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Magazine - Year 1988 - Version 2

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सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न

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प्रकृति ने सुविधा वितरण में प्राणियों के साथ पक्षपात नहीं किया है। उसने अपनी संतानों में से किसी को भी ऐसा नहीं रखा जिसके लिए यह कहा जा सके कि वह अभावग्रस्त है।

हर प्राणी की एक जीवन परिधि है। उसकी अपनी दुनिया तथा अपनी आवश्यकता है। प्रकृति के अनुदान प्राणियों को इस आधार पर मिले हैं, जिससे वे निर्धारित जीवनचर्या को सुविधापूर्वक सम्पन्न कर सकें।

एक प्राणी की दूसरे से तलना आवश्यक है क्योंकि उनकी जीवनचर्या एक जैसी नहीं है। प्राणि-जगत के असंख्य समुदाय अपने-अपने ढंग से निर्वाह करते हैं। उनकी आवश्यकता भी एक जैसी नहीं है। एक के लिए जो सुविधाजनक है, वह दूसरे के लिए सर्वथा अनावश्यक हो सकती है। बंदर और शेर को पूँछ के सहारे लम्बी छलाँग लगाने में सहायता मिलती है किन्तु यदि वही मनुष्य के लगी होती तो अनावश्यक ही नहीं असुविधाजनक भी होती। घोड़ा अपनी पूँछ से मक्खियोँ उड़ाने का काम लेता है, पर मनुष्य के शरीर में यदि वह अवयव रहा होता तो उससे उलटे कठिनाई का सामना करना पड़ता।

हाथी की आवश्यकता को देखते हुए प्रकृति ने उसे लम्बी सूंड ठीक ही दी है, पर यदि वह घोड़े को मिली होती तो उससे उलटे कठिनाई में फँसना पड़ता। मनुष्य को जिस स्तर की जीवनचर्या अपनानी पड़ती है, उसे उसी के अनुरूप शारीरिक तथा मानसिक संरचना वाली काया मिली है। अन्य प्राणियों को न उन साधनों की आवश्यकता थी न प्रकृति ने उनके ऊपर उन्हें लादा ही है। ऐसी दशा में किसी प्राणी को किसी से तुलना करना और एक को समृद्ध एवं दूसरे को अभावग्रस्त ठहराना व्यर्थ है।

अन्य प्राणियों में भी ऐसी विशेषताएं पाई जाती है, जिन्हें देखते हुए यह कहना पड़ सकता है कि प्रकृति ने मनुष्य को उन सुविधाओं से वंचित रखकर पक्षपात किया है। अपने-अपने क्षेत्र में हर प्राणी साधन सम्पन्न है और शान्तिपूर्वक जीवन-यापन कर रहा है। उनकी तुलना में मनुष्य अपने को पिछड़ा हुआ भी अनुभव कर सकता है।

असाधारण परिस्थितियों की पृष्ठभूमि बनने पर जहाँ मनुष्य को इसका कोई आभास नहीं होता वहाँ साधारण पशु-पक्षियों को भी निकट भविष्य में घटित होने वाली दुर्घटनाओं-प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वाभास हो जाता है और वे असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। चूहे बिलों में छिप जाते हैं, बिल्ली भी कही नहीं दिखती। घोड़े बेलगाम दौड़ने लगते हैं, चिड़ियां चहचहाने लगती है। चीतल, हिरन, शेर आदि जंगली जानवर समूह बनाकर चुपचाप सुरक्षित स्थान पर जा खड़े होते हैं।

