कि यह ग्रन्थि ने केवल रक्तताप और रक्तचाप का नियंत्रण करती है वरन् प्रेम और सहानुभूति बढ़ाने में तथा विकृत स्थिति में ईर्ष्या-द्वेष उभारने में भी उत्तरदायी होती है। उचित मात्रा में रक्तताप तभी बना रह सकता है, जब इससे निस्सृत होने वाले थाइरोक्सिन स्राव का अनुपात सही रहे। इसका संतुलन बिगड़ने से न केवल रक्त की ऊष्मा एवं गति में गड़बड़ी उत्पन्न होती है, वरन् तरह-तरह की दुर्भावनाओं का भी मनुष्य शिकार हो जाता है। थाइराइड की विकृति से व्यक्ति को किस प्रकार से शारीरिक, मानसिक व्यथाएं सहनी पड़ती है, इसका विस्तृत विवेचन उन्होंने हाइपर थारोडिज्म प्रकरण में किया है।
पीनियल ग्रन्थि भ्रूमध्य भाग में स्थित होती है, जहाँ देवताओं का तीसरा नेत्र बताया जाता है। बच्चों की अपेक्षा वयस्कों में इसका आकार बड़ा होता है, लेकिन विकास की दृष्टि से यह महिलाओं में अपेक्षाकृत पुरुषों से अधिक विकसित होती है। प्रख्यात शरीरशास्त्री डॉ. सर अलेक्जेन्डर कैनन का कहना है कि अनेकानेक पोस्टमार्टम परीक्षणों के समय इस ग्रन्थि के अध्ययन से यह तथ्य प्रकाशित हुआ है कि योगियों में पीनियल ग्रन्थि अन्यान्य सामान्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक बड़ी होती है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मूर्धन्य जैव रसायनज्ञ डॉ. अल्तशुले ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में कहा है कि मानवी आनन्द का यदि कोई जैव रासायनिक आधार है तो वह पीनियल ग्रन्थि ही है। यहीं पर वे समस्त जैव रसायन बनते हैं जो अन्ततः आनन्द की अनुभूति कराते हैं।
पीनियल ग्रन्थि पर अनुसंधानरत वैज्ञानिकों के अनुसार धान के दाने की बराबर धूसर रंग की इस छोटी सी ग्रन्थि में आश्चर्य ही आश्चर्य भरे पड़े हैं। उन्होंने जिन चूहों में दूसरों चूहों की पीनियल ग्रन्थि का रस भरा, वे साधारण समय की अपेक्षा आधे दिनों में ही यौन रूप से विकसित हो गये और जल्दी बच्चे पैदा करने लगे। समय से पूर्व उनके अन्य अंग भी विकसित हो गये, पर इस विकास में जल्दी भर रही मजबूती नहीं आयी।
24 मार्च, 1929 को इंग्लैण्ड में एक ऐसे अद्भुत बालक का जन्म हुआ जो चार वर्ष की आयु में ही युवकों जैसा प्रतीत होने लगा। कद की दृष्टि से भले ही छोटा रहा पर उसका कार्य क्षमता ठीक नवयुवकों जैसी थी। इस बच्चे का नाम था - चार्ल्स वर्थ। सात वर्ष की अल्पायु में ही बाल किशोर, युवा और बुढ़ापे की अवस्थाओं को पार करके वह दुनिया से चल बसा। इसी तरह विगत वर्ष सूडान की एक नौ वर्षीय लड़की माँ बनी है। उसका पति 20 वर्ष का है। सुप्रसिद्ध चिकित्सक प्लिनी ने एक ऐसे सात वर्ष के लड़के का वर्णन किया है, जो यौन दृष्टि से पूर्ण विकसित हो गया था। हिपोक्रेट्स ने इस तरह की विपरीत वर्गीय कुछ घटनाएं देखी थीं और उनका कारण समझने का प्रयत्न किया था।
महिलाओं में हारमोन स्रावों की उत्कृष्टता और बहुलता पाई गई है, जिसके कारण वे मासिक रक्तस्राव एवं प्रजनन क्षति की पूर्ति भी कर लेती है और व्यस्त श्रम करते हुए भी मर्दां की अपेक्षा अधिक समय तक जीती है। चीन के जनगणना सर्वेक्षण के अनुसार याँगत्से नदी के तटवर्ती डुमेई क्षेत्र में 96 व्यक्ति शतायु हैं। इनमें 69 महिलाएँ और 17 पुरुष हैं। इनमें 79 छोटे देहाती क्षेत्रों में रहते हैं। घनी आबादी में रहने वाले मात्र 9 हैं। प्रान्त भर में सबसे अधिक उम्र वाली महिला 116 वर्ष की हैं। वह गाँव में भी नहीं अपने खेत पर बनी झोपड़ी में रहती है।
वैज्ञानिक शोधें अभी हारमोन स्रावों का अस्तित्व और उनका क्रियाकलाप जान सकी है, पर वे उन स्रावों का मूलभूत कारण एवं केन्द्र का पता नहीं लगा सकीं और न इस बात का पता चला कि उनका नियंत्रण या अभिवर्धन किस प्रकार किया जा सकता है। मात्र गले की थाइराइड पर ही शल्यक्रिया, किसी सीमा तक सफल हुई है।
पशुओं के हारमोन निकालकर उन्हें मनुष्यों के शरीर में पहुँचाने के प्रयत्न भी सफल नहीं हो सके, क्योंकि उन्हें विजातीय द्रव्य मानकर शरीर ने स्वीकार नहीं किया और उन्हें बाहर निकाल फेंका।
अब यह सोचा जा रहा है कि यह अविज्ञात किन्तु महत्वपूर्ण रसायन संभवतः मनुष्य की मानसिक चेतना में उत्पन्न होता है और उसे घटाने-बढ़ाने में ध्यानयोग जैसी कोई अध्यात्मिक साधना ही सफल हो सकती है और उस क्षेत्र की विकृतियों का निराकरण कर सकती है।