Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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अभिशप्त राजमहल!
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विश्व में ऐसे अनेकों स्थान, राजमहल, वस्तुएं अथवा उपकरण जिनके बारे में कहा जाता है कि वे अभिशप्त है। जिसने भी उन्हें अपने अधिकार क्षेत्र में करना और उपयोग में लाना चाहा या जिसके पास भी वे रहे, उन्हें न केवल सुख शान्ति से वंचित होना पड़ा, वरन् कितनों को तो अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा।
एड्रीआटिक समुद्रतट पर ट्रिएस्ट नगर में खड़ा भव्य राज-महल “केसल ऑफ मिरामर” एक ऐसा ही शापित राजभवन है जिसका निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व आस्ट्रिया के तत्कालीन सम्राट ने अपने भाई आर्क ड्यूक मेकिस मिलेन के लिए करवाया था। किन्तु न जाने उस स्थान के साथ कौने से ऐसे चिर संस्कार जुड़े थे कि इस राजप्रसाद में जिस किसी ने निवास किया व चैन से न रह पाया और अन्ततः बेमौत मारा गया।
सर्वप्रथम ‘केसल आफ मिरामर’ नामक इस भव्य भवन में आस्ट्रिया के सम्राट फ्रांस जोसेफ ने अपने छोटे भाई आर्कड्यूक मेसि को एक विशेष समारोह के साथ प्रवेश कराया था। इस अवसर पर नगर के गणमान्य लोग भी उपस्थित थे। राजमहल को देखकर सभी ने उसके स्थापत्य कला की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसमें हर प्रकार की सुख सुविधा के साधन उपलब्ध थे किन्तु मेकिस मिलेन को वहाँ एक दिन के लिए भी चैन नहीं मिला। वह रात को उसमें सो नहीं सकता था। हर समय एक प्रकार की बेचैनी घेरे रहती थी। स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गितर जा रहा था, जिसे देखकर सम्राट ने उसे स्थान परिवर्तन की सलाह दी और मेक्सिको उपनिवेश सम्राट बनाकर भेजा, किन्तु वहाँ पहुँचने से पूर्व किसी अज्ञात व्यक्ति ने मार्ग ही उसकी हत्या कर दी।
उत्तराधिकार में वह राजप्रासाद मेकिस मिलेन की भगिनी एलिजाबेथ को मिला। वह बड़े शान शौक से उसमें रहने आई। अपने साथ राजकुमार रुडोल्फ को भी लेती आई। वहाँ आने के कुछ ही दिनों पश्चात् किसी ने रुडोल्फ को एवं उसकी पत्नी की भी हत्या कर दी जिसके दुःख से एलिजाबेथ टूट सी गई। वह उदास और पागल सी रहने लगी। छठे वर्ष उसका भी किसी ने अंत कर दिया।
अब तो लोगों में इस राजमहल के अभिशप्त होने की आशंका होने लगी। लेकिन रुडोल्फ का चेचरा भाई आर्क ड्यूक फ्रान्सिस फरर्नान्डिस इस प्रकार की आशंकाओं को निर्मूल एवं अन्धविश्वास मानता था। वह उसमें निवास करने लगा। दुर्भाग्यवश ट्रिएस्ट नगर के समीप ही सर्जांवा नामक ग्राम से प्रथम विश्वयुद्ध का सूत्रपात इसकी हत्या से ही आरम्भ हुआ इस युद्ध में राजमहल के सभी कर्मचारियों को मौत के घाट उतार दिया गया। साथ ही आस्ट्रिया पर इटली का आधिपत्य हो गया। मुसोलिनी से इस राजभवन में अपने वफादार सैनिक अधिकारी ड्यूक एओस्टा को रहने के लिए भेजा। पर उसी बेचैनी और अदृश्य भय ने उसे दबोच लिया जिसके चंगुल में फंसकर अब तक कई राजकुमारों और कर्मचारियों ने अपनी जान गंवाई थी। विवश होकर मुसोलिनी को उसे अभियोपिया का वायसराय बनाकर विदेश भेजना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्य ने उसका पीछा यहाँ भी नहीं छोड़ा। रास्ते में ही ब्रिटिश ईस्ट अफ्रीका में वह युद्ध कैदी बना लिया गया और अमानवीय यातनाएं देने के बाद उसे गोली मार दी गई।
‘केसल आफ मिरामर’ नामक इस राजभवन में न केवल निवास करने वाले व्यक्तियों को अकाल मृत्यु का वरण करना पड़ा, वरन् जिस राज्य के अधीनस्थ वह रहा उसे भी भारी क्षति उठानी पड़ी। द्वितीय विश्व युद्ध में यह नगर इटली से छिन गया और अमेरिका के आधिपत्य में आ गया। उस राजमहल में दो सैनिक अधिकारियों-मेजर जनरल पियन्ट मुर एवं बिरनिस को निवास करने का आदेश मिला और वे रहने भी लगे। किन्तु कुछ ही महीनों पश्चात् लोगों ने देखा कि लाशें क्षत-विक्षत अवस्था में पड़ी थी, किसी ने उनकी हत्या कर दी थी।
केवल अर्ध शताब्दी जिने स्वल्प समय में ही इस राजमहल से जुड़े कितने ही शासनाध्यक्षों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों को समय से पूर्व की अकाल मृत्यु का वरण करना पड़ा, तीनों की हत्या की गई। आस्ट्रिया, इटली, अमेरिका आदि भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के शासक इस में रहे पर कोई भी उसमें चैन से रहने नहीं पाया। भय का केन्द्र बना हुआ जनशून्य वह भव्य राजभवन आज के बुद्धिजीवियों एवं वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती बना हुआ है।