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Magazine - Year 1988 - Version 2

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कवि भौंचक्के रह गए (Kahani)

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एक कवि ने राजा की प्रशंसा में लम्बी कविता और इस भाव से चावपूर्वक सुनाई कि उसके बदले में राजा कोई बड़ा उपहार देगा।

कवि दरबार में उपस्थित हुआ। राजा ने ध्यान पूर्वक उनकी रचना सुनी साथ ही उद्देश्य भी समझा।

अब पुरस्कार देने की बारी आई। राजा ने कल दस हजार स्वर्ण मुद्राएं देने की बात कही और उन्हें विदा कर दिया।

कवि रात भर मिलने वाली राशि में अनेकानेक मनोरथ पूरे करने की योजनाएं बनाते रहे। फूले नहीं समाते थे। उत्सुकता और प्रसन्नता इतनी छाई रही कि रात को नींद भी न आई।

दरबार लगते ही कवि जा पहुँचे। राजा ने अनजान की तरह पूछा - किस लिए इतनी जल्दी आना हुआ?

कवि भौंचक्के रह गए। स्मरण दिलाया कि उन्हें आज दस हजार स्वर्ण मुद्राओं का उपहार राज्य कोष से मिलना जो है।

राजा हंस पड़े बोले - आपने हमें बातें बता कर खुश कर दिया। खुशी की बात सुनाकर अपने मन हरा कर दिया वस्तुतः स्वर्ण मुद्राएँ लेनी हों तो उसके बदले का परिश्रम राज्य व्यवस्था के लिए करना।

कवि निराश लौट गए। रास्ते भर सोचते रहे - शायद ईश्वर के यहाँ भी यही व्यवस्था है। जिसके कारण मेरी ही तरह भक्तजनों को भी निराश रहना पड़ता है।

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