प्रसिद्ध जीवशास्त्री विलियम जे0 लाग ने अपनी पुस्तक “हाऊ एनीमल्स टाक” में इस तरह की अनेक घटनाओं का वर्णन किया है, जिसके आधार पर पशु-पक्षियों की अतीन्द्रिय क्षमताओं का परिचय मिलता है। अमेरिका के माउंट पीरो पर्वत के इर्द-गिर्द अनेकों बस्तियाँ थी जिनमें लाखों लोग निवास करते थे। लगभग 90 वर्ष पूर्व एक दिन लोगों ने देखा कि उस क्षेत्र में रहने वाले प्राणियों के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आ गया है। उनके क्रियाकलाप असामान्य हो गये हैं। सभी प्राणियों में एक विचित्र सी घबराहट, बेचैनी है, जो किसी खतरे का पूर्वाभास था। जो पालतू जानवर थे वह तो कुछ न कर पाये, पर साँप, कुत्ते, सियार पास वाले क्षेत्र से विदा होने लगे। जंगली जानवरों के झुण्ड उस पर्वतीय अंचल को छोड़कर अन्यत्र चले गये। कुछ समय पश्चात् ही माउंटपीरो पर एक भयानक विस्फोट के साथ ज्वालामुखी फटा और देखते-देखते आसपास की बस्ती को निगल गया। तीस हजार से अधिक लोग उसके पेट में समा गये।

जीव विज्ञानियों का कहना है कि ये मूक प्राणी बदलते घटनाक्रम का पूर्वाभास सरलतापूर्वक शीघ्रता से कर लेते हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता भी यदि इनमें होती तो यह भविष्यवाणियाँ भी किया करते। यूगोस्लाविया में 1936 में आये भूकम्प से पूर्व चिड़ियाघर के सभी पक्षी जोर-जोर से चहचहाने लगे थे, मानो वे बुद्धिमान मनुष्य से कुछ कहना चाहते थे। इसी तरह चीन में दो दशक पूर्व टिन्टसिन क्षेत्र में आये भूकम्प के पूर्व चूहे अपनी माँद में नहीं गये। शेर उतावले हो गये एवं नाक याक ने भोजन लेना बन्द कर दिया। घोड़े और भेड़-बकरियाँ अनवरत रूप से दौड़ने लगे थे। 1966 में सिंगटाई में आये भूकम्प से पहले ही चूहे अपने बिलों में छिप गये थे।

प्राचीन काल में जंगली हंसों के चीखने से रोम के लोग अनेक बार प्राकृतिक विपदाओं से बच गये थे। पीत चिड़िया का उपयोग कोयला खान के मजदूरों को गैस रिसने से सावधान करने में किया जाता था। वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में बताया कि कोबरा जाति का सर्प आँधी, तूफान और अतिवृष्टि को बहुत पहले से ही जान लेता है और स्वयं सुरक्षित पेड़ों पर चढ़ जाता है और तब तक वहीं रहता है जब तक कि तूफान शान्त नहीं हो जाता। चीतल और हिरन जो दिन भर कुलाचें भरते रहते हैं ऐसे अवसरों पर समूह बनाकर किसी ऊँचे एवं सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं। मौसम खराब होने से पूर्व मधुमक्खियाँ दिन में भी अपने छत्ते में एकत्र होकर भिनभिनाने लगती हैं जो सामान्यतः ऐसा नहीं करतीं। मैना भी तूफान और चक्रवात के पहले जोरों से चीखती है। बर्फीले प्रदेशों के भालू वर्षा होने या बर्फ गिरने के भय से अपनी गुफाओं में आहार एकत्र करने लगते हैं।

प्रकृति ने सभी प्राणियों को उनकी स्थिति के अनुरूप विशिष्टताएं प्रदान की है। कुत्ते, भेड़िये मीलों दूर की गंध सूँघ लेते हैं। चील और गिद्ध दूर पृथ्वी पर, आकाश में उड़ते हुए भोजन तलाश लेत हैं। गोशल्व जाति का बाज लड़ाकू विमानों की तरह बिना वेग को कम किये उलटने-पलटने की कलाबाजियाँ जानता है। गरुड़ पक्षी विशालकाय होने पर भी 200 किलोमीटर प्रति घंटे की तीव्र गति से उड़ता है। थलचर प्राणियों में चीता तीव्रगति सम्पन्न है। वह 60 मील प्रति घंटे के हिसाब से आसानी से दौड़ सकता है। विशेष अवसरों -प्रतिरक्षा या आक्रमण के समय वह 90 से 100 मील प्रति घंटे की तीव्रतम गति से भी दौड़ लेता है। ऑस्ट्रेलिया का कंगारू 40 फुट ऊँची छलाँग लगाता है। सर्प की लचीली और मजबूत माँसपेशियाँ उसे कुण्डलित होने में सहायक होती है। हाथी की सूँड चार हजार माँस पेशियों से निर्मित होने पर भी जमीन पर पड़ी हुई सुई उठाने में सक्षम है।

