• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ॥कावाविमुक्तिर्विषयेविरक्तिः॥
    • आनन्द बाँटें, - सन्तोष पायें!
    • Quotation
    • श्रद्धा का आधार और अवलम्बन
    • सोमवती स्नान (Kahani)
    • नर-वानर देवमानव कैसे बने?
    • ईसा ने कहा (Kahani)
    • सविता के रूप में इष्ट का निर्धारण
    • विज्ञानवेत्ता से पूछा (Kahani)
    • दूरदर्शी विवेकशीलता “धीः”
    • एक दिन पहलवान बनूँगा (Kahani)
    • उच्चतम ज्ञान का उद्गम स्त्रोत - वेदान्त
    • सत्य और अहिंसा के परिपालन की सीमा!
    • Quotation
    • बुद्धि से परे विराट् का ज्ञान!
    • भिक्षुओं की स्थिति का निरीक्षण (Kahani)
    • साँची भक्ति रैदास की
    • आरोह तमसो ज्योतिः
    • नासमझी (Kahani)
    • परमार्थ में स्वार्थ भी समाहित है
    • लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाय (Kahani)
    • अन्तराल की सत्ता का परिवर्धन - परिष्कार
    • कुण्डलिनी शक्ति का जागरण एवं सृजनात्मक सुनियोजन
    • भिक्षु कश्यप (Kahani)
    • मानवी काया का सूक्ष्म रसायनशास्त्र
    • Quotation
    • देव पुरुष!सिद्ध पुरुष एवं हिमिप्रदेश
    • कवि भौंचक्के रह गए (Kahani)
    • भीम की मुनादी
    • जीभ को क्यों नहीं काटते (Kahani)
    • व्यक्ति निर्माण - उत्कृष्ट वातावरण पर निर्भर
    • मनुष्य का उच्च दृष्टिकोण (Kahani)
    • अणु में विभु, लघु में महान!
    • हम अकेले नहीं है!
    • मरणोत्तर जीवन एक परिचय
    • सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
    • अभिशप्त राजमहल!
    • क्या स्वप्न सिद्धि - सम्भव है?
    • वासंती उल्लास के साथ नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ
    • युग नेतृत्व का प्रशिक्षण
    • तो तुम्हें क्या आपत्ति है (Kahani)
    • शिक्षा संवर्धन की व्यावहारिक योजना
    • आखेट खेल रहा था (Kahani)
    • लोक नायकों का अभिनव निर्माण
    • स्वास्थ्य - रक्षा की अतिमहत्वपूर्ण शिक्षा
    • आजीविका उपार्जन और गृह उद्योग
    • Quotation
    • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
    • लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ (Kahani)
    • प्रशिक्षण सम्बन्धी अन्य ज्ञातव्य
    • सेनानायक नेलसन (Kahani)
    • नौ दिवसीय जीवन साधन सत्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ॥कावाविमुक्तिर्विषयेविरक्तिः॥
    • आनन्द बाँटें, - सन्तोष पायें!
    • Quotation
    • श्रद्धा का आधार और अवलम्बन
    • सोमवती स्नान (Kahani)
    • नर-वानर देवमानव कैसे बने?
    • ईसा ने कहा (Kahani)
    • सविता के रूप में इष्ट का निर्धारण
    • विज्ञानवेत्ता से पूछा (Kahani)
    • दूरदर्शी विवेकशीलता “धीः”
    • एक दिन पहलवान बनूँगा (Kahani)
    • उच्चतम ज्ञान का उद्गम स्त्रोत - वेदान्त
    • सत्य और अहिंसा के परिपालन की सीमा!
    • Quotation
    • बुद्धि से परे विराट् का ज्ञान!
    • भिक्षुओं की स्थिति का निरीक्षण (Kahani)
    • साँची भक्ति रैदास की
    • आरोह तमसो ज्योतिः
    • नासमझी (Kahani)
    • परमार्थ में स्वार्थ भी समाहित है
    • लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाय (Kahani)
    • अन्तराल की सत्ता का परिवर्धन - परिष्कार
    • कुण्डलिनी शक्ति का जागरण एवं सृजनात्मक सुनियोजन
    • भिक्षु कश्यप (Kahani)
    • मानवी काया का सूक्ष्म रसायनशास्त्र
    • Quotation
    • देव पुरुष!सिद्ध पुरुष एवं हिमिप्रदेश
    • कवि भौंचक्के रह गए (Kahani)
    • भीम की मुनादी
    • जीभ को क्यों नहीं काटते (Kahani)
    • व्यक्ति निर्माण - उत्कृष्ट वातावरण पर निर्भर
    • मनुष्य का उच्च दृष्टिकोण (Kahani)
    • अणु में विभु, लघु में महान!
    • हम अकेले नहीं है!
    • मरणोत्तर जीवन एक परिचय
    • सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
    • अभिशप्त राजमहल!
    • क्या स्वप्न सिद्धि - सम्भव है?
    • वासंती उल्लास के साथ नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ
    • युग नेतृत्व का प्रशिक्षण
    • तो तुम्हें क्या आपत्ति है (Kahani)
    • शिक्षा संवर्धन की व्यावहारिक योजना
    • आखेट खेल रहा था (Kahani)
    • लोक नायकों का अभिनव निर्माण
    • स्वास्थ्य - रक्षा की अतिमहत्वपूर्ण शिक्षा
    • आजीविका उपार्जन और गृह उद्योग
    • Quotation
    • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
    • लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ (Kahani)
    • प्रशिक्षण सम्बन्धी अन्य ज्ञातव्य
    • सेनानायक नेलसन (Kahani)
    • नौ दिवसीय जीवन साधन सत्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सविता के रूप में इष्ट का निर्धारण

