Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रशिक्षण सम्बन्धी अन्य ज्ञातव्य
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ठ्ठह्य'द्म द्गह्यड्ड फ्द्भद्धष्द्ध स्रद्म,स्र ष्रुद्म स्रद्मद्भ.द्म द्दस् /द्मख्द्ग /द्मद्मद्ग शद्मब्ह्य ठ्ठद्दह्यह्ल शद्मब्ह्य [द्मश्चर्द्धंब्ह्य द्धशशद्मद्दद्मह्यड्ड स्रद्म द्बभ्श्चब्ह्व्न ड्ढद्य स्रद्मद्भ.द्म क्द्ध/द्मस्र स्रद्गद्मह्वह्य शद्मब्ह्य॥द्मद्ध द्यष् स्रह्नहृ ड्ढद्यद्ध र्फ्ह् द्गह्यड्ड द्धफ्द्भद्म स्रद्भ [द्मद्मह्य[द्मब्ह्य ष्ह्वह्वह्य क्द्मस्द्भ ष्ह्यर्ड्ढंद्गद्मह्वद्ध स्रह्य ह्द्भद्धस्रह्य क्द्बह्वद्मह्वह्य स्रह्य द्धब्, द्धशश'द्म द्दद्मह्यह्ह्य द्भद्दह्ह्य द्दस््न;द्धठ्ठ ठ्ठह्य'द्म स्रद्मह्य द्यद्गक्व) क्द्मस्द्भ ह्वस्द्धस्रह्वस्र ष्ह्वद्मह्वद्म द्दस् ह्द्मह्य ड्ढद्य द्बभ्स्रद्मद्भ स्रद्ध द्यद्मद्गद्मद्धह्लस्र स्रह्नद्धद्भद्धद्धह्ह्;द्मह्यड्ड स्रह्य द्धश:) क्द्मठ्ठद्मह्यब् श्चब्ह्वद्म द्बरुह्यफ्द्म्न क्द्बह्र;; स्रद्ध क्; द्गठ्ठद्मह्यड्ड स्रद्मह्य॥द्मद्ध द्भद्मह्यस्रह्वद्म द्दस््न क्तस्'द्मह्व&द्बद्भरुह्द्ध&क्चद्मंक&ष्द्मंक छ्वक्वड्डफ्द्मद्भ] ह्लह्यशद्भ क्द्मद्धठ्ठ द्गह्यड्ड द्दद्मह्यह्वह्य शद्मब्द्म [द्मर्श्चं;द्धठ्ठ?द्मंकद्म;द्म ह्लद्म द्यस्रह्य क्द्मस्द्भ द्वद्यह्य क्घद्ब ष्श्चह्;द्मह्यह्लह्वद्मक्द्मह्यड्ड द्गह्यड्ड ब्फ्द्म;द्म ह्लद्यस्रह्य ह्द्मह्य क्द्बह्र;; स्रद्म त्त्द्मद्भद्म ष्ठ्ठ द्दद्मह्यह्वह्य द्बद्भ ठ्ठह्य'द्म स्रद्म क्द्मद्धस्नर्द्मंस्र द्यह्न/द्मद्मद्भ ह्ह्यह्लद्ध द्यह्य द्दद्मह्य द्यस्रह्द्म द्दस््न
छ्वद्ग स्रह्य द्बभ्द्धह् क्शय़द्म स्रद्म॥द्मद्मश॥द्मद्ध द्बभ्फ्द्धह् द्गद्मफ् द्गह्यड्ड॥द्मद्मद्भद्ध ष्द्म/द्मद्म द्दस््न;द्दद्मड्ड क्द्मद्भद्मद्ग द्यह्य ष्स्क्चस्रह्यह्यख् द्धठ्ठह्व फ्ह्नह्लद्मद्भह्वह्य शद्मब्ह्यद्मड्ड स्रद्मह्य॥द्मद्मंग;शद्मह्व] क्द्गद्धद्भ] द्वक्कश्च द्गद्मह्वद्म ह्लद्मह्द्म द्दस् क्द्मस्द्भ छ्वद्गह्लद्धशद्ध स्रद्मद्भद्धफ्द्भ क्॥