अंगों की मजबूती के दृष्टिकोण से शेर का पंजा और ह्वेल मछली सशक्त है। अन्य प्राणियों के कोई भी अंग इतने मजबूत नहीं है। आक्टोपस नामक जलचर की भुजाओं में जो भी प्राणी जकड़ जाये उसका जीवित बचना मुश्किल है।

उल्लू भी विचित्र जीव है। वह मनुष्य की अपेक्षा दस गुनली कम रोशनी में भी देख लेता है। मछलियाँ पानी के भीतर तैरते हुए ऊपर-नीचे दोनों और देख लेती है। कुत्ता स्मरणशक्ति की दृष्टि से विलक्षण है। दूरस्थ स्थापन पर छोड़े जाने के बाद भी पूर्व परिचित स्थान पर पुनः वापस लौट आता है। इनकी अतीन्द्रिय क्षमताएं विलक्षण होती है। इस पर अनुसंधानरत मूर्धन्य वैज्ञानिक डॉ. विदलाग ने “न्यूयार्क टाइम्स” में एक लेख प्रकाशित किया है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि क्रेन के नीचे सोता हुआ एक कुत्ता एकाएक चौंककर भाग खड़ा हुआ। इसके कुछ समय पश्चात ही क्रेन की जंजीर की कड़ी टूटी और एक लौह खण्ड ठीक उसी स्थान पर जा गिरा जहाँ कुत्ता सोया था।

अपृष्ठवंशी कीट-पतंगों की दुनिया बहुत ही निराली है। प्रख्यात एण्टोओलाजिस्ट ‘आवेड’ के अनुसार -जैसे माताएं अपने कमजोर, मंदबुद्धि बालकों का विशेष ध्यान रखती है, ऐसे ही प्रकृति माता भी इन मूक प्राणियों पर सहज ही ऐसी कृपा किये हुए है जिससे ये इतने विधि आकार-प्रकार धारण करते हुए भी सृष्टि की किसी भी परिस्थिति में जीवित रह सकते हैं। कीटों में हड्डियाँ नहीं होती। अपने बचाव के लिए वे बाहरी कवच धारण किये होते हैं। इनमें हृदय पीट के बगल में ऊपर होता है। टाँगें खोखली नलिकाओं जैसी होती है जिनकी इंजीनियरिंग अपने आकार में विश्व के सबसे शक्तिशाली उपकरण जैसी होती है। वैज्ञानिकों ने एक प्रकार के कीट पर भार लादने का प्रयोग किया तो वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि वह अपने वजन से 750 गुना अधिक भार बड़ी आसानी से ले जाने में समर्थ रहा। जबकि सामान्य मनुष्य अपने वजन का अधिक से अधिक दो तिहाई भार ही उठा सकता है। कीटों का बाहरी कवच उन्हें आश्चर्यजनक दृढ़ता प्रदान करता है।

एक प्रकार की राजा तितली जिसे फूँकमार कर उड़ाया जा सकता है सतत् तीन हजार मील से भी अधिक का यात्रा-प्रवास करती रहती है। वैज्ञानिकों ने जब ‘पेन्टेड लेडी बटर–फ्लाई’ को विशेष चिन्ह द्वारा अंकित करके उत्तर अफ्रीका से छोड़ा जो वे रास्ते में आने पर भयंकर तूफानों, झंझावातों एवं वर्षा को झेलते हुए कटे-फटे पंख होने पर भी आइलैंड पहुँच गयी।

कीटकों के फेफड़े नहीं होते। उनके शरीर के दोनों ओर छोटे-छोटे छिद्र होते है जिनके द्वारा उनके शरीर के प्रत्येक अवयव में वायु का आवागमन होता रहता है। विश्राम के समय इन्हें बहुत कम आक्सीजन की जरूरत होती है, लेकिन उड़ते समय विश्रामावधि की अपेक्षा 50 गुनी अधिक आवश्यक होती है। इनके पंखों की संरचना ऐसी जिसमें गति विज्ञान के प्रत्येक सिद्धान्तों का बारीकी से पालन किया गया है अन्यथा ड्रेगन–फ्लाई, जिसके पंख तले कागज से भी बारीक होते हैं, वह 40 मील प्रति घंटे को गति से कैसे उड़ सकती? मच्छर तो हवाई गति विज्ञान व आश्चर्यजनक उपयोग करके अपने वजन का दुगुना लेकर ऊँची उड़ान भर कसता है। ऐसा करने के लिए उसे अपने पंखों के प्रति सेकेंड 300 से अधिक बार लाना पड़ता है। कुछ ऐसे सूक्ष्म कीट होते है जो आँखों से तो दिखाई नहीं पड़ते पर प्रति सेकेंड 1000 से भी अधिक बार वे अपने पंखों को हिला सकते हैं। कुछ कीटक ऐसे भी होते हैं जिनके पंख काम नहीं करते अथवा होते ही हीं वे अपनी ऊँचाई से सौ गुनी अधिक ऊँची छलाँग लगा सकते हैं। पर मनुष्य में इतनी क्षमता कहाँ जो ऊँचे से ऊँचे स्थान से बिना किसी यंत्र उपकरण के छलाँग लगा सके।

देखने में नाजुक लगने वाले ये क्षुद्र जीव इतने मजबूत होते हैं कि अचानक परिस्थितियों के प्रतिकूल हो जाने पर जीवित बने रहते हे। प्राकृत इतिहास के अमेरिकन संग्रहालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एफ0ई॰ लुत्ज ने कुछ मधुमक्खियों एवं तितलियों को एक काँच की नली में बन्द करके उसकी हवा निकल कर वैवक्यूम-निर्वात कर दिया था बाद में उस नली को तोड़ दिया। इस प्रकार के अचानक दबाव परिवर्तन से कोई भी अन्य प्राणी जीवित नहीं रह सकता लेकिन इन छोटे-छोटे कीटक कैदियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा और नली टूटते ही वे प्रसन्नता पूर्वक उड़ गये। इनकी जगह पर यदि सबसे मजबूत जानवर हाथी भी रहा होता तो वह तत्काल मर जाता।

प्राथमिक स्तर का अविकसित मस्तिष्क होने एवं कर्णेन्द्रिय के अभाव में भी कीड़े दो तरह से सुन सकते हैं। एक तो शरीर पर या अन्य अंग अवयवों, उपाँगों पर उपस्थित सूक्ष्म बालों की सहायता से स्पर्श द्वारा ध्वनि तरंगों का अनुभव कर सकते हैं। दूसरे कुछ विशेष प्रकार की झिल्लियाँ विभिन्न कीटों में विभिन्न स्थानों पर होती है जो श्रवण अंग का कार्य करती है - जैसे - झींगुर में ये घुटनों पर होती है। ये पराश्रव्य ध्वनियों की सुनने की क्षमता रखते हैं और 135000 आवृत्ति तक की ध्वनियों को सुन लेते है जब कि मनुष्य अधिक से अधिक 2000 आवृत्ति तक की ध्वनि को ही सुन सकता है।

गन्ध एवं स्वाद की परख की क्षमता कीटों में अन्य सभी प्राणियों से पराकाष्ठा तक विकसित हुई है। मनुष्य के मिठास को परखने की क्षमता का एक भाग शक्कर और 200 भाग पानी तक ही होती है, पर कुछ कीटों की यह क्षमता इतनी अधिक विकसित होती है कि वे एक भाग शक्कर और तीन लाख भाग पानी तक की परख कर सकते हैं। कुछ कीटकों में गंध परखने की शक्ति इस हद तक विकसित होती है कि एक नर कीटक मादा की गंध की पहचान 9 मील तक कर सकता है। यह वे फेरामाँन्स के माध्यम से करते हैं।

ने अपनी दुनिया को चित्र-विचित्र साधनों और विभिन्नताओं से सुसज्जित किया है। प्राणि-जगत की भिन्नता और विचित्रता को देखते हुए उन सब में सृजनकर्ता की कुशलता और कलाकारिता छलकती दृष्टिगोचर होती है।

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