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
उपासना मनुष्य जीवन की एक मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है। संसार की विषमताओं और जीवन की विपन्नताओं के बीच वह अपने आपको असहाय अनुभव करता है। प्रतिकूलताओं से अपने बलबूते निपट न पाने पर उसे किसी ऐसे समर्थ साथी की आवश्यकता है जो उसका साथ दे सके, हाथ बंटा सके। भले ही दूरवर्ती या अदृश्य ही क्यों न हो?

असफलताएं और प्रतिकूलताएं मनुष्य को तोड़ देती हैं, इस स्थिति से उबरने के लिए कोई आशा की किरण चाहिए जो खोये हुए को पुनः वापस दिलाने कहा आश्वासन दे सके। इसी प्रकार आतंक और आक्रमण से तिलमिला जाने पर ऐसे न्यायनिष्ठ की खोज की जाती है जो आहत के बदले प्रतिशोध ले सके।

सृष्टि संरचना और गतिविधियोँ में भी ऐसी विषमताएं पाई जाती है जो तूफान, भूकम्प, बढ़ जैसी अप्रत्याशित घटनाओं के घटित होने पर कोई स्पष्ट कारण नहीं बतातीं। मनुष्य हतप्रभ हो जाता है। जब भी अनसुलझी गुत्थियों के पीछे ईश्वर की मर्जी खोजनी पड़ती है और वैसा कुछ दिन अपने ऊपर न आ पड़े इसलिए भी ईश्वर की शरण लेनी पड़ती है। मरने के बाद परलोक के संबंध में मनुष्य अपने को समर्थों असमर्थ अनुभव करता है। सोचता है कि वहाँ कि परिस्थितियाँ ईश्वर की इच्छा से ही प्राप्त हो सकती है। वर्तमान जीवन में भी कठिनाइयों के समाधान और सुविधाओं के संवर्धन में ईश्वर की अप्रत्याशित सहायता मिल जाने की अपेक्षा रहती है।