द्मद्मफ्ह्य द्यद्ग>ह्य ह्लद्मह्ह्य क्द्मस्द्भ द्वद्बद्दद्मद्मद्य स्रद्ध ठ्ठक्वद्ध"क द्यह्य ठ्ठह्य[द्मह्यड्ड ह्लद्मह्ह्य द्दस्ड्ड्न छ्वद्गह्लद्धद्धश;द्मह्यड्ड स्रद्मह्य ह्वद्धश्च ह्लद्मद्धह् द्गद्मह्वह्वह्य स्रद्ध द्बभ्स्नद्मद्म ड्ढद्यद्ध क्द्म/द्मद्मद्भ द्बद्भ श्चब्द्ध द्दस््न क्द्मश';स्रह्द्म ड्ढद्य ष्द्मह् स्रद्ध द्दस् द्धस्र छ्वद्ग स्रद्ध द्बभ्द्धह्"क्चद्म ष्रुद्मर्ड्ढं ह्लद्म; क्द्मस्द्भ क्द्मद्भद्मद्ग द्दद्गद्भद्म द्दस् द्धस्र द्गद्म;ह्द्म ब्द्मह्यस्र द्गद्मह्वद्य द्गह्यड्ड ह्व;ह्य द्धद्यद्भह्य द्यह्य द्बभ्द्धह्द्ध"क्चह् स्रद्ध ह्लद्म;] ह्द्मद्धस्र द्गद्म= क्द्मह्लद्धद्धशस्रद्म द्दद्ध ह्व ष् ह्व'द्मह्यष्द्मह्लद्ध द्गह्यड्ड द्भद्म"कऊद्ध; /द्मह्व स्रद्ध ड्ढह्ह्वद्ध ष्रुद्ध द्भद्मद्ध'द्म ह्र;; द्दद्मह्यह्द्ध द्धस्र द्वद्यह्य ष्श्चद्मद्भ द्ध'द्मम्द्मद्म,शड्ड रुशद्मस्न; स्रद्म;द्मह्यह्लह्वद्मष्) द्धशस्रद्मद्य द्दद्मह्य द्यस्रह्द्म द्दस््न ह्र;द्धष्ठह्फ्ह् :द्ब द्यह्य ड्ढद्य ष्द्मठ्ठह् स्रद्म द्ध'द्मस्रद्मद्भ ह्र;द्धष्ठह् द्धह्व/र्द्मं क्रुशरुस्नद्म द्दद्मह्यह्द्म द्गख्[र्द्मं ष्ह्वह्द्म द्दस््न द्बद्धद्भशद्मद्भ स्रद्ध॥द्मड्ड;स्रद्भ ठ्ठह्नठ्ठफ्'द्मद्म ष्ह्वद्मह्द्म द्दस् क्द्मस्द्भ द्यद्गद्मह्ल द्गह्यड्ड क्द्बह्वह्य ह्लस्द्यह्य क्ह्वह्यस्रद्मह्यड्ड स्रद्मह्य स्रह्नंकह्यश फ्भ्रुह् स्रद्भ र्द्यशंह्वद्म'द्म स्रह्य र्फ्ह् द्गह्यड्ड /द्मस्रह्यब्ह्द्म द्दस््न ह्वह्य'द्मष्द्मह्लद्ध हृह्नरुद्मह्वह्य] ड्ढद्यद्गह्यड्ड ह्व;ह्य ब्द्मह्यफ्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य ह्व क्तँद्यह्वह्य ठ्ठह्यह्वह्य स्रह्य द्धब्, ह्लद्मह्य॥द्मद्ध श्चभ्;क्रह्व ष्ह्व द्बरुह्य द्वह्वस्रह्य द्धब्, द्बद्धद्भद्धरुस्नद्मद्धह्;द्मह्यड्ड स्रद्मह्य /;द्मह्व द्गह्यड्ड द्भ[द्मह्ह्य द्दह्न, क्द्मश';स्र ह्द्मह्वद्म ष्ह्वह्वद्म श्चद्मद्धद्द,्न
क्द्बह्वह्य ठ्ठह्य'द्म स्रद्ध द्धरु=;द्मड्डँ?द्मद्भह्यद्मड्ड स्रह्य द्धद्बड्डह्लरुह्य द्गह्यड्ड द्बर्ठ्ठंह्यड्ड द्गह्यड्ड स्रस्ठ्ठ द्दस््न द्वद्दह्यड्ड ह्व द्ध'द्मम्द्मद्म स्रद्ध द्यह्नद्धश/द्मद्म द्बभ्द्मढ्ढह् द्दस् ह्व रुशद्मब्श्वष् ह्वद्मद्भद्ध ह्लद्मफ्द्भ.द्म स्रद्ध;द्मह्लह्वद्म॥द्मद्ध द्दद्मस्नद्म द्गह्यड्ड ब्ह्वह्यह्य स्रद्म ह्र;द्मद्बस्र द्बभ्;क्रह्व द्धस्र;ह्य ह्लद्मह्वह्य श्चद्मद्धद्द,्न ड्ढद्यद्गह्यड्ड रुशरुस्नद्मह्द्म क्द्मस्द्भ ष्ह्नद्ध)द्गश्र्द्मद्म द्यड्डश/र्द्मंह्व स्रद्ध द्यद्गरु;द्म॥द्मद्ध द्दब् द्दद्मह्यह्द्ध द्दस््न
क्द्मद्धठ्ठशद्मद्यद्ध शह्वशद्मद्यद्ध रुह्द्भ स्रह्य ब्द्मह्यफ्द्मह्यड्ड स्रद्म द्धद्बहृरुद्म शफ् क्द्बह्वह्य द्गद्म;ह्द्मक्द्मह्यड्ड क्द्मस्द्भ द्बद्धद्भद्धरुस्नद्मद्धह्;द्मह्यड्ड द्धस्रह्य स्रद्मद्भ.द्म ड्ढद्य ठ्ठक्वद्ध"क द्यह्य द्धद्बहृरुद्म द्भद्द फ्;द्म द्दस््न द्वद्दह्यड्ड टँश्चद्म द्वक्चद्मह्वह्य क्द्मफ्ह्य ब्द्मह्वह्य क्द्मस्द्भ द्य॥द्म; द्यद्गह्नठ्ठद्म; स्रह्य द्यद्मस्नद्म ह्लद्मह्यरुह्वह्य स्रद्ध क्द्मश';स्रह्द्म द्दस््न क्द्मद्बह्वह्य ठ्ठह्य'द्म द्गह्यड्ड ह्लद्मद्धह्&द्बद्मँद्धह्] टँश्च ह्वद्धश्च स्रद्म॥द्मद्मश॥द्मद्ध द्धद्गस्न;द्म क्द्दड्डस्रद्मद्भ द्बस्ठ्ठद्म स्रद्भह्वह्य क्द्मस्द्भ क्स्रद्मद्भ.द्म क्द्मक्रद्गद्दद्धह्वह्द्म द्वक्रद्बह्व स्रद्भह्वह्य स्रद्म,स्र ष्रुद्म स्रद्मद्भ.द्म द्दस््न द्यह्न/द्मद्मद्भ ड्ढद्य द्यड्डष्ड्ड/द्म द्गह्यड्ड॥द्मद्ध द्दद्मह्यह्वद्म श्चद्मद्धद्द,्न
ह्र;द्धष्ठह्फ्ह् श्चद्धद्भ= द्धह्व"क्चद्म द्वक्रद्बह्व स्रद्भह्वह्य स्रह्य द्धब्, ह्व;ह्य द्धद्यद्भह्य द्यह्य क्द्मढ्ढठ्ठद्मह्यब् स्रद्भह्वह्य स्रद्ध क्द्मश';स्रह्द्म द्दस््न /द्मर्द्गं क्द्मस्द्भ क्/;द्मक्रद्गस्र स्रद्मह्य द्बभ्फ्द्धह्'द्मद्धब्ह्द्म स्रह्य द्यद्मस्नद्म ह्लद्मह्यरुद्म ह्लद्मह्वद्म श्चद्मद्धद्द,्न द्वद्यह्य द्बभ्द्धह्फ्द्मद्धद्गह्द्म क्द्मस्द्भ :द्धद्मह्यब्द्म द्बह्नरुह्स्रद्मब्;॥द्मद्ध ब्द्मह्यस्र श्चह्यह्ह्वद्म स्रद्मह्य >स्र>द्मह्यद्भह्वह्य क्द्मस्द्भ द्वद्य;ह्नफ् /द्मर्द्गं स्रद्म द्धह्वशर्द्मंत्र स्रद्भह्वह्य स्रह्य द्धब्, द्बभ्द्मक्रद्यद्मद्धद्दह् स्रद्भद्गद्ध द्दस््न ब्द्मह्यस्रह्वद्म;स्र द्यख्=द्मह्यड्ड द्यह्य द्यद्धश्वद्गद्धब्ह् द्वद्दद्मह्यह्वह्य शद्मब्ह्य ड्ढह्व द्बभ्द्यड्डफ्द्मह्यड्ड स्रद्ध द्यस्)द्मद्धह्स्र द्बक्व"क्च॥द्मख्द्धद्ग द्यद्ग>ह्यड्डफ्ह्य क्द्मस्द्भ द्यद्मस्नद्म द्दद्ध ड्ढद्य द्यड्डठ्ठ॥र्द्मं द्गह्यड्ड ह्लद्मह्य द्धस्र;द्म ह्लद्मह्वद्म द्दस् द्वद्यस्रह्य द्धब्, क्द्बह्वद्मर्ड्ढं ह्लद्मह्वह्य शद्मब्द्ध द्धशद्ध/द्म ह्र;शरुस्नद्मद्म स्रद्म॥द्मद्ध द्बद्धद्भश्च; द्बभ्द्मढ्ढह् स्रद्भह्यड्डफ्ह्य्न
ह्द्मक्रर्द्ब;;द्द द्दस् द्धस्र शह्द्गद्मह्व द्बद्धद्भद्धरुस्नद्मद्धह्;द्मह्यड्ड द्गह्यड्ड ह्लद्मह्य स्रह्नहृ ह्र;द्धष्ठह्] द्बद्धद्भशद्मद्भ क्द्मस्द्भ द्यद्गद्मह्ल स्रह्य ह्वशद्धह्वद्गर्द्मं.द्म द्दह्यह्ह्न द्धस्र;द्म ह्लद्मह्वद्म क्द्मश;स्र द्दस् द्वद्यद्यह्य द्ध'द्मम्द्मद्मस्नद्मर्द्धं क्शफ्ह् द्दद्मह्य द्यस्रह्यड्डफ्ह्य्न द्बभ्द्धह्॥द्मद्म द्बद्धद्भ"स्रद्मद्भ] द्बद्धद्भशद्मद्भ स्रद्म क्द्ध॥ह्वश द्धह्वद्गर्द्मं.द्म,शड्ड द्यद्गद्मह्ल स्रद्ध द्वक्कश्चह्द्भद्मद्ध; द्यड्डश्चद्भह्वद्म स्रह्य द्य॥द्मद्भद्ध द्बम्द्मद्मह्यड्ड द्यह्य द्ध'द्मम्द्मद्मस्नद्मर्द्धं क्शफ्ह् द्दद्मह्य द्यस्रह्यड्डफ्ह्य्न ह्वस्द्धह्स्र ष्द्मस्द्ध)स्र क्द्मस्द्भ द्यद्मद्गद्मद्धह्लस्र यद्मद्धह् स्रद्मह्य क्फ्भ्फ्द्मद्गद्ध ष्ह्वद्मह्वह्य स्रह्य द्धब्, शद्द द्यष् स्रह्नहृ ह्लद्मह्व द्यस्रह्यड्डफ्ह्य ह्लद्मह्य;ह्नफ् /द्मर्द्गं स्रह्य क्ह्वह्न:द्ब ह्लद्मह्वह्वह्य;द्मह्यंग; द्दस््न ह्द्धह्व द्गद्दह्वह्य ह्लस्द्यद्ध क्घद्ब क्शद्ध/द्म द्गह्यड्ड ड्ढह्ह्वह्य द्धश"द्म;द्मह्यड्ड स्रद्ध द्यस्)द्मद्धह्स्र,शड्ड ह्र;द्मशद्दद्मद्धद्भस्र ह्लद्मह्वस्रद्मद्धद्भ;द्मड्डँ द्बभ्द्मढ्ढह् स्रद्भ द्यस्रह्वद्म,स्र द्बभ्स्रद्मद्भ द्यह्य फ्द्मफ्द्भ द्गह्यड्ड द्यद्मफ्द्भ॥द्मद्भ ठ्ठह्यह्वद्म॥द्मद्ध स्रद्दद्म द्यस्रह्द्म द्दस््न
ड्ढद्य द्बभ्द्ध'द्मम्द्म.द्म स्रह्य द्धब्, फ्द्मह्यष्द्भ फ्.द्मह्य'द्म]॥द्मह्लह्वद्मह्वड्डठ्ठ] स्नद्मह्यस्र द्दद्मद्भह्य] क्/र्द्मंद्धशद्धम्द्मढ्ढह् ष्ख्ह्यड्ड द्वद्दह्यड्ड [द्मद्मह्यह्लह्यड्ड क्द्मस्द्भ द्बभ्द्मह्यक्रद्यद्मद्धद्दह् स्रद्भस्रह्य द्य= द्गह्यड्ड द्यद्धश्वद्गद्धब्ह् द्दद्मह्यह्वह्य स्रह्य द्धब्,॥द्मह्यह्लह्यड्ड्न
द्बभ्द्मश्चद्धह्वस्रद्मब् स्रद्ध फ्ह्न:स्रह्नब् द्ब)द्धह्;द्द स्नद्मद्ध द्धस्र क्द्मछ्वद्ग द्यड्डश्चद्मब्स्र द्य॥द्मद्ध हृद्म=द्मह्यड्ड स्रह्य द्धब्,॥द्मद्मह्यह्लह्व] द्धह्वशद्मद्य] द्ध'द्मम्द्म.द्म क्द्मद्धठ्ठ स्रद्ध द्धह्वत्न'द्मह्नंघस्र ह्र;शरुस्नद्म स्रद्भह्ह्य स्नद्मह्य] ह्द्मद्धस्र द्य॥द्मद्ध फ्द्भद्धष्&क्द्गद्धद्भ द्वद्यस्रद्म द्यद्गद्मह्व :द्ब द्यह्य ब्द्म॥द्म द्वक्चद्म द्यस्रह्यड्ड्न ह्लद्मह्य र्द्यशंस्नद्मद्म द्धह्व/र्द्मंह्व ह्वद्दद्धड्ड स्नद्मह्य्न शह्य ठ्ठद्मह्व :द्ब द्गह्यड्ड क्द्बह्वह्य टद्बद्भ क्द्मह्वह्य शद्मब्द्म क्द्मछ्वद्ग [द्मर्श्चं ब्द्मस्कद्मह्ह्य द्भद्दह्ह्य स्नद्मह्य] ह्द्मद्धस्र द्धह्व/र्द्मंह्व स्रद्म द्दस्र ह्व द्गद्मद्भद्म ह्लद्म;्न;द्दद्ध द्ब)द्धह् ड्ढद्य द्बभ्द्ध'द्मम्द्म.द्म द्गह्यड्ड॥द्मद्ध क्द्बह्वद्मर्ड्ढं फ्ड्ढ द्दस््न शरु= क्द्मस्द्भ द्धशरुह्द्भ क्द्बह्वह्य द्यद्मस्नद्म ब्ह्यस्रद्भ श्चब्ह्यड्ड्न द्वस्त्रद्मह्यफ्द्मह्यड्ड द्गह्यड्ड [द्मह्यब्स्रख्ठ्ठद्मह्यड्ड द्गह्यड्ड [द्मद्मस्रद्ध ह्वह्यस्रद्भ स्रद्गह्लद्ध स्रद्म द्वद्ब;द्मह्यफ् द्दद्मह्यह्द्म द्दस््न शह्य॥द्मद्ध ठ्ठद्मह्य ह्लद्मह्यरुद्ध द्यद्मस्नद्म ब्ह्यस्रद्भ श्चब्ह्वद्म श्चद्मद्धद्द,्न द्बह्नरुह्स्रह्यड्ड शद्मस्त्र;ड्ड= द्धह्लह्वस्रद्ध द्धह्वह्लद्ध द्दद्मह्य] शह्य द्वद्यस्रद्ध ह्र;शरुस्नद्मद्म॥द्मद्ध स्रद्भस्रह्य श्चब्ह्य्न द्गद्मफ् ह्र;; द्य॥द्मद्ध स्रद्मह्य क्द्बह्वद्म&क्द्बह्वद्म स्रद्भह्वद्म द्दद्मह्यफ्द्म्न द्बद्दब्ह्य द्य= स्रद्म 'द्मह्न॥द्मद्मद्भश्व॥द्म ड्ढद्य ष्द्यड्डह् द्बर्ख्शं 13 ह्लह्वशद्भद्ध द्यह्य द्धस्र;द्म फ्;द्म द्दस््न ठ्ठख्द्यद्भद्म,स्र द्गर्ड्ढं द्गह्यड्ड श्चब्ह्यफ्द्म्न द्ध'द्मम्द्मद्म;ख्ह्वह्द्ग ह्लख्द्धह्व;द्भ द्दद्मर्ड्ढं रुस्रख्ब् रुह्द्भ ह्स्र स्रद्ध द्दद्मह्यह्वद्ध श्चद्मद्धद्द,्न क्द्म;ह्न;ख्ह्वह्द्ग 29 श"र्द्मं्न द्बभ्स्नद्मद्ग द्य= स्रद्ध॥द्मह्द्ध क्तद्भशद्भद्ध द्ग/; ह्स्र श्चब्ह्यफ्द्ध्न
द्बभ्शह्य'द्म द्बद्मह्वह्य स्रह्य ड्ढक्कहृह्नस्र द1ड्ट क्द्बह्वद्म द्बख्द्भद्म ह्वद्मद्ग&द्बह्द्म द2ड्ट द्ध'द्मम्द्मद्म द3ड्ट ह्र;शद्यद्म; द4ड्ट क्द्म;ह्न द5ड्ट ह्लद्ग ह्लद्मद्धह् द6ड्ट द्धद्ग'द्मह्व स्रद्ध द्बद्ध=स्रद्मक्द्मह्यड्ड स्रह्य द्यठ्ठरु; द्दद्मह्यह्वह्य स्रद्म द्बभ्द्गद्म.द्म द7ड्ट 'द्मद्मद्भद्धद्धद्भस्र&द्गद्मह्वद्धद्यस्र ठ्ठक्वद्ध"क द्यह्य रुशरुस्नद्म द्दद्मह्यह्वह्य स्रद्म क्द्म'शद्मद्यह्व द8ड्ट क्द्मछ्वद्ग स्रद्ध द्ग;र्द्मंठ्ठद्मक्द्मह्यड्ड स्रद्म छ्व)द्मद्बर्ख्शंस्र द्बद्मब्ह्व स्रद्भह्वह्य स्रद्म द्धश'शद्मद्य्न ड्ढह्व द्य॥द्मद्ध ष्द्मह्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य द्यद्मठ्ठह्य स्रद्मफ्ह्ल द्बद्भ द्धब्[द्म स्रद्भ॥द्मह्यह्लह्वद्म श्चद्मद्धद्द, क्द्मस्द्भ क्ष् ह्स्र स्रह्य क्द्बह्वह्य ह्लद्धशह्व स्रद्ध फ्द्धह्द्धशद्ध/द्म;द्मह्यड्ड स्रद्म द्धशशद्भ.द्म॥द्मद्ध द्धब्[द्मह्वद्म श्चद्मद्धद्द,्न;द्दद्मड्डँ स्रद्ध द्बद्मह्य'द्मद्मस्र /द्मद्मह्यह्द्ध&स्रह्नह्द्ध द्दस्] पाजामा व पैण्ट नहीं चलता।
आवेदन पत्र आने पर छाँट की जाती है और जिन्हें प्रवेश मिलना हैं, उन्हें स्वीकृति दी जाती है। स्वीकृति पाने के बाद भी किसी को अपने की तैयारी करनी चाहिए। अनावश्यक आ धमकने पर प्रवेश न मिल सकेगा। इच्छुकों की संख्या अधिक है और स्थान की कमी से शिक्षार्थी सीमित ही लिए जाते हैं। जगह भर जाने पर किसी अगले सत्र में प्रवेश मिलने की प्रतीक्षा भी की जा सकती है।
हर प्रशिक्षार्थी से यह आशा की गई है कि वे इस प्रशिक्षण से स्वयं तो लाभ उठावेंगे ही साथ ही इस आधार को अपने क्षेत्र में विकसित करने एवं शिक्षण देने की भी यथा सम्भव व्यवस्था करेंगे।