कितने ही भावुकजन किसी सर्व समर्थ की मैत्री एवं अनुकम्पा चाहते हैं, इसलिए भी उन्हें उपासना का आश्रय लेना होता है। विचारवान अपने चारों और घिरे हुए वातावरण का कोई कर्ता ढूँढ़ते हैं और वह ईश्वर ही दृष्टिगोचर होता है। कइयों को इस चमत्कारी सृष्टि रचना का निमित्त कारण ईश्वर ही दीखता है और उसकी मनुहार करने - भेंट पूजा का आश्रय लेने में ही अपनी भलाई दीखती है। शास्त्रकारों और आप्तजनों ने सृष्टा की प्रशंसा में - उसकी सत्ता प्रतिपादन में - बहुत कुछ कहा है। इसके अतिरिक्त भजनानंदियों का भी एक बड़ा समुदाय है। जिनकी गतिविधियों से सामान्य जन प्रभावित होते हैं और अनुकरण में बुद्धिमता सोचते हैं। ऐसे ही अनेक कारण हैं जो आस्तिक होने की प्रामाणिकता प्रकट करने के लिए ईश्वर पर विश्वास करते और उसका अवलम्बन लेते हैं। संसार में अधिकाँश जनों की मनःस्थिति ऐसी ही है। डावां–डोल चित्त वाले और भजन न करने वाले भी प्रत्यक्षतः अपने को नास्तिक नहीं कहते हैं। दोष लगाना हो तो पुजारियों पर लगाते हैं। दोषारोपण ईश्वर पर नहीं करते।

इतने पर भी एक बड़ी कठिनाई यह है कि आस्तिक वर्ग के लोग ईश्वर को एक मानते हुए भी उसके अनेक रूप गढ़ लेते हैं और अपनी-अपनी मान्यता पर इतना अधिक बल देते हैं कि दूसरों के निर्धारण को झूठा कहना पड़े। सम्प्रदायों के बीच आये दिन मचे रहने वाले कलह का एक बड़ा कारण यह भी है कि वे ईश्वर की आकृति और प्रकृति के संबंध में अत्यधिक भिन्नता मानते हैं।

अच्छा होता कि ईश्वरवादी और अनीश्वरवादी दो ही पक्ष रहते। कम से कम आस्तिकों को तो ईश्वर के स्वरूप एवं मन्तव्य के संबंध में एक मत होना चाहिए था। उतना भी न बन पड़ने से अनीश्वरवादियों के तर्क ही भारी पड़ते हैं। और बहुमत में होते हुए भी आस्तिक अपने मतभेदों और विग्रहों के कारण हलके पड़ते हैं। अच्छा हो समय रहते यह भूल सुधार ली जाय जैसा कि उसे एक माना जाता है, वैसे ही उसका ऐसा स्वरूप भी निर्धारित कर लिया जाय जिससे एकता की दिशा में आस्तिक समुदाय का बढ़ चलना संभव हो सके।

विचारने पर ऐसा स्वरूप ‘सूर्य’ के रूप में निर्धारित करना अधिक युक्ति संगत प्रतीत होता है, क्योंकि जीवन उसी से आता है और हम सब उसी के आश्रय में अपनी अधिकाँश आवश्यकताएं पूरी करते हैं। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “दी रिडल आफ दी यूनिवर्स” में प्रख्यात विद्वान अर्नेस्ट हैकल ने लिखा है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व सूर्योपासना का क्रम प्राकृतिक देव शक्ति के रूप में ही चलता था। आधुनिक खगोल भौतिकी की मान्यताओं के अनुसार भी हमारी पृथ्वी सूर्य से निकला हुआ एक टुकड़ा है, जो कुछ हजार वर्षों बाद उसी की गोद में चली जायगी। शरीर विज्ञानियों का कहना है कि पृथ्वी पर जीवन की जो संभावनाएं दृष्टिगोचर हो रही हैं, सूर्य के ही फलस्वरूप हैं। इसलिए इसे इस सृष्टि का जीवनदाता कहा गया है। धरती पर जीवन का मूलस्रोत ‘प्रोटोप्लाज्म’ को माना जाता है। यहाँ तक कि अजैविकीय पदार्थ, पानी, कार्बनिक एसिड तथा अमोनिया जैसे सम्मिश्रण भी सूर्य से प्रभावित होते हैं। इसी कारण सूर्य की पूजा उपासना करने का विधान आदि काल से चला आ रहा है। सूर्य की पूजा करने वालों को लोग उत्कृष्ट श्रेणी का समझते थे। प्रकाशमान स्वर्णिम सूर्य की उपासना अभी भी विश्व के अनेक भागों में की जाती है।

ईश्वर के संबंध में सर्वाधिक प्रयोग ‘प्रकाश- का होता है। कोई आकाश में मानते हैं। प्रकाश का प्रतीक सूर्य को माना जाना अधिक तर्क संगत है। वह साकार भी है और निराकार भी। दिन में साकार हो जाता है और रात को निराकार। फिर दिन में भी उसका प्रत्यक्ष स्वरूप ही दृष्टिगोचर होता है। उसके अगणित प्रभाव बुद्धि से या उपकरणों से ही जाने जा सकते हैं। प्रकाश का चिन्तन करते ही ऊर्जा और गति का तारतम्य उसके साथ जुड़ा हुआ स्पष्ट होता है। इन्हीं की हमें प्रधानतया समर्थ जीवन के लिए आवश्यकता भी है। बुद्धिमता को भी ज्ञान रूपी प्रकाश में गिना जाता है। यह सारी विशेषताएं सूर्य में सन्निहित मानी जाती है।

इष्ट का निर्धारण या ध्यान करने मनुष्य उसी ढाँचे में ढलता है। यही उपासना का दर्शन है। ईश्वर को हम साकार न मानते हों तो निराकार प्रकाश पुँज के रूप में सविता के रूप में मानें, उसके तमोनाशक-पापनाशक, आनन्दकारक सद्गुणों को जीवन में उतारने का प्रयास करें तो ईश उपासना निश्चित ही फलीभूत होती है।

First 7 9 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ॥कावाविमुक्तिर्विषयेविरक्तिः॥
  • आनन्द बाँटें, - सन्तोष पायें!
  • Quotation
  • श्रद्धा का आधार और अवलम्बन
  • सोमवती स्नान (Kahani)
  • नर-वानर देवमानव कैसे बने?
  • ईसा ने कहा (Kahani)
  • सविता के रूप में इष्ट का निर्धारण
  • विज्ञानवेत्ता से पूछा (Kahani)
  • दूरदर्शी विवेकशीलता “धीः”
  • एक दिन पहलवान बनूँगा (Kahani)
  • उच्चतम ज्ञान का उद्गम स्त्रोत - वेदान्त
  • सत्य और अहिंसा के परिपालन की सीमा!
  • Quotation
  • बुद्धि से परे विराट् का ज्ञान!
  • भिक्षुओं की स्थिति का निरीक्षण (Kahani)
  • साँची भक्ति रैदास की
  • आरोह तमसो ज्योतिः
  • नासमझी (Kahani)
  • परमार्थ में स्वार्थ भी समाहित है
  • लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाय (Kahani)
  • अन्तराल की सत्ता का परिवर्धन - परिष्कार
  • कुण्डलिनी शक्ति का जागरण एवं सृजनात्मक सुनियोजन
  • भिक्षु कश्यप (Kahani)
  • मानवी काया का सूक्ष्म रसायनशास्त्र
  • Quotation
  • देव पुरुष!सिद्ध पुरुष एवं हिमिप्रदेश
  • कवि भौंचक्के रह गए (Kahani)
  • भीम की मुनादी
  • जीभ को क्यों नहीं काटते (Kahani)
  • व्यक्ति निर्माण - उत्कृष्ट वातावरण पर निर्भर
  • मनुष्य का उच्च दृष्टिकोण (Kahani)
  • अणु में विभु, लघु में महान!
  • हम अकेले नहीं है!
  • मरणोत्तर जीवन एक परिचय
  • सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
  • अभिशप्त राजमहल!
  • क्या स्वप्न सिद्धि - सम्भव है?
  • वासंती उल्लास के साथ नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ
  • युग नेतृत्व का प्रशिक्षण
  • तो तुम्हें क्या आपत्ति है (Kahani)
  • शिक्षा संवर्धन की व्यावहारिक योजना
  • आखेट खेल रहा था (Kahani)
  • लोक नायकों का अभिनव निर्माण
  • स्वास्थ्य - रक्षा की अतिमहत्वपूर्ण शिक्षा
  • आजीविका उपार्जन और गृह उद्योग
  • Quotation
  • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
  • लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ (Kahani)
  • प्रशिक्षण सम्बन्धी अन्य ज्ञातव्य
  • सेनानायक नेलसन (Kahani)
  • नौ दिवसीय जीवन साधन सत्